Thursday, 14 September 2023

दिलों में धड़कती हिंदी-



अब हम तो जन्म से ही हिंदी माध्यम वाले लड़के हैं।लेकिन आजकल वाले बच्चे दुनिया में आने से पहले ही इंग्लिश मीडियम टाइप हो जाते हैं। हमारे और उनके बचपन में ही बहुत अंतर है। जहाँ हमें किसी रिश्तेदार के आने पर कहा जाता कि बेटा चाचा जी से "जय जय" करो ! और हम बेझिझक सलाम ठोक देते थे।
पर आजकल की मम्मियाँ कहतीं हैं बेटा अंकल को फ़्लाइंग किस दो !! और आसानी से बच्चा फ़्लाइंग किस के साथ बोनस में आँख भी मारता है। अब बच्चे तो मिटटी के कच्चे घड़े हैं वे वही सीखेंगे जो सिखाया जाएगा।


खैर इनके बाद आज के परिप्रेक्ष्य में देखें तो ,आज का इंसान भले ही अंग्रेज हो गया हो लेकिन गाली आज भी हिंदी में देता है। आज कोई अंग्रेजी बोले तो उसे हिंदी में समझाना पड़ता है। बरहाल हिंदी का हमारे जीवन में उतना ही महत्व है जितना कि psychology में P का है।

हिंदी है हम, वतन है हिंदुस्तां हमारा' लेकिन आज लगभग सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में अंग्रेजी में प्रश्न पूछना एक परंपरा सी है, जिससे हिंदी पूर्ण तय: उपेक्षित रही है। 

कोई भी भाषा राष्ट्र की धड़कती हुई जिंदगियों का स्पंदन है। भाषा संस्कृति की वाहक भी होती है। हमारी अपनी हिंदी भी कुछ ऐसी ही है, जिसमें जिंदगी के अनोखे रंग बयां होते रहते हैं। विपरीत परिस्थितियों में हिंदी ने देश में अपने पैर जमाए। मुगल काल में हिंदी का विकास तेजी से हुआ तब भक्ति आंदोलन ने हिंदी को जन-जन से जोड़ा था। अंग्रेजी राज में भी स्वतंत्रता आंदोलन की मुख्य भाषा होने के चलते हिंदी का विकास हुआ।

अमीर खुसरो की पहेलियों, मुकरियों से होते हुए कबीर के दोहों, तुलसीदास की चौपाइयों से होती हुई हिन्दी आधुनिक युग तक पहुंची। यहीं पर हिंदी आम- बोलचाल से लेकर अखबार, टीवी, रेडियो, सिनेमा, विज्ञापन समेत कई विधाओं को व्यक्त करने का माध्यम बनी। स्मार्टफोन से लेकर मेट्रो शहरों तक हिंदी का आज धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है। 1826 में हिंदी का पहला अखबार उदंत मार्तंड आया। 1950 में हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिला।

आज हम 'हिंदी दिवस' मना रहे हैं जिसकी शुरुआत 14 सितम्बर 1953 को हुई थी। हम आज तक हिंदी को जनभाषा, राजकाज की भाषा एवं कानून की भाषा नहीं बना सके। यह एक ज्वलंत प्रश्न है। सोचिए जरा - भारत एक है, संविधान एक है, लोकसभा एक है, सेना एक है, मुद्रा एक है, राष्ट्रीय ध्वज एक है तब क्या इसी तरह समूचे देश में हिंदी को भी एक राष्ट्रभाषा के रूप में सम्मान नहीं मिलना चाहिए?

 भारत और अन्य देशों में 70 करोड से अधिक लोग हिंदी बोलते, पढ़ते और लिखते हैं और यह विश्व की सर्वाधिक प्रयोग की जाने वाली तीसरी भाषा है। भारत के अलावा कई अन्य देश ऐसे हैं, जहां लोग हिंदी भाषा का इस्तेमाल करते हैं। इन देशों में नेपाल, मॉरीशस, फिजी, पाकिस्तान, सिंगापुर, त्रिनिदाद एंड टोबैगो,बांग्लादेश शामिल हैं।

 'हिंदी है हम, वतन है हिंदुस्तां हमारा' लेकिन आज देश में दो देश जी रहे हैं। एक पुराना भारत जिसे आज का शिक्षित वर्ग रूढ़िवादी मानता है। दूसरा भारत 'शिक्षित वर्ग- अंग्रेजीदां' है, जो न देश को जानता है, न परंपराओं के पीछे छिपे तत्वों को ही समझना चाहता है। मुगल आए तो उन्होंने 'भरत के भारत' को 'हिंदुस्तान' बना दिया। अंग्रेज आए तो यह 'इंडिया' बन गया। अंग्रेज चले गए तो 'इंडिया डैट इज भारत' बन गया, जो अंग्रेजियत है आज भी बची हुई है‌। इसे देखकर लगता है कि यह 'इंडिया डैट बाज भारत' न हो जाए।

लगता है आज देश में अंग्रेजों का राज (अंग्रेजी मानसिकता और संस्कृति का) स्थापित होने लगा है। भारतीय संस्कृति एवं हिंदी आज भी अंग्रेजीदां के साथ बंधी  है। इस बंधन को खोलना होगा, क्योंकि आज अंग्रेजियत हावी होती जा रही है। भारतीयता के साथ 'हिंदी की जड़' को 'अंग्रेजी कुल्हाड़ी' से काटा जा रहा है। क्या इसी का नाम 'अमृत महोत्सव' है।

आधुनिकता की ओर तेजी से अंग्रसर कुछ भारतीय ही आज भले ही अंग्रेजी बोलने में अपनी आन-बान-शान समझते हो, किंतु सच यही है कि 'हिंदी' ऐसी भाषा है जो प्रत्येक भारतवासी को वैश्विक स्तर पर मान-सम्मान दिलाती है। सही मायनों में हिन्दी विश्व की प्राचीन समृद्ध एवं सरल भाषा है।

भारत की राजभाषा हिंदी जो न केवल भारत में बल्कि अब दुनिया के अनेक देशों में बोली जाती है, पढ़ाई जाती है। भले ही दुनिया में अंग्रेजी भाषा का सिक्का चलता हो लेकिन हिंदी अब अंग्रेजी भाषा से ज्यादा पीछे नहीं है। उसका सम्मान कीजिए। हिंदी में बोलिए। हिंदी में पत्र व्यवहार कीजिए। तभी सार्थक होगा आज का 'हिंदी दिवस'।

♦️हिंदी का नाम "हिंदी" कैसे पड़ा?
आप सभी हिंदी दिवस के इतिहास के बारे में तो जानते ही हैं, लेकिन क्या आप यह जानते हैं आखिर हिंदी भाषा का नाम हिंदी कैसे पड़ा। अगर नहीं, तो चलिए आपको इसके बारे में बात करते हैं। शायद भी आप जानते होंगे कि असल में हिंदी नाम खुद किसी दूसरी भाषा से लिया गया है। फारसी शब्द ‘हिंद’ से लिए गए हिंदी नाम का मतलबसिंधु नदी की भूमि होता है। 11वीं शताब्दी की शुरुआत में फारसी बोलने वाले लोगों ने सिंधु नदी के किनारे बोली जाने वाली भाषा को ‘हिंदी’ का नाम दिया था।

♦️क्यों 14 सितंबर को ही मनाते हैं हिंदी दिवस?
14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाने की एक नहीं,बल्कि दो वजह है। दरअसल, यह वही दिन है, जब साल 1949 में लंबी चर्चा के बाद देवनागरी लिपि में हिंदी को देश की आधिकारिक भाषा घोषित किया गया था। इसके लिए 14 तारीख का चुनाव खुद देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने किया था। वहीं, इस दिन को मनाने के पीछे एक और खास वजह है, तो एक मशहूर हिंदी कवि से जुड़ी हुई है। इसी दिन महान हिंदी कवि राजेंद्र सिंह की जयंती भी होती है। भारतीय विद्वान, हिंदी-प्रतिष्ठित, संस्कृतिविद और एक इतिहासकार होने के साथ ही उन्होंने हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने में अहम भूमिका निभाई थी।

जैसा कि आप जानते हैं, आज हिंदी देश की आधी से ज्यादा आबादी की आम जुबान है। सिनेमा, टीवी ने इसे बाजार व्यवसाय की एक कामयाब भूमिका में ढाला है। रोजगार की व्यापक दुनिया खुली है। फिर भी हिंदी हमारी जीवन शैली का जरूरी हिस्सा बनती नहीं दिख रही। आखिर क्यों? कौन सी ऐसी हिचक है जो आड़े आ रही है?

बाक़ी सबके लिए आज हिंदी दिवस है जो मेरे लिये रोज होता है और आज ये ख़ास सिर्फ इसलिए है क्योंकि चौदह सितम्बर प्रतियोगी परीक्षाओं में पूंछा जाने वाला एक महत्वपूर्ण प्रश्न भी है ! बकाया आज के दिन एक सेल्यूट गूगल इंडिक कीबोर्ड को भी जिसकी बजह से ये मन की बातें आप सब तक पहुँच पाती है। इस हिंदी कीबोर्ड पर, हम आप के विचार जब उँगलियों के रूप में थिरकते हैं तो हर रोज हिन्दी दिवस हो जाता है।
पढ़ने के लिये शुक्रिया... 

आप सभी हिंदी प्रेमियों को हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनायें।

No comments:

Post a Comment