अदालत ने कहा कि आरुषि के
मां-बाप के खिलाफ उनकी बेटी को कत्ल करने के कोई सुबूत नहीं हैं. इस फैसले से वे
जेल से छूट जाएंगे…लेकिन करीब साढ़े नौ साल तक जो उनके दिल पर गुजरी है…वो कैसे वापस होगा ?
उस अज़ीयत को उनके अलावा
दुनिया में कोई और महसूस नहीं कर सकता. वह दर्द सिर्फ उन्हीं का हिस्सा है.
कितना बेहूदा मीडिया ट्रायल उन मां-बाप के साथ हुआ जिनकी 14 साल की इकलौती बेटी कत्ल हो
गई? क्या नहीं कहा गया उनके बारे में…जैसे… ”बेटी जब घर में कत्ल हुई, उस वक्त मां-बाप वाइफ
स्वॉपिंग पार्टी में थे…”, “बेटी बदचलन थी और वह अधेड़ उम्र के नौकर के साथ सोती थी.” और “बेटी के अपने स्कूल के
लड़कों से रिलेशनशिप थे..” शुरू में जब केस यूपी पुलिस इन्वेस्टिगेट कर रही थी तब यूपी
के एक बहुत सीनियर अफसर ने मुझे आरुषि की चैट हिस्ट्री की एक हार्ड कॉपी दी.
उन्होंने कहा कि लड़की देर रात तक चैटिंग करती थी और निंफोमेनिक थी. जाहिर है कि
वह यूपी पुलिस की थ्यौरी मीडिया में प्लांट कराना चाहते थे.
आरुषि मर्डर केस को
जर्नलिज्म के स्कूलों में क्राइम रिपोर्टिंग की सबसे बेहूदा मिसाल की केस स्टडी के
तौर पर पहचाना जाना चाहिए, ताकि भविष्य के पत्रकार वह गुनाह न करें.अदालत का फैसला आया
है तो आरुषि की तस्वीरें एक बार फिर मीडिया में छाई हुई हैं. एक तस्वीर में आरुषि
मम्मी-पापा के साथ सिंगापुर के जुरॉंग बर्ड पार्क में है. तीनों के हाथों पर
रंग-बिरंगी चिड़िया बैठी हैं. उसे देखकर कहीं लगता है कि इन मां-बाप ने अपनी बच्ची
को कत्ल कर दिया होगा? सीबीआई ने जब तलवार के घर के फोन की कॉल हिस्ट्री खंगाली तो
उसमें आरुषि के कत्ल वाली रात करीब साढ़े नौ बजे बाप की एक फोन कॉल मिली जो उसने
मुंबई में ”इम्रेसिओंज़ ट्रेडर्स” को आरुषि के लिए नया कैमरा
मंगाने के लिए किया था. आरुषि की मौत के बाद जब उस कैमरे का कोरियर घर आया होगा तो
सोचिए बाप के दिल पर क्या गुजरी होगी?गाजियाबाद की डासना जेल की
ऊंची दीवारों के पीछे सारे वक्त बिल्कुल खाली ज़हन में क्या चलता होगा? हमारी पूर्व सहयोगी वर्तिका
नंदा से डसना जेल में एक इंटरव्यू में नुपुर तलवार ने कहा कि....
“बस ऐसे लगता है जैसे आंखों
के सामने आरुषि की कोई फिल्म चल रही हो…हर लम्हा याद आता है, जब वो नन्ही सी पैदा हुई थी…जब वो डग-मग, डग-मग कर चलती और गिर जाती
थी..जब वो पहली बार यूनिफॉर्म पहन स्कूल गई और जब वह बिस्तर पर मरी पड़ी थी…यादों के साथ दर्द का एक
समंदर अंदर उमड़ता रहता है. जेल में किसी बच्ची को देखती हूं तो आरुषि लगती है…आरुषि का मतलब सुबह की किरण
होता है…अब कभी उगता सूरज देखती हूं तो उसमें भी आरुषि नजर आती है.”
अगर सीबीआई की दलील थोड़ी
देर के लिए मान लें कि आरुषि को नौकर के साथ देखकर बाप ने गुस्से में नौकर को मारा, लेकिन बेटी मर गई..तो एक
बार सोचिए कि जिस बाप से उसकी इकलौती बच्ची मारी गई हो वो गुनाह के किस एहसास के
साथ जीता होगा. यह जो अपनी बेटी का कातिल होने का एहसास है यह किसी भी उम्र कैद और
किसी भी सज़ाए मौत से ज़्यादा बड़ी सज़ा है…और सोचिए कि अगर वो बेगुनाह
हों और दुनिया की हर नजर उन्हें बेटी का क़ातिल समझती हो…तो उनके दिल पर क्या गुजरती
होगी..मेरे कहने से थोड़ा सा वक्त निकालिए, अपने दिल पर हाथ रखकर खुद
को नुपुर और राजेश तलवार की जगह रखकर उस तकलीफ को महसूस करने की कोशिश कीजिए.
इलाहाबाद हाइकोर्ट का फैसला आने के बाद, 9 साल 5 माह पुराना वह सवाल फिर खड़ा हो गया है कि आखिर किसने की आरुषि और हेमराज की
हत्या? देश की सबसे बड़ी इस मर्डर मिस्ट्री को सुलझाने
में नोएडा पुलिस के अलावा देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआइ भी फेल साबित हुई।
इस केस में नोएडा पुलिस ने पहले तलवार दंपत्ती को आरोपी बनाया। फिर सीबीआइ ने
उन्हें बरी कर दिया।
सीबीआइ के जांच
अधिकारी बदले और फिर से परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर तलवार दंपत्ती को आरोपी
बना दिया गया। अब इलाहाबाद हाइकोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया है। ऐसे में सबसे बड़ा
सवाल, आखिर किसने दिया देश की सबसे बड़ी मर्डर
मिस्ट्री को अंजाम।
फॉरेंसिक साक्ष्य जुटाने में लापरवाही के कारण नहीं आया सच सामने
दुनिया में किसी भी हत्याकांड का पर्दाफाश तीन
साक्ष्य पर ही निर्भर करता है। प्रत्यक्ष, फॉरेंसिक या परिस्थितिजन्य साक्ष्य। आरुषि हत्याकांड में कोई प्रत्यक्ष
साक्ष्य नहीं था। आरुषि और हेमराज के शव मिलने के बाद नोएडा पुलिस के पास फॉरेंसिक
साक्ष्य जुटाने का मौका था, जिसे उन्होंने गंवा दिया। नोएडा पुलिस ने थोड़ा
खुद, थोड़ा मीडिया कर्मियों तथा बचा-खुचा साक्ष्य
अन्य लोगों को मिटाने का मौका दे दिया। आरुषि हत्याकांड के पंद्रह दिन बाद सीबीआइ
जांच करने आई। उसने फॉरेंसिक साक्ष्य जुटाया लेकिन तब तक बहुत कुछ धुल और घुल चुका
था।
सर्विलांस के आगे फॉरेंसिक को नहीं दिया था तवज्जोदरअसल, 2008 तक नोएडा पुलिस पर पूरी तरह से सर्विलांस सिस्टम हावी हो चुका था। ज्यादातर केस सर्विलांस के सहारे सुलझ रहे थे। आरुषि हत्याकांड को भी नोएडा पुलिस सर्विलांस की मदद से खोल देने के गुमान में थी। उसने यही किया। डॉ. राजेश तलवार का मोबाइल सर्विलांस पर लेकर उन्हें गिरफ्तार भी किया, लेकिन दुनिया के सामने सच नहीं रख सकी। नोएडा पुलिस की उस समय बरती गई लापरवाही का नतीजा था कि सीबीआइ भी सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री का पर्दाफाश करने में फेल हुई।
नोएडा पुलिस ने यह फॉरेंसिक साक्ष्य जुटाने में दिखाई थी लापरवाही-
सर्विलांस के आगे फॉरेंसिक को नहीं दिया था तवज्जोदरअसल, 2008 तक नोएडा पुलिस पर पूरी तरह से सर्विलांस सिस्टम हावी हो चुका था। ज्यादातर केस सर्विलांस के सहारे सुलझ रहे थे। आरुषि हत्याकांड को भी नोएडा पुलिस सर्विलांस की मदद से खोल देने के गुमान में थी। उसने यही किया। डॉ. राजेश तलवार का मोबाइल सर्विलांस पर लेकर उन्हें गिरफ्तार भी किया, लेकिन दुनिया के सामने सच नहीं रख सकी। नोएडा पुलिस की उस समय बरती गई लापरवाही का नतीजा था कि सीबीआइ भी सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री का पर्दाफाश करने में फेल हुई।
नोएडा पुलिस ने यह फॉरेंसिक साक्ष्य जुटाने में दिखाई थी लापरवाही-
आरुषि और हेमराज दोनों का शव मिलने के बाद सीन ऑफ क्राइम को सील नहीं किया
गया।
- - सीन ऑफ क्राइम पर पुलिस अधिकारियों के साथ भारी संख्या में मीडिया व अन्य लोग थे मौजूद। कई सबूत हुए नष्ट।
- - सीन ऑफ क्राइम की विडियोग्राफी नहीं हुई।
- - सीन ऑफ क्राइम के पास पड़ी, एक-एक चीज की बारीकी से जांच नहीं हुई। न ही उनसे फिंगर प्रिंट लिए गए। छत पर मौजूद खून सने पंजे के निशान और फुट प्रिंट को नहीं लिया गया।
- - आरुषि के नाखून में चमड़े का अंश था, उसकी जांच नहीं कराई गई।
- - आरुषि के बिस्तर पर बाल पड़े थे, उसकी जांच भी नहीं हुई।
- - छत पर जगह-जगह पड़े खून के सैंपल नहीं लिए गए। सीबीआइ जबतक सैंपल लेती, उससे पहले बारिश हो गई थी, जिसमें वह धुल गए।
- - हेमराज के कमरे में शराब की बोतल पर मौजूद फिंगर प्रिंट को नहीं लिया गया।
- - तलवार दंपती समेत अन्य लोगों के फिंगर और फुट प्रिंट नहीं लिए गए थे।
- - तलवार दंपती के घटना के वक्त पहने कपड़े को जब्त नहीं किया गया।
- - खोजी कुत्ते का सहारा नहीं लिया गया था।
- तलवार दंपत्ती को आरोपी बनाने पर भी इन सवालों के नहीं मिले थे जवाब- हत्या पहले हेमराज की हुई या आरुषि की।
- - सीबीआई के अनुसार गोल्फ स्टिक के वार से आरुषि की हत्या हुई थी। फिर हेमराज को कैसे मारा गया। अगर ऐसा है तो आरुषि की गर्दन काटने की जरूरत क्यों पड़ी?
- - गर्दन काटने के लिए किस हथियार का इस्तेमाल हुआ?
- - हेमराज का फोन कहां गया?
- - आला कत्ल कहां गया?
- - 15 मई 2008 की रात हेमराज के मोबाइल पर निठारी के पीसीओ से फोन आया था। वह फोन किसने और क्यों किया था
राजा दशरथ को तो श्रवण कुमार के अंधे मां-बाप ने श्राप दिया था कि “जिस तरह हम पुत्र शोक में
मर रहे हैं, उसी तरह तुम भी पुत्र शोक में मरोगे.”…लेकिन राजेश और नुपुर तलवार
को किसने श्राप दिया कि तुम बेटी की मौत के गम में…बेटी के बदचलन होने की
बदनामी के गम में और बेटी के कातिल होने के दाग के साथ जिंदा रहोगे...लेकिन वो
जिंदगी मौत से भी बदतर होगी.
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