मेरे घर के गमले में लगा ये हरसिंगार/पारिजात का पेड़ इन दिनों खूब खिल रहा है। आज सुबह-सुबह खिले इन फूलों को देखकर मेरा मन भी खिल उठा। 😊❤️
पारिजात को देखा तो लगभग सभी ने होगा...
जिसे
हार-सिंगार
हरि-श्रंगार
कल्प-वृक्ष
आदि के नामों से भी पुकारा जाता है। सुबह सूर्योदय के पहले खिल जाता है, छोटा सा है, सरल भी, एकदम शुभ्र, सच्चाई से भरा, अपनी सारी सुरभि आते ही लुटा देता है। बचाता छुपाता कुछ नहीं, यह उसकी सच्चाई का ही प्रतिफल है। कि उसे जिम्मेवारी सौंपी है भगवा की। वह भी इतना सच्चा है कि हर बार गिरता है तो औंधे मुंह गिरता है। अपनी शुभ्रता पर दाग स्वीकार है पर भगवा को झूकने नहीं देता। पारिजात भगवा को सदा ऊपर रखता है खुद से भी। इस सच्चे सुरभित शुभ्र का जीवन बहुत छोटा होता है। बस सूर्योदय के बाद कुछ ही समय। पर यह शिकायत नहीं करता, खुद का बखान तो कभी नहीं। शायद इसी लिये पारिजात को देव पुष्प होने का गौरव प्राप्त है।
जितने इसके मनमोहक नाम उतनी ही मनभावनी सुगंध बचपन से ही यह फूल मुझे अत्यंत प्रिय है। जब मैं बहुत छोटा था उन दिनों हमारे घर में नहीं हुआ करता था। कोई अट्ठारह साल की उम्र होगी जब दशहरे के दिनों में मैंने इसे किसी मित्र के घर पूजा की डोलची या थाली में देखा था। आज खुद को याद करके हैरानी होती है कि 18 साल की उम्र से लेकर अब तक मेरा कैसा आकर्षण इस के प्रति था। तब दशहरे के दिनों में खूब पूजा-पाठ और उपवास भी किया करते थे। जबकि बड़े होकर इन सबसे कहीं दूर होता गया। न पहले के बारे में कोई शर्मिंदगी है न अब के बारे में कोई गर्व। बस देखने पर अपने आप ही अलग लगता है।
मुझे भली भांती याद है कुछ एक साल पहले बागेश्वर मण्डलसेरा निवासी, वृक्ष प्रेमी श्रीमान किशन सिंह मलड़ा जी के यहाँ से एक नन्हा सा पौधा लेकर घर के गमले में लगाया। आज दशहरे के दिन तक पौधा खासा बड़ा हो गया।अब रोज शाम के लिए एक काम बड़ गया है- इसके नीचे की जमीन को साफ़ करने का।
उस साफ-सुथरी जमीन पर सुबह फूल पथार की तरह बिखरे हुए मिलते और उन बिखरे हुए फूलों को पूजा की डोलची में हम भर देते। पूजा की डोलची को फूलडाली कहते थे। फूलडाली पहले बेंत की होती थी परन्तु आज पीतल की पर दोनों सुंदर ही थी। हरसिंगार के खिलने के दिनों में भर भर के फूलडाली में वही रहता।
आज तक मैंने जाना कि एकमात्र यही फूल है जो बिखर जाने और भूमि पतित होकर भी देवता के सिर पर चढ़ाया जा सकता है। मुझे याद नहीं कि और किसी बासी फूल को हमने देवता पर चढ़ाया हो और हरसिंगार तो बासी ही चढ़ता है।
"हरि का श्रृंगार' इस बासी फूल से हो सकता है इसीलिए इस फूल में कोई दैवीय आभा है। साल में बमुश्किल दो-तीन पखवाड़े या ज्यादा से ज्यादा महीने भर खिलने वाले इस फूल की जो आवभगत प्रेमियों के मन में होती है वह निराली है। गंध और रंग से तो यह मोहता ही है साथ ही खिलने की अल्प अवधि के कारण विशिष्ट बना रहता है।
जब से मैंने इसे गमले में लगाया माता जी की बात को ध्यान रख मैं इसके नीचे के फर्श को साफ कर देता था, वैसे अक्सर माता जी ही ये काम बखूबी किया करती हैं। मुझसे तो बस कहना मात्र ही रहता है। ताकि सुबह जो फूल चुनूँ वे एकदम ताज़े हों। इस साल यह खिलने लगा है। खूब खिलता है व खिल रहा है।
मैं इसे बस दूर-दूर से देखता हूँ। प्रेम में खुद की ही नजर न लग जाए इस तरह से देखता हूँ। मेरे पारिजात को आप भी इसी नज़र से देखिए जो नज़राए न।
♦️ कहानी पारिजात की-
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राजकुमारी थी जो ,
सूर्य देव पर मोहित थी।
पाना चाहती थी आफताब को,
बन रानी सूर्य नगरी की।
पर सूर्य देव को इस से इनकार हुआ।
सह ना पायी तिरस्कार को और
आत्म दाह किया।
जहाँ दफन थी राजकुमारी
उस कब्र पर एक नन्हा सा
फूल खिला,नाम पारिजात हुआ।
पारिजात के प्रेम का जो गवाह हुआ।
हो गोधूलि तब खिल जाता है
रात रानी बन कर आंगन
उपवन को महकाता हैं।
रजनी जब ढल जाये
और प्रेमी जब सामने आ जाये।
उस से पहले ही विरह अग्नि में
खुद ही तप जाता हैं।
हो सूर्य उदय उस से पूर्व ही।
अश्रू रूप में अपनी
शाखाओं से गिर जाता हैं।
है चमत्कारी वरदान ये
उपचार में उपयोगी हैं।
शिव का है प्रिय पुष्प
और कृष्ण को भी प्रिय ये।
चंदन सी है शीतलता जिसमे
खुशबू आलीशान हैं।।
रात की रानी कहो या पारिजात कहो।
हार सिंगार गुणों की खान हैं।।
❣️❣️❣️❣️❣️
आश्विनस्य सिते पक्षे दशम्यां तारकोदये।
स कालो विजयो ज्ञेयः सर्वकार्यार्थसिद्धये।।
अधर्म पर धर्म की विजय के महापर्व विजयदशमी की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं। प्रभु श्री राम हमें बुराइयों पर विजय प्राप्त करने की शक्ति दें। विजयादशमी का पर्व सभी के जीवन में सुख,शांति और समृद्धि लाए।
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