Monday, 6 December 2021

सच लिखता हूँ………

कितना मनमौजी हूँ मैं जो सच लिखता हूँ………
कुछ कहते धाकड़ है, तो कुछ कहते हैं निर्भीक है…..
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मैं आवारा कलम का मारा सपनों का सौदागर हूँ, 
दुनिया में विखराता मोती पर मैं रीती गागर हूँ।
पत्थर के सीनें पर अमर कथाएं लिखता हूँ,
फक्कड़ हूँ मनमौजी मैं कविताएं लिखता हूँ ॥

लिखता हूँ मैं उनके आंसू जिनका नहीं कोई अपना,
लंबी लंबी रातों को तड़पाता है जिनको सपना।
जिनके दिलवर दिल में ही रहकर दिल को ही तोड़ गए,
जो अपनों की जीवन नौका बीच भंवर में छोड़ गए।
उन घायल प्राणों को लाख दुवाएं लिखता हूँ,
फक्कड़ हूँ मनमौजी मैं कविताएं लिखता हूँ ॥



     
फटे हुए कुर्ते में गर्मी बीती, वर्षा, शीत आ गया,
पुस्तैनी ऋण भरनें में ही जिसका जीवन बीत गया। 
भारत का भविष्य रचने में जिसका मरना जीना है,
एक एक दानें में शामिल जिसका खून पसीना है। 
उस किसान को शीतल मंद हवाएँ लिखता हूँ,
फक्कड़ हूँ मनमौजी मैं कविताएं लिखता हूँ ॥

लिखता हूँ उस माँ की खातिर जिसने बेटा दान किया,
कलम रखूं उसके चरणों में जिसने भाई का वलिदान दिया। 
जिसने दे डाला सिन्दूर देश को विधवा हुई जवानी में,
अक्षर अक्षर मैं धो करके गंगा जी के पानी में,
उस देवी के लिए शब्द मालाएं लिखता हूँ।
फक्कड़ हूँ मनमौजी मैं कविताएं लिखता हूँ ॥
फक्कड़ हूँ मनमौजी मैं सच लिखता हूँ ॥

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