Thursday, 14 July 2022

अंहकार


एक पौराणिक कथा है - कामदेव पर विजय प्राप्त करने के उपरांत देवर्षि नारद अहंकार से ग्रस्त हो गए थे। 'मैंने कामदेव को जीता, कामदेव मुझसे पराजित हो गया' कहते हुए वह तीनों लोकों में भ्रमण करने लगे थे। उनका यह अंहकार किसी को भी अच्छा नहीं लगा, लेकिन सभी चुप थे। अंततः सर्वशक्तिमान विष्णु ने नारद को सबक सिखाने के उद्देश्य से नारद के चेहरे को वानर के चेहरे में बदलकर उन्हें हास्यास्पद स्थिति में ला दिया। 




'मैं' शब्द अंग्रेजी में 'आई' कहलाता है। कैपिटल शब्द 'आई' एक सीधे डण्डे की तरह होता है। जब भी कोई 'आई' कह कर घमंड का इजहार करता है, 'आई' दीवार बन जाता है। जिस पल व्यक्ति में घमंड आता है वह 'मैं' 'मैं' करने लगता है। 'आई' शब्द को लिटा देने पर वह 'डेश' (हलंत) बन जाता है, ये दो शब्द बिछडे़ हुए साथियों को पुल की तरह जोड़ने का काम करते हैं।

मुझे पिछले कुछ महीनों से यह एहसास होने लगा था कि 'प्रचार का नशा' धन के नशे से कम नहीं  होता। स्वयं के प्रचार का नशा एक मंदिर में रहने वाले निर्धन को उतना ही आनंदित करता है, जितना धन का नशा एक महल में रहने वाले धनिक को।

महात्मा गांधी की जीवनी मैंने एकाग्रता से पढ़ी है, लेकिन संपूर्ण गांधी दर्शन में किसी भी स्थान पर मुझे बापू के अंहकार की झलक नहीं दिखी। बापू बिना किसी प्रचार के, अंतर्मन से सेवा कार्य में जुटे रहते थे। उच्छिष्ट तक की सफाई से उन्होंने परहेज नहीं किया। दशानन के अंदर भी अहंकार की भीषण ज्वाला थी, लेकिन कालचक्र के बीच प्रभु श्री राम ने उसके अहंकार का दमन किया। लेकिन यह कभी नहीं कहा कि मैंने रावण का वध कर दिया।

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