Thursday, 30 December 2021

1857 क्रांति का गवाह बना पूरब का मैनचेस्टर 'कानपुर'

आजकल 'कानपुर' की चर्चाएं हर जुबान पर हैं। यह वही शहर है, जहां एक धनकुबेर के यहां से जब्त की गई अब तक की सबसे बड़ी अघोषित 'संपदा' मिली। हर नागरिक ने जीवन में पहली बार टी वी पर इतनी बड़ी धनराशि को देखा। वहीं एक विशेष रैली के दौरान कुछ उपद्रवियों द्वारा इसी शहर में दंगे कराने की नाकाम कोशिश भी की गई।


यह वही कानपुर है, जिसका मूल नाम था 'कान्हपुर'। नगर की उत्पत्ति का संचेदी के राजा हिंदू सिंह से अथवा महाभारत काल के दानवीर कर्ण से संबंध होना चाहे संदेहात्मक हो, पर इतना प्रमाणित है कि अवध के नवाबों के शासनकाल के अंतिम चरणों में यह नगर पटकापुर, जूही तथा सीमाभऊ गांवों के मिलने से बना।

इसी शहर से 22 किलोमीटर दूर गंगा किनारे 'बिठूर' एक धार्मिक स्थान है, जहां हिंदू शास्त्रों के अनुसार ब्रह्माजी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। माता सीता ने बिठूर में ही अपने दोनों पुत्र लव-कुश को जन्म दिया। भक्त ध्रुव ने भी यही तपस्या कर भगवान विष्णु को प्रसन्न किया था।


इस नगर का शासन कन्नौज तथा कालपी के शासकों के हाथों में रहा और बाद में मुसलमान शासकों के 1773 से 1801 तक अवध के नवाब अली अलमास अली का यहां शासन रहा। 1773 की एक संधि के बाद यह नगर अंग्रेजों के शासन में आया और 1778 में अंग्रेज छावनी बनी। गंगा-तट पर स्थित होने के कारण अंग्रेजों ने यहां उद्योग धंधों को बढ़ावा दिया। उन्होंने इसका नाम रखा 'CAWNPORE'। ईस्ट इंडिया ने सर्वप्रथम नील का व्यापार शुरू कर कपास और चमड़े के कारखाने लगाए‌।

1857 की क्रांति में कानपुर का अहम योगदान रहा। रानी लक्ष्मीबाई, तात्या तोपे, नानासाहेब, मंगल पांडे इस लड़ाई के प्रदर्शक थे जबकि नानासाहेब अंग्रेजो के खिलाफ बिठूर नगर का नेतृत्व कर रहे थे। गणेश शंकर विद्यार्थी ने अपनी कलम से ही अंग्रेजो के खिलाफ क्रांति का  उद्घोष किया।


♦️ इतिहास के झरोखे से:-

Wednesday, 29 December 2021

जो फिरंग़ी न कर पाये वो मेरे आज़ाद भारत के हुक्मरान कर गये !


आज सुबह- सुबह जब टीवी खोला तो पाया झांसी रेलवे स्टेशन का नाम वीरांगना लक्ष्मीबाई रेलवे स्टेशन रख दिया गया। आंखिर यह सब चल क्या रहा है देश में इतिहास झूठ है या फिर झूठ का इतिहास बनाना है। वैसे आज प्रधानमन्त्री पद पर रहते हुए सबसे ज़्यादा बार देवभूमि आने वाले मोदी जी की एक बार फिर आज कुमाऊँ के द्वार हल्द्वानी में जनसभा होनी है। यह कल्पना से परे की बात थी कि महारानी लक्ष्मीबाई का नाम झांसी के बिना भी लिया जा सकता है। बल्कि महारानी की ख्याति ही झांसी वाली रानी के रूप में है। झांसी वाली रानी नाम इतना विख्यात है कि दिल्ली सहित कई शहरों में सड़कों के नाम रानी झांसी रोड हैं। कई भारतीय महिलाओं के नाम रानी झांसी रखे जाते हैं। महारानी के बारे में सबसे प्रसिद्ध कविता में भी उन्हें झांसी वाली रानी ही कहा गया है। रानी लक्ष्मीबाई का प्रसिद्ध वाक्य भी यही है कि मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी।


दूर कहीं सितारों के बीच महारानी लक्ष्मी बाई की आत्मा भी यह देख अचंभित हो रही होगी कि उनसे जो झांसी अंग्रेज नहीं छीन पाए उसे अंततः मोदी और योगी की सरकार ने छीन कर दिखा दिया। अब तक भारत के हर कोने में हमें इस शहर का परिचय देने में बिल्कुल दिक्कत नहीं आती थी। झांसी का नाम लेते ही लोग कहते थे अच्छा झांसी वाली रानी, वही शहर। ऐसा कहने वाले लोग अक्सर यह भी नहीं जानते थे कि झांसी बुंदेलखंड में है या उत्तर प्रदेश में। झांसी अपने आप में मुकम्मल पहचान थी। शहरों के नाम अपने आप में संस्कृति, इतिहास और स्मृति के संपूर्ण दस्तावेज होते हैं। नाम परिवर्तन के बाद यह रेलवे स्टेशन भी बाहर के लोगों के लिए अपना ऐतिहासिक महत्व खो देगा। और उसके साथ ही झांसी वाली रानी की कीर्ति कथा भी सहज रूप से स्मृति में नहीं उभरेगी। सम्मान करने के फेर में आप वीरांगना को विस्मृत कर रहे हैं। मथुरा के बिना कृष्ण नहीं हो सकते, अयोध्या के बिना राम नहीं हो सकते, झांसी के बिना लक्ष्मीबाई नहीं हो सकतीं।1857 की महान क्रांति की महानतम वीरांगना से उसके शहर का नाम अलग करके महान मूर्खता का परिचय दिया जा रहा है। वैसे बड़े बुजुर्ग कह गए हैं कि जैसी प्रजा वैसा राजा। वैसे मुझे इस बात पर भी संदेह नही है कि किसी रोज़ मैं हर रोज की तरह सुबह नीद से जागूँ और सुनाई पड़े की मेरे प्रदेश का नाम बदल दिया गया है। क्यूँकि साहब का यहाँ से बहुत पुराना नाता है, क्या पता अगला नम्बर देवभूमि का ही हो ? फिर हम सब कहेंगे एक रात ऐसी घटना घटी कि हम सब सोये तो उत्तराखंड में थे, सुबह जब आँख खुली तो हम यहाँ……… थे। ये चमत्कार करने की क्षमता हमारे देश के साहब को है, अब क्या कहने।

Saturday, 25 December 2021

"प्रतिनिधित्व लोकतंत्र"



एक बार जब "हस्तिनापुर की राज्यसभा" में "युधिष्ठिर" और "दुर्योधन" में से भावी युवराज के चयन का प्रश्न चल रहा था तब "विदुर" ने दोनों की न्यायिक क्षमता जांचने का सुझाव दिया। राज्यसभा में चार अपराधी बुलाये गए जिन पर कि हत्या का आरोप सिद्ध हो चुका था। बारी थी सजा निर्धारित करने की। पहला नंबर "दुर्योधन" का आया। दुर्योधन ने तुरंत चारों को मृत्युदंड सुना दिया। 

फिर "युधिष्ठिर" का नंबर आया। युधिष्ठिर ने पहले चारों का वर्ण पूछा। फिर वर्ण के हिसाब से शूद्र को 4 साल, वैश्य को 8 साल, क्षत्रिय को 16 साल की सजा दी। और "ब्राह्मण" को अपनी सजा स्वयं निर्धारित करने के लिए कहा। 


"लोकतंत्र" में इस कहानी का काफी महत्व है। जब मैं UPSC की तैयारी कर रहा था तो इंटरव्यू गाइडेंस के लिए UPSC के एक रिटायर्ड मेंबर महोदय का लेक्चर सुन रहा था। उन्होंने बताया कि इंटरव्यू में चाहे जो बोलें मगर "डेमोक्रेसी" के खिलाफ कुछ ना बोलें। आप इंटरव्यू में लोकतंत्र में कमियां नहीं निकाल सकते। जो पहली चीज मेरे दिमाग में चमकी वो ये कि "तानाशाह" भी तो यही करते हैं। मतलब क्या हम लोकतंत्र नामक "तानाशाही" में रहते हैं ? और असली समस्या ये हैं कि हमारा लोकतंत्र कोई शुद्ध लोकतंत्र नहीं है। ये तो "प्रतिनिधित्व लोकतंत्र" है। इस में तो जनता प्रतिनिधि चुनती है, जो कि "नेता" कहलाते हैं और सिविल सर्वेन्ट्स सेलेक्ट करने वालों का कहना है कि आप इसमें भी खामियां नहीं निकाल सकते। मतलब जो भी IAS/IPS चुने जा रहे हैं वे पहले से ही नेताओं को सर्वेसर्वा मानने के लिए प्रशिक्षित हैं।अगर ऐसा है तो जो हो रहा है वो बिलकुल सही हो रहा है। 

नेता चाहे बीच "कोरोना" में चुनावी रैली करे, या किसी के मुंह पर थूक दे, वो गलत हो ही नहीं सकता, विशेष रूप से तब जब वो सत्ता पक्ष से हो। क्योंकि सही-गलत का निर्णय तो उन्ही सिविल सेवा अधिकारियों के पास हैं न जो पहले से ही लोकतंत्र द्वारा चुने हुए नेताओं को "भगवान" मानने के लिए प्रोग्राम्ड हैं। वहीं अगर बैंक में कैशियर दो मिनट के लिए भीड़ ख़तम होने के बाद, मास्क नीचे करके नाक खुजा ले तो DM साहब आ कर जुर्माना ठोक देंगे। चाहे वही DM साहब बाद में खुले आम बिना मास्क के मीटिंग करते नजर आएं। इस हिसाब से तो अगर एक आम इंसान अपने काम पर जाते हुए अनजाने मे किसी मामूली सी COVID गाइडलाइन को तोड़ते हुए पाए जाने पर पीटा जाता है और उस पर जुर्माना लगाया जाता है तो इस मे कुछ भी गलत नहीं है।

क्योंकि आज जिस समाज में हम रह रहे हैं, यहां अपराध का निर्णय इस बात से होता है कि अपराध किया किसने हैं।

Friday, 24 December 2021

किस्सा क्रिसमस वाली चाय का…

बात उन दिनों की है जब मैं दिल्ली में था और मेरे पास कोई काम नही था, तब पार्क में बैठ घण्टों बिताया करता था। अक्सर कभी कभार किसी से कुछ बातें ना चाहते हुए भी हो ही जाती हैं, मानव स्वभाव ही कुछ ऐसा है, ऊपर से मुझ जैसा। अतीत के उन पन्नों में कहीं किसी कोने पर धूल फाँकती मेरे जीवन का एक छोटा सा किस्सा क्रिसमस वाली चाय का………

अब तो ठीक से याद भी नही की आंखिर उनका नाम क्या था, बहुत देर सोचने पर भी मैं आज उनके कहे शब्दों से नाम तक नही पहुँच पाया। वो घर से निकल कर पार्क में पर लगी कुर्सी पर बड़े गम्भीर होकर बैठ शायद कुछ सोच रहे थे। तभी मैं भी बिनबुलाए मेहमान की तरह उनके बगल में जा बैठा। बहुत देर हम यूँ ही बैठे रहे, समय- समय पर मेरी नजर न चाहते हुए भी उन पर चली जा रही थी। बड़ी देर खुद को रोकते हुये आंखिरकार एक घण्टे बाद मैंने उनसे पूछ ही डाला “चाचा जी” कोई परेशानी है क्या ?


वहाँ से कोई जवाब न आता सुन मैं थोड़ा परेशान सा होकर उनके और पास पहुँचकर उन्हें हिलाने लगा, वो अचानक मेरी तरफ गरदन घुमाकर बड़ी आंखो से मुझे घूरने लगे। मानो उनकी तन्द्रा तोड़ने का मैंने वैसा कोई दुस्साहस किया हो जैसे तपस्या में बैठे कोई ऋषि का ध्यान भंग हुआ हो। खैर खुद को सम्भालते हुए फिर मैंने हिम्मत जुटाकर दुबारा से पूछा “चाचा जी” सब ठीक है, कोई परेशानी तो नही। मुझे लगा था कहीं तबियत तो खराब नही है। थोड़ा संभलने के बाद चाचा भारी स्वर में बोले बेटा सब ठीक है। तुम कहाँ से हो ? तुम्हारा नाम क्या है ? यहाँ क्या कर रहे हो?

एक साथ इतने सवालों की बरसात से हमारी बातचीज का दौर शुरू हुआ, बहुत सी बातों व मेरे बारे में जानकारी के बाद चाचा थोड़े ठीक से लग रहे थे। पर मेरे मन में तो वही सवाल घूम रहा था। जैसे ही मुझे मौका मिला मैंने गोली की रफ़्तार से अपना सवाल दाग दिया। चाचा एक बार फिर चुप से हो गये उनके चेहरे के भाव में कुछ दर्द दिखने लगा। फिर थोड़ा माहौल को देखते हुये मैंने दुबारा बोला चाचा छोड़िए सब, पास ही एक चाय की दुकान है वहाँ चलकर चाय पीते हैं, बहुत बढ़िया चाय बनाता है। पर सच तो ये है कि मैं आज से पहले वहाँ कभी गया नही। हम दोनों पास की चाय की दुकान पर चाय पीने लगे तो इधर उधर की बातों का सिलसिला चल पड़ा, चाचा ने बिना कहे अपना किस्सा सुनाया जो मैं आज आपसे सांझा कर रहा हूँ, शब्दशः ………..

“बेटा आज सुबह की बात है ठीक एक साल बाद मेरा रिटायरमेंट हो जायेगा, यही सब सोच ही रहा था कि मेरी पत्नी कमरें में आई आने के साथ ही चालू हो गई थी। 

“क्यों, आज काम पर नहीं जाना? अरे, नहाएधोए तक नहीं? न जाने कब सुधरोगे,’’

‘‘जरा एक प्याली चाय…’’ 
मैं आधा ही बोल पाया था कि वह फिर भड़क उठी, 
“बस, चायचाय, खाने की जरूरत नहीं। यह चाय तुम्हें मार डालेगी। अरे, यह जहर है जहर…’’ कहती व हाथपांव पटकती बेमन से चाय बना कर लाई और कप ऐसे पटक कर रखा कि वह टूट गया और चाय की छींटें पूरे बदन पर जा गिरीं। 

‘‘अब खड़ेखड़े मेरा मुंह क्या देख रहे हो। जाओ, हाथपैर धो लो वरना दाग लग जाएगा। कपड़ों पर लगा दाग मुझ से नहीं छूटने वाला,’’ 
वह बजाय अफसोस जाहिर करने के भड़क रही थी। मैं चुपचाप उठा, स्नान किया और कपड़े पहन तैयार हो घर से निकल आया। अब पत्नी का व्यवहार काटने को दौड़ रहा था। तब सुबह ही घर से निकल कर पार्क में बैठ खो गया अतीत की यादों में कहीं। तब तुमने आकर मुझे जगाया है। 

यह कहते हुए उनकी आँखे भर आई थी, मैंने स्थिति को एक बार फिर सम्भालते हुए कहा चाचा आज तो क्रिसमस है, हैप्पी क्रिसमस !! उन्होंने मुस्कुराते हुए धन्यवाद कहा और मुझे भी शुभकामनाओं व अगले रविवार यहीं चाय की एक नई चर्चा के साथ फिर मिलने का वादा किया। फिर उन्होंने चाय का बिल दिया, मुझे आज भी याद है तब 300 का था, मेरे जीवन की पहली महंगी चाय थी ये, बात 2004 की है। हम दोनो एक दूसरे से फिर मिलने का वादा लेकर अपने-अपने रास्ते की ओर बड़ चले “……

चाचा “हैप्पी क्रिसमस” मुझे आज भी आप याद हैं !

Merry Christmas to everyone🎄!
I hope the festive season brings good health, success and peace all around.

Monday, 13 December 2021

भूल गये साँवरिया…


जो मैं ऐसा जानती के प्रीत किये दुख होय
नगर ढिंढोरा पीटती, के प्रीत न करियो कोय।

मोहे भूल गये प्रेम गीत वाले, भूल गये साँवरिया 
आवन कह गये, खुद न आये और लीनी न मोरी खबरिया
मोहे भूल गये साँवरिया..


दिल को दिए क्यों दुख बिरहा के, तोड़ दिया क्यों महल बना के
आस दिला के ओ बेदर्दी फेर ली काहे नजरिया
मोहे भूल गये साँवरिया…

नैन कहे रो-रो के सजना, देख चुके हम प्यार का सपना
प्रीत है झूठी, प्रीतम झूठा, झूठी है सारी नगरिया
मोहे भूल गये साँवरिया…

Monday, 6 December 2021

सच लिखता हूँ………

कितना मनमौजी हूँ मैं जो सच लिखता हूँ………
कुछ कहते धाकड़ है, तो कुछ कहते हैं निर्भीक है…..
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मैं आवारा कलम का मारा सपनों का सौदागर हूँ, 
दुनिया में विखराता मोती पर मैं रीती गागर हूँ।
पत्थर के सीनें पर अमर कथाएं लिखता हूँ,
फक्कड़ हूँ मनमौजी मैं कविताएं लिखता हूँ ॥

लिखता हूँ मैं उनके आंसू जिनका नहीं कोई अपना,
लंबी लंबी रातों को तड़पाता है जिनको सपना।
जिनके दिलवर दिल में ही रहकर दिल को ही तोड़ गए,
जो अपनों की जीवन नौका बीच भंवर में छोड़ गए।
उन घायल प्राणों को लाख दुवाएं लिखता हूँ,
फक्कड़ हूँ मनमौजी मैं कविताएं लिखता हूँ ॥



     
फटे हुए कुर्ते में गर्मी बीती, वर्षा, शीत आ गया,
पुस्तैनी ऋण भरनें में ही जिसका जीवन बीत गया। 
भारत का भविष्य रचने में जिसका मरना जीना है,
एक एक दानें में शामिल जिसका खून पसीना है। 
उस किसान को शीतल मंद हवाएँ लिखता हूँ,
फक्कड़ हूँ मनमौजी मैं कविताएं लिखता हूँ ॥

लिखता हूँ उस माँ की खातिर जिसने बेटा दान किया,
कलम रखूं उसके चरणों में जिसने भाई का वलिदान दिया। 
जिसने दे डाला सिन्दूर देश को विधवा हुई जवानी में,
अक्षर अक्षर मैं धो करके गंगा जी के पानी में,
उस देवी के लिए शब्द मालाएं लिखता हूँ।
फक्कड़ हूँ मनमौजी मैं कविताएं लिखता हूँ ॥
फक्कड़ हूँ मनमौजी मैं सच लिखता हूँ ॥

Wednesday, 1 December 2021

शराबबंदी मेरे पूरे मुल्क में लागू की जाए....



मुल्क के हुक्मरानों को शराबबंदी अगर लगानी है तो पूरे राष्ट्र में लगाई जाए तभी फ़ायदा होगा। बीच बीच में एकाध सूबे, एकाध जनपद में शराबबंदी लागू करने से तो पुलिसिओं और दलालों की चांदी हो जाती है। 


ऐसा कैसे हो सकता है कि शराब बिहार वालों को या गुजरात वालों को तो बिगाड़ रही है, पर यूपी, उत्तराखंड और राजस्थान-झारखंड वालों सहित अन्य भारतीयों को कुछ नुकसान नहीं कर रही है। एक देश और नियम अनेक।

यदि हम बात करें अपने प्रदेश देवभूमि की तो सिर्फ हरिद्वार में शराब नुक़सान करती है बांकी अन्य जगहों पर मानो वह किसी वरदान की तरह से फ़ायदा पहुँचा रही होगी। यही जनमत है, जो यूँ कहें कि जब कहीं हम किसी यात्रा पर होते हैं तो हर मील के बाद वहाँ की बोली, भाषा, खानपान व पहनावा बदल जाता है वैसे ही हाल हमारी सरकारों के भी हैं चाहे वह किसी भी राजनीतिक दल की हों।

जरा सोचिए हम बड़ी-बड़ी बातें करने वाले लोग देश का भविष्य कैसे संवारेंगे जब हम अपने और अपने लोगों के वर्तमान को भी ठीक से नहीं देख रहे। सुबह, दोपहर और शाम के हमारे आस-पास कितना जहर मिला है हमें यह भी दिखाई नहीं देता ! हमारा समाज व उस समाज के युवा आज किस दिशा में आगे बड़ रहा है कभी सोचने की तक जेहमत कोई उठाना नही चाहता। युवाओं को देख देश का भविष्य तो हर कोई कहता है पर भविष्य को खतरे से कोई नही बचाना चाहता है।

Friday, 19 November 2021

संगठित और संकल्पित किसानों ने दिखाया कि कारपोरेट और सत्ता के षड्यंत्रों से कैसे लड़ा जाता है।


आंदोलन में अगर चरित्र बल हो और आंदोलनकारियों को धैर्य का साथ हो तो शक्तिशाली सरकारें भी उनके समक्ष घुटने टेक सकती हैं। किसान बिल की वापसी की प्रधानमंत्री की घोषणा ने इसे एक बार फिर से साबित किया है।


अपने कदम पीछे खींचने के इस फैसले तक पहुंचना सरकार के लिये आसान नहीं रहा होगा। सब जानते हैं कि कृषि क्षेत्र में तथाकथित 'सुधार' के लिये सरकार पर 'कारपोरेट वर्ल्ड' का कितना दबाव था। दुनिया मुट्ठी में कर लेने के इसी अति आत्मविश्वास का नतीजा था कि एक बड़े कारपोरेट घरानो द्वारा कृषि कानूनों की औपचारिक घोषणा के पहले ही बड़े पैमाने पर अन्न संग्रहण की तैयारियां की जाने लगी थीं। आनन-फानन में तैयार किये गए इन विशालकाय अनाज गोदामों के न जाने कितने विजुअल्स विभिन्न न्यूज चैनलों पर आ चुके थे जो इस तथ्य की तस्दीक करते थे कि देश की कृषि संरचना पर काबिज होने के लिये बड़े कारपोरेट घराने कितने आतुर हैं।

दरअसल, किसानों के आंदोलन ने जिस द्वंद्व की शुरुआत की थी उसमें प्रत्यक्षतः तो सामने सरकार थी लेकिन परोक्ष में कारपोरेट शक्तियां भी थीं। इस मायने में, कृषि बिल की वापसी को हम हाल के वर्षों में हावी होती गई कारपोरेट संस्कृति की एक बड़ी पराजय के रूप में भी देख सकते हैं।

यह बाजार की शक्तियों की बेलगाम चाहतों पर संगठित प्रतिरोध की विजय का भी क्षण है जिसके दूरगामी प्रभाव अवश्यम्भावी हैं, क्योंकि यह एक नजीर है उन श्रमिक संगठनों के लिये जो प्रतिरोध की भाषा तो बोलते हैं लेकिन किसानों की तरह कारपोरेट की मंशा के सामने चट्टान की तरह अड़ने का साहस और धैर्य नहीं दिखा पा रहे।

न जाने कितने आरोप लगाए गए कि सड़कों पर डेरा जमाए इन किसानों को विदेशी फंडिंग हो रही है, कि इनमें खालिस्तानी भी छुपे हुए हैं, कि ये देश के विकास में बाधक बन कर खड़े हो गए हैं और कि ये तो कुछ खास इलाकों के संपन्न किसानों का ऐसा आंदोलन है जिसे देश के अधिसंख्य किसानों का समर्थन हासिल नहीं है।आंदोलन को जनता की नजरों से गिराने की कितनी कोशिशें हुईं, यह भी सब जानते हैं। कितने न्यूज चैनलों ने इसे बदनाम कर देने की जैसे सुपारी ले ली थी, यह भी सबने देखा।

संगठित और संकल्पित किसानों ने उदाहरण प्रस्तुत किया कि नए दौर में नव औपनिवेशिक शक्तियों से अपने हितों की, अपनी भावी पीढ़ियों के भविष्य की रक्षा के लिये कैसे जूझा जाता है। उन्हें पता था कि अगर कारपोरेट और सत्ता के षड्यंत्रों का जोरदार विरोध न किया गया तो उनकी भावी पीढियां आर्थिक रूप से गुलाम हो जाएंगी।

जब किसी आंदोलित समूह के लक्ष्य स्पष्ट हों और उनके साथ उनका सामूहिक चरित्र बल हो तो सत्ता को अपने कदम पीछे खींचने ही पड़ते हैं। खास कर ऐसी लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में, जिनमें वोटों के खोने का डर किसी भी सत्तासीन राजनीतिक दल के मन में सिहरन पैदा कर देता है।
किसानों ने सरकार के मन मे इस डर को पैदा करने में सफलता हासिल की कि वह अगर आंदोलन के सामने नहीं झुकी तो इसका चुनावी खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।

निजीकरण की आंच में सुलग रहे सार्वजनिक क्षेत्र के आंदोलित कर्मचारी सरकार के मन में यह डर पैदा नहीं कर सके। सत्तासीन समूह और उसके पैरोकार कारपोरेट घराने इन कर्मचारियों के पाखंड को समझते हैं। वे जानते हैं कि दिन में सड़कों पर मुर्दाबाद के नारे लगाते ये बाबू लोग शाम के बाद अपने-अपने ड्राइंग रूम्स में सत्ता के प्रपंचों को हवा देने वाले व्हाट्सएप मैसेजेज और न्यूज चैनलों में ही रमेंगे।

    "...विकल्प कहाँ है...?

इस सवाल को दोहराने वालों में अग्रणी रहने वाले ये कर्मचारी अपने आंदोलनों से किसी भी तरह का चुनावी डर सत्तासीन राजनीतिक शक्तियों के मन में नहीं जगा पाए।

आप इसे राजनीतिक फलक पर शहरी मध्य वर्ग के उस चारित्रिक पतन से जोड़ सकते हैं जो उन्हें तो उनके हितों से महरूम कर ही रहा है, उनकी भावी पीढ़ियों की ज़िन्दगियों को दुश्वार करने की भी पृष्ठभूमि तैयार कर रहा है।

कृषि बिल की वापसी की घोषणा करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि वे आंदोलित किसानों को समझा नहीं पाए। वे सही ही कह रहे थे। जब अपने आर्थिक-सामाजिक हितों को लेकर किसी समूह की राजनीतिक दृष्टि साफ होने लगे तो उसे प्रपंचों और प्रचारों से समझा पाना किसी भी सत्तासीन जमात के लिये आसान नहीं होता।
हालांकि, वे सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों को भी समझा नहीं पा रहे कि उनके संस्थानों के निजीकरण के बाद भी उनके हितों की सुरक्षा होगी। लेकिन, तब भी, वे इस समूह की राजनीतिक प्राथमिकताओं के प्रति फिलहाल तो आश्वस्त ही हैं। तभी तो, तमाम विरोध प्रदर्शनों के बावजूद अंधाधुंध निजीकरण का अभियान जोर-शोर से जारी है।

किसान आंदोलन की यह जीत कारपोरेट की सर्वग्रासी प्रवृत्तियों के खिलाफ किसी सामाजिक-आर्थिक समूह की ऐसी ऐतिहासिक उपलब्धि है जो अन्य समूहों को भी प्रेरणा देगी...कि घनघोर अंधेरों में भी अपनी संकल्प शक्ति और साफ राजनीतिक दृष्टि के सहारे उजालों की उम्मीद जगाई जा सकती है। यह शक्तिशाली बाजार के समक्ष उस मनुष्यता की भी जीत है जिसे कमजोर करने की तमाम कोशिशें बीते तीन-चार दशकों से की जाती रही हैं। 

बाजार और मनुष्य के बीच का द्वंद्व आज के दौर की सबसे महत्वपूर्ण परिघटना है। उम्मीद कर सकते हैं कि बाजार की यह पराजय मनुष्यता के विचारों को मजबूती देगी।

Wednesday, 10 November 2021

स्रष्टि का नियम ही बदलाव है !


बदलाव स्रष्टि का एक ऐसा नियम जो रहता है सदा अटल , यह बदलाव आदि जीवन में होता था जब प्राणी था वानर, वानर से मानव का सफ़र भी था एक बदलाव, जब मानव आता है माता के भ्रूण में तब भी होता है उसका बदलाव, वह बदलता है भ्रूण से शिशु के रूप में, शिशु से बालक..


ईश्वर का ही है वरदान यह बदलाव में तो क्यों बचता है, व्यवहार में मानव बदलाव से, कहने को २१वि शताब्दी है, पर नारी पुरुष का भेद, जात-पात का भेद अभी भी बाकी है,....
जब अधिकारों की बाबत कुछ पूछा जाता है तो यह मुख से निकल ही जाता है की, नारी को पुरुषो से निम्न स्थान ईश्वार से ही आया है!

विकासक्रम कि समानता है दोनों में समान, करते है क्यों फिर यह भेदभाव, नैसर्गिक न्याय तो मिलता है दोनों को समान, अपने से अधिकार को देने पर क्यों लग जाता है विराम।

जब बारी आती है उसकी के वह रूढ़िवादिता को छोड़े संकीर्णता से मुख मोड़े, तब वह नया शिगूफा छेड़ता है के यह हमने नही नियम बनाया है यह तो पूर्वजो से आया है। 


प्रश्न यह उठता है की जब ईश्वर ने ही यह सत्य को स्वीकारा है, बदलाव से पूर्णता का अर्थ बतलाया है, तो यह मानव का ही झूठा इरादा है की हमको नही है हक कि यह बदलाव का अधिकार हमने नही पाया है, बदलाव तो निश्चित है यदि सौम्यता से नही तो क्रांति से आया है, तो क्यों न उससे करे मित्रता यदि यह अवसर हमको मिल पाया है!

Monday, 8 November 2021

चीन मुह चिड़ा रहा है, साहिब धर्म की राजनीति पर व्यस्त



पूर्व की तरह एक बार फिर इन दिनों चीन चर्चाओं में हैं। हमारे प्रधानमंत्री जिस मसले पर कुछ समय पहले ही चीन को क्लीन चिट जारी कर चुके हों उस मसले पर अमेरिका के पेंटागन की रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन ने भारत के अरुणाचल प्रदेश की सीमा में करीब 4.5 किमी अंदर घुसकर  एक गांव बसा लिया। जिसमें 101 घर नजर आ रहे हैं। उनमें कई दो तीन मंजिला भी हैं । जिससे  देशवासियों की चिंता बढ़ी है । चीन का यह गांव अरुणाचल प्रदेश के ऊपरी सुबनसिरी जिले के गांव त्सारी चू गांव में बसाया गया है। अब किस पर विश्वास करें समझ से परे है। रक्षा मंत्री और प्रधानमंत्री इस विषय पर मौन हैं। अंध भक्त इसे अमेरिका की झूठ बता रहे हैं। आखिरकार चीन पर चुप्पी क्यों, साहिब को जवाब देना चाहिए पर वो तो आजकल धर्म की राजनीति पर व्यस्त नजर आ रहे हैं। अब आप, हम और देश की ज़िम्मेदारी फिर एक बार राम भरोसे नजर आ रही है। 


चीन की मीडिया लगातार कह रही है कि पिछले जून के #गलवान संघर्ष की नई तस्वीरें सोशल मीडिया पर सामने आईं, जिसमें चीनी पीएलए द्वारा आत्मसमर्पण करने वाले भारतीय सैनिकों को दिखाया गया है। भारतीय सैनिकों ने नई-नई सहमति का उल्लंघन किया और चीनी कर्मियों के खिलाफ भड़काऊ हमले शुरू किए, जिससे गंभीर शारीरिक संघर्ष हुए।




असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट करते हुये लिखा है  “अगर ये तस्वीरें सच हैं तो @PMOIndia के पास जवाब देने के लिए बहुत कुछ है। लद्दाख में हमारे सैनिकों के बलिदान का सम्मान करने के बजाय, मोदी ने चीन के दावे को बरकरार रखा (ना कोई घुस है..) उनका सारा स्वैगर घरेलू दर्शकों के लिए है। कब्जे वाली जमीन की वसूली तो भूल ही जाइए, उन्होंने चीन का नाम तक नहीं लिया है। कमजोर पीएम”

वहीं कांग्रेस ने शनिवार प्रेस कॉन्फ्रेंस पर केंद्रीय कानून मंत्री रिजिजू ने ट्विटर पर दावा किया और लिखा “प्रिय कांग्रेसियों, चीन सीमा मुद्दे पर बोलने से पहले कांग्रेस सरकार के रक्षा मंत्री की बात सुनें। कुछ दुर्भावनापूर्ण मीडिया ने लिखा है कि चीन ने अरुणाचल प्रदेश के भीतर एक गांव बसा लिया है और फिर उस इलाके का थोड़ा-सा जिक्र किया है जहां चीन ने 1959 में कब्जा जमा लिया था। आपका मकसद क्या है?” चोरी और सीनाजोरी वह भी खुल्लमखुल्ला। पी एम भी शान से कहते नहीं थकते, न चीन घुसा था और न घुस आया है। जबकि इस खबर को भारतीय अखबारों ने भी पहले ख़ूब  छापा कि "पिछले साल (2020) से अरुणाचल क्षेत्र में एलएसी के साथ चीनी गतिविधियों में तेज वृद्धि हुई है, मिगीटुन शहर के पास त्सारी नदी पर निर्मित आवासीय आवास और संचार सुविधाओं में वृद्धि हुई है, जिसे उन्नत सड़क संपर्क भी मिला है।" लेकिन चीन को क्लीनचिट दी गई। पत्रकारों और नेताओं को झूठा साबित किया गया। फिर कांग्रेस ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर यह बताया है कि चीन अब गलवान घाटी में पांव जमाने के बाद तथा अरुणाचल में गांव बसाने के बाद सिलीगुड़ी कारीडोर के करीब फिर इसी तरह के काम में जुट गया है यह बात आज मीडिया के माध्यम से ईस्टर्न आर्मी कमांड के JOC के हवाले से मिली जिसमें बताया गया कि चीन यहां भी सड़कों का जाल बिछा रहा है। चुंबी वैली में चीन कनैक्टीविटी बढ़ा रहा है। अधोसंरचना कर रहा है, ऑप्टिकल फाइबर का नेटवर्क बिछा रहा है। उनका ये भी कहना है कि ड्रैगन के इरादे नेक नहीं है।

कांग्रेस ने मीडिया को कहा कि इस मुद्दे पर बात करना इसलिये भी जरूरी है क्योंकि यह सामरिक तौर पर महत्वपूर्ण है। चीन के इन हरकतों से सिलिगुड़ी कोरिडोर खतरे में आ गया है. उन्होंने कहा कि याद दिला दें कि पिछले 18 महिनों में चीन ने अलग अलग तरीके से घुसपैठ किया है. पिछले महीने उत्तराखंड में चीन ने पुल तोड़ दिया था। मतलब चीन भारत से लगी तमाम सीमाओं में घुस कर तथाकथित विकास सामयिक दृष्टि से कर रहा है और हमारी चुप्पी का पूरा फायदा उठा रहा है। 

कांग्रेस ने कहा इसके अलावा चीन भूटान से बातचीत करता है और भारत सरकार चुप रहती है। चीन श्रीलंका में बंदरगाह ले लेता है और मालदीव में द्वीप ले लेता है और सरकार चुप रहती है। चीन पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट को हथिया लेता है और सरकार चुप रहती है, ऐसा क्यों?

याद करिए फ़रवरी में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके लद्दाख से चीनी सेना की वापसी पर सवाल किया था। राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी पर आरोप लगाया है कि वो डरपोक हैं और उन्होंने देश की पवित्र जमीन को चीन को सौंप दिया है. कांग्रेस नेता का सवाल था कि पेगांग सागर में भारतीय सेना की जगह जो पहले फिंगर 4 पर थी, सरकार ने उसे अब फिंगर 3 पर सहमति क्यों दी? प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री ने भारत की जमीन को चीन के हवाले क्यों किया?


राहुल गांधी का यह सवाल आज तक अनुत्तरित है। लद्दाख के भाजपा सांसद की चीनी घुसपैठ की आवाज भी संसद में दबाई गई उसके बाद सीमा उल्लंघन के अनेक सवाल उठे लेकिन वही ढाक के तीन पात। अब तो सीमा के अंदर घुसकर गांव के नाम पर फौजी छावनियां तमाम आधुनिक सुविधाओं से लैस बन गई हैं, और बनती जा रहीं हैं। तो रह रह कर एक सवाल ही मन में आता है कि कहीं इस व्यापारी सरकार ने भारतभूमि का ये हिस्सा चीन को बेच तो नहीं दिया जिसकी पटकथा साबरमती के झूला पर बैठकर लिखी गई। हमारे जांबाज सैनिकों ने कठिन परिस्थितियों में रहकर तथा कारगिल और नेफा हमले में अपनी जान देकर जो ज़मीन सुरक्षित रखी, उसी पर चीन हमारी वर्तमान कमज़ोर सरकार का फायदा ले रही है। अगर पेंटागन रिपोर्ट गलत हो तो उनसे सवाल सरकार क्यों नहीं करती ? कांग्रेस को भी जवाब दो। देशवासियों को भी बताओ। दाल में ज़रुर काला है। जय जवान और जय किसान का नारा आज इस सरकार ने खोखला कर दिया है। यू ए पी ए का जिस तिस पर इस्तेमाल करने पर सुको रोक लगाए ताकि असलियत उजागर हो।
आज फिर एक बार वही हालात सामने आ रहे हैं आंखिर देश की जनता को गुमराह क्यों और किसके कहने पर किया जा रहा है ? जवाब तो देना होगा। इस पूरे मुद्दे पर सोशल मीडिया ए घमशान चल रहा है पर हमारी मेन स्ट्रीम मीडिया से यह पूरा मामला गायब है।

Sunday, 7 November 2021

गजब का रोंग नम्बर….


ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग………..
मैंने अननोन नंबर देखकर थोड़ा सोचा फिर फोन उठा लिया। अक्सर में अननोन नम्बर को एक बार में रिसीव नही करता हूँ। चाहे सामने से कोई भी हो…… 

उस वार्ता के कुछ अंश आपके सम्मुख रख रहा हूँ, एक भाई की हालत व मेरी आज की आपबीती पर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें ।

"हेलो...."
उधर से एक महिला की ग़ुस्से से भरी आवाज़ आई। जिसे सुनकर कुछ बोलने की हिम्मत नही हुई। फिर……..
"इत्ती देर से फोन कर रही हूँ आखिर उठा काहे नहीं रहे थे? किसी नजारे को देखने में मगन थे क्या?"

"अनजान नंबर से काल आ रही थी तो थोड़ा देखने ...."

 सामने से मेरी बात पूरी होने से पहले ही काट दी गई


"इसका मतलब मेरा नंबर भी सेव नहीं है क्या तुम्हारे मोबाइल में...? तुम्हें क्या तुम्हें तो अपनी सीता गीता रीता से फुरसत मिले तब न... जनाब के मोबाइल में दुनिया जहान का नंबर सेव रहता है बस बीवी का ही नंबर नहीं रहता। तुम बाकी छोड़ो ये तो घर आओ फिर निपट लूँगी। बताती हूँ तुमको शाम को, सामान नोट करो वो लेकर आ जाना" आवाज का जोश बढ़ता जा रहा था।

"जी बोलिये..."

"बड़ा जी जी कर रहे हैं आज फिर चढ़ा ली क्या ?” इस बार तिलमिलाहट में दांत पीसने की आवाज भी सुनी जा सकती थी।

"जी..."

"अपनी मां की तरह ढपोरशंख ही रहोगे, जैसे वो दिन भर राम-राम करती फिरती हैं, लेकिन खटमल की तरह खून पीने का एक भी मौका नहीं छोड़ती। हुंह तुम सामान लिखो और लेकर घर आओ फिर बताती हूँ।"

"जी"

"फिर जी.... तुमको न तुम्हारी बहन का जीजा बना दूंगी सामान लिखो” वो लगभग चिल्लाते हुए बोले जा रही थीं।मैं अचरज से सुन रहा था और एक अच्छे बच्चे की तरह जवाब दिए जा रहा था।  

"बताइए"

"आलू पांच किलो, टमाटर एक पौवा, सोया वाला साग एक गड्डी, सौ ग्राम धनिया पत्ती, एक पाव लहसुन, आधा किलो प्याज..... लिख रहे हो न?" उसने फिर दांत पीसा जिसे मैं आसानी से सुन सकता था। 

"लिख रहा हूँ....."

"लिख रहे हो तो हूँ हाँ कुछ तो बोलो। किस्मत फूट गई मेरी जो तुम्हारे जैसे निकम्मे से शादी हुई। लिखो साबूदाना एक किलो, चीनी दो किलो, चायपत्ती एक पैकेट ठीक है इतना लेकर आ जाओ बाकी घर मे आकर पर्चा बना लेना फिर जाना" लंबी सांसें छोड़ते हुए मोहतरमा बोले जा रही थीं।

"जी सामान तो ले आऊंगा पर घर का पता तो बता दो"

"घर का पता.... तुम गुड़िया के पापा नहीं बोल रहे"

"नहीं.... हेलो ...हेलो ..."

फोन कट गया,, अब कॉल बैक कर रहा हूँ तो उठा ही नही रहीं मैडम जी, नम्बर बिजी बता रहा है। मैं यहाँ बैठा उन भाई साब की खैर मना रहा हूँ जिनका नंबर अब लगा होगा क्या हुआ होगा उस बेचारे के साथ..!! 
क्या यार ये मोबाईल फोन भी गजब की बला है। एक नम्बर ऊपर-नीचे तो अर्थ का अनर्थ होते देर नही लगती। टेलिकॉम कम्पनियों ने अब नम्बर डायल करते ही फोन की स्क्रीन पर फोटो भी दिखानी चाहिए, तांकी ऐसी घटनाओं की भविष्य में पुनरवृत्ति न हो। खैर सोच कर खुश हूँ कि कॉल मुझे ही आई तो कोई समस्या नही माँ जी को आती कि तुम्हारी बहु बोल रही हूँ तब बड़ी आपदा होती !

Thursday, 4 November 2021

इस बार की दीपावली बहुत खास है !!

दोस्तों नमस्कार 👏🏻

हम सब पूरे दिन बिजी रहते हैं। अपने किसी ना किसी काम में दिन निकाल देते हैं। लोगों के बीच में पर जब रात का वक्त होता है ना तब आप सच में अकेले होते है और फिर आप याद करते हैं। उन चुनिंदा लोगों को या लोग को जिनका साथ आप सच में चाहते हैं और इत्तेफकान वो आपके साथ नहीं होता है। फिर आप खुद से ताना बाना बुन्ने लगते हैं की ग़र वो होता तो क्या होता और ग़र नहीं है तो क्यूँ नही है ? क्या हम उनके साथ हो नही सकते फिर आपकी सारे दिन की थकान इस कौतूहल पे भारी पड़ जाती है। तब जब सामने वाला आपके इस ख़्याल से वाक़िफ़ भी नही या ये कह ले की वो ये सोचता तक नहीं।

ख़ैर आप अपने साथ सिर्फ़ रात में जब आप बिस्तर पे होते हैं तभी होते है और आपके ज़िंदगी की कुछ सबसे अच्छी यादें तब ही याद आती है।


इस बार की दीपावली बहुत खास है,इसलिए नहीं कि मेरे घर में बहुत शानदार महंगा पेंट हुआ या नहीं, इसलिए भी नहीं कि मैंने कोई महंगी कार या ज्वैलरी खरीदी या नहीं, न ही इस बात के लिए खास है कि मुझे बिजिनेस में बहुत बड़ा मुनाफा हुआ या नहीं, या मेरी सैलरी में बहुत वृद्धि हुई या नहीं, इसलिए तो बिल्कुल भी नहीं कि मेरे घर में ढेरों पकवान बने है या नहीं, और इसलिए भी नहीं कि परिवार में सबको नए महंगे कपड़े या घर में खूब सारी सजावट या रात भर महंगी आतिशबाजी हुई या नहीं।

इस बार की दीपावली खास है, बहुत ज़्यादा खास। क्योंकि इस दीपावली को हम अपने और अपने पूरे परिवार को जीवित, सांस लेता हुआ, हंसता हुआ देख पा रहे हैं। इस बार की दीपावली इसलिए खास है क्योंकि हमें भरोसा हुआ कि कुछ ऐसे लोग है जिनको एक आवाज़ देने पर मदद के लिए हमेशा तैयार मिलेंगे, इस बार की दीपावली इसलिए खास है कि प्रभु ने अपनी विशेष कृपा हम पर बनाई रखी और हमें इस बात का अहसास दिलाया कि ज़िन्दगी में ऊपरी चमक दमक, पैसा, प्रॉपर्टी, शानोशौकत बस एक छलावा और इस पर ज़रा सा भी इतराने या घमंड करने की ज़रूरत नही है। इस बार की दीपावली इसलिए खास है क्योंकि मुझे उन लोगों के लिए थोड़ा बहुत करने का मौका मिला जिनके लिए हर रात अँधेरी और निराशा से भरी हुई है।

इस दीपावली बस धन्यवाद दीजिये अपने करीबी लोगों को, नमन कीजिये उन लोगो को जो इस दीपावली पर अपने परिवार के साथ नहीं है, धीरज बढ़ाइये उनका जो उजड़ गए है, सहारा दीजिये उन्हें जिनको आपकी बहुत जरूरत है। गले लगिये दोस्तों से, परिवार के साथ जी भर के हंसिये, रिश्तेदारों से उलझी हुई सब गांठे खोल लीजिये और प्रार्थना कीजिये प्रभु से, जिसने हमें इस दीपावली को उत्साह से मनाने का अवसर दिया।


हर्षोल्लास एवं प्रकाश के पुनीत पर्व दीपावली की आपको हार्दिक शुभकामनाएं। दीपों का यह महापर्व आपके जीवन में सुख-समृद्धि, उन्नति एवं खुशहाली लाए तथा माँ लक्ष्मी जी की कृपा एवं आशीर्वाद आप पर सदैव बना रहें।

 
Happy Dipawali 🪔
#शुभ_रात्रि❤️🙏🏻

Tuesday, 2 November 2021

❣️गिफ्ट की अदला बदली बंद इस दीपावली......



सोच रहा हूं क्यूँ न इस दीपावली हम सब मिलकर एक नया विचार करें, दोस्तों ओर रिश्तेदारों को मिले तो बिना गिफ्ट के मिले। उस गिफ़्ट के बचे पैसे से किसी की दीपावली मनाने में सहयोग करें। ये क्या वाहियात परम्परा हम शुरू कर बैठे कि..... 


तुम मेरे यहाँ आना तो गिफ्ट लेते आना और फिर मैं तेरे यहाँ जाऊंगा तो गिफ्ट लेता जाऊंगा। बड़ी-बड़ी कंपनियां चांदी काट रही हैं और हम जैसा मध्यम वर्ग डिब्बों के रेट उलट पलट रहा है कि किस दोस्त को क्या देना है ? कौन सा रिश्तेदार कितनी हैसियत का है ? कोई दोस्त या रिश्तेदार महंगा गिफ्ट देता है तो उसको गिफ्ट भी महंगा ही वापिस करना होगा और कोई दोस्त या रिश्तेदार हल्का गिफ्ट देता हैं तो उसको गिफ्ट भी हल्का देने से काम चल जाएगा। ऐसा माहौल बनाया जा रहा है , आज टीवी और सारा मीडिया आपको ये बताने पर लगा है कि कितना-कितना सामान कहाँ-कहाँ बेचा जा रहा है, ये खबरे नहीं है दोस्तों ये आपका दिमाग घुमाने की साजिश है कि आपको लगे सारी दुनिया लगी है सामान खरीदने में आप रह गए पीछे....................          


इस साल इस विचार पर काम करे, दीवाली को दीवाला न बनाए
हमारे पूर्वजों ने तो केवल खील, बताशे, चीनी के खिलौने लक्ष्मी पूजन के बाद प्रशाद के रूप में अपने पड़ोसियो के देने की परंपरा
बनाई थी। परन्तु हम सबने दिखावे के लिए इस परंपरा को महंगे महंगे गिफ्टों में बदल दिया, एक मध्यम वर्ग का मुझ जैसा इंसान किसी दोस्त और रिश्तेदार के पास जाने से पहले सौ बार गुणा भाग करता है और अंत मे इस निष्कर्ष पर पहूंचता है कि रहने दो अगली दीपावली देखेंगे ..…….

❣️❣️❣️❣️❣️

“दोस्तों जिंदगी में पराया कोई नहीं होता,
सिर्फ मन का वहम है... 
भरोसा रूका तो इंसान पराया होता जाता है 
और सांसे रूकी तो शरीर…..!!!”

❣️❣️❣️❣️❣️

Wednesday, 27 October 2021

विश्व गुरू भारत सन् 2050 मेरा एक हसीन ख्वाब



बहुत लम्बे समय के बाद या यूं कह सकते हैं कि मुझे ठीक से याद भी नही कि आज से पहले कब ऐसा हुआ होगा मेरे साथ, कल जल्दी नीद ने अपने आगोश में ऐसे लिया कि पता ही नही चला कब भोर हो गयी, दिन चड आया। आंख तब खुली जब मेरे कानों में माँ का प्रसाद पहुँचा।


बात करता हूँ कल रात नीद की बाहों में रहते हुए जो हशीन ख्वाब देखा उसकी, मैं एक छोटे से शहर में हूँ। सड़क के दोनों तरफ दुकानें हैं। आसपास गौ मूत्र के अधिकृत विक्रेता, शुध्‍द और मिलावट रहित गोबर के लिए सम्पर्क करें, खली चूनी रेस्टोरेंट आदि के बोर्ड जगमगा रहे हैं। एक दो दुकानें मल्टीनेशनल कम्पनियों के वितरकों की भी हैं। ये पहले खाद,  बीज, कीटनाशक आदि बेचते थे। अब ऐसा पशु आहार बेचते हैं,  जिसको खाकर गाय ज्यादा गोबर करती है। जो गाय जितना ज्यादा गोबर और मूत्र विसर्जन करती है, उतनी मँहगी बिकती है। 
शहर के लोग इस समय देश भक्ति से भरे हुए हैं। पाकिस्तान से निर्णायक युध्द होने वाला है।  दुकानों पर बैठे मोटे तुंदियल रह रह कर "जय जय श्रीराम" चिल्लाते हैं। ट्रकों में भर-भरकर पूजन और हवन सामग्री सीमा पर पहुँचाई जा रही है। इनके साथ पुरोहित कालेजों से स्नातक योद्धा रणभूमि में जा रहे हैं। ये ऐसे ऐसे मंत्र जानते हैं जिनको सुनकर टैंक ध्वस्त हो जाते हैं। 
सड़क और रेलमार्ग से भारी मात्रा में गोबर और गौमूत्र बार्डर पर पहुँचाया जा रहा है। पाकिस्तान का अन्त निकट है। 


और चीन?  
चीन आजकल गौमूत्र और गोबर का सबसे बड़ा उत्पादक है। भारत चीन से इनका आयात करता है। 
दोनों देशों के बीच मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध हैं। 
कभी-कभी लोग शिकायत करते हैं कि चीन से आनेवाले गोबर में मानव मल की मिलावट है!
आगे दुकान में कुछ अंधेरा सा दिख रहा है मन में कई ख्याल और सवाल जन्म ले रहे हैं। इस चकाचौंध के बीच अंधेरा कैसा ? कौन होगा यहाँ ? किस तरह की दुकान है ये ? जैसे ही मैं उस दरवाज़े पर पहुँचा, वहाँ कोई नजर नही आ रहा था, मैंने डोर बैल बजाई फिर भी कोई जवाब नही मिला। फिर मैं मन में अनगिनत सवाल लिए एकदम शान्त सा वहाँ खड़ा था। तभी मुझे पीछे से कहीं दूर कोई आवाज़ मेरे कानों में सुनाई दी। मैं चौका, वो आवाज़ मेरी माँ जी की थी जो चाय लेकर मुझे बहुत देर से आवाज़ लगा रही थी। मैंने जल्दी से कमरे का दरवाज़ा खोला, माँ से चाय ली। माँ ने जल्दी-जल्दी में दो चार प्रवचन दिये और चल दी। मैंने भी वापस दरवाज़ा बंद किया, चाय पीते हुए सोचने लगा ये सब क्या था जो अभी तक मैं देख रहा था, मेरी हंसी फूट पड़ी। मेरी हंसी की आवाज़ बाहर काम कर रही मेरी माँ के कानों तक पहुँची तो फिर बोलने लगी, तेरा अभी समय नही हुआ उठने का लोगों को देखो, मैं न जगाऊँ तो दिन भर सोया रहेगा। मुझे लगता है शायद कभी ऐसा ही न हो जाए, खैर (मैं मेरी नीद) इस पर किसी और रोज खुल कर बात करेंगे। 

♦️ महान विचारक व लेखक सेपियन्स की किताब ‘मानव जाति का संक्षिप्त इतिहास’ में एक बेहद खूबसूरत लाईन लिखी गई है— 

“आप किसी बन्दर को यह विश्वास नहीं दिला सकते कि वह आपको एक केला दे दे तो उसे जन्नत में असंख्य केले मिलेंगे। ऐसा विश्वास सिर्फ मनुष्य को दिलाया जा सकता है।”

Friday, 22 October 2021

प्यार, इश्क और मोहब्बत में ख़ुशी भी हैं और गम भी !!

एक तलाश है ज़िन्दगी, कोई तो साथी चाहिए
बड़ी उदास है ज़िन्दगी, कोई तो साथी चाहिए..

जी हाँ दोस्तों फ़िल्मी गानों में दर्द, हो तो वह गाना हिट है!
प्यार, इश्क और मोहब्बत में ख़ुशी भी हैं और गम भी। हर रोज नाजाने कितनी लव स्टोरीज़ बनती और टूटती हैं। कुछ हमारे आसपास और कुछ हमसे मिलों दूर।


आप जानते हैं प्रेम की यात्रा का कोई छोर नहीं। एक किनारे से दूसरे किनारे तक जाने की तीव्र और बेचैन कर देने वाले लालसा में इंसान बहुत कुछ पाता है तो बहुत कुछ खो भी देता है। प्रेम सपने देखना सिखाता है। झरने के मीठे पानी सी उन ख़ूबसूरत लड़कियों की तरह जो जीवन में संगीत पैदा करती हैं। नदी की तरह गाती हुई अपने साथ बहा ले जाती हैं।

प्रेम असंभव और कभी न ख़त्म होने वाली एक यात्रा है जो हमें ऐसे सफ़र पर ले जाती है, जो किसी और को पाने के लिए शुरू होता है और पहुंचता है खुद तक क्योंकि तुम्हीं में तो वह भी है, जिसे तुम ढूंढ रहे हो।

जैसा कि आप सभी जानते हैं कि मनुष्य के लिए दुनिया में कोई भी काम असंभव नहीं है। हर कहानी जरुरी नहीं रोमांस से शुरू हो और शादी पर ख़त्म हो। कुछ रोमांटिक लव स्टोरी शादी के बाद भी शुरू होती हैं। जब दो अजनबी को एक-दूसरे का साथ मिलाता है तो वह यकीनन जानता है कि हम दोनों कैसे एक दुसरे के साथ फिट हो सकते हैं। परफेक्ट लव स्टोरी तो केवल एक ही है और वह है ईश्वर का हमसे प्रेम करना। जैसे ईश्वर हमारे पापों को क्षमा करता है वैसे ही यदि पति-पत्नी भी एक दुसरे की गलतियों को माफ़ करना सीखें तो यकीनन दुनिया में असंख्य प्रेम कहानियाँ होंगी।

♦️ इसी बात पर एक गीत है, जो मुझे लगता है सही बैठता है—

खुदा से माँगो मिलेगा,
उसका वादा हैं वो देगा
उसके वादे पर ऐतबार करो..
खुदा से प्यार करो..
प्यार करो..

Wednesday, 20 October 2021

हवाई मार्ग से आपदा का जायजा, कहीं हवाई न होने पाये हुजूर..

 
उत्तराखंड में आई आपदा का जायजा लेने गृह मंत्री अमित शाह उत्तराखंड दौरे पर कल मध्यरात्रि प्रदेश मुख्यालय पहुँच चुके हैं। बताया जा रहा है रात्रि विश्राम के बाद उनका गुरुवार को प्रभावित क्षेत्रों में जायजा लेने का कार्यक्रम है। इस दौरे को देखते हुए आपदा प्रबंधन विभाग तैयारियों में जुट गया है। जो पिछले दिनों कुछ कम ही नजर आ रहा था। इस बीच सीएम पुष्कर सिंह धामी लगातार कुमांऊ के प्रभावित क्षेत्रों में बने हुए हैं। उनकी टीम की गाड़िया भी इस आपदा में बहती नजर आई पर उसे बचाने वाले लोग ग्रामीण थे आपदा विभाग के नही। बचाव और राहत अभियान में एसडीआरएफ के साथ ही एनडीआरएफ की टीमें भी लगी हुई हैं। राज्य आपदा कंट्रोल रूम के अनुसार तीन दिन की आपदा के बाद अब तक कुल 46 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 11 अब भी लापता चल रहे हैं। 


बड़ी बात तो यह है कि जब सरकार इस आपदा की घड़ी में यदि इंटरनेट बंद कर दे तो कैसे आँकड़े सामने आ पायेंगे, यह महत्वपूर्ण विषय है। इन्टरनेट सेवा चरमराने का कारण कहीं आपदा में सरकार अपनी नाकामी छुपाने के लिए तो नही। वर्ना तो 2013 की आपदा इससे भी भयंकर थी तब ये सब नही हुआ। अब सरकार अपनी ही जनता से क्या छुपाने जा रही है आप स्वयं अंदाज़ा लगाइये। 

प्रदेश में चुनावी समर आने को है तो सोचिए इस आपदा में प्रदेश की जनता कहाँ खड़ी है ? कौन सहयोग को आगे आ रहा है ? जहां चुनाव में बड़े-बड़े लोकलुभावने हवाई वादे किये जाते हैं ठीक वैसे ही हमारे ग्रहमंत्री महोदय आपदा का हवाई सर्वेक्षण करने जा रहे हैं। हवाई तो हवाई होता है शाहब, इस धरा पर उतरकर वहाँ के प्रभावितों के बीच जाकर उनके ज़ख्मों को देखिए। जिन्हें हर आपदा में सरकारें (चाहें किसी भी राजनीतिक पार्टी की हों) आश्वासन के आलावा कुछ और दे नही पाती है। देश व प्रदेश में आपकी ही सरकारें हैं और उत्तराखंड आपदा में पहली बार देश के ग्रहमंत्री का सर्वेक्षण होने जा रहा है। कुछ बड़ी उम्मीदें आपसे की जा सकती हैं। अब देखने वाली बात यह होगी की इस पूरे दौरे के बाद क्या निकलकर सामने आता है। प्रदेश की जनता ग्रहमंत्री से उम्मीद करती है हवाई मार्ग से आपदा का यह जायजा, चुनावी वादों की तरह ही कहीं हवाई साबित न होने पाये। 


देश की जनता को यदि याद हो तो ये वही हैं जिन्होंने प्रधानसेवक के पन्द्रह-पन्द्रह लाख खातों में आयेंगे वाले बयान को चुनावी जुमला बताया था। जो सच निकला, जिसपर सवाल करना मतलब देशद्रोह। अब देवभूमि में आये हैं आपदा में मरहम लगाने वो भी आधि रात को, अब किसे क्या मरहम लगेगा ये तो आगे आने वाला समय बतायेगा। परन्तु  जिस तरह से हमारे प्रदेश के वर्तमान, पूर्व व शीर्ष नेतृत्व पंक्तिबद्ध खड़ा है इससे कुछ और ही अन्देशा हो रहा है। कहीं प्रदेश में राजनीतिक उठापटक तेज तो होने को नही है ? समय से पहले चुनाव की सम्भावना भी हो सकती है। सबसे बड़ा तो आपदा के बहाने पार्टी के डैमेज-कण्ट्रोल को नियंत्रित करना है। जिसके चलते कहा जा सकता है कि कोई दल-बदल की बड़ी घटना प्रदेश को दुबारा देखने को न मिले। जिसका दंश एक बार प्रदेश झेल चुका है। 

बारिश को रोका नहीं जा सकता, न ही किसी और प्राकृतिक आपदा पर इंसान का वश है। लेकिन कम से कम एहतियाती उपाय तो किए ही जा सकते हैं। अंतरिक्ष विज्ञान में भारत ने बहुत तरक्की की है और आकाश से लेकर धरती पर निगरानी रख सकें, ऐसे कई उपग्रह अंतरिक्ष की कक्षाओं में पहुंचाए जा सके हैं। मौसम का पूर्वानुमान या भविष्यवाणी करने के लिए मौसम विभाग है। फिर भी लोगों को बाढ़ की विभीषिका क्यों झेलनी पड़ती है, ये सवाल सरकार से किया जाना चाहिए। तीन ओर से समुद्र से घिरे भारत औऱ सबसे ऊपर हिमालय की चोटियों के कारण देश की तस्वीर जितनी मनोहारी बनती है, सरकार की लापरवाही और विकास की अंधाधुंध दौड़ के कारण इस तस्वीर पर उतने ही दाग लगते जा रहे हैं। मौसम चक्र परिवर्तन के कारण बारिश का कहर किसी भी समय देश पर टूटने लगा है। ख़ास तौर पर समुद्रतटीय इलाकों और पहाड़ी इलाकों में आम लोगों के लिए मौसम परिवर्तन एक बड़ा ख़तरा बन चुका है। लेकिन इस ख़तरे को टालने की ओर सरकार का कोई ध्यान नहीं है।

उत्तराखंड में बारिश, बादल फटना, भूस्खलन जैसी घटनाओं ने कुमाऊं के इलाके में भारी तबाही मचाई है। कुमाऊं क्षेत्र में बीते 124 सालों में अब तक की सबसे ज़्यादा बारिश रिकार्ड की गई है। बारिश और भूस्खलन से होने वाली तबाही में कुल 47 लोग अब तक जान गंवा चुके हैं। कोसी, गौला, रामगंगा, महाकाली के साथ ही इलाक़े की सभी नदियां और जल धाराएं उफ़ान पर हैं और सैकड़ों भूस्खलनों के चलते कई मकान ज़मींदोज़ हो गए हैं और अधिकतर सड़कें बाधित हैं। बचाव और राहत कार्य में लगे जवान केरल से लेकर उत्तराखंड तक दिलेरी के साथ लोगों की जान बचाने में लगे हुए हैं।


पर्यटन के लिए मशहूर नैनीताल में नैनी झील में जलस्तर बढ़ने के कारण तबाही मची हुई है। सड़कें, दुकानें, होटल सब पानी में डूबे हुए हैं। पर्यावरणविद् और इतिहासकार शेखर पाठक के मुताबिक 'नैनीताल झील के ज्ञात इतिहास में अब तक ऐसा ओवरफ़्लो नहीं देखा गया है। एक तो अभूतपूर्व बरसात इसका कारण रही है, दूसरी वजह यह रही कि लेक ब्रिज में बनाया गया पानी का पैसेज भी नासमझी के साथ बनाया गया है। उसे और बड़ा बनाया जाना था। बरसात के चलते झील में पानी लाने वाले सारे ही नालों से इतना पानी आया कि उस रफ़्तार के साथ उसकी निकासी नहीं हो पाई और तल्लीताल के इलाक़े  में बाढ़ आ गई।'

इससे पहले जब उत्तराखंड के केदारनाथ में तबाही मची थी, तब भी नासमझी से लिए गए फ़ैसले ही लोगों पर जानलेवा साबित हुए थे। उत्तराखंड के पहाड़ कमज़ोर हैं और भारी बरसात में यहां भूस्खलन का खतरा हमेशा मंडराता रहता है। लेकिन विकास के नाम पर इस सूबे के जंगलों और पहाड़ों से खिलवाड़ थम ही नहीं रहा है। यहां की जमीन जितना दबाव सहन नहीं कर सकती, उससे कहीं ज्यादा विकास का बोझ यहां लाद दिया गया है, जो अंतत: विनाश का कारण बन रहा है।

Tuesday, 19 October 2021

अब बस भी करो मेघा यूँ बरसना, पहाड़ खिसकने लगे हैं, लोग बेघर होने को है !!



पिछले दो रोज़ से लगातार हो रही बारिश ने जहां एक तरफ लोगों को रुलाया हुआ है, कहीं घर गिराया तो कहीं अपनों को अपनों से दूर हटाया है। मानसून जाने के बाद आई बरसात पहाड़ वालों के लिए आफत बनकर आई। जिसकी वजह से आम लोगों को जन जीवन बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। बारिश को लेकर मौसम विभाग ने 24 घंटे का हाई अलर्ट जारी किया हुआ है।




पहाड़ में पिछले दो रोज से हो रही बारिश ने गरीबों की गरीबी को झकझोर दिया है। समझ में नहीं आ रहा है कि आज का भोजन कहां से मिलेगा। बाल बच्चे किस घर में रहेंगे। अगर जैसे तैसे रहने के लिए छप्पर में या टीन शेड में गुजारा भी कर रहे हैं तो इस बात का डर है कि कब गिर जाए पता नहीं। ऐसी ही घटना लगातार बारिश होने के कारण सुनने में आ रही हैं, कहीं सड़क बह गई तो कहीं पेड़ सड़क में आ गिरा, कहीं घर ही ढह गया, कहीं मलबे ने मासूमों की जान ले ली। इस तरह की लगातार आ रही खबरों ने एक बार बरसात में फिर रुलाया है। 


वहीं बेमौसम की इस बारिश ने एक बार फिर आपदा विभाग की भी कलई खोल दी है। बारिश के कारण सड़कें तालाब का रूप ले लेती हैं लेकिन जिला प्रशासन के पास इनसे निबटने के पर्याप्त इंतजामात नहीं हैं। नाले-नालियों की समय से सफाई नहीं होने के कारण बरसात का पानी सड़कों पर भर जाता है। 


बारिश के चलते जहां कई स्थानों पर दीवार टूटकर गिर गई, तो नगर व ग्रामीण क्षेत्रों में कई स्थानों पर हुए जल भराव के कारण आने जाने का रास्ता भी ठप हो गया। जन-जीवन पूरी तरह से प्रभावित है। इसी के साथ संचार व्यवस्था भी दम तोड़ रही है। लोगों को बात करने के लिये नेटवर्क की समस्याओं का सामना करना किसी आपदा से कम नही है। जहां चारों तरफ डर का माहौल बना हुआ है वहीं संचार सुविधाएँ प्रदेश में पूरी तरह ध्वस्त नजर आ रही है। आगे क्या हालत होंगे भगवान ही जाने, वैसे भी देवभूमि की जनता सदैव भगवान भरोसे ही रहती है। यहाँ की सरकारें व प्रशासन तो बस खर्चे के लिये लोकतांत्रिक व्यवस्था का एक हिस्सा मात्र हों। 


बात करें यदि बागेश्वर की तो अत्यधिक बारिश के चलते यहाँ जिला मुख्यालय से सभी क्षेत्रों का सम्पर्क मार्ग कट चुका था।संचार व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त है, लोग घरों में कैद होने को मजबूर हैं। वहीं आज बागेश्वर में 182.50 एमएम, गरुड़ में 131.00 एमएम और कपकोट में 165.00 एमएम बारिश दर्ज की गई। सरयू व गोमती नदी लगातार खतरे के निशान के आस-पास बह रही है। 


बारिश के कारण तापमान में गिरावट दर्ज की गई। सोमवार को दिन का अधिकतम तापमान 24 डिग्री और न्यूनतम तापमान 18 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। बारिश के कारण लोगों को ठंडक का एहसास हुआ और लोग गर्म कपड़े पहनकर घर से बाहर निकले। मौसम विशेषज्ञों का कहना है कि मंगलवार को भी पूरे दिन बारिश की संभावना है। पूरे प्रदेश में हाई अलर्ट किया हुआ है।

Sunday, 17 October 2021

शैतान, गधा और हम



एक गधा पेड़ से बंधा था, एक शैतान आया और उसे खोल गया। गधा मस्त होकर खेतों की ओर भाग निकला और खड़ी फसल को खराब करने लगा। 


किसान की पत्नी ने यह देखा तो गुस्से में गधे को मार डाला।
गधे की लाश देखकर गधे के मालिक को बहुत गुस्सा आया और उसने किसान की पत्नी को गोली मार दी। 

फिर वो किसान पत्नी की मौत से इतना गुस्से में आ गया कि उसने गधे के मालिक को गोली मार दी।

गधे के मालिक की पत्नी ने जब पति की मौत की खबर सुनी तो गुस्से में बेटों को किसान का घर जलाने का आदेश दिया।

बेटे शाम में गए और मां का आदेश खुशी-खुशी पूरा कर आए। उन्होंने मान लिया कि किसान भी घर के साथ जल गया होगा।

लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 
किसान वापस आया और उसने गधे के मालिक की पत्नी और बेटों, तीनों की हत्या कर दी।

इसके बाद उसे पछतावा हुआ और उसने शैतान से पूछा कि यह सब नहीं होना चाहिए था। ऐसा क्यों हुआ...?

शैतान ने कहा>  

‘मैंने कुछ नहीं किया। मैंने सिर्फ गधा खोला लेकिन तुम सबने रिऐक्ट किया, ओवर रिऐक्ट किया और अपने अंदर के शैतान को बाहर आने दिया। 
 इसलिए अगली बार किसी का जवाब देने, प्रतिक्रिया देने, किसी से बदला लेने से पहले एक लम्हे के लिए रुकना और सोचना ज़रूर .'

ध्यान रखें ... 

कई बार शैतान हमारे बीच सिर्फ गधा छोड़ता है और बाकी विनाश हम खुद कर देते हैं !!

हर रोज टीवी चैनल गधे छोड़ जाते हैं...
आजकल कोई ग्रुप में गधा छोड़ देता है। 
कोई फेसबुक पर गधा छोड़ जाता है। 

और सभी दोस्तों के ग्रुप में और पार्टी बाजी या विचारधारा के चक्कर में आप और हम लड़ते रहते हैं। 

मिल जुल कर मुस्कुरा कर खुशी से रहिये याद रखें-

तोड़ना आसान है, जुड़े रहना बहुत मुश्किल है.....!
लड़ाना आसान है, मिलाना बहुत मुश्किल.....!

Saturday, 16 October 2021

मैं और मेरा पारिजात प्रेम —




मेरे घर के गमले में लगा ये हरसिंगार/पारिजात का पेड़ इन दिनों खूब खिल रहा है। आज सुबह-सुबह खिले इन फूलों को देखकर मेरा मन भी खिल उठा। 😊❤️


पारिजात को देखा तो लगभग सभी ने होगा...
जिसे 
हार-सिंगार 
हरि-श्रंगार 
कल्प-वृक्ष 
आदि के नामों से भी पुकारा जाता है। सुबह सूर्योदय के पहले खिल जाता है, छोटा सा है, सरल भी, एकदम शुभ्र, सच्चाई से भरा, अपनी सारी सुरभि आते ही लुटा देता है। बचाता छुपाता कुछ नहीं, यह उसकी सच्चाई का ही प्रतिफल है। कि उसे जिम्मेवारी सौंपी है भगवा की। वह भी इतना सच्चा है कि हर बार गिरता है तो औंधे मुंह गिरता है। अपनी शुभ्रता पर दाग स्वीकार है पर भगवा को झूकने नहीं देता। पारिजात भगवा को सदा ऊपर रखता है खुद से भी। इस सच्चे सुरभित शुभ्र का जीवन बहुत छोटा होता है। बस सूर्योदय के बाद कुछ ही समय। पर यह शिकायत नहीं करता, खुद का बखान तो कभी नहीं। शायद इसी लिये पारिजात को देव पुष्प होने का गौरव प्राप्त है।


जितने इसके मनमोहक नाम उतनी ही मनभावनी सुगंध बचपन से ही यह फूल मुझे अत्यंत प्रिय है। जब मैं बहुत छोटा था उन दिनों हमारे घर में नहीं हुआ करता था। कोई अट्ठारह साल की उम्र होगी जब दशहरे के दिनों में मैंने इसे किसी मित्र के घर पूजा की डोलची या थाली में देखा था। आज खुद को याद करके हैरानी होती है कि 18 साल की उम्र से लेकर अब तक मेरा कैसा आकर्षण इस के प्रति था। तब दशहरे के दिनों में खूब पूजा-पाठ और उपवास भी किया करते थे। जबकि बड़े होकर इन सबसे कहीं दूर होता गया। न पहले के बारे में कोई शर्मिंदगी है न अब के बारे में कोई गर्व। बस देखने पर अपने आप ही अलग लगता है।


मुझे भली भांती याद है कुछ एक साल पहले बागेश्वर मण्डलसेरा निवासी, वृक्ष प्रेमी श्रीमान किशन सिंह मलड़ा जी के यहाँ से एक नन्हा सा पौधा लेकर घर के गमले में लगाया। आज दशहरे के दिन तक पौधा खासा बड़ा हो गया।अब रोज शाम के लिए एक काम बड़ गया है-  इसके नीचे की जमीन को साफ़ करने का।
उस साफ-सुथरी जमीन पर सुबह फूल पथार की तरह बिखरे हुए मिलते और उन बिखरे हुए फूलों को पूजा की डोलची में हम भर देते। पूजा की डोलची को फूलडाली कहते थे। फूलडाली पहले बेंत की होती थी परन्तु आज पीतल की पर दोनों सुंदर ही थी। हरसिंगार के खिलने के दिनों में भर भर के फूलडाली में वही रहता। 


आज तक मैंने जाना कि एकमात्र यही फूल है जो बिखर जाने और भूमि पतित होकर भी देवता के सिर पर चढ़ाया जा सकता है। मुझे याद नहीं कि और किसी बासी फूल को हमने देवता पर चढ़ाया हो और हरसिंगार तो बासी ही चढ़ता है।


"हरि का श्रृंगार' इस बासी फूल से हो सकता है इसीलिए इस फूल में कोई दैवीय आभा है। साल में बमुश्किल दो-तीन पखवाड़े या ज्यादा से ज्यादा महीने भर खिलने वाले इस फूल की जो आवभगत प्रेमियों के मन में होती है वह निराली है। गंध और रंग से तो यह मोहता ही है साथ ही खिलने की अल्प अवधि के कारण विशिष्ट बना रहता है।


जब से मैंने इसे गमले में लगाया माता जी की बात को ध्यान रख मैं इसके नीचे के फर्श को साफ कर देता था, वैसे अक्सर माता जी ही ये काम बखूबी किया करती हैं। मुझसे तो बस कहना मात्र ही रहता है। ताकि सुबह जो फूल चुनूँ वे एकदम ताज़े हों। इस साल यह खिलने लगा है। खूब खिलता है व खिल रहा है। 

मैं इसे बस दूर-दूर से देखता हूँ। प्रेम में खुद की ही नजर न लग जाए इस तरह से देखता हूँ। मेरे पारिजात को आप भी इसी नज़र से देखिए जो नज़राए न।

♦️ कहानी पारिजात की-
****************

राजकुमारी थी जो ,
सूर्य देव पर मोहित थी।

पाना चाहती थी आफताब को,
बन रानी सूर्य नगरी की।

पर सूर्य देव को इस से इनकार हुआ।
सह ना पायी तिरस्कार को और
आत्म दाह किया।

जहाँ दफन थी राजकुमारी
उस कब्र पर एक नन्हा सा

फूल खिला,नाम पारिजात हुआ।
पारिजात के प्रेम का जो गवाह हुआ।

हो गोधूलि तब खिल जाता है
रात रानी बन कर आंगन
उपवन को महकाता हैं।

रजनी जब ढल जाये
और प्रेमी जब सामने आ जाये।

उस से पहले ही विरह अग्नि में
खुद ही तप जाता हैं।

हो सूर्य उदय उस से पूर्व ही।
अश्रू रूप में अपनी
शाखाओं से गिर जाता हैं।

है चमत्कारी वरदान ये
उपचार में उपयोगी हैं।

शिव का है प्रिय पुष्प
और कृष्ण को भी प्रिय ये।

चंदन सी है शीतलता जिसमे
खुशबू आलीशान हैं।।

रात की रानी कहो या पारिजात कहो।
हार सिंगार गुणों की खान हैं।।

❣️❣️❣️❣️❣️




आश्विनस्य सिते पक्षे दशम्यां तारकोदये।
स कालो विजयो ज्ञेयः सर्वकार्यार्थसिद्धये।।

अधर्म पर धर्म की विजय के महापर्व विजयदशमी की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं। प्रभु श्री राम हमें बुराइयों पर विजय प्राप्त करने की शक्ति दें। विजयादशमी का पर्व सभी के जीवन में सुख,शांति और समृद्धि लाए।

#garden #parijat #HappyVijyadashmi2021 #bageshwar

मन की बात —



जब जनता देशहित में पेट्रोल 113 रुपये लीटर खरीद सकती है, 1 हज़ार का गैस सिलेंडर ले सकती है, तो बिजली 20 रुपये यूनिट क्यों नहीं खरीद सकती? सरकार का हर कदम देशहित में उठता है। वो जो करती है, देश के भले के लिए करती है। कुछ लोग हैं, जो सरकार के काम की आलोचना करते हैं।


जरा सोचो पिछली सरकारों ने सस्ता पेट्रोल बेच कर क्या कर लिया? क्या वो प्रधानमंत्री के लिए 8500 करोड़ का जहाज़ खरीद सकी? कितना बुरा लगता था, जब देश का प्रधानमंत्री पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की तरह खटारा जहाजों में विदेश जाता था? इससे देश का अपमान होता था। 

बिजली 20 रुपये यूनिट खरीदने के लिए दिल पक्का कर लीजिए। हर मंत्री के लिए एक-एक जहाज़ खरीदना है। उन्हें देश में कहीं भी आने जाने में बहुत परेशानी होती है। देखना एक दिन दुनिया को पता चल जाएगा कि भारत की जनता कितनी देशभक्त है, जो अपने मंत्रियों के लिए अलग अलग जहाज़ खरीद कर दे देती है। 

सरकार भी तो जनता का ख्याल रखती है। पूरा पांच किलो अनाज मुफ्त देती है...पूरा पांच किलो किसी सरकार ने कुछ दिया आज तक? 

इसलिए मित्रो! महंगे पेट्रोल डीजल, गैस और बिजली से घबराना नहीं। देश आपकी इस कुर्बानी को हमेशा याद रखेगा।

❣️
“मानव जीवन धूल की तरह होता है, हम रो-धो कर इसे कीचड़ बना देते है।”
❣️

#merabharatmahan #ilovemyindia

पेरू से आयी चौलाई (रामदाना) को भूलने लगा पहाड़



यदि ठण्डे दिमाग से सोचे तो अब भूले-बिसरे, यदा-कदा ही याद आता है पहाड़ में रामदाना। जिसे हमारे यहाँ चौलाई कहा जाता है। उपवास के लिए लोग इसके लड्डू और पट्टी खोजते हैं। पहले इसकी खेती का भी खूब प्रचलन था। बचपन में मंडुवे के खेतों के बीच-बीच में चटख लाल, सिंदूरी और भूरे रंग के चपटे, मोटे गुच्छे जैसे देख कर चकित होता था कि आखिर यह कौन-सी फसल है? पता लगा वह चौलाई है जिसके पके हुए बीज रामदाना कहलाते हैं। जब पौधे छोटे होते थे तो वे चौलाई के रूप में हरी सब्जी के काम आते थे। तब पहाड़ों में मंडुवे की फसल के साथ चौलाई उगाने का आम रिवाज था। यह तो शहर जाकर पता लगा कि रामदाना के लड्डू और मीठी पट्टी बनती है। 




पहाड़ में रामदाना के बीजों को भून कर उनकी खीर या दलिया बनाया जाता था। मैंने अपने जीवन में एक बार पूर्व मुख्यमंत्री आदरणीय हरीश रावत जी की सरकार में जब पहाड़ी भोजन हर सरकारी कार्यालयों में प्रमोट किया जा रहा था तब दिल्ली स्थित उत्तराखंड सदन, नाश्ते में रामदाने की मुलायम और स्वादिष्ट रोटी खाई थी। रोटी का वह स्वाद अब भी याद है। यह हम सभी उत्तराखंडी पहाड़ियों के लिये बड़ा दुर्भाग्य रहा कि उनकी सरकार जाते ही यह योजना भी ठंडे बस्ते में चली गयी। जबकि ऐसा नही होना चाहिए था। पहाड़ सिर्फ हरीश रावत जी का नही नही बल्कि हम सब का है। अब तो हमारे पहाड़ में भी खेतों में दूर-दूर तक चौलाई के रंगीन गुच्छे नहीं दिखाई देते हैं। आज बागेश्वर जनपद के सबसे दूर लगभग आँखिरी गाँव गोगिना जाकर देखा तो इसकी खेती दिखी, आश्चर्यवश में खेत में जा पहुँचा। रामदाना के मोटे लाल गुच्छे देखकर मन प्रसन्न हुआ। बेहद शान्त वातावरण में सिर्फ पक्षियों की मधुर चहचहाते संगीत के बीच ये खेत में लहलहाती चौलाई की फसल देख मानो अपनी कल्पनाओं के भंवर में कहीं खो सा गया मैं। 


फिर घर पहुँचने पर इतिहास टटोला तो पता लगा, चौलाई के गुच्छे तो हजारों वर्ष पहले दक्षिणी अमेरिका के एज़टेक और मय सभ्यताओं के खेतों में लहराते थे। रामदाना उनके मुख्य भोजन का हिस्सा था और इसकी खेती वहां बहुत लोकप्रिय थी। जब सोलहवीं सदी में स्पेनी सेनाओं ने वहां आक्रमण किया, तब चौलाई की फसल चारों ओर लहलहा रही थी। वहां के निवासी चौलाई को पवित्र फसल मानते थे और उनके अनेक धार्मिक अनुष्ठानों में रामदाना काम आता था। विभिन्न उत्सवों, संस्कारों और पूजा में रामदाने का प्रयोग किया जाता था। स्पेनी सेनापति हरनांडो कार्टेज को चौलाई की फसल के लिए उन लोगों का यह प्यार रास नहीं आया और उसने इसकी खड़ी फसल के लहलहाते खेतों में आग लगवा दी। चौलाई की फसल को बुरी तरह रौंद दिया गया और उसकी खेती पर पाबंदी लगा दी गई। इतना ही नहीं, हुक्म दे दिया गया कि जो चौलाई की खेती करेगा उसे मृत्युदंड दिया जाएगा। इस कारण चौलाई की खेती खत्म हो गई।  




चौलाई का जन्मस्थान पेरू माना जाता है। स्पेनी सेनाओं ने एज़टेक और मय सभ्यताओं के खेतों में चौलाई की फसल भले ही उजाड़ दी, लेकिन दुनिया के दूसरे देशों में इसकी खेती की जाती रही। दुनिया भर में इसकी 60 से अघिक प्रजातियां उगाई जाती हैं। 

पहाड़ों में चौलाई सब्जी और बीज दोनों के काम आती है लेकिन मैदानों में इसका प्रयोग हरी सब्जी के लिए किया जाता है। इसकी ‘अमेरेंथस गैंगेटिकस’ प्रजाति की पत्तियां लाल होती हैं और लाल साग या लाल चौलाई के रूप में काम आती हैं। ‘अमेरेंथस पेनिकुलेटस’ हरी चौलाई कहलाती है। ‘अमेरेंथस काडेटस’ प्रजाति की चौलाई को रामदाने के लिए उगाया जाता है। हालांकि, मैदानों में यह हरी सब्जी के रूप में काम आती है। चौलाई के एक ही पौधे से कम से कम एक किलोग्राम तक बीज मिल जाते हैं। इस फसल की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसे कम वर्षा वाले और रूखे-सूखे इलाकों में भी बखूबी उगाया जा सकता है। इस भूली-बिसरी फसल के बारे में हम यह भूल गए हैं कि यह एक पौष्टिक आहार है। कई विद्वान तो इसे गाय के दूध और अंडे के बराबर पौष्टिक बताते हैं। यह विडंबना ही है कि जिस फसल को अब तक हमारी मुख्य फसल बन जाना चाहिए था, उसे कई देशों में तो खरपतवार और गरीबों का भोजन तक मान लिया गया। हमारी बेरूखी से रूखे-सूखे में भी उगने वाली यह फसल गेहूं, धान और दालों की दौड़ में पीछे छूट गई। 


प्राप्त जानकारी के अनुसार, एक अनुमान के अनुसार अगर हम पौष्टिकता को 100 मान लें तो रामदाने की पौष्टिकता 75, गाय के दूध की 72, सोयाबीन की 68, गेहूं की 60 और मक्का की 44 है। इसमें उच्च कोटि की प्रोटीन पाई जाती है जो दूध की प्रोटीन ‘केसीन’ के समान बताई जाती है। 
कई लोगों को गेहूं के आटे में पाए जाने वाले ग्लूटेन के कारण भोजन पचने में परेशानी होती है। साथ ही एलर्जी के कारण चर्म रोग भी हो जाते हैं। लेकिन, रामदाने का आटा अन्य प्रकार के आटे में मिला कर आराम से खाया जा सकता है। रामदाने के कारण यह काफी पौष्टिक आहार बन जाता है। वैज्ञानिक कहते हैं रामदाना हमारे रक्त में हानिकारक कोलेस्ट्राल की मात्रा को कम करता है। इसलिए यह दिल के मरीजों के लिए भी मुफीद आहार माना गया है। बेक्रफास्ट में इसका दलिया या रोटी खाई जा सकती है। 


रामदाने के कई व्यंजन बनाए जा सकते हैं। रोटी, पू़ड़ी और लड्डू बनाने के साथ-साथ भुना हुआ रामदाना शहद के साथ भी खाया जा सकता है। यह सुपाच्य उत्तम आहार है। दोस्तों अब समय आ गया है जब हमें चौलाई जैसी अपनी भूली-बिसरी फसलों की खेती को फिर से बढ़ावा देना चाहिए। तभी पहाड़ का पानी व पहाड़ की जवानी दोनो काम आयेगी।

Wednesday, 13 October 2021

छोटी काशी कहे जाने वाले बाबा बागनाथ की नगरी में दीपोत्सव के साथ माँ सरयू की भव्य आरती !


कहते हैं आपने बनारस नहीं देखा तो क्या देखा और बनारस आकर अगर गंगा आरती नहीं देखी तो कुछ देखा ही नहीं। कहते हैं न काशी विश्वनाथ की नगरी की गंगा आरती की भव्यता की बात ही कुछ और है। लेकिन जिला प्रशासनव लोगों के प्रयासों से कुछ ऐसी ही कहावत छोटी काशी बागेश्वर में चरितार्थ होती नजर आ रही है। बागेश्वर के सरयू घाट पर बुधवार को हुई भव्य महाआरती का नजारा हरिद्वार या काशी से कमतर नही था, गंगा के दोनो छोर पर हुई भव्य आरती ने श्रद्धालुओं का मन मोह लिया। छोटी काशी कहे जाने वाले बाबा बागनाथ की नगरी में दीपोत्सव के साथ माँ सरयू की भव्य आरती जो नजारा शाम को दिखा उसकी बात ही निराली है। 




बुधवार शाम सरयू घाट पर मनोरम द्रश्य नजर आया। रंग बिरंगी रोशनी में नहाती माँ सरयू के तट पर महाआरती हुई।
सुंदर वेशभूषा में पुजारी, गजब की महक के साथ उठी ज्वाला,
आसमान को आगोश में लपेटता हुआ धुआं, सरयू घाट पर हुई
महाआरती सचमुच अद्भुत थी। आरती में शामिल होने के लिए घाट पर श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। सैंकड़ों की तादाद में लोग घाट पर नजर आए, वहीं पुल से गुजरने वाले वहां भी वहीं थम गए।


विगत लम्बे समय से बागेश्वर में अष्टमी की शाम दुर्गा व देवी पूजा महोत्सव की ओर से भव्य गंगा आरती, दीपदान तथा आतिशबाजी का आयोजन किया जाता है। आज भी भारी संख्या में भक्तों ने गंगा आरती में भाग लिया। सरयू किनारे जले दीपों से नगर मानो किसी दुलहन की तरह रोशनी में नहा गया हो। वहीं दूसरी तरफ सायं दुर्गा व देवी पूजा पंडालों में भक्तों ने मां दुर्गा की आरती वंदना की। सरयू के दोनों तटों पर दीप जलाकर भव्य दीपदान किया गया। दीपों की टिमटिमाती रोशनी में पूरा नगर रोशन हो गया। नदी के दोनों ओर भारी संख्या में लोगों की भीड़ दीपोत्सव को देखने उमड़ी। इसके बाद भव्य आतिशबाजी की गई। देर तक आसमान में जगमगाती रोशनी का दर्शकों ने जमकर आंनद उठाया। 


महोत्सव के आयोजकों ने कहा कि गंगा आरती के बाद दीपदान का हर साल आयोजन किया जाता है। उन्होंने कहा कि दीपक जलाने से जहां एक तरफ अंधियारा मिटता है, वहीं दीपक हमें अपने भीतर छिपे अंधकार रुपी बुराई को समाप्त कर अच्छाई रुपी रोशनी ग्रहण करने का संदेश भी देता है। हम लगातार इस आयोजन को और अधिक भव्य करने के लिए प्रयासरत हैं। 

फोटो साभार- दिग्विजय सिंह जनौटी !!