Thursday, 12 October 2017

दराज़ो में गर्द खाती किताबे , खंडहर हुई जा रही है !!

दराज़ो में गर्द खाती किताबे , खंडहर हुई जा रही है ,
दरकते पन्नों को , “अनदेखीकी घुन खा रही है ।
धड़कते दिल अब किताबो में चेहरे छिपाते नही है ,
तोहफ़ो की फेहरिश्त से भी हटती जा रही है |

पन्ने पलटते किसी को किसी की याद आये ,
खत बेख्याली में दबा भूलने की याद आ रही है।
दराजों में गर्द खाती किताबे खंडहर हुई जा रही है ......
व्हाट्स एप पे मशरूफ रहने वालो को क्या मालूम ,
पन्नों में धड़कती साँसे अब भी सुनी जा रही है |
फेसबुक नजदीकियों ने दूर किया इन दोस्तों से ,
कागजों से अब तलक महकती उंगलियो की खुश्बू आ रही है ..|
दराजों में गर्द खाती किताबे खंडहर हुई जा रही है .....
खुद को भुला देना इन कहानियो में खोये हुए
बुजुर्गो की तरह नज़रंदाज सामान हुई जा रही है ।
देख रही तल्ले पर पड़ी नाउम्मीद नजरो से ,
हमारा वक़्त दुनियामोबाइल में गँवा रही है..|
दराजों में गर्द खाती किताबे खंडहर हुई जा रही है ......
तकिये और बिस्तर पे साथ सोते थे कभी हम ,
मोबाइल की खातिर सिरहाने से हटाई जा रही है |
सुबह तक धड़कने सुनती राते कटी थी ,
अब कमरे की स्याही में मोबाइल की रौशनी आ रही है
दराजों में गर्द खाती किताबे खंडहर हुई जा रही है ...
किताबों में सूखे गुलाब अमानत किसी की ,
ये नाज़ुक आदते बेमानी हुई जा रही है।
अब भी कागज़ी इत्र की आरज़ू में,
महकती कलियाँ उदास झड़ी जा रही है ।
दराज़ो में गर्द खाती किताबें खंडहर हुई जा रही है ...
चाचा चौधरी कंप्यूटर से तेज़ दिमाग कंप्यूटर से हारे ,
साबू की मस्ती छोड़ नन्ही उंगलियाँ टैब चला रही है ..|
एक दिन लौटेगा ज़माना उब कर कोरी भौतिकता से ,
गोदान की धनिया गोबर को समझा रही है
..दराजों में गर्द खाती किताबे खंडहर हुई जा रही है ,
दरकते पन्नो को अनदेखी की घुन खा रही है ।।



                                                                                        राजू

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