किसी ने क्या खूब कहा है, जो सुनने योग्य नहीं है, उसे सुनना मत। जो छूने योग्य नहीं है, उसे छूना मत। जितना जीवन में जरूरी है, आवश्यक है, उससे पार मत जाना। और आप अचानक पाओगे, आपके जीवन में शांति की वर्षा होने लगी।
अशांत आप इसलिए हो कि जो गैर-जरूरी है उसके पीछे पड़े हो। जो मिल जाए तो कुछ न होगा, और न मिले तो प्राण खाए जा रहा है। गैर-जरूरी वही है जिसके मिलने से कुछ भी न मिलेगा, लेकिन जब तक नहीं मिला है तब तक रात की नींद हराम हो गई है। तब तक सो नहीं सकते, शांति से बैठ नहीं सकते, क्योंकि मन में एक ही उथल-पुथल चल रही है कि घर में दो कार होनी चाहिए।
♦️जनकपुर का उद्भव-
विदेह राज्य के संस्थापक मिथि के वंश में महाराज शिरध्वज २२वे जनक थे जो बहुत बड़े विद्द्वान भी थे। मिथिला में आये अकाल से निजात पाने के लिए ऋषि-मुनियों के सुझाव पर खेत में उन्होंने हल चलाये, हल जोतने के क्रम में उन्हें खेत से एक नन्हीं लड़की मिली। इस नन्हीं सी लडकी को उन्होंने अपनी पुत्री माना। यही पुत्री आगे चलकर सीता एवं जानकी कहलायी। रामायण-महाभारत जैसे प्राचीन ग्रन्थों में राजा जनक की राजधानी का नाम मिथिला बताया गया है, जनकपुर नहीं।
विद्यापति की प्रसिद्ध ग्रन्थ भू-परिक्रमा में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि जनकपुर से सात कोश दक्षिण में महाराज जनक का राजमहल था जो पोखरौनी, बेन्गरा आदि गाँव में पड़ता है। जिसे लोग विदेहों की मिथिलापुरी नहीं मानते हैं। बाल्मीकि रामायण के अनुसार, अहिल्या स्थान से उत्तर की दिशा में स्थापित मिथिला नगरी को जनकपुर मानते हैं।
जनकपुर की प्रसिद्धि कैसे हुई तथा लोग कैसे राजा जनक की राजधानी मानने लगे इस सम्बन्ध में एक सुनी हुई कहानी प्रसिद्ध है जनक वंश का पतन महाराज कराल जनक के शासन काल से ही शुरू हो गया था। इसका वर्णन सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री कौटिल्य ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक अर्थशास्त्र में भी किया था। उन्होंने ने इस पुस्तक में लिखा है कि महाराज कराल जनक एक बार कामांध होकर एक ब्राम्हण की कन्या से जबरदस्ती मिलन किया था जिसके परिणामस्वरुप वह अपने बन्धु-बांधवों के साथ मारा गया।
इस तथ्य को अश्वघोष ने भी अपनी पुस्तक वुद्ध चरित्र में बर्णन किया है। कराल जनक के बाद जितने भी जनक वंशी बच गए वे सब निकटवर्ती तराई जंगल में छिप गए। इन लोगों के जनक वंशी होने के कारण इस जगह को जनकपुर कहा जाने लगा।
♦️सीता स्वयंबर-
रामायण के अनुसार जनक राजाओं में सबसे प्रसिद्ध सीरध्वज जनक हुए। वे शिव के बहुत बड़े भक्त थे, उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान् शिव ने उन्हें अपना धनुष दिया था। यह धनुष बहुत ही भारी था। जनक की पुत्री सीता एक धर्म परायण थी। महाराज जिस स्थान पर पूजा पाठ करते थे, उस स्थान की साफ़ सफाई सीता स्वयं करती थी।
एक दिन महाराज जनक जब पूजा करने के लिए आये तो उन्होंने देखा कि सीता उष शिव धनुष को बांयी हाथ से उठा कर पूजास्थल की साफ़ सफाई कर रही है। इस दृश्य को देख कर जनक जी अचंभित हो गये कि आज तक इस शिव धनुष को कोई उठा पाया था, उसे एक सुकुमारी कन्या ने कैसे उठा लिया, उसी समय जनक ने यह प्रतिज्ञा किया कि जो व्यक्ति इस शिव धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा देगा उसी के साथ अपनी पुत्री का विवाह कर दूंगा।
अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार राजा जनक ने यग्य का आयोजन किया, इस यग्य में विश्व के सभी राजा, महाराजा, राजकुमार तथा वीर पुरुषों को आमंत्रित किया गया। अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र राम और लक्ष्मण भी अपने गुरु विश्वामित्र के साथ पधारे। अब शिव धनुष पर प्रत्यंचा चढाने की बारी आयी। एक-एक कर सभी राजा एवं महाराजाओं ने धनुष पर प्रत्यंचा चढाने की कोशिश की, लेकिन धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने की बात तो दूर, धनुष को हिला भी नहीं सका, इस स्थिति को देख कर राजा जनक बहुत ही दुखी हुए।
गुरु की आज्ञा पर रामचंद्र ने शिव धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने को चले। जैसे ही उन्होंने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई, धनुष तीन टुकड़ों में टूट गया। जनक नंदिनी जानकी जी का श्री रामचन्द्र के साथ माघ मास के शुक्ल पंचमी को विवाह सम्पन्न हुआ। कालान्तर में त्रेताकालीन जनकपुर का विलोप हो गया।
करीब साढ़े तीन सौ साल के बाद एक महात्मा शुरकिशोर दास ने जानकी जी की जन्म स्थान का पता लगाया और उनकी मूर्ति की स्थापना कर पूजा शुरू कर दी। इसके बाद ही आधुनिक जनकपुर विकसित हुआ। जनकपुर भारत के बिहार राज्य के सीतामढ़ी, मधुबनी और दरभंगा से बहुत ही नजदीक है।
♦️जानकी मंदिर-
जनकपुर में एक ऐतिहासिक स्थल है जो जानकी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। मंदिर की वास्तु हिन्दू-राजपूत वास्तुकला है जो महत्वपूर्ण राजपूत स्थापत्य शैली का उदाहरण है। यह मन्दिर ४८६० वर्गफीट क्षेत्र में फैला हुआ है। मंदिर के प्रांगण एवं इसके आसपास के क्षेत्र में १५५ सरोवर एवं कुंड हैं। जिसमे सबसे महत्वपूर्ण एवं पवित्र सरोवर एवं कुंड गंगासागर, परशुराम कुंड एवं धनुष सागर हैं।
जानकी मन्दिर का निर्माण १९११ ई० में भारत के टीकमगढ़ की महारानी वृषभानु कुमारी ने पुत्र प्राप्ति के लिए करवाया था। मन्दिर निर्माण होने के एक वर्ष के भीतर ही वृषभानु कुमारी को पुत्र प्राप्त हुआ। मन्दिर निर्माण के लिए वृषभानु कुमारी ने नौ लाख रूपये का संकल्प किया था। यही कारण है कि जानकी मंदिर को नौलखा मन्दिर भी कहा जाता है।
क्रमशः——
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