Wednesday, 16 February 2022

प्रेमिका को करीब से और लेखक को दूर से देखना चाहिए।


सपने तो देखे होंगे न? कोई लिमिट है सपनों की? कोई ओर-छोर? दरसल ये सपने ही तो होते हैं जिनको देख के हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है! 
अनवरत! बचपन में न हमें क्रिक्केटर बन्ने का बड़ा शौक़ था, सचिन जैसा! आज भी दिल सचिन ही है हमारा! पर वो क्या है के 90s की जेनेरेशन में हिंदुस्तान का हर देसी लौंडा दिन में सचिन और रात में गोविन्दा ही बनता था! 
वो सचिन का स्ट्रेट ड्राइव हो, पुल हुक या प्लेस हो, दिल तो वहीं थमता था! मम्मी आज भी झोंके में कभी कभी पूछ ही लेती हैं के "सचिन ने कितना बनाया?" ख़ैर बचपन जैसे जैसे बीतता गया सपने भी बदलते गए! 


मुमकिन तो नहीं है हर सपने को पूरा करना पर आसान ये भी नहीं के इश्क़ में शेखचिल्ली हो जाना! हर सपने के पीछे भागेंगे तो ज़िंदगी ही सपना हो जाएगी! और मज़ा? मज़ा तो तब है जब सपना टूटता जाए और हर बार मुस्कुरा के बोलें "सपने और वादे टूटने के लिए ही बनें हैं!"

आज बहुत लम्बे समय के बाद आप लोगों के बीच सपनों व वादों वाली एक कहानी के साथ हूँ। मेरे तो लगी, आपके दिल को लगी या नही जरुर बताइयेगा। 


आज पुरानी वाली मोहतरमा के बियाह की तीसरी साल गिरह है और यक़ीन मानिए वो आज भी उतनी ही खूबसूरत हैं जितनी 9 साल पहले थीं!  कुछ दिन पहिले फ़ोन आया था! विदेश में रह रहीं हैं पर बदली नहीं! शो ऑफ़ वाली आदत अभी तक गयी नहीं! बातों बातों में बता हीं दीं के iPhone 7 ली हैं! अचानक पूछ बैठीं कि….

"शादी कब कर रहे हो?" 
"कर लेंगे!" 
"कोई पसंद किए हो या अरेंज मैरिज?"
"पसंद तो है एक!"
"फ़ोटू भेजो!" 
"रुको भेजते हैं!"

फ़ोटू देख के बोली…

"बहुत ख़ूबसूरत है यार!"
"हाँ!"
"सही है! वो तैयार है?"
"लगता तो है पर जबतक हो न जाए का कहें?"
"और दोनो के घर वाले?"
"वो सब हो जाएगा! वो सब छोड़ो बताओ भाई साहेब कैसे है?"
"बढ़िया! यार अपने आस पास ज़मीन देखो लखनऊ में! हमको वहीं मकान बनवाना है!"
"भक्क्क! पहले पड़ोसन थी तो इतना काण्ड हुआ! अब नही बनाएँगे तुमको पड़ोसन! शादी के बाद एक्स्ट्रा मैरिटल अफ़ेयर नही चलाना तुम्हारे साथ!"
(और दोनो ठहाके लगा के हसने लगे!)

उनकी शादी को तीन साल हो गया पर शायद ये दूसरी बार था जब हमारी बातें हुई! बड्डे पे मैसेज आता जाता रहता था! प्रेम 6 साल ख़ूब निभाया दोनो ने! अब ख़ुद के किरदार को निभा रहे! मेरी धड़कने नही बढ़ीं उसका कॉल देख के न ही उसकी साँसे बढ़ी मेरी आवाज़ सुन के! वक़्त सब सही कर देता है! हमारा दिल अब धड़कता है किसी और बिन्दी-झूमके वाली के लिए और उनका उनके हबी के लिए! अब वो अपना प्रेम निभा रही और हम हमारा! 

पर शो ऑफ़ वाली आदत गयी नही उसकी! बियाह मुबारक हो पड़ोसन! मुसकियाती रहना! अच्छी लगती हो! 

फोन की बातों ने कुरेद दी यादों की दास्तान, मानो जैसे भूसे के ढेर में एक चिंगारी सी लग गई और आग की लपटों से धधक उठा पूरा वन उपवन। उसी के चंद यादगार लम्हों की दास्तान शब्दों में…


तेरे जाने के बाद आयेंगे मुझे बीती नींदों के सपने जो देखे गए थे साथ में एक मुश्त। मैं अपने आप को ढूंढने की कोशिश में खंगालता रहूंगा वो सारे खत जिन्हें लिखा गया था ये मान कर कि मैं जिंदा रहूंगा इस दुनिया के आखिरी काल तक। मगर तुम्हारे जाने की जल्दीबाजी और मेरे न रोकने के हठ के बीच छूट गई हैं कुछ चीजें। एक पर्स जिसे सोते वक्त तुम अपने तकिए के करीब रखती थी। एक चश्मा जो तुमसे खो जाता था अक्सर। एक जोड़ी सफेद जूते जिनमें एक भी दाग नहीं। ऊपर कमरें के रैक पर मिला एक शक्करपारे का डिब्बा, जिसके शक्करपारे आज भी उतने ही करारे और मीठे हैं। बालकनी पर टंगा छूट गया है एक गुलदान जिसे उतरने का मन नहीं करता। अलमारी में लटके हुए हैं तुम्हारे वो कपड़े जिन्हें तुम सिर्फ देखा करती थी। ये सब यहां रह गया है। किसी दिन रविवार को काम से थोड़ी फुर्सत लो और चली आओ। किसी हरे पार्क की जमीन पे बैठ कर चांद को देखेंगे और हिसाब पूरा करेंगे।

♦️ कथाकार ने नाम बताने से मना किया है! सरम आती है! ❣️

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