Thursday, 30 December 2021

1857 क्रांति का गवाह बना पूरब का मैनचेस्टर 'कानपुर'

आजकल 'कानपुर' की चर्चाएं हर जुबान पर हैं। यह वही शहर है, जहां एक धनकुबेर के यहां से जब्त की गई अब तक की सबसे बड़ी अघोषित 'संपदा' मिली। हर नागरिक ने जीवन में पहली बार टी वी पर इतनी बड़ी धनराशि को देखा। वहीं एक विशेष रैली के दौरान कुछ उपद्रवियों द्वारा इसी शहर में दंगे कराने की नाकाम कोशिश भी की गई।


यह वही कानपुर है, जिसका मूल नाम था 'कान्हपुर'। नगर की उत्पत्ति का संचेदी के राजा हिंदू सिंह से अथवा महाभारत काल के दानवीर कर्ण से संबंध होना चाहे संदेहात्मक हो, पर इतना प्रमाणित है कि अवध के नवाबों के शासनकाल के अंतिम चरणों में यह नगर पटकापुर, जूही तथा सीमाभऊ गांवों के मिलने से बना।

इसी शहर से 22 किलोमीटर दूर गंगा किनारे 'बिठूर' एक धार्मिक स्थान है, जहां हिंदू शास्त्रों के अनुसार ब्रह्माजी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। माता सीता ने बिठूर में ही अपने दोनों पुत्र लव-कुश को जन्म दिया। भक्त ध्रुव ने भी यही तपस्या कर भगवान विष्णु को प्रसन्न किया था।


इस नगर का शासन कन्नौज तथा कालपी के शासकों के हाथों में रहा और बाद में मुसलमान शासकों के 1773 से 1801 तक अवध के नवाब अली अलमास अली का यहां शासन रहा। 1773 की एक संधि के बाद यह नगर अंग्रेजों के शासन में आया और 1778 में अंग्रेज छावनी बनी। गंगा-तट पर स्थित होने के कारण अंग्रेजों ने यहां उद्योग धंधों को बढ़ावा दिया। उन्होंने इसका नाम रखा 'CAWNPORE'। ईस्ट इंडिया ने सर्वप्रथम नील का व्यापार शुरू कर कपास और चमड़े के कारखाने लगाए‌।

1857 की क्रांति में कानपुर का अहम योगदान रहा। रानी लक्ष्मीबाई, तात्या तोपे, नानासाहेब, मंगल पांडे इस लड़ाई के प्रदर्शक थे जबकि नानासाहेब अंग्रेजो के खिलाफ बिठूर नगर का नेतृत्व कर रहे थे। गणेश शंकर विद्यार्थी ने अपनी कलम से ही अंग्रेजो के खिलाफ क्रांति का  उद्घोष किया।


♦️ इतिहास के झरोखे से:-

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