Thursday, 16 June 2022

जनक नंदिनी माता जानकी का नौलखा मंदिर- I






“मैं जो कुछ भी लिख रहा हूँ, वो महज़ ली हुई साँसें हैं। की हुई बातें हैं। साथ–साथ देखा शरद व पूनम का चाँद है, जागती रातें हैं। उन जागती रातों की कुछ करवटें हैं, भागती सुबहें हैं, अलसायी गर्म दुपहरियाँ हैं। उदास शामें हैं, भारी बरसात है। उसमें किया हुआ इंतज़ार है। जिया हुआ साथ है और हैं, तुम्हारे स्पर्श में लिपिबद्ध चंद अक्षर।”

आइये आपको मिथिलांचल ले चलता हूँ, अभी कुछ दिन पूर्व यात्रामे था। सोचा कुछ जानकारियां आपके साथभी सांझा कर, इसी क्रम मे एक प्रयास.....

जब हम कोसलपुरी अयोध्या का नाम लेते हैं, उस समय विदेह-पुरी मिथिला का भी स्मरण हो आता है। ये दोनों ही धार्मिक पुरियाँ हर काल में हमारे लिए प्रेरणा एवं संबल का स्रोत रही हैं। यह वर्तमान में उत्तरी बिहार और नेपाल की तराई का इलाक़ा है जिसे मिथिला या मिथिलांचल के नाम से जाना जाता था। मिथिला की लोकश्रुति कई सदियों से चली आ रही है जो अपनी बौद्धिक परंपरा के लिये भारत और भारत के बाहर जाना जाता रहा है। इस इलाके की प्रमुख भाषा मैथिली है। धार्मिक ग्रंथों में सबसे पहले इसका उल्लेख रामायण में मिलता है। बिहार-नेपाल सीमा पर विदेह (तिरहुत) का प्रदेश जो कोसी और गंडकी नदियों के बीच में स्थित है। इस प्रदेश की प्राचीन राजधानी जनकपुर में थी। मिथिला का उल्लेख महाभारत, रामायण, पुराण तथा जैन एवं बौद्ध ग्रन्थों में हुआ है।



रामायण-काल-
रामायण-काल में यह जनपद बहुत प्रसिद्ध था तथा सीता के पिता जनक का राज्य इसी प्रदेश में था। मिथिला जनकपुर को भी कहते थे। [1] अहिल्याश्रम मिथिला के सन्निकट स्थित था।

वाल्मीकि रामायण [2] के अनुसार मिथिला के राज्यवंश का संस्थापक निमि था। मिथि इसके पुत्र थे और मिथि के पुत्र जनक। इन्हीं के नाम राशि वंशज सीता के पिता जनक थे। हमारे साहित्य एवं मौखिक परम्पराओं में मिथिला के राजा जनक उतने ही जीवित हैं, जितना कि अयोध्या के राजा दशरथ। वे अपनी दार्शनिक अभिरुचि तथा अनासक्ति के लिये प्रसिद्ध थे।


रामायण के अनुसार मिथिला के नागरिक शिष्ट एवं अतिथिपरायण थे। इस ग्रन्थ के अनुसार महर्षि विश्वामित्र राम एवं लक्ष्मण को साथ लेकर चार दिनों की यात्रा करने के पश्चात् मिथिला पहुँचे थे। जनकपुर प्राचीन विदेह राज्य की राजधानी थी। यह एक ऐसा रमणीक और पवित्र स्थान है जिसका वर्णन धर्मग्रंथों, काव्यों एवं रामायण में भी किया गया है। वर्तमान में यह नगर नेपाल देश में स्थित है। इसी जगह भगवान् राम एवं आदर्श नारी सीता का विवाह संपन्न हुआ था] यहीं पर माता जानकी का विशाल मन्दिर है। जनकपुर में वैसे तो दर्जनों तालाब हैं लेकिन उनमे से दो तालाब बहुत ही प्रसिद्ध हैं - एक गंगा सागर तालाब और दुसरा धनुषा सागर तालाब।

भगवान राम ने वनवास से पहले भी यात्रा की और वह यात्रा की थी ब्रह्मर्षि विश्वामित्र के साथ। इस दौरान कई लोगों का कल्याण करते हुए जब वे मिथिला प्रदेश में पहुंचे तो राजा जनक खुद को धन्य समझने लगे। उस वक्त मिथिला की राजधानी जनकपुर थी, जो कि अब हमारे पड़ौसी देश नेपाल में है। राजा जनक सीताजी के पिता थे। सीता माता का जन्मस्थल यह जनकपुर आज भी भारत और नेपाल की सीमा के नजदीक मौजूद है।
धनुष यज्ञ में दुनियाभर के राजा, महाराजा, राजकुमार तथा वीर पुरुषों को आमंत्रित किया गया था। समारोह देखने गए रामचंद्र और लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्रजी के साथ वहीं उपस्थित थे। जब धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने की बारी आई तो वहां उपस्थित किसी भी व्यक्ति से धनुष हिला तक नहीं। इस स्थिति को देख राजा जनक दु:खी हो गए और बोलने लगे कि क्या धरती वीरों से खाली है। राजा जनक के इस वचन को सुनकर लक्ष्मण के आग्रह और गुरु की आज्ञा पर रामचंद्र ने जैसे ही धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई वैसे ही धनुष तीन टुकड़ों में बंट गया। इसके बाद भगवान राम और जनक नंदिनी जानकी का विवाह माघ शीर्ष शुक्ल पंचमी को जनकपुर में हुआ। भगवान राम के साथ ही उनके भाइयों का विवाह भी सीताजी की बहनों के साथ ही हुआ।


कहते हैं कि त्रेता युग के समय के जनकपुर का लोप हो गया था। करीब साढ़े तीन सौ वर्ष पूर्व महात्मा सूरकिशोर दास ने जानकी के जन्मस्थल का पता लगाया और मूर्ति स्थापना कर पूजा प्रारंभ की। यहां जानकी मंदिर है। सीताजी का स्वयंवर इसी मंदिर में हुआ था। पास ही एक मंदिर है राम-सीता विवाह मंडप, जिसमें राम और सीता का विवाह हुआ था।

यह मंदिर नौलखा मंदिर के नाम से जाना जाता है। ये मंदिर सन् 1910 में बना था, जिसकी लागत 9 लाख रुपए आई थी। यहां सूरकिशोरदास को 1657 में सीता की सोने की मूर्ति और उनकी फोटो मिली थी, उसी जगह पर ये मंदिर बनवाया गया है। अब जल्द ही जनकपुर में माता सीता की 151 फुट की प्रतिमा बनाई जाएगी। अमेरिका की संस्था मैथिली दिवा और नेपाल सरकार के सहयोग से बनाई जा रही इस प्रतिमा की लागत करीब 25 करोड़ रुपए आएगी।

जनकपुर नेपाल की राजधानी काठमांडू से 400 किलोमीटर दक्षिण पूर्व में बसा है। इससे करीब 14 किलोमीटर के बाद पहाड़ शुरू हो जाता है। यहां जाने के लिए बिहार से तीन रास्ते हैं। पहला जयनगर से रेल मार्ग है, दूसरा सीतामढ़ी जिले के भिठ्ठामोड़ से और तीसरा मार्ग मधुबनी जिले के उमगांउ से बस का है। बिहार के दरभंगा, मधुबनी एवं सीतामढ़ी जिले से इस स्थान पर सड़क मार्ग से पहुंचना आसान है। पटना से इसका सीतामढ़ी होते हुए सीधा सड़क संपर्क है और इसकी दूरी 140 किलोमीटर है।


गौरतलब है कि जनकपुर क्षेत्र के रीति-रिवाज बिहार राज्य के मिथिलांचल जैसे ही हैं। भारतीयों के साथ ही अन्य देश के लोग भी बड़ी संख्या में यहां आते हैं। अधिकतर सैलानी भारतीय इलाके के मिथिला क्षेत्र से होते हुए नेपाल के मिथिला में प्रवेश कर माता सीता के जन्मस्थल पर दर्शन के लिए जाते हैं।




क्रमशः——

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