फर्क नहीं पड़ता
कि......
कौन मुझे पाने के लिए मरता है
फर्क इस बात से पड़ता है.....
कि......
कौन मुझे खोने से डरता है..... ।।
मैं यूं ही रहना चाहता हूं
खुद को बदल नहीं सकता
जैसी तुम चाहती हो उन आदतों में ढल नहीं सकता
मैं जैसा हूं वैसा अपनाओगी क्या ?
थोड़ा सा खफा हूं, थोड़ा सा उदास हूं
मैं खुद से ही आज थोड़ा सा निराश हूं
मुझे प्यार से समझाओगी क्या?
अंधेरों में जागता हूं उजालों से भागता हूं
क्यूं परेशान हूं नींदों से मैं खुद नहीं जानता हूं
अपने कंधे पर मुझे सुलाओगी क्या?
साथ छूटा है मन मेरा रूठा है,
डर सा लगता है दिल मेरा टूटा है
जिंदगी भर का साथ निभाओगी क्या?
थोड़ा सा पागल हूं थोड़ा सा अनाड़ी हूं
इस शब्दों के खेल में नया नया खिलाड़ी हूं
सोच लो मेरे साथ रह पाओगी क्या?
जिस्म की चाह नहीं भूखा हूं प्यार का
सीने में छुपा है दर्द अपनों की मार का
मोहब्बत का निवाला खिलाओगी क्या?
आंखो से आंसू पल पल बह रहे हैं
दिल के जख्म है ये बहुत ज्यादा गहरे हैं
इन जख्मों पे मरहम लगाओगी क्या?
किसी ने अपना बनाया है फिर सीने से लगाया है
पीठ पे वार किया दिल को जलाया है
उनकी तरह तुम भी दिल जलाओगी क्या?
दिमाग चलता नहीं दिल का ये कहना है
दो दिन नहीं मुझे उम्र भर साथ रहना है
तुम भी साथ छोड़कर चली जाओगी क्या?
तेरे अलावा ना किसी के ख्यालों में रहता हूं
चाहता हूं दिल से मगर कभी नहीं कहता हूं
तुम बताओ तुम कह पाओगी क्या ?.....
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