Monday, 13 June 2022

को नहीं जानत है, महत्व नाक का


आपने सोचा हम सबसे ज्यादा कठोर, सबसे ज्यादा निर्दयी किस पर होते हैं ? मेरे हिसाब से शाय़द खुदपर , हां जितनी चोट हम खुद को पहुंचाते हैं उतना ना हम किसी को पहुंचा सकते हैं और ना हमें कोई। कभी खुद की हरकतों से, कभी किसी और के कड़वे बातों से तो कभी अपनी आशा के अनुरूप कोई काम ना कर पाने से, हम खुद को इतना परेशान कर देते हैं कि चीजें सही होते हुए भी हमें दिखाई नहीं देती, रास्ते सामने होते हुए भी हम तलाश में बंजारों की तरह भटकते रहते हैं। जिंदगी के उतार-चढ़ाव, भागमभाग में और लोगों के बारे में सोचते सोचते कोई पीछे छूट जाता है तो वो हैं हम खुद। 
मैं मानता हूं स्वयं पर कठोर होना जरूरी होता है काफी समय, पर हमेशा खुद को यूं परेशान करना हमें खुद से मिलने ही नहीं देता कभी, उस खुबसूरती को देखने से रोकता है जो सच में है हमारे अंदर 
तो क्यों खुद को इतना सताना, क्यों ना एकबार खुद को सारी गलतियों के लिए माफ कर के देखा जाए, एक बार खुद को खुद ही तसल्ली दी जाए ठीक है यार होता है, खुद पर थोड़ा नरम हुआ जाए, थोड़ा समय अपने साथ, उन सभी चीजों के साथ जो पसंद तो है पर हमने करना छोड़ दिया समय के दवाब में या और  किसी भी कारण से, थोड़ा खुद को सहेज कर, थोड़ी खुद से नाराज़गी खत्म कर देखें की क्या होता है। हो सकता है हमारी समस्याएं फिर भी ना सुलझे पर हम उस इंसान से मिल पाएंगे जिसे हमने अपने अंदर कहीं दबा दिया है शायद। आज ऐसे ही एक मुद्दे पर अपनी एक पुरानी साथी से हुई वार्तालाप का कुछ महत्वपूर्ण अंश आपसे सांझा कर रहा हूँ उम्मीद है आप पसंद करेंगे —



नाक चेहरे का महत्वपूर्ण अंग है जिसके ऊपर चश्मे के साथ साथ ऊंचे सामाजिक स्तर को संभाले रखने की जिम्मेदारी भी है। दुःख की बात ये है कि मेरी नाक बनाते वक्त भगवान जरा भी सीरियस नही थे। कभी-कभी तो लगता है भगवान जी ने अपने जीवन साथी से तू-तू मैं मैं के बाद ही मेरी रचना की अर्थात गुस्से में थोप-थाप कर धर दिया तभी तो पूरे चेहरे पर एक भी चीज ढंग की नही लगाई। मुझे बड़ी आंखें पसंद हैं तो चीया मटर सी छोटी छोटी आंखे लगा दी और देखो नाक इतनी बड़ी कर दी कि उसने पूरे चेहरे पर अपना आधिपत्य जमा रखा है। होंठ अलग ही अफ्रीकन से मोटे हैं पर दुख नाक को देखकर ज्यादा होता है जो सबसे ऊंची सबसे मोटी नजर आती है।
पतली सुतवा नाक देखकर ठंडी सांस लेते हम हर रात सपना देखते कि सुबह उठे तो इंदिरा गांधी या नर्गिस जैसी नाक हो जाए। कभी कभी तो इस साढ़े सात सौ ग्राम की नाक को छीलने की इच्छा भी जागी बस हिम्मत न हुई। जब सुना कि नाक की सर्जरी होने लगी है तो जेब की हालत फटेहाल थी और जब जेब की हालत सुधरी सोच ऐसी हो चुकी थी कि हमें कौन सा हिरोइन बनना है। 

मुझे लगता था मोटी हो जाऊंगी तो गाल गुलगुले हो जायेंगे तो नाक पतली दिखेगी लेकिन ये कमबख्त मुंह के अनुपात में ही बढ़ रही है और पकोड़े से समोसा बन चुकी है। कभी कभी लगता है बस गोरा रंग दे दिया बाकी तो सब जल्दबाजी में थोपा और भाग लिए। वो तो समाज के लोगों को गोरे रंग से प्रेम है सो ब्याह गए वरना कौन इस थोबड़े को पसंद करता।

मुझे पसंद है सांवला रंग और तीखे नैन नक्श और मिला उससे उलट पर कर क्या सकते हैं? नाक का सवाल है सो उसे संभाल रहे हैं। भगवान ने बेटी भी नही दी जिसकी वजह से नाक कटने का डर हो जैसे मेरी मां को होता था हर वक्त जब वो कहती थी " मेरी नाक मत कटवा दीजो " और मैं सोचती इतनी सुंदर नाक मिली है खुद को और जिम्मेदारी मुझे दे रखी है संभालने की। हमारे दर्द को कहां समझा किसी ने शीशा देखने से भी डरते हम बस दर्द भरे नग्मे गाते हैं। 

बातों का सिलसिला कुछ पल के लिए रुका ही था कि मेरे फोन की घंटी बज उठी, उसने मानो मेरी तंद्रा तोड़ी हो। दोस्त की दर्द व बातें सुन मन भारी हो चला, गला कुछ बैठ सा गया। मैंने फोन काट दिया। फोन फिर बेचैन हो चिल्लाने लगा तो चुटकी लेते हुए दोस्त ने मुस्कुराते हुए कहा, ले लो कॉल तुम्हारी गर्लफ़्रेंड परेशान हो रही होगी। अनजान नम्बर था सोचा नही बात करता फिर कटाक्ष पर प्रमाण न मिले इस बात के लिये फोन रिसीव किया। 

मैंने फोन रिसीव करते ही भारी मन से कहा - हैलो… (अभी गले में कुछ भारीपन खुद मुझे भी लग रहा था)

सामने से जो आवाज़ आयी उसे सुनकर में चौका और मैंने फोन स्पीकर पर ले लिया। अब हम दोनो दोस्त उस अनजान कॉल सुनने लगे। 

पापा………..
रोने की आवाज़…..
पापा प्लीज... … 
फोन मत रखना.... 

मैं जानती हूं मैंने आपका विश्वास तोड़ा है, लेकिन मैं बहुत पछता रही हूं कि क्यों आपको छोड़कर अपने घर से भागकर मुंबई आ गयी। 
मैं यहां बहुत परेशान हूं पापा…
मैं तुरंत घर लौटना चाहती हूं 
पापा प्लीज… 
एक बार … 
सिर्फ एक बार कह दीजिए कि आपने मुझे माफ कर दिया कहते हुए वह बार-बार सुबक रही थी। उसने फोन पर हैलो सुनते ही गिड़गिड़ाना शुरू कर दिया था। 

उसका रोना सुन खुद को न रोक पाते हुये मैंने कहा तुम कहां हो बेटी?
तुम ... 
तुम जल्दी ही घर लौट आओ मैंने तुम्हारी सब गलतियां माफ कर दी
यह कहकर मैंने फोन रख दिया। 

अब यह सुन मेरी दोस्त जोर से हंसते हुये कहने लगी पचास साल का कुँवारा-प्रौढ़ जिसकी शादी ही नहीं हुई तो यह बेटी कहां से आ गई ....

लेकिन तत्काल मुस्कुराते हुए जवाब दिया, कि किसी भटकी हुई लड़की ने यहां रांग नंबर डायल कर दिया था बहरहाल.... मुझे तो  इस बात की खुशी है कि मेरी आवाज उस लड़की के पिता से मिलती - जुलती थी और मैंने उसे रांग नंबर कहने की बजाय ठीक ही जवाब दिया था शायद मैं इस बहाने से एक पिता और बेटी के मिलन का जरिया जो बन गया, वरना ना जाने भटकाव के चलते उस बेटी के साथ-साथ उस पिता की जिंदगी भी बर्बाद हो जाती। 

आज हमारे समाज को परिवार व अपनत्व को समझने-समझाने की आवश्यकता आन पड़ी है। हमें सिर्फ खुद से मतलब रह गया है। जहां तक मैं समझ पाया हूँ कि एक पिता की नाक उसके बच्चे ही सम्भाल कर रखते हैं। पर आज के समाज में एक जाति-धर्म के नाम पर उलटी गंगा भी बह रही है जाने वो कितनों की नाक ले बहेगी। 

इस फोन कॉल के बाद हमारी चर्चा दूसरी ओर मुड़ चली थी, फिर चाय पी कर मैंने अपनी दोस्त से दुबारा मुलाक़ात का वादा कर बिदा लिया।

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