Thursday, 14 July 2022

जो जस करई सो तस फल चाखा।



यदि हमें विश्वास ही करना चाहिए था, तो हमें तर्क क्यों प्रदान किया गया था? क्या तर्क के विरोध में विश्वास करना, भयंकर ईशनिंदा नहीं है? हमें क्या अधिकार है, कि हम ईश्वर के सर्वोत्तम उपहार का उपयोग न करें? मुझे पूरा विश्वास है कि ईश्वर उस व्यक्ति को क्षमादान देगा, जो अविश्वास करते हुए अपने तर्क का उपयोग करेगा, न कि उस व्यक्ति को, जो अपनी शक्तियों, जो ईश्वर ने उसे प्रदान की है, का प्रयोग न करते हुए केवल अंधविश्वास करेगा। वह अपनी प्रकृति का अधोपतन करते हुए पशु के स्तर तक चला जाएगा और अपनी संवेदनाओं का अधोपतन करके मृत्यु प्राप्त करेगा- स्वामी विवेकानंद॥




“मैंने अक्सर सुना है समय हर घाव को ठीक कर देता है। वक्त हर जख्म को भर देता है,वगैरह वगैरह।”……

मैं इसमें कुछ जोड़ना चाहता हूँ, की ऐसा नही है समय सिर्फ जख्म ही भरता है। समय अपने साथ अच्छी यादे, प्रेम, खुशियां, प्राथमिकता वगैरह को भी बदल देता है। उदाहरण के लिए आज से 10 साल पहले आपके लिए कोई प्राथमिकता स्वरूप रहा होगा, पर आज वो नही है। आज उसकी जगह कोई और है। कल को आपको किसी से प्रेम था, आज किसी और से है। वस्तुतः समय अपने साथ कुछ नही करता, किंतु हम समय के साथ बदल जाते है और मुझे लगता है कि ये बदलाव ही जिंदगी है। जो नही बदल पाते होंगे वो या तो आत्महत्या कर लेते होंगे या फिर साधु-वाधु बन जाते होंगे।

जब हम बच्चे होते है तो माँ हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण होती है। जब जवान होते है तो प्रेमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। विवाह के बाद पत्नी और माता-पिता बनने के बाद बच्चे महत्वपूर्ण हो जाते है। ये बदलाव ही जिंदगी है।

मैं अभी कुछ दिन पहले सोच रहा था कि लोग बदल क्यो जाते है। फिर मेरे अंदर से मेरे मन ने कहा कि तुम्ही कौन से वही हो जो तुम थे? लोग बदल क्यो जाते है ये हम तब कहते है जब हम किसी अपने भूतकाल के महत्वपूर्ण व्यक्ति को खुशियां बाँटते, मनाते देखते है। फिर हमारा अहम इस बात को मानने को तैयार नही होता कि ये व्यक्ति मेरे बिना भी खुश हो सकता है। क्योंकि हम उसे उसी रूप में देखते है जिस रूप में जिस हाल में छोड़ा था। इसलिए हम उससे वही उम्मीद रखते है जो 10 साल पहले रखते थे। जब हम उसके बिना हँसते है, किसी उत्सव में शामिल होते है तब ये बात भूल जाते है, की हम भी तो वही कर रहे है। तो ये जो भी है ये बदलना नही, हमारे अपने अंदर की ईष्या होती है, की कोई मेरे बिना खुश है तो कैसे है? क्योंकि अपने आपको सब सिकन्दर ही समझते है। जैसे सल्लू भाई के फैन सब अपने आप मे एक सलमान खान ही है। 

भावार्थ यह है कि किसी भी बात के लिए समय को कोसने से कोई फायदा नही। ये जो भी हुआ है या हो रहा है वो सब आपकी ही किसी न किसी कार्य का परिणाम है। चाहे वो प्रत्यक्ष रूप में हो या अप्रत्यक्ष रूप में। तुलसीदास जी की अदभूत कृति रामचरितमानस में एक चौपाई है जो बहुत ही फिट बैठती है इस बात पर—

“कर्म प्रधान विश्व करि राखा। 
जो जस करई सो तस फल चाखा।”

अर्थात- इस विश्व को, समस्त संसार ने कर्म से बाँध रखा है, इसलिए जो जैसा करता है वैसा ही उसको मिलता भी है। जैसे हम चाह कर भी समय से अलग नही हो सकते, वैसे ही चाह कर भी कर्म से अलग नही हो सकते। हम किसी न किसी रूप में कर्म करते रहते है, जिसका परिणाम विश्व को तुरंत और हमे बाद में मिलता रहता है।

अच्छा लगता हैं के तुम पढ़ते हो मुझे..!!
जाहिर नही होने देते, ये अलग बात है….❤️

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