आपने पढ़ा होगा, इतिहास में भारतीय उपमहाद्वीप हमेशा विदेशी आक्रमणकारियों का निशाना रहा और यहां तक कि ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में राजा सिकंदर ने भी भारत पर कब्ज़ा करने का युद्ध किया था। इसके अलावा, मुस्लिम राजवंशों और ब्रिटिश उपनिवेशवादियों ने जो भारत का शासन किया और वे सब अंततः भारतीय इतिहास का हिस्सा बन गये। भारत भिन्न भिन्न धर्मों, राष्ट्रों और संस्कृतियों का एक पिघलने वाला बर्तन बन गया जिसके परिणामस्वरूप, भारत के अद्वितीय राष्ट्र और राष्ट्रवाद का निर्माण हुआ है। हिन्दुस्तानी जनता ने आजादी के लिए राष्ट्रवाद का झंडा बुलंद कर लिया और आज भी वे इसी बैनर तले राष्ट्रीय पुनरुत्थान कर रही हैं।
हालाँकि, राष्ट्रवाद एक दोधारी तलवार है। एक ओर, राष्ट्रवाद सभ्यता की प्रगति को बढ़ावा देता है और राष्ट्रीय आत्म-सम्मान और आत्मविश्वास को उत्तेजित करता है। दूसरी ओर, राष्ट्रवाद अक्सर देश को विभाजन की ओर ले जाता है और आतंकवाद और नस्लीय भेदभाव को जन्म देता है। आज भी भारत में हम अक्सर कुछ राजनेताओं को हिंदू और इस्लामी राष्ट्रवाद को उकसाते हुए और पड़ोसी देशों के खिलाफ संघर्ष पैदा करने के लिए राष्ट्रवाद का उपयोग करते हुए देखते हैं। उन्नीसवीं सदी के मध्य में, भारत में एक के बाद एक राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन उभरे। 1885 में मुंबई में राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी की स्थापना हुई, 1906 में अखिल भारतीय मुस्लिम लीग की स्थापना ढाका में हुई, 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नागपुर में स्थापित हुआ। अंततः भारत ने 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त की। देश के विभाजन से बचने के लिए, राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी ने "राष्ट्रवाद, धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्रवाद और समाजवाद" का नारा पेश किया।
लेकिन भारत के कुछ सीमावर्ती क्षेत्र इतिहास में कभी भी भारतीय संस्कृति के अधीन नहीं हुए थे। इन क्षेत्रों में राष्ट्रीय स्वाधीनता का आंदोलन हमेशा केंद्र सरकार के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द रहा है। भारत और उसके पड़ोसियों के बीच सीमा संघर्ष भी वास्तव में राष्ट्रवादी लहर का उपोत्पाद है। इसके अलावा राष्ट्रवाद के शुरू से ही धर्म के साथ घनिष्ठ संबंध मौजूद रहे। भारत की स्वतंत्रता की प्रक्रिया में, राष्ट्रवाद और धर्म का गहरा संबंध था। मुस्लिम लीग और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उनके प्रतिनिधि थे। विभिन्न धार्मिक संप्रदायों के बीच जो संघर्ष हुए वे हमेशा सामाजिक एकता के रास्ते पर बाधाएं रहती हैं। उधर धार्मिक उग्रवादियों ने धार्मिक राष्ट्रवाद के साथ पूरे लोगों की सोच और कार्यों को एकजुट करने के प्रयास में "एक देश, एक राष्ट्र और एक संस्कृति" के राष्ट्रवाद को बढ़ावा देते हैं। हालांकि, इसका परिणाम विभिन्न संप्रदायों के बीच एक क्रोधित आग को प्रज्वलित करना है। धार्मिक संघर्षों का परीणाम है कि अनिवार्य रूप से बड़े पैमाने पर धार्मिक संघर्षों को जन्म दिया गया है। उदाहरण के लिए, 1992 में बाबरी मस्जिद का धार्मिक संघर्ष एक भयानक त्रासदी बना।
वास्तव में, चाहे राजनीतिज्ञ हों या शिक्षित वाले लोग, वे अच्छी तरह जानते हैं कि राष्ट्रवाद एक दोधारी तलवार है। लोगों की एकता को बढ़ावा देने के साथ-साथ वह निश्चित रूप से जातीय अंतर्विरोधों और संघर्षों का कारण बनेगा और विदेशों के साथ युद्ध पैदा करेगा। इसलिए, विश्व के अधिकांश देशों ने राष्ट्रवाद के प्रति सख्त कानूनी परिसीमन रख दिया है। शक्तिशाली देश बनाने के लिए प्रयास सही है, लेकिन गरीबी और सामाजिक अन्याय को खत्म करने के बजाय, राष्ट्रवाद के सहारे विरोधाभ्यास और टकराव पैदा करने का यही नतीजा होगा कि खुद को भी चोट पहुँचाया जाएगा।
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