अपनी आंखें बंद करके, दोनों हाथ जोड़कर, किसी मंदिर में खड़े होकर, खुद को न बदलने की शर्त पर, हम उस ईश्वर से किसी चमत्कार के होने की कामना तो करते हैं पर कभी भी खुद को औऱ ज्यादा विनम्र, सहनशील और संघर्षशील बनाने की प्रार्थना नही करते।
ऐसा लगता है मानो हम जीवन के इस संघर्ष से हार से गये है। उससे भी ज्यादा हास्यपद यह है कि वो संघर्ष जिसमे हम खुद को हारा हुआ मानते हैं, हमारे लिए उस संघर्ष की परिभाषा क्या है?
हम भूल गए हैं कि जीवन संघर्ष से निखरता है किसी चमत्कार से नही, हम यह भी भूल गए हैं कि अगर भगवान ने उस दूसरे इंसान को हम जैसा ही बनाना होता तो वह हमारी प्रार्थना के बिना भी उसे हम जैसा ही बनाकर भेजता..
इन सब प्रार्थनाओं के बीच एक ख्याल जो कभी हमारे मन से होकर नही गुज़रता की यहाँ हर शख्स एक दूसरे से बिल्कुल अलग है यही इस जीवन की सुंदरता है। यही वजह है कि कोई शख्स खुद को दूसरों के हिसाब से नही बदल पाता है………
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क्षण भंगुर काया, तू कहाँ से लाया
गुरुवन समझाया, पर समझ न पाया
ये साँस निगोड़ी, चलती रुक थोड़ी
चल-चल रुक जावे, क्या खोया पाया
क्या लेकर आया जग में, क्या लेकर जाएगा?
ओ बंधु!
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इस संसार में, जहाँ तक हम देख सकते हैं, किसी भी चीज में रंग नहीं है। पानी, हवा, अंतरिक्ष और पूरा जगत ही रंगहीन है। यहाँ तक कि जिन चीजों को आप पूरी रंगत में देखते हैं, वे भी रंगहीन हैं। रंग तो दरअसल केवल प्रकाश में होता है। उसके अभाव में सब फीके हैं, रंगहीन हैं।
ऐसे ही अक्सर हम समझते हैं कि जो चीज़ हमारे भीतर है वो हमारा गुण होगा, जबकि जो आप अपने आस-पास बिखेरते हैं, जो बाँटते हैं, वो आपका गुण होता है।
ये ठीक वैसा ही है जैसा रंगों और रोशनी के साथ होता है, तो क्यों न थोड़ा ध्यान दें कि हम क्या बाँट रहें हैं और क्या बिखेर रहें हैं, आपको प्रकाश हो जाना है। आपके होने से ही वीरानी में भी रंगत आ जाए। वास्तव में यही हमारा व्यक्तित्व भी है।
क्या आपको पता है मिथिलावासियों के लिए मंदिर में प्रतिष्ठित विग्रह कोई भगवान् नहीं अपितु उनके बहन-बहनोई हैं। 1961 ईस्वी से लगातार चला आ रहा है श्री सीताराम नाम का अखंड संकीर्तन…
♦️श्री जानकी-मंदिर (जनकपुरधाम, नेपाल)-
श्री जानकी-मंदिर के विस्तार और महल-विन्यास की अलग ही कथा है। आज के युग में प्रसिद्द ये जानकी मंदिर, जनकपुर ही नहीं सम्पूर्ण मिथिला और नेपाल राष्ट्र के लिए एक गौरव स्तम्भ बन कर उभरा है। इस मंदिर को श्री किशोरीजी का साक्षात् निवास-स्थल माना जाता है। मान्यता के अनुसार इस मंदिर का प्रधान गर्भ-गृह श्री किशोरी जी का कोहबर है और वहाँ नित्य श्री दूल्हा-दुल्हन सरकार विराजते हैं। इस धारणा के पीछे मंदिर के संस्थापक और प्रथम महंत श्री बाबा सूरकिशोर दास जी की एक अद्भुत लीला का विवरण मिलता है। जैसा कि कथाओं में वर्णित है, एक बार बाबा ने सोचा कि बेटी की ससुराल जा कर उससे मिल आऊँ। ऐसा सोच कर बाबा अयोध्या की ओर प्रस्थान कर गए।भक्त का भाव देख कर श्री किशोरी जी, श्री दुलहा जी के साथ बाबा के दर्शन को गईं और उनसे नगर प्रवेश का निवेदन भी किया। किन्तु बाबा ने करुणा-पूरित शब्दों में मना करते हुए समझाया कि बेटी की ससुराल में जा कर रहना मर्यादोचित नहीं है। उनके निर्मल वचनों से रीझे हुए श्री दुलहा सरकार ने उनसे कोई वरदान माँगने का निवेदन किया। तब बाबा जी ने हाथ जोड़ कर श्री दुलहा जी से कहा कि हमारे यहाँ बेटी और जमाता को देने की परंपरा है और जमाता से कुछ लिया नहीं जाता। मैं इतना ही चाहता हूँ कि आप मेरी पुत्री के साथ नित्य मुझे दर्शन देते रहें। बाबा के ऐसे सहज और प्रेम अनुरक्त वचन सुन कर श्री किशोरी जी ने उन्हें वचन दिया कि वो नित्य श्री दुलहा के साथ जनकपुर स्थित कोहबर में स्थापित मूर्ति में ही विराजमान रहेंगी। इस कथा को सुन कर केवल मिथिला ही नहीं विश्व के कोने-कोने से भक्त और श्रद्धालु दर्शन और कामना पूर्ति हेतु मंदिर पधारने लगे। इसी क्रम में वर्तमान वृहत महल की स्थापना का श्रेय टीकमगढ़ (भारत) की तत्कालीन महारानी वृषभानकुअँरि जी को जाता है। कथा के अनुसार महारानी ने पुत्र प्राप्ति की कामना हेतु "श्री कनक-भवन" (अयोध्या, भारत) का पुनर्निर्माण करवाया था। किन्तु तब भी उन्हें पुत्र-रत्न की प्राप्ति नहीं हुई। तब श्री गुरु महाराज की आज्ञा पर उन्होंने 1895 ईस्वी के आस-पास श्री जानकी मंदिर के निर्माण की नींव ली जिसके लिए नौ लाख रुपयों का संकल्प लिया गया। इसलिए इस मंदिर को नौलखा मंदिर भी कहते हैं। हालाँकि इसके विन्यास और विस्तार को सिद्ध करने हेतु निर्माण में संकल्प से कहीं अधिक प्रयास किया गया और लगभग बारह वर्षों के कठिन श्रम के बाद मंदिर का निर्माण कार्य पूर्ण हुआ। संकल्प के एक वर्ष के पश्चात ही महारानी जी को पुत्र-रत्न की प्राप्ति हुई किन्तु उनके जीवन काल में ये मंदिर संपन्न नहीं हो पाया और इसको पूर्ण करने का दायित्व उनकी छोटी बहन श्री नरेंद्र कुमारी ने पूर्ण किया।
गर्भगृह के निर्माण के पश्चात मूर्ति की स्थापना लगभग 1911 ईस्वीमें कर दी गई थी। श्री किशोरी जी को समर्पित यह मंदिर जनकपुरमुख्य बाजार के उत्तर-पश्चिम में अवस्थित है। यह मंदिर हिन्दू-राजपूत नेपाली शिल्पकला का एक अच्छा मिश्रण है और इसमें प्रयुक्त स्थापत्य-कला मुग़ल शैली की है। जैसा की विवरण है यह मंदिर एक व्यापक महल और राज-दरबार की भांति विशाल और विराट स्वरूप में निर्मित किया गया है। मंदिर का निर्माण बड़ा रोचक है जिसमें बीच में मंदिर के गर्भगृह का भवन है और उसके चारों और विशाल दीवारों से घिरे भवनों की एक श्रृंखला है जिसके दो मुख्य द्वार हैं। मंदिर के चारों कोनों पर बने स्तम्भ एकदम एक जैसे हैं जो स्थापत्य कला का एक अलग ही नमूना है।यह एक तीन-मंजिले महल के रूप में विक्सित किया गया है जिसमें सफेद पत्थर और संगमरमर का प्रयोग किया गया है और मंदिर का यथा संभव बाह्य रंग भी सफेद ही रखा गया है जिसमें जो शांति और समृद्धि को दर्शाता है। पुनः साज सज्जा और भव्यता बनाए रखने के लिए केसरिया, पीला, हरा और नीला रंग भी प्रयुक्त हुआ है जो मुंडेरों और मेहराबों को भव्य और आकर्षक बनाता है। साथ ही भांति-भांति की चित्रकला और नक्काशी भी दिखाई देती है जो श्री किशोरी जी के ऐश्वर्या का प्रतीक है। मंदिर की ऊंचाई लगभग 70-75 मीटर की है और इसका क्षेत्रफल लगभग 4860 वर्गफीट का है।
मंदिर में गर्भगृह के अतिरिक्त लगभग साठ कमरे हैं जिन्हें बहुत सुन्दर और कलात्मक ढंग से सुसज्जित किया गया है। इनमें रंग-बिरंगे काँच, भव्य स्थायी जालीदार पर्दे और जालीदार खिड़कियों का प्रयोग किया गया है। जानकी मंदिर प्रांगण में प्रवेश के लिए तीन विशाल द्वार हैं जो क्रमशः पूरब, दक्षिण और उत्तर दिशा से हैं। प्रांगण में घुसाने के पश्चात मंदिर के वाम भाग या पिछले भाग में विवाह मंडप आदि है और मंडप के सन्मुख प्रांगण में एक विशाल फव्वारा भी है जो इसकी सुंदरता को और भी निखरता है। मुख्य मंदिर में प्रवेश हेतु पाँच द्वार हैं जिनमें दो प्रमुख द्वार हैं और तीन छोटे--छोटे द्वार हैं। दोनों प्रमुख द्वार लगभग ३०-३० फीट की ऊंचाई के हैं और द्वार की संरचना और नक्काशी बहुत उत्तम कोटि की है। पहला द्वार जो मंदिर के गर्भगृह के ठीक सामने है वो बहुत विशाल और भव्य है और वही मुख्य प्रवेश द्वार भी है जहाँ से हर दिन हजारों की संख्याँ में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। किन्तु श्री किशोरी जी का दरबार है ऐसा मानकर उनके निजी सेवक और भक्त गर्भगृह के बाएँ और लगे सिंहद्वार से प्रवेश करना ज्यादा उचित मानते हैं। उस द्वार के ऊपर सिंह की मूर्तियाँ बनी हैं जो द्वार की सुंदरता और भव्यता को चार चाँद लगा देते हैं। ये द्वार पीछे वाला द्वार मना जाता है और यही विवाह मंडप आदि से मंदिर के गर्भगृह को जोड़ता है। इसके अतिरिक्त तीन छोटे -छोटे द्वार हैं जिनमें एक मुख्य गर्भगृह के पीछे अवस्थित जनक-मंदिर के पीछे से है, दूसरा द्वार मंदिर के रसोई-घर के दक्षिण से है और तीसरा द्वार श्री संकीर्तन कुञ्ज के पीछे उत्तर दिशा से है।
♦️श्री कोहबर (गर्भगृह)—
मंदिर में प्रवेश करने के बाद सर्वप्रथम श्री कोहबर (मंदिर के गर्भगृह) के दर्शन होते हैं जहाँ श्री किशोरी जी, श्री दुलहा जी, श्री लखन लाल और चारों दुल्हा-दुल्हिन सरकार की प्रतिमाएं स्थापित हैं। यह गर्भगृह पूरब दिशा की ओर है। श्री सूरकिशोर बाबा को प्राप्त हुए विग्रह भी यहीं स्थापित हैं। इस झांकी के अन्तः भाग में श्री युगल सरकार के विशेष कोहबर की सेवा की जाती है जो गोपनीय है। ऐसा मना जाता है कि भक्तों को दर्शन देने के बाद प्रभु इसी अन्तः गृह में विश्राम करते हैं। गर्भगृह को कोहबर कहने का एक विशेष कारण है मैथिल संस्कृति, जिसके अंतर्गत किसी नव-विवाहित जोड़े के शयन कक्ष को "कोहबर" कहा जाता है। मान्यताओं के अनुसार श्री किशोरी जी और श्री रघुनाथजी आज भी नव दुल्हा-दुल्हन के स्वरूप में ही विराजते हैं अतः उनका मंदिर कोहबर नाम से प्रसिद्द है। इस कोहबर में प्रतिष्ठित दरबार की झाँकी को एक निश्चित ऊंचाई पर व्यवस्थित किया गया है जिससे सूर्योदय की किरणें सर्वप्रथम श्री दुल्हा सरकार की सेवा में ही उपस्थित होती हैं।
यहाँ मिथिलावासियों के लिए मंदिर में प्रतिष्ठित विग्रह कोई भगवान् नहीं अपितु उनके बहन-बहनोई हैं। इस मंदिर में प्रार्थना, याचना या मनोकामना नहीं की जाती अपितु अपनी किशोरी जी से विमर्श किये जाते हैं, उनके आदेश लिए जाते हैं, उनका मान किया जाता है।
♦️श्री पाकशाला—
मंदिर में दर्शन के पश्चात ७ बार या चार बार परिक्रमा का विधान है और उसी परिक्रमा के क्रम में बाएं और (मंदिर के दक्षिण में ) श्री किशोरी जी की रसोई है जहाँ नित्य भोग आदि पकाया जाता है और भंडारे हेतु सम्पूर्ण व्यवस्था होती है। किन्तु इस भाग में सामान्य प्रवेश वर्जित है।
श्री जानकी विद्युतीयचलचित्र संग्रहालय, पाकशाला के बाद दक्षिणी कोण में हाल ही में 2012 ईस्वी में श्री जानकी संग्रहालय बनाया गया है जिसके अंतर्गत मंदिर के प्रारम्भ से लेकर अब तक के इतिहास से सम्बंधितवस्तुएं, चित्र, वस्त्र-आभूषण, श्रृंगार आदि की सामग्रियों और मंदिर के महंत परंपरा के संतों और महंतों से सम्बंधित अभिलेख, चित्रपट और चित्र संकलन आदि लगाए गए हैं। इसके अतिरिक्त रामायण काल की हुई कुछ घटनाओं और संस्कृतियों को दर्शाने के लिए हाईड्रोलिकसिस्टम, ध्वनि और विद्युत् के माध्यम से कई झांकियों का निर्माण किया गया है जो श्री किशोरी जी के जन्म से ले कर विवाह आदि के समस्त घटना-क्रमों का वर्णन करता है। ये भाग भी दर्शनीय और ज्ञान वर्धक है। मंदिर में अंदर ही अंदर सभी भाग आपस में जुड़े हुए हैं और महल की अट्टालिकाएं दर्शनार्थियों का मन अपनी और खींचती हैं।
♦️अन्य -मंदिर —
मंदिर के गर्भगृह के ठीक पीछे जनक महाराजऔर अम्बासुनैनाका मंदिर है जिसमें श्री सूरकिशोर बाबा को प्राप्त हुई शिलाएं, अभिलेख आदि भी स्थापित हैं। जनक मंदिर से पूर्व श्री बाल-हनुमाना जी का मंदिर भी है जहाँ नित्य प्रति उनकी सेवा होती है। ये छोटे-छोटे मंदिर मिथिला की संस्कृति में परिवार परम्परा को भलीभांति दर्शाते हैं। यहाँ मात्र भगवान्ही नहीं अपितु उनका समस्त परिवारनिवास करता है।
♦️कोठार-गृह—
परिक्रमा के क्रम में आगे कोठार-गृह मिलता है जिसमें मंदिर से सम्बंधित अभिलेख, धर्म-ग्रन्थ से जुड़े अभिलेख, विभिन्न प्रकार के ग्रन्थ आदि की व्यवस्था की गई है।
♦️शालिग्राम-मंदिर —
परिक्रमा के क्रम में मंदिर के उत्तरी भाग में श्री शालिग्राम भगवान का मंदिर भी है जिसमे लगभग सवा लाख (१२५०००) शालिग्राम स्थापित हैं और उनकी नित्य पूजा-अर्चना की जाती है।
♦️अखंड नाम-संकीर्तन स्थली—
पाठ्यक्रम करते हुए मुख मंदिर के उत्तरी भाग में श्री सीताराम नाम का अखंड संकीर्तन स्थल है जहाँ लगभग 1961 ईस्वी से अखंड श्री सीताराम नाम संकीर्तन चल रहा है। ये स्थल भी दर्शनीय है । इस प्रकार परिक्रमा के पश्चात मंदिर से नीचे उतरते ही उत्तर की और पीछे वाले द्वार से सटे हुए भाग में श्री जनक-परंपरा के तत्कालीन विदेह महाराज का निवास स्थल है जहाँ से वह मंदिर और उसकी व्यवस्था का संचालन करते हैं।
♦️विवाह मंडप -फुलवारी—
जानकी मंदिर के पिछले हिस्से मेंपश्चिमोत्तर कोण में एक बहुत ही सुन्दर उद्यान है जिसे फुलवारी कहते हैं। इस फुलवारी के मध्य में एक विशाल मंडप है जो नवीन विवाह मंडप के नाम से प्रसिद्द है। मान्यता के अनुसार इस स्थल पर श्री किशोरी जी और श्री दुल्हा जी का विवाह संपन्न हुआ था। इस मंडप के मध्य में श्री किशोरी जी -दुल्हा जी की प्रतिमा हैं जो गणपति-स्थापना के संग विवाह-वेदी पर बैठी हैं और उनके दोनों और चारुशीला और चन्द्रकला सखियों की प्रतिमाएं हैं। श्री किशोरी जी की तरफ वेदी के एक ओर श्री जनक जी, अम्बासुनैना, महाराज श्रुतिकीरत और गुरुदेव शतानन्द आदि हैं तो वहीँ दुल्हा जी की तरफ वेदी के दूसरे ओर श्री दशरथ जी, वशिष्ठ जी, विश्वामित्र जी आदि विराजमान हैं। पीछे श्री किशोरी जी के भाई-भावज श्री लक्ष्मीनिधि जी और श्री निधि जी खड़े हैं। इसमंडप का निर्माण नेपाल की पैगोडा शैली में किया गया है और इसके अंदर सभी स्तम्भों पर विवाह में उपस्थित देवताओं आदि की मूर्तियां बनाई गई हैं । इस मंडप में स्थापित सभी मूर्तियों की संख्याँलगभग108 हैं। इसे चारों ओर से काँच की दीवार से घेर दिया गया है जिसके कारण इसे शीश-महल भी कहते हैं। इस मंडप के चारों कोनों पर चारों दुल्हा-दुल्हिन सरकार की युगल मूर्तियां स्थापित हैं जिनमें बायीं ओर से श्री राम-जानकी कोहबर, फिर अगले कोने पर श्री भरत-मांडवीकोहबर, तीसरे कोने पर श्री लक्ष्मण-उर्मिलाकोहबर और चौथे कोने पर श्री शत्रुघ्न-श्रुतिकीर्तिकोहबर विराजमान हैं। मंडप से उतारकर फुलवारी के दूसरे भाग में जनक -परंपरा के कुछ प्रसिद्द महंतों की मूर्तियां स्थापित हैं जो उद्द्यान की शोभा को और भी बढ़ा देती हैं।
♦️श्री लक्ष्मण-मंदिर—
मंदिर के बाह्य परिसर में श्री लखन-लाल जी का मंदिर है जो नेपाल महाराज द्वारा बनवाया गया है। मान्यता अनुसार ये श्री जानकी मंदिर से भी पुरानाहै। इन सबके अतिरिक्त श्री जानकी मंदिर के कण-कण में विराजने वाली सौम्यता और दिव्यता को वर्णन करने से नहीं समझा जा सकता इसके लिए तो दर्शन करना ही उत्तम मार्ग है।
♦️कैसे पहुंचे -
नेपाल की राजधानी काठमांडू से 400 किलोमीटर दक्षिण पूरब में बसा है। जनकपुर से करीब 14 किलोमीटर उत्तर के बाद पहाड़ शुरू हो जाता है। नेपाल की रेल सेवा का एकमात्र केंद्र जनकपुर है। यहां नेपाल का राष्ट्रीय हवाई अड्डा भी है। जनकपुर जाने के लिए बिहार राज्य से तीन रास्ते हैं। पहला रेल मार्ग जयनगर से है, दूसरा सीतामढ़ी जिले के भिठ्ठामोड़ से बस द्वारा है, तीसरा मार्ग मधुबनी जिले के उमगांउ से बस द्वारा है।
बिहार के दरभंगा, मधुबनी एवं सीतामढ़ी जिला से इस स्थान पर सड़क मार्ग से पहुंचना आसान है। बिहार की राजधानी पटना से इसका सीतामढ़ी होते हुए सीधा सड़क संपर्क है। पटना से इसकी दूरी 140 की मी है।
हर साल, नेपाल, भारत, श्रीलंका और अन्य देशों के हजारों तीर्थयात्री भगवान राम और सीता की पूजा करने के लिए राम जानकी मंदिर जाते हैं। रामनवमी, विवाह पंचमी, दशैन और तिहार के त्योहारों के दौरान कई श्रद्धालु मंदिर आते हैं।
यहां से काठमांडू जाने के लिए हवाई जहाज़ भी उपलब्ध हैं। यात्रियों के ठहरने के लिए यहां होटल एवं धर्मशालाओं का उचित प्रबंध है। यहां के रीति-रिवाज बिहार राज्य के मिथलांचल जैसे ही हैं। वैसे प्राचीन मिथिला की राजधानी माना जाता है यह शहर। भारतीय पर्यटक के साथ ही अन्य देश के पर्यटक भी काफी संख्या में यहां आते हैं।
♦️मिथिला के प्रमुख शहर-
- जनकपुर
- मुजफ्फरपुर
- पूर्णिया
- समस्तीपुर
- दरभंगा
- सीतामढी
- जनकपुरधाम
- सहरसा
- कटिहार
- मधुबनी
- बेगूसराय
- भागलपुर
- दुमका
- देवघर
आप इस क्षण मेरे साथ जगत जननी जानकी की जन्मभूमि जनकपुर धाम में अवस्थित जानकी मंदिर के दर्शन कर रहे हैं। त्रेतायुग में माता जानकी की बाल्यावस्था यहीं बीती। ये मंदिर टीकमगढ़ की राजमाता वृषभानु लली ने आज से सैकड़ों वर्ष पहले बनवाया। माता की अपार कृपा उन पर बरसती थी। उस समय नौ लाख रूपये खर्च कर इस मंदिर का निर्माण हुआ इसलिये इसे नौलखा मंदिर भी कहा जाता है।
जनकपुर नेपाल ही नहीं अपितु दुनिया भर के लोगों के लिये अत्यंत पावन तीर्थ है। भगवान राम और माता जानकी का परिणय धनुष भंग के पश्चात जनकपुर में हुआ था। ब्रह्मर्षि राजा जनक अपने युग के प्रख्यात नरेश थे।
त्रेता युग के बाद मिथिला राज्य के अंतिम नरेश के रूप में कराल जनक का उल्लेख चाणक्य अपने अर्थशास्त्र में करता है। सुश्रुत संहिता के उत्तर तंत्र खंड में नेत्र चिकित्सा अध्याय में भी जनक का उल्लेख नेत्र चिकित्सा के सर्वोत्कृष्ट सर्जन के रूप में किया गया है। ये दो उल्लेख इस तथ्य को प्रमाणित करने के लिये पर्याप्त हैं कि रामजी की कथा केवल धार्मिक साहित्य नहीं अपितु भारत वर्ष के प्राचीन इतिहास के महत्वपूर्ण अंग हैं।
जिंदगी का असली आनन्द किसी को अपने मुताबिक बदलने की जद्दोजहद में नही बल्कि उन रास्तों को खोजने में है जिन रास्तों पर दो लोग अपनी विभिन्नताओं के बावजूद, एक दूसरे का हाथ पकड़कर चल सके और इस सफर को और ज्यादा खुशनुमा बना सकें।
जय माता जानकी…..
जय श्री राम…….
जय सीताराम…….🙏🏻
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