किसी ने क्या खूब फ़रमाया है साहब, इस जहां में रोता वही है जिसने सच्चे रिश्ते को महसूस किया हो, वरना मतलब का रिश्ता रखने वालों की आंखों में न शर्म होती है और न पानी।
कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाय तो अमीर लोग कांवड़ नहीं ढोते हैं। अमीर लोग बाबाओं की भीड़ में नहीं बैठते हैं। अमीर लोग किसी धार्मिक स्थल पर पैदल नहीं जाते हैं। अमीर लोग मंदिरों की लाईनों में नहीं दिखते हैं। अमीर लोग नेताओ की रैलियों में नहीं होते हैं। अमीर लोग किसी जुलूस, प्रदर्शन में भी नहीं मिलते हैं। हर भीड़ का हिस्सा केवल गरीब होता है।
क्योंकि उसे आसानी से भ्रमित किया जा सकता है। उसके जानने, समझने के स्रोत बहुत नाजुक होते हैं। उससे नाजुक उसकी भावना होती है क्योंकि वह भावना स्थाई नहीं होती।
कुछ अपवादों को छोड़ कर देखा जाय तो अमीर कभी भी गरीब को अपने बराबर नहीं देखना चाहता इसलिए अपनी शिक्षा, ज्ञान और सही दिशा में किये गए मेहनत और प्रयासों की बात को वह सार्वजनिक नहीं करता, वह इस उपलब्धि को ईश्वर का चमत्कार बताता है। गरीब उसे सच मानने लगता है और उसे पाने के लिए हद से गुजरने लगता है।
शायद भारत मे गरीबी का मुख्य कारण अशिक्षा, अंधविश्वास, संसाधनों की कमी और लोगों को भ्रमित होना ही है।
“मैं वह नहीं हूँ साहब जो दिखता हूँ, मैं वह हूँ जो लिखता हूँ”
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