Friday, 24 December 2021

किस्सा क्रिसमस वाली चाय का…

बात उन दिनों की है जब मैं दिल्ली में था और मेरे पास कोई काम नही था, तब पार्क में बैठ घण्टों बिताया करता था। अक्सर कभी कभार किसी से कुछ बातें ना चाहते हुए भी हो ही जाती हैं, मानव स्वभाव ही कुछ ऐसा है, ऊपर से मुझ जैसा। अतीत के उन पन्नों में कहीं किसी कोने पर धूल फाँकती मेरे जीवन का एक छोटा सा किस्सा क्रिसमस वाली चाय का………

अब तो ठीक से याद भी नही की आंखिर उनका नाम क्या था, बहुत देर सोचने पर भी मैं आज उनके कहे शब्दों से नाम तक नही पहुँच पाया। वो घर से निकल कर पार्क में पर लगी कुर्सी पर बड़े गम्भीर होकर बैठ शायद कुछ सोच रहे थे। तभी मैं भी बिनबुलाए मेहमान की तरह उनके बगल में जा बैठा। बहुत देर हम यूँ ही बैठे रहे, समय- समय पर मेरी नजर न चाहते हुए भी उन पर चली जा रही थी। बड़ी देर खुद को रोकते हुये आंखिरकार एक घण्टे बाद मैंने उनसे पूछ ही डाला “चाचा जी” कोई परेशानी है क्या ?


वहाँ से कोई जवाब न आता सुन मैं थोड़ा परेशान सा होकर उनके और पास पहुँचकर उन्हें हिलाने लगा, वो अचानक मेरी तरफ गरदन घुमाकर बड़ी आंखो से मुझे घूरने लगे। मानो उनकी तन्द्रा तोड़ने का मैंने वैसा कोई दुस्साहस किया हो जैसे तपस्या में बैठे कोई ऋषि का ध्यान भंग हुआ हो। खैर खुद को सम्भालते हुए फिर मैंने हिम्मत जुटाकर दुबारा से पूछा “चाचा जी” सब ठीक है, कोई परेशानी तो नही। मुझे लगा था कहीं तबियत तो खराब नही है। थोड़ा संभलने के बाद चाचा भारी स्वर में बोले बेटा सब ठीक है। तुम कहाँ से हो ? तुम्हारा नाम क्या है ? यहाँ क्या कर रहे हो?

एक साथ इतने सवालों की बरसात से हमारी बातचीज का दौर शुरू हुआ, बहुत सी बातों व मेरे बारे में जानकारी के बाद चाचा थोड़े ठीक से लग रहे थे। पर मेरे मन में तो वही सवाल घूम रहा था। जैसे ही मुझे मौका मिला मैंने गोली की रफ़्तार से अपना सवाल दाग दिया। चाचा एक बार फिर चुप से हो गये उनके चेहरे के भाव में कुछ दर्द दिखने लगा। फिर थोड़ा माहौल को देखते हुये मैंने दुबारा बोला चाचा छोड़िए सब, पास ही एक चाय की दुकान है वहाँ चलकर चाय पीते हैं, बहुत बढ़िया चाय बनाता है। पर सच तो ये है कि मैं आज से पहले वहाँ कभी गया नही। हम दोनों पास की चाय की दुकान पर चाय पीने लगे तो इधर उधर की बातों का सिलसिला चल पड़ा, चाचा ने बिना कहे अपना किस्सा सुनाया जो मैं आज आपसे सांझा कर रहा हूँ, शब्दशः ………..

“बेटा आज सुबह की बात है ठीक एक साल बाद मेरा रिटायरमेंट हो जायेगा, यही सब सोच ही रहा था कि मेरी पत्नी कमरें में आई आने के साथ ही चालू हो गई थी। 

“क्यों, आज काम पर नहीं जाना? अरे, नहाएधोए तक नहीं? न जाने कब सुधरोगे,’’

‘‘जरा एक प्याली चाय…’’ 
मैं आधा ही बोल पाया था कि वह फिर भड़क उठी, 
“बस, चायचाय, खाने की जरूरत नहीं। यह चाय तुम्हें मार डालेगी। अरे, यह जहर है जहर…’’ कहती व हाथपांव पटकती बेमन से चाय बना कर लाई और कप ऐसे पटक कर रखा कि वह टूट गया और चाय की छींटें पूरे बदन पर जा गिरीं। 

‘‘अब खड़ेखड़े मेरा मुंह क्या देख रहे हो। जाओ, हाथपैर धो लो वरना दाग लग जाएगा। कपड़ों पर लगा दाग मुझ से नहीं छूटने वाला,’’ 
वह बजाय अफसोस जाहिर करने के भड़क रही थी। मैं चुपचाप उठा, स्नान किया और कपड़े पहन तैयार हो घर से निकल आया। अब पत्नी का व्यवहार काटने को दौड़ रहा था। तब सुबह ही घर से निकल कर पार्क में बैठ खो गया अतीत की यादों में कहीं। तब तुमने आकर मुझे जगाया है। 

यह कहते हुए उनकी आँखे भर आई थी, मैंने स्थिति को एक बार फिर सम्भालते हुए कहा चाचा आज तो क्रिसमस है, हैप्पी क्रिसमस !! उन्होंने मुस्कुराते हुए धन्यवाद कहा और मुझे भी शुभकामनाओं व अगले रविवार यहीं चाय की एक नई चर्चा के साथ फिर मिलने का वादा किया। फिर उन्होंने चाय का बिल दिया, मुझे आज भी याद है तब 300 का था, मेरे जीवन की पहली महंगी चाय थी ये, बात 2004 की है। हम दोनो एक दूसरे से फिर मिलने का वादा लेकर अपने-अपने रास्ते की ओर बड़ चले “……

चाचा “हैप्पी क्रिसमस” मुझे आज भी आप याद हैं !

Merry Christmas to everyone🎄!
I hope the festive season brings good health, success and peace all around.

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