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दो समझदार व्यक्तियों के प्रेम से एक-दूसरे को अधिक स्वतंत्र रहने में मदद मिलती है। इसमें कोई राजनीति नहीं होती, कोई कूटनीति नहीं होती, एक-दूसरे पर हावी हो जाने का कोई प्रयास नहीं होता। जिससे तुम प्रेम करते हो, उसके ऊपर तुम आधिपत्य कैसे जमा सकते हो?
अपरिपक्व और गैर-समझदार लोग जब प्रेम में होते हैं तो वे एक-दूसरे की स्वतंत्रता को ध्वस्त कर देते हैं, गुलामी उत्पन्न करते हैं, कैद बना देते हैं। समझदार व्यक्ति प्रेम में एक-दूसरे को स्वतंत्र रहने में सहायक होते हैं। वे हर तरह से एक-दूसरे की गुलामी को समाप्त करने में एक-दूसरे की मदद करते हैं और जब स्वतंत्र रूप से प्रेम का प्रवाह होता है, तो इसमें सौंदर्य होता है। जब प्रेम का प्रवाह निर्भरता से होता है, तो इसमें कुरूपता होती है।
तुम्हारे दफ़्तर से अपना आवेदन हटा मैंने चंद्रा के दफ़्तर में लगा दिया। वहां भी मंजूर न होता तो कहीं और लगा देता। एक शहर में गुच्छा-गुच्छा सुंदर लड़कियां होती हैं। हर लड़की एक फार्मूले की ज़िंदगी जीती है, चुस्त कपड़े, कान में बाली, लटें, धीरे-धीरे चलना और उड़ती नज़र से देखना, घुटनों पर हाथ बांध बैठना, सब एक-सा है। सभी जगह लड़कियां एक ही फार्मूले पर चलती हैं, पर फिर भी लड़के उसे समझ नहीं पाते और हर एक को अलग देखते हैं। यही फार्मूले गालिब के ज़माने में भी चलते होंगे और कालिदास के भी. वास्तव में हम एक फार्मूले से उलझ जाते हैं और प्रेम की महामारी के शिकार होते हैं।
चंद्रा रवींद्र-साहित्य पढ़े बैठी थी, अतः चार दिन में समझ गयी कि मैं उस पर निछावर हूं। मैंने सबसे पहले उसे मॉडर्न बनाया। अज्ञेय पढ़ाया, ‘गुनाहों का देवता’ की प्रति भेंट की, कृश्नचंदर की चाशनी चटायी, अमृता प्रीतम की कविताएं सुनायीं, बच्चन को कवि-सम्मेलन में बुलवाया, ‘तार सप्तक’ पर बहसें कीं और इलाहाबादी पत्रिकाओं की फाइल सौंपकर कहा- ‘चंद्रा रानी, छायावाद का चक्कर छोड़ और प्रयोगवाद में आ, क्या खयाल है मेरे विषय में। हिंदी का भविष्य मेरी जेब में है और तेरा वर्तमान मेरे हृदय में.’
नलिनीदेवी, जब आप टेबल-टेनिस खेलती थीं, ठीक उसी वक्त मैं लाइब्रेरी की सीढ़ियों पर चंद्रा से बात करता रहता था और तुम देखती रहीं कि मैं एकाएक तुम्हारी साइकिल के पीछे साइकिल चलाना छोड़, चंद्रा के साथ-बस से जाने लगा।
चंद्रा देवी, मेरे जीवन का अंतिम क्लासिक किस्म का प्रेम आपसे हुआ। मुझे माताओं, बहनों और देवियों को आवाज़ लगाते समय आज आपको भी जोड़ते हुए बड़ी पीड़ा हो रही है। मुझे लगता है कि तुम जैसी लड़की का जन्म स्मिार्फ़ प्रेम के लिए ही होता है, ऐसी लड़कियां प्रेम को एक पीड़ा की तरह ग्रहण करने की आदी होती हैं। जब भी मिली, शिकायत करती मिली। ‘देर से क्यों आये’, ‘आज मैंने यह साड़ी पहनी तुमने कुछ कहा भी नहीं’, ‘आज हम हिंदी क्लास से बाहर आ रही थीं तो देखा नहीं मेरी तऱफ और सीधे चले गये’ वगैरह।
हर क्षण मुझे परीक्षा में बैठना पड़ता था। प्रतिदिन मार्क्स मिलते थे और मैं फेल होता था, तुमने मुझसे बड़ा साहित्य रचवाया। मुझे लूटा और हिंदी साहित्य समृद्ध किया। अगर मैं तुमसे नहीं मिलता तो हिंदी का पिछला दशक कैसा सूना-सूना रहता! प्रतिदिन डाक आती, प्रतिदिन कार्ड डाले जाते। तुम्हारे घर का वह ऊपर का कमरा प्रेम और साहित्य, दोनों के इतिहास में महत्त्व रखता है। वहीं पर मैंने आंसू बहाये और तुमने दर्द की कविताएं लिखीं, वहीं दरवाज़े से टिककर नये साहित्य के गूढ़ प्रश्न सुलझाये और उंगलियां उलझायीं। वहीं पर हमने दुप्रवृत्तियों को कोसा और एक-दूसरे को चाहा, वहीं पर तुम ऊपर उठीं और मैं खिड़की से नीचे गिरा।
तुम अपने चाचा की मदद से स्कॉलरशिप ले विदेश चल दीं और मैं सह-सम्पादक हो गया एक दैनिक अखबार में। पत्र तुम मुझे कम लिखने लगीं। फिर मुझे पता लगा कि दूतावास के एक कल्चरल अटैची से तुम अटैच हो गयीं और मैं इसी शहर में घूमता रहा।
माताओ और बहनो, प्रेम शब्द अब मेरे लिए एक मार्केट वेल्यू रखता है। मैं प्रेम पर लिखता हूं, जिसे लोग प्रेम से पढ़ते हैं और सम्पादक प्रेम से पारिश्रमिक देता है।यह सिक्का है, जिसकी साख है, इसे रोज़ चलाता हूं। आप देवियों के पावन सम्पर्क से जो प्राप्त हुआ, वह मैंने साहित्य को भेंट चढ़ा दिया। अब बार-बार उसी को दोहराता हूं। ताज़गी लाने के लिए लड़कियां घूर लेता हूं। दूसरों के साथ गुज़री घटनाओं को रस ले-लेकर पीता हूं।
शादी नही है, बच्चे नही हैं. दफ़्तर नही जाता हूं और नही आता हूं। कुछ बाल यहां-वहां सफेद हो रहे हैं, अतः अब डिमॉरलाइज़ भी होने लगा हूं। प्रेमकांड करने का मूड जा रहा है। समाज में प्रतिष्ठा बढ़ गयी है, उसके गिरने का भय है। आज महिलाओं की सभा में रामायण पर बोलने का निमंत्रण है और वहां मैं आदर्श प्रेम की व्याख्या करूंगा। उन्हें प्रभावित करूंगा और वे मेरा सम्मान करेंगी।
एक तुष्टि होगी उससे, कुंतला जब पानी भरते हुए मुझे देखती थी या चंद्रा जब कॉपी पर बच्चन की एकाध पंक्ति लिख देती थी, मुझे मीठा संतोष होता था। तब मैं प्रेमी था और आज प्रेम का अधूरा विशेषज्ञ, जो मार्गदर्शन देता है।
कई बार अनुभव करता हूं, मेरा ईमान कहता है कि अपनी लिखी प्रेम-कथाओं के पारिश्रमिक का अंश मुझे आप लोगों को भेजना चाहिए, पर नहीं भेजता। आपसे प्रेम कर जो लाभ मुझे मिला वह यही है।
स्वतंत्रता हर स्त्री-पुरूष की आंतरिक और मूलभूत इच्छा होती है, पूर्ण स्वतंत्रता और इसी स्वतंत्रता में प्रेम के फूल खिलते हैं!
क्रमशः—
प्रेम अगन की तपिश में झुलसे हर प्रेम पथिक के हृदय हेतु सावन की फुहार है आपकी रचना, waiting for क्रमशः.....
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