बागेश्वर जिले के पिंडर घाटी में वर्ष 2013 में आई आपदा के बाद से आज तक भी ग्लेशियरों के रास्ते नहीं सुधर सके हैं। ग्लेशियरों के रास्तों में पुलों का काम जहां काफी धीमी गति से चल रहा है वहीं रास्तों की दशा भी ठीक नहीं हुवी है। पिंडारी ग्लेशियर से एक पढ़ाव पहले द्वाली के पास अभी तक पुल नही बन सका है। जिसके चलते देशी—विदेशी पर्यटकों को निराश होकर आधे रास्ते से ही वापस लौटना पड़ रहा है।
पिंडारी ग्लेशियर को देखने की चाहत से यूक्रेन से तेरह सदस्यों का एक दल यहां आया। इस दल ने हिमालया टूर आउटडोर एडवेंचर से जुड़े हिमांशु पांडे से संपर्क किया। बीते दिनों यह दल बागेश्वर से खर्किया होते हुए अंतिम गांव खाती पहुंचा। खाती से द्वाली को जब यह दल रवाना हुवा तो इन्हें टूटे रास्तों की वजह से काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। द्वाली के पास पिंडर और कफनी नदी में बने पैदल पुलों के बह जाने से दल को वापस लौटना पड़ा। वर्ष 2013 की आपदा में यहां द्वाली के पास बह गया पुल आज तक भी नहीं बन सका है।
हांलाकि यूक्रेन के दल के सदस्यों को पिंडारी ग्लेशियर न देख पाने का मलाल तो है लेकिन वो यहां की खूबसूरत हंसीन वादियों से बहुत खुश हैं। इस दल ने खाती गांव के शीर्ष में पंखुवा बुग्याल के साथ ही धाकुड़ी के उप्पर चिल्ठा मंदिर का ट्रेक कर प्रकृति का आंनद उठाया।
गौरतलब है कि 2013 की आपदा में पिंडर घाटी में काफी नुकसान पहुंचा था। पिंडर नदी में बने सभी पुल बाढ़ में बह गए थे। वर्तमान में तीख, रिटिंग, लेहबगड़ में पुल बन गए हैं लेकिन द्वाली में पुल अभी तक नहीं बन सका है। यहां पर कफनी और पिंडर नदी में पैदल कच्चे पुल बनाकर आना—जाना होता है। यह पैदल कच्चे पुल भी इस बार की बरसात में बह गए हैं। जिससे पर्यटक ग्लेशियरों के दीदार नहीं कर पा रहे हैं।
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