Saturday, 23 September 2023

मेले, आशा के पंख



किसी ने सच ही कहा है बिना फूलों के शहद मधुमक्खी नही, एक लालच से ओतप्रोत व्यापारी अत्यधिक धन कमाने की आशा के साथ बनाता है। आशा एक पंख वाली चीज है जो आत्मा में बसती है और बिना शब्दों के धुन गाती है और कभी रुकती नहीं है। ठीक वैसे ही मेले और मेले में पनपने वाली कहानियाँ भी है।


बागेश्वर की गर्म धूप और डंगोली मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रम देखती सुनहरे सूट वाली वो लड़की। गुलाबी दुपट्टा जिससे चेहरे को धूप से बचाया गया और एक म्याऊं म्याऊं वाला बड़ा सा चश्मा।


मैं पहुंचे, उन्होंने देखा और इशारे से पास बुला कर बगल बैठा लिया। हम दोनों के कुर्ते सुनहरे थे। उन्होंने अपना संगीत प्रेम ज़ाहिर किया और हम कौतिक का एक वृहद् गोल चक्कर लेकर चाय पीने निकल पड़े। हमने देखी मेले में गजब की भीड़ पर उस भीड़ में मानो हम अकेले हों। ऐसे टहल रहे हों जैसे कोई नवाब अपनी रियासत के किसी बगीचे में अपनी महारानी की बाहों में बाहं डाले सैर पर निकला हो।


उन्होंने खूब बातें की। हम देखते रहे। हम सुनते रहे। सब मानो 5D में चल रहा था। जब उन्हें देखते तो कुछ सुनाई न देता, जब उन्हें सुनते तो कुछ दिखाई न देता। जिंदगी की तमाम उलझनों में स्वादिष्ट चाय सा है ख़्वाब तुम्हारा।


साथ होना पास होने से ज्यादा जरूरी होता है। वो चलीं गयीं। सब चले जाते हैं। जाते हुए उनको देर तक देखते रहे। ओझल होने तक। पलट कर दूसरी तरफ देखा तो उनकी खुशबू आ रही थी। कंधे के पास नाक रखी तो उनकी महक छूट गयी थी।

मुस्कुराहट कभी ऐसे भी सिकुड़ती है जैसे किसी पंक्षी के पर थकने के बाद। आंखें खुली हुई भी निस्तेज हो जाती हैं। कभी बसंत में ही चेहरा फीका पड़ जाता है। जीवन में कई दिन बड़े मशरूफ होते हैं। कई स्मृतियां यहीं किसी रंग से भीगे हुए पात्र में विलुप्त हो गए सिक्के की तरह गुम हो जाती हैं, फिर एकाएक यूं आकर सामने बैठती हों जैसे दरवाजे पर कोई फकीर जिसकी आंखों में सदियों का सन्यास है।

ऐसे ही कुछ स्मृतियां आंखों के सामने तैरने सी लगीं। जीवन के बाइस्कोप की रील पीछे घूमने लगी। हृदय में एक जोरदार धक्का सा लगा। जीवन के सारे दिन बादलों संग उमड़ आसमान में मंडराने लगे। एक कहानी जिसे मेले की इस भीड़ में शायद कोई महसूस कर पा रहा हो। प्रेम में हमेशा कुछ न कुछ छूट ही जाता है न? यहां मैं का सम्बोधन एक किरदार से है जिसे में बड़ी देर से देख रहा था। समझने की कोशिश कर रहा था। वैसे मेले के भी अपने रंग, अपनी कहानियाँ व अपने किरदार होते हैं।

♦️अनावश्यक टिप्पणी वाले टिप्पणीकारों के लिए नोट— जिस दिन बनूँगा इतिहास बनूँगा एक रात का किस्सा नही बनना चाहता मैं, जो भी करूँगा सबसे हट कर करूँगा औरों की तरह भीड़ का हिस्सा नही बनना चाहता मैं।

जय माँ कोटभ्रामरी 🙏🏻

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