Thursday, 12 October 2017

इंटरनेट यानी अन्तरजाल की विकास यात्रा

  •  1958 ग्राहम बेल ने टेलीफोन की खोज की, जिससे बाइनरी डाटा संचारित करने वाले मॉडम की शुरुआत भी हुई।
  • 1962 में जेसीआर लिकलिडर ने कम्प्यूटरों के जाल यानी इंटरनेट का प्रारंभिक रूप तैयार किया। वे चाहते थे कि कम्प्यूटर का एक एसा जाल हो, जिससे आंकड़े, आदेश और सूचनायें भेजी जा सकें।
  •  1966 में डारपा (मोर्चाबंदी प्रगति अनुसंधान परियोजना अभिकरण) (DARPA) ने आरपानेट के रूप में कम्प्यूटर जाल बनाया।
  •   1969 में इंटरनेट अमेरिकी रक्षा विभाग के द्वारा स्टैनफोर्ड अनुसंधान संस्थान के कंप्यूटरों की नेटवर्किंग करके इंटरनेट की संरचना की गई।
  •   1972 में बॉब कॉहन ने अन्तर्राष्ट्रीय कम्प्यूटर संचार सम्मेलन में इसका पहला सजीव प्रदर्शन किया। 1979 में ब्रिटिश डाकघरों का पहला अंतरराष्ट्रीय कंप्यूटर नेटवर्क बना कर इस नयी प्रौद्योगिकी का उपयोग करना आरम्भ किया गया।
  •   1973 में यूएस एडवांस रिसर्च प्रोजेक्ट एजेंसीने कम्प्यूटरों के द्वारा विभिन्न प्रकार की तकनीकी और प्रौद्योगिकी को एक-दूसरे से जोड़कर एक नेटवर्कबनाने तथा संचार संबंधी मूल बातों (कम्यूनिकेशन प्रोटोकॉल) को एक साथ एक ही समय में अनेक कम्प्यूटरों पर नेटवर्क के माध्यम से देखे और पढ़े जाने के उद्देश्य से इन्टरनेटिंग प्रोजेक्टनाम के एक कार्यक्रम की शुरुआत की, जो आगे चलकर इंटरनेटके नाम से जाना गया।
  •   1980 में बिल गेट्स का आईबीएम के साथ कंप्यूटरों पर एक माइक्रोसॉफ्ट ऑपरेटिंग सिस्टम लगाने के लिए सौदा हुआ।
  •  1980 के दशक के अंत तक नेटवर्क सेवाओं व इंटरनेट उपभोक्ताओं में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अभूतपूर्व वृद्धि हुई और इसका इस्तेमाल व्यापारिक गतिविधियों के लिये भी किया जाने लगा।
  •  1983 में इंटरनेट समुदाय के सही मार्गदर्शन और टीसीपी/आईपी के समुचित विकास के लिये अमरीका में इंटरनेट एक्टिविटीज बोर्डका गठन किया गया। इंटरनेट इंजीनियरिंग टास्क फोर्स तथा इंटरनेट रिसर्च टास्क फोर्स इसके दो महत्त्वपूर्ण अंग है। इंजीनियरिंग टास्क फोर्स का काम टीसीपी/आईपी प्रोटोकोल के विकास के साथ-साथ अन्य प्रोटोकोल आदि का इंटरनेट में समावेश करना है। जबकि विभिन्न सरकारी एजन्सियों के सहयोग के द्वारा इंटरनेट एक्टीविटीज बोर्ड के मार्गदर्शन में नेटवर्किंग की नई उन्नतिशील परिकल्पनाओं के विकास की जिम्मेदारी रिसर्च टास्क फोर्स की है जिसमें वह लगातार प्रयत्नशील रहता है। इस बोर्ड व टास्क फोर्स के दो और महत्त्वपूर्ण कार्य हैं-इंटरनेट संबंधी दस्तावेजों का प्रकाशन और प्रोटोकोल संचालन के लिये आवश्यक विभिन्न आइडेन्टिफायर्स की रिकार्डिग। आईडेन्टिफायर्स की रिकार्डिग इंटरनेट एसाइन्ड नम्बर्स अथॉरिटीउपलब्ध कराती है जिसने यह जिम्मेदारी एक संस्था इंटरनेट रजिस्ट्री’ (आई आर) को दे रखी है, जो ही डोमेन नेम सिस्टमयानी डीएनएस रूट डाटाबेसका केन्द्रीय रखरखाव करती है, जिसके द्वारा डाटा अन्य सहायक डीएनएस सर्वर्सको वितरित किया जाता है। इस प्रकार वितरित डाटाबेस का इस्तेमाल होस्टतथा नेटवर्कनामों को उनके यूआरएल पतों से कनेक्ट करने में किया जाता है। उच्चस्तरीय टीसीपी/आईपी प्रोटोकोल के संचालन में यह एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है, जिसमें ई-मेल भी शामिल है। उपभोक्ताओं को दस्तावेजों, मार्गदर्शन व सलाह-सहायता उपलब्ध कराने के लिये समूचे इंटरनेट पर नेटवर्क इन्फोरमेशन सेन्टर्स’ (सूचना केन्द्र) स्थित हैं। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जैसे-जैसे इंटरनेट का विकास हो रहा है ऐसे सूचना केन्द्रों की उच्चस्तरीय कार्यविधि की आवश्यकता भी बढ़ती जाती है।
  •  1983 की एक जनवरी को आरपानेट (ARPANET) पुर्नस्थापित हुआ। इसी वर्ष एक्टीविटी बोर्ड (IAB) का गठन हुआ। नवंबर में पहली प्रक्षेत्र नाम सेवा (DNS) पॉल मोकपेट्रीज द्वारा सुझाई गई।
  • 1984 में एप्पल ने पहली बार फाइलों और फोल्डरों, ड्रॉप डाउन मेनू, माउस, ग्राफिक्स आदि युक्त आधुनिक सफल कम्प्यूटरलांच किया।
  •  1986 में अमरीका की नेशनल सांइस फांउडेशनने एक सेकेंड में 45 मेगाबाइट संचार सुविधा वाली एनएसएफनेटसेवा का विकास किया जो आज भी इंटरनेट पर संचार सेवाओं की रीढ़ है।
  •  1989-90 में टिम बेर्नर ली ने इंटरनेट पर संचार को सरल बनाने के लिए ब्राउजरों, पन्नों और लिंक का उपयोग कर के विश्व व्यापी वेब (WWW) वर्ल्ड वाइड वेब-डब्लूडब्लूडब्लू से परिचित कराया।
  • 1991 के अन्त तक इंटरनेट इतना विकसित हो गया कि इसमें तीन दर्जन देशों के पांच हजार नेटवर्क शामिल हो गए, और इंटरनेट की पहुंच सात लाख कम्प्यूटरों तक हो गई तथा चार करोड़ उपभोक्ताओं ने इससे लाभ उठाना शुरू कर दिया।
  •   1996 में गूगल ने स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में एक अनुसंधान परियोजना शुरू की जो कि दो साल बाद औपचारिक रूप से काम करने लगी।
  •   2009 में डॉ स्टीफन वोल्फरैम ने वोल्फरैम अल्फाकी शुरुआत की।

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