Thursday, 12 October 2017

सोशियल मीडिया का इतिहास

1994 में सबसे पहला सोशल मीडिया जीओ साइट के रूप में सामने आया। इसका उद्देश्य एक ऐसी वेबसाइट बनाना था, जिससे लोग अपने विचार और बातचीत आपस में साझा कर सकें। वर्तमान में विश्व में जो करीब 2.2 अरब लोग इंटरनेट का प्रयोग करते हैं, उनमें से फेसबुक पर एक अरब, ट्विटरर पर 20 करोड़, गूगल प्लस पर 17.5 करोड़, लिंक्ड इन पर 15 करोड़ से अधिक सदस्य हैं। सोशल साइट के प्रति लोगों की दीवानगी इससे समझी जा सकती है कि एक अध्ययन के अनुसार लोग फेसबुक पर औसतन 405 मिनट, ट्विटर पर 21 मिनट, लिंक्डइन पर 17 मिनट व गूगल प्लस पर तीन मिनट व्यतीत करते हैं।
सोशल मीडिया के लाभ/सकारात्मक प्रभाव:
  • 1.      संपर्कों का दायरा बढ़ाते हुऐ अधिकाधिक लोगों तक अपने विचारों का आदान-प्रदान कर सकते हैं।
  • 2.      अपने विचार, फोटो और वीडियो चाहें तो पूरी दुनिया या अपने दोस्तों के बीच शेयर कर सकते हैं। इन पर त्वरित प्रतिक्रिया- टू-वे कम्युनिकेशन भी प्राप्त कर पाते हैं।
  • 3.      अपने विचारों को ब्लॉग लिखकर पूरी दुनिया के सामने रख सकते हैं, और अब तो वीडियो कॉल के जरिये आमने-सामने बैठे जैसे बातें भी कर सकते हैं, जबकि यह सुविधा अन्य माध्यमों से बेहद महंगी है।
  • 4.      अपनी लिखी सामग्री को लाइब्रेरीके रूप में हमेशा के लिए सहेज कर भी रख सकते हैं, तथा इसे जब चाहे तब स्वयं भी, और चाहे तो पूरी दुनियां के लोग भी उपयोगी होने पर सर्चकर प्राप्त कर सकते हैं।
  • 5.      सोशल साइट पूर्व में छूटे दोस्तों को मिलाने और नए वर्चुअल दोस्त बनाने और दुनिया को विश्व ग्राम यानी ग्लोबल विलेजबनाने का माध्यम भी बना है।
  • 6.      अपनी बात, विचार बिना किसी रोक-टोक के रख पाते हैं।
  • 7.      सदुपयोग करें तो सोशल मीडिया ज्ञान प्राप्ति का उत्कृष्ट माध्यम बन सकता है। इसके माध्यम से मित्रों से उपयोगी पाठ्य सामग्री आसानी से प्राप्त की जा सकती है, और सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जा सकता है।
  • 8.      अन्ना एवं रामदेव के आंदोलन में दिखी सोशियल साइट्स की ताकत: वर्ष 2013 में समाजसेवी अन्ना हजारे के आंदोलन को दिल्ली से पूरे देशव्यापी बनाने में सोशियल साइट्स की बड़ी भूमिका देखी गई। सही अर्थों में इस दौरान सोशियल साइट्स ने समाज को मानों हाथों से हाथ बांध एक सूत्र में पिरो दिया। स्वामी रामदेव के आंदोलन में भी सोशियल साइट्स की बड़ी भूमिका रही। देश में राजनीतिक परिवर्तन, आर्थिक नीतियों, धार्मिक व सांस्कृतिक मुद्दों पर भी सोशियल साइट्स पर खूब चर्चा रही। इस से संबंधित विषयों पर कई अलग ग्रुप, पेज और कॉज यानी बड़े मुद्दे तैयार कर उन पर भी लोग अलग से चर्चा होने लगी।

  • सोशियल नेटवर्किंग साइट्स के नकारात्मक प्रभाव:
  • 1.      सामाजिक मीडिया के व्यापक विस्तार के साथ-साथ इसके कई नकारात्मक पक्ष भी उभरकर सामने आ रहे हैं। पिछले वर्ष मेरठ में हुयी एक घटना ने सामाजिक मीडिया के खतरनाक पक्ष को उजागर किया था। वाकया यह हुआ था कि एक किशोर ने फेसबुक पर एक ऐसी तस्वीर अपलोड कर दी जो बेहद आपत्तिजनक थी। इस तस्वीर के अपलोड होते ही कुछ घंटे के भीतर एक समुदाय के सैकडों गुस्साये लोग सडकों पर उतार आए। जब तक प्रशासन समझ पाता कि माजरा क्या है, मेरठ में दंगे के हालात बन गए। प्रशासन ने हालात को बिगडने नहीं दिया और जल्द ही वह फोटो अपलोड करने वाले तक भी पहुच गया। लोगों का मानना है कि परंपरिक मीडिया के आपत्तिजनक व्यवहार की तुलना में नए सामाजिक मीडिया के इस युग का आपत्तिजनक व्यवहार कई मायने में अलग है। नए सामाजिक मीडिया के माध्यम से जहां गडबडी आसानी से फैलाई जा सकती है, वहीं लगभग गुमनाम रहकर भी इस कार्य को अंजाम दिया जा सकता है। हालांकि यह सच नहीं है, अगर कोशिश की जाये तो सोशल मीडिया पर ऐसे लोगों को आसानी से पकड़ा जा सकता है, और इन घटनाओं की पुनरावृति को रोका भी जा सकता है। इससे पूर्व लंदन व बैंकुवर में भी सोशल मीडिया से दंगे भड़के और दंगों में शामिल कई लोगों को वहां की पुलिस ने पकडा और उनके खिलाफ मुकदमे भी दर्ज किए। मिस्र के तहरीर चौक और ट्यूनीशिया के जैस्मिन रिवोल्यूशन में इस सामाजिक मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका को कैसे नकारा जा सकता है।     
  • 2.      विश्वसनीयता का अभाव : विश्वसनीयता का अभाव सोशल मीडिया की सबसे बड़ी कमजोरी है। यही कमजोरी सोशल मीडिया को मीडिया माध्यमकहे जाने पर भी सवाल उठा देती है। क्योंकि विश्वसनीयता’ ‘मीडिया माध्यमकी पहली और सबसे आवश्यक शर्त और विशेषता है।                    
  • 3.      अवांछित सूचनाओं की भरमार :  सोशल मीडिया की वजह से आज हमारे जीवन में सूचनाओं की भरमार हो गयी है। इसीलिए इस दौर में सूचना विस्फोट होने की बात भी कही जाती है। लेकिन यह भी सच है कि उपलब्ध सूचनाओं में अधिकाँश अवांछित होती हैं। इसीलिए कई बार हम सैकड़ों-हजारों की संख्या में आने वाली अनेक सूचनाओं को बिना पढ़े भी आगे बढ़ जाते हैं, और कई बार ऐसा करने पर वांछित और जरूरी सूचनाएँ भी बिना पढ़े निकल जाती हैं। यहां तक कहा जाने लगा है कि आज का युग सूचनाओं का युगजरूर है पर ज्ञान का नहीं। यानी सूचनाओं में ज्ञान की कमी है।                             
  • 4.      धन-समय की बर्बादी: यदि अधिकाँश सूचनाएँ अवांछित हों तो निश्चित ही नया मीडिया धन और समय की बर्बादी ही है। इसका उपभोग करने के लिए स्मार्ट फोनखरीदने से लेकर नेट पैकभरवाने में धन तो पल-पल संदेशों के आने पर मूल कार्यों को छोड़कर उनकी और ध्यान आकृष्ट करना पड़ता है। व्हाट्सएप्प पर तो अवांछित होने के बावजूद हर फोटो को डाउनलोडकरना पड़ता है, जिससे डाटाऔर फोन या कार्ड की मेमोरीकी बर्बादी होती है।                                              
  • 5.        तलब और मानसिक बीमारी का कारण : शहरी युवाओं को इंटरनेट व सोशल मीडिया की लत सी लग गई है। इसे प्रयोग करते-करते इसकी किसी नशे जैसी तलबलग जाती है। इंटरनेट के लती लोग मोबाइल को आराम देने के लिए ही सो पा रहे हैं। इस तरह यह अपने प्रयोगकर्ताओं को मानसिक रूप से बीमार भी कर रहा है। एसोसिएट चैंबर ऑफ कॉमर्श (एसोचेम) की वर्ष 2014 की देश के कई मेट्रो शहरों में कराए गए एस सर्वे की एक रिपोर्ट के अनुसार 8 से 13 वर्ष की उम्र के 73 फीसदी बच्चे फेसबुक जैसी सोशल साइटों से जुड़े हुए हैं, जबकि उन्हें इसकी इजाजत नहीं है। शोधकर्ताओं के अनुसार इन बच्चों के 82 फीसदी माता-पिताओं ने बच्चों को खुद का समय देने के बजाय उन्हें व्यस्त रखने के लिए खुद ही बच्चों के नाम से फेसबुक अकाउंट्स बनाए थे। वहीं अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया में मनोविज्ञान के प्रोफेसर टिमोथी विल्सन नकी साइंस मैगजीनमें छपी रिपोर्ट के अनुसार 67 फीसद पुरुष और 25 फीसद महिलाएं मोबाइल, टैब, कम्प्यूटर, टीवी, म्यूजिक व बुक आदि इलेक्ट्रानिक गजट के बिना 15 मिनट भी सुकून से नहीं रह पाए और विचलित हो गए, तथा उन्होंने इसकी जगह इलेक्ट्रिक शॉक लेना मंजूर कर लिया। टिमोथी के अनुसार हमारा दिमाग मल्टी टास्किंगका अभ्यस्त हो गया है, तथा हम हाइपर कनेक्टेडदुनिया में रह रहे हैं, तथा इसके बिना जीना हमें बेहद मुश्किल और कष्टदायी लगता है। आज लोग आमने-सामने की मुलाकात की जगह वर्चुअल संवादकरना अधिक पसंद कर रहे हैं। सलाह दी जा रही है कि अधिकतम दिन में दो-तीन बार 15-20 मिनट का समय ही इनके निश्चित करना चाहिए।                                                                              
  • 6.      भेड़चालः पिछले दिनों जबकि मशहूर गायक जगजीत सिंह जीवित थे, उन्हें ट्विटर पर श्रद्धांजलि दे दी गई। माइक्रो ब्लगिंग साइट ट्विटर पर 25 सितंबर 2011 को मशहूर गजल गायक जगजीत सिंह की मौत की अफवाह ने उनके चाहने वालों के होश उड़ा दिए। हर कोई उन्हें श्रद्धांजलि देने लगा। देखते ही देखते (RIP Jagjit Singh) यानी रेस्ट इन पीस जगजीत सिंह ट्वीट ट्विटर ट्रेंड्स में सबसे ऊपर आ गया। गौरतलब है कि इस दौरान जगजीत सिंह ब्रेन हेमरेज के बाद मुंबई के लीलावती अस्पताल में भर्ती थे। डाक्टरों ने बताया कि ब्रेन सर्जरी के बाद उनकी हालत स्थिर बनी हुई है। ट्विटर ट्रेंड्स में जिसने भी रेस्ट इन पीस जगजीत सिंह ट्वीट देखा, वह भेड़चाल में जगजीत सिंह को श्रद्धांजलि देने लगा। बाद में, जैसे-जैसे लोगों को अपनी गलती का एहसास हुआ, तो फिर माफी मांगने और ट्वीट डिलीट करने का सिलसिला शुरू हुआ। लेकिन, फिर भी श्रद्धांजलि देने वालों की संख्या माफी मांगने वालों के मुकाबले कहीं ज्यादा रही।     
  • 7.      मूल कार्य पर पड़ता नकारात्मक प्रभाव:  सोशल नेटवर्किंग साइटें नई पीढ़ी के लोगों को जोड़ने का अच्छा जरिया भले ही हों, मगर इसके कई नुकसान भी झेलने पड़ रहे हैं। इंडस्ट्री चैंबर एसोचौम ने दिल्ली, बेंगलुरु, चेन्नई, इंदौर, मुंबई, पुणे, चंडीगढ़ और कानपुर में करीब 4,000 कार्पोरेट कर्मचारियों द्वारा दिए गए जवाब पर आधारित अपनी एक नई स्टडी के आधार पर बताया है कि कार्पोरेट सेक्टर के कर्मचारी दफ्तरों में हर रोज औसतन एक घंटा वक्त ट्विटर और फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग साइटों पर बरबाद कर रहे हैं, जिससे उनकी करीब साढ़े 12 फीसदी प्रोडक्टिविटी यानी उत्पादकता पर खासा असर पड़ रहा है। इसी कारण कई आईटी कंपनियों ने इन साइटों का इस्तेमाल बंद करने के लिए अपने सिस्टम्स में साफ्टवेयर लगा दिए हैं।                                                                
  • 8.      रिश्तों में विश्वास का अभाव:  अक्सर सोशियल नेटवर्किंग साइट्स पर दोस्ती के साथ ही खासकर लड़के-लड़कियों में मित्रता के खूब रिश्ते बनते हैं। ऐसे अनेक वाकये चर्चा में भी रहते हैं कि अमुख ने फेसबुक जैसी सोशियल साइट्स के जरिये बने रिश्तों को विवाह के बंधन में तब्दील कर दिया, अथवा शादी के नाम पर धोखाधड़ी हुई। वर्चुअल मोड में बातचीत होने की वजह से कई बार बेमेल संपर्क बनने की बात भी प्रकाश में आई। लेकिन दूसरी ओर भाई-बहन जैसे रिश्तों को यहां कमोबेश नितांत अभाव ही दिखता है। एक फेसबुक मित्र के अनुसार अनेक लड़कियां उनकी वॉल पर भाई का संबोधन करती हैं, पर रक्षाबंधन के दिन मात्र एक ने उन्हें ऑनलाइन राखी का फोटो टैग किया।                               
  • 9.      फ्लर्ट का माध्यमः  सच्चाई यह है कि सोशियल साइट्स पर अधिकांश युवा खासकर आपस में फ्लर्ट ही कर रहे हैं। यहां तक कि इंटरनेट पर कई ऐसी साइट्स भी तैयार हो गई हैं जो युवाओं को सोशियल साइट्स पर फ्लर्ट करना सिखा रही हैं।                                                   
  • 10.  अश्लीलता को मिल रहा बढ़ावा:  सोशियल नेटवर्किंग साइट्स पर काफी हद तक अश्लीलता को बढ़ावा मिल रहा है। आप यहां अपनी बहन की सुंदर फोटो भी लगा दें तो उस पर थोड़ी देर में ही ऐसी-ऐसी अश्लील टिप्पणियां आ जाऐंगी, कि आपके समक्ष शर्म से उस फोटो को हटा लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं रहेगा।                                                                           
  • 11.  प्राइवेसी को खतरा:  सोशल नेटवर्किंग साइट्स अक्सर उपयोगकर्ता की निजी जिंदगी का आइना होती हैं। यही वजह है कि कंपनियां भी आजकल अपने कर्मचारियों की व्यक्तिगत जिंदगी के बारे में जानने के लिए ऐसी सोशियल वेबसाइट्स में घुसपैठ कर रही हैं। इस तरह कर्मचारियों की प्राइवेसी खतरे में है। कई कंपनियां अपने यहां कर्मचारियों को तैनात करने से पूर्व उनके सोशियल साइट्स के खातों को भी खंगाल रही हैं, जहां से उन्हें अपने भावी कर्मचारियों के बारे में अपेक्षाकृत सही जानकारियां हासिल हो जाती हैं। इसी तरह शादी-विवाह के रिश्तों से पूर्व भी लोग सोशियल साइट को देखने लगे हैं।
  • सोशल मीडिया के नकारात्मक प्रभावों पर सोशल मीडिया पर कुछ रोचक चुटकुले भी बेहद चर्चित हो रहे हैं :
  • 1.      पहले दो लोग झगडते थेतो तीसरा छूडवाने जाता था. आजकल तीसरा वीडियो बनाने लगता है ।
  • 2.      ट्विटर, फेसबुक और व्हाट्सएप अपने प्रचंण्ड क्रांतिकारी दौर से गुजर रहा है कि हर नौसिखीया क्रांति करना चाहता है
  • §  कोई बेडरूम में लेटे लेटे गौहत्या करने वालों को सबक सिखाने की बातें कर रहा है तो……
  • §  किसी के इरादे सोफे पर बैठे-बैठे महंगाई-बेरोजगारी या बांग्लादेशियों को उखाड फेंकने के हो रहे हैं
  • §  हफ्ते में एक दिन नहाने वाले लोग स्वच्छता अभियान की खिलाफत और समर्थन कर रहे हैं ।
  • §  अपने बिस्तर से उठकर एक गिलास पानी लेने पर नोबेल पुरस्कार की उम्मीद रखने वाले लोग बता रहे हैं कि मां बाप की सेवा कैसे करनी चाहिये ।
  • §  जिन्होंने आज तक बचपन में कंचे तक नहीं जीते वह बता रहे हैं कि भारत रत्नकिसे मिलना चाहिए ।
  • §  जिन्हें गली क्रिकेटमें इस शर्त पर खिलाया जाता था कि बॉल कोई भी मारे पर अगर नाली में गयी तो निकालना उसे ही पड़ेगा वो आज कोहली को समझाते पाये जायेंगे कि उसे कैसे खेलना है ।
  • §  देश में महिलाओं की कम जनसंख्या को देखते हुये उन्होंने नकली ID बना कर जनसंख्या को बराबर कर दिया है ।
  • §  जिन्हें यह तक नहीं पता कि हुमायूं बाबर का कौन था वह आज बता रहे हैं कि किसने कितनों को काटा था ।
  • §  कुछ दिन भर शायरियाँ ऐसे पेलेंगे जैसे गालिबके असली उस्ताद तो वे ही हैं।
  • §  जो नौजवान एक बालतोड़ हो जाने पर रो-रो कर पूरे मोहल्ले में हल्ला मचा देते हैं वह देश के लिये सर कटा लेने की बात करते दिखेंगे ।
  • §  इनके साथ किसी भी पार्टी का समर्थक होने में समस्या यह है कि बिना एक पल गंवाए भाजपासमर्थक को अंधभक्त, ‘आपसमर्थक को उल्लूऔर काँग्रेससमर्थक को बेरोजगारकरार दे देते हैं।
  • §  जिन्हें एक कप दूध पीने पर दस्त लग जाते हैं, वे हेल्थ की टिप दिए जा रहे हैं
  • §  वहीँ  समाज के असली जिम्मेदार नागरिक नजर आते हैं टैगिये’, इन्हें ऐसा लगता है कि जब तक ये गुड मॉर्निंग वाले पोस्ट पर टैग नहीं करेंगे तब तक लोगों को पता ही नही चलेगा कि सुबह हो चुकी है ।
  • §  जिनकी वजह से शादियों में गुलाब-जामुन वाले स्टॉल पर एक आदमी खड़ा रखना जरूरी होता है,वो आम बजट पर टिप्पणी करते पाये जाते हैं
  • §  कॉकरोच देखकर चिल्लाते हुये दस किलोमीटर तक भागने वाले पाकिस्तान को धमका रहे होते हैं कि-अब भी वक्त है सुधर जाओ
  • 3.      पहले लोग घर पर आते थे तो उन्हें पानीके लिए पूछने वाले बच्चे अच्छे माने जाते थे। अब आते ही मोबाईल चार्ज करने के लिए पूछने वाले बच्चे अच्छे माने जाते हैं। आगंतुक भी कहीं पहुंचते ही मोबाइल चार्जर ही पहले मांगता है।




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