सत्य का यह साथ आसान नहीं है। किसी सच्चे इंसान से दोस्ती हमेशा शहद सी मीठी भी नहीं होगी। सत्य की अपनी कीमत होती है जिसे चुकाए बिना सत्य की राह पर आगे नहीं बढ़ा जा सकता।
कहते हैं, कि अंधा अंधेरे से दोस्ती कर सकता है, क्योंकि अंधेरा आँखे चाहिए ऐसी माँग नहीं करता। लेकिन अंधा प्रकाश से दोस्ती नहीं कर सकता है, क्योंकि प्रकाश से दोस्ती के लिए पहले तो आँखे चाहिए। अंधा अमावस की रात के साथ तल्लीन तो हो सकता है, मगर पूर्णिमा की रात के साथ बेचैन हो जाएगा। पूर्णिमा की रात उसे उसके अंधेपन की याद दिलाएगी; अमावस की रात अंधेपन को भुलाएगी, याद नहीं दिलाएगी।
प्रेम की पथरीली पटरी पर और फिर नलिनी तुम आयी। प्रथम वर्ष कला में जमा हुई छब्बीस लड़कियों में तुम अलग ही नज़र आती थीं। सारी क्लास तुम पर मरती थी और चूंकि मैं छात्र-सभा के लिए कक्षा का प्रतिनिधि चुना गया था, अतः मैं प्रतिनिधि रूप से तुम पर मरता था। कॉलेज के लम्बे आम के वृक्षों वाले रास्ते पर तुम्हारे पीछे पीछे चलाना, कक्षा में ऐसे कोण पर बैठना, जहां से तुम्हारा प्रोफाइल आंखों को भाये, ध्यान आकर्षित करने के लिए प्रोफेसर से उल्टे-सीधे प्रश्न करना, बस-स्टॉप पर तुम्हारी राह देखना, किताब मांगना आदि सब नुस्खे आज़माकर मैंने तुम्हें बता दिया कि मैं प्रेम के लिए इस वक्त बिल्कुल अधीर हूं।
बड़ी मुश्किलों से तुमने मुझे देख मुस्कराना मंजूर किया और ऐतिहासिक था वह दिन, जब पहली बार तुमने मेरे साथ चाय पी। तुम वे सब हथकंडे जानती थीं, जिनसे लड़के लट्टू की तरह चक्कर खाते हैं और मैं कहानी-उपन्यासों में पढ़े सारे दांव-पेच तुम पर फिट करने की सोचता था। तुम अधिक व्यावहारिक थीं, मैं इसलिए प्रेम करता था कि मुझे एक जीवन-साथी को खुद तलाश करना बड़ा ज़रूरी लगता था और तुम मुझे यों उलझाये थीं कि कोई आशिक बना रहे तो बुरा क्या है! तुम तो सदैव अपने सौंदर्य का प्रदर्शन किया करती थीं, मेरे प्रेम को एक सर्टीफिकेट की तरह कमरे में टांगकर खुश थीं।
अपनी सहेलियों को शान से बताती थीं कि हम पर भी लोग कुर्बान हैं। मेरी उम्मीदवारी ने तुम्हारे अहं की तुष्टि की, इसलिए जब मैं रात-भर जागकर तुम्हारे लिए नोट्स बनाता था, तुम कोई पिक्चर देखती रहती थीं। तुम अपने पिताजी के पैसों से साड़ियां खरीदतीं और मैं अपने पिताजी के पैसों से तुम्हारे लिए किताबें। हर बार तुमने बिल मुझसे चुकवाया और इतमीनान से घूमती रहीं।
मैं प्रेम करने आया था, तुमने मुझे नौकरी करना सिखा दिया। उसी लगन से पढ़ता तो फर्स्ट क्लास लाता और कहीं बड़ी नौकरी मिल जाती। जल्दी ही मैं समझ गया कि आदर्श प्रेमी का जो चित्र तुम्हारे दिमाग में है वह आदर्श नौकर के चित्र से कम नहीं है।
मैं भाग खड़ा हुआ, बिना वजह तुमसे नाराज़ हो लिया, मैंने ठीक किया ना। कहीं तुमसे शादी हो जाती तो मेरा हाल भी वही होता जो आज आपके प्रोफेसर पति महोदय का है। दिन-भर ट्यूशनें करता है, रात को जागकर नोट्स लिखता है, विश्वविद्यालयों के ‘हेड ऑफ दि डिर्पामेंट्स’ की खुशामद करता है कि कापियां जांचने को मिल जायें और अपनी किताब कोर्स में लगाने को दौड़-धूप करता है। यह नकेल जो तुमने उसको डाली है तुम मुझे डालतीं और मुझे कहीं का नहीं रखतीं। मैं आज तुम्हारे पति होने की कल्पना से कांप उठता हूं, यद्यपि पहले मैं समझता था कि तुम मिल जाओ तो सुखों की लॉटरी खुल जाये। तुमने उस क्रिकेट-खिलाड़ी को भी खूब बुद्धू बनाया। वह तुम्हारे प्रेम के पिच पर रन करता रहा और एक दिन तुम उसका भी स्टंप उखाड़कर चल दीं।
मेरी निहायत अस्थायी प्रेमिका, तुमने कुछ ही दिनों में मुझे बता दिया कि शेरो-शायरी का प्रेम से कोई सम्बंध नहीं। यह एक व्यवस्था है और न हो सके, तो निराशा की कोई वजह नहीं। इंसान को कोशिश नहीं छोड़नी चाहिए। वास्तविक प्रेम जीवन में एक बार ही नहीं, बार-बार तथा हर बार होता है। इसे आप ठीक वैसा ही समझें जैसे एक दफ्तर में नौकरी न मिले तो उम्मीदवार हताश नहीं होता, वह दूसरी जगह एप्लाई कर देता है, प्रेम में भी अक्सर यही हाल नजर आता है।
क्रमशः—
Mujhe aane wali kadiyon ka intjaar rahega...Theek wese hi jaise pahli baar aapne intjaar kiya ho...door pagdndiyon pr Kisi k drishtigochar hone ka...
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