Thursday, 23 June 2022

(III) मिथिला में अभी भी बारातियों, दूल्हे और समधियों को ‘गाली’ दिए बिना विवाह को संपन्न नहीं माना जाता है।



प्रेम कभी किसी पुरस्कार की अपेक्षा नहीं करता, कृतज्ञता की भी नहीं। अगर कृतज्ञता दूसरी तरफ से आती है, तो प्यार हमेशा हैरान होता है - यह सुखद आश्चर्य है, क्योंकि कोई उम्मीद नहीं है।


यहाँ दृष्टिकोण है: जो कुछ भी अस्तित्व आपको देता है, वह आपकी आत्मा की सूक्ष्म आवश्यकता होनी चाहिए, अन्यथा यह आपको पहले स्थान पर नहीं दिया जाता।

यह सारा जीवन एक अपरिचित देश है। हम एक अज्ञात स्रोत से आते हैं। अचानक हम यहाँ हैं, और एक दिन अचानक हम नहीं रहे, हम फिर से मूल स्रोत पर वापस आ गए हैं। बस कुछ दिनों का सफर है, इसे यथासंभव आनंदमय बनाएँ। लेकिन हम इसके ठीक विपरीत काम करते रहते हैं - हम उसे जितना संभव हो उतना दुखी करते हैं। हमने अपनी सारी ऊर्जा उसे और अधिक दुखी करने में लगा दी।

“तुम कौन हो? - मुझे पता नहीं है। कभी पता चले तो बताना जरूर।"


♦️विवाह मंडप (धनुषा)-
विवाह पंचमी के दिन इसी मंडप में राम-जानकी का विवाह बहुत ही धूम- धाम से किया जाता है। यह विवाह मंडप जनकपुर से १४ कि० मि० दूर धनुषा नामक जगह पर स्थित है। भगवान् रामचंद्र ने इसी जगह पर शिव धनुष तोड़ा था। जिसका अवशेष आज भी पत्थर के रूप में स्थित है। विवाह पंचमी के अवसर पर नेपाल के मूल निवाशियों के साथ ही पुरे भारत वर्ष से श्रद्धालु उपस्थित रहते हैं। 
विवाह मंडप के चारों ओर छोटे-छोटे कोहबर हैं जिसमे सीता-राम, मांडवी-भरत, उर्मिला-लक्ष्मण एवं श्रुतिकृति-शत्रुघ्न की मूर्तियाँ स्थापित की गयी हैं। राम-मन्दिर के बारे में यह जनश्रुति है कि शुरकिशोर दास जी ने अनेक दिनों तक एक गाय को वहां दूध बहाते देखा था। कहा जाता है कि भूमि की कुंड से शिशु सीता को दूध पिलाने के लिए कामधेनु गाय ने दूध की धारा बहाई। दूध की धारा से वहां दूधमती नदी बन गयी। वहां जब खुदाई कराई गयी तो खुदाई में राम की मूर्ति मिली। वहां पर एक कुटिया बना कर उसका प्रभार एक संन्यासी को सौंपा गया और यह परम्परा आजतक कायम है अर्थात राम मन्दिर के महंथ सन्यासी ही होते आ रहे हैं। इसके अतिरिक्त जनकपुर में बहुत ही कुंड हैं जिसमे से प्रसिद्ध हैं रत्ना सागर, अनुराग सरोवर एवं सीता कुंड। 
जनकपुर में एक संस्कृत विद्यालय और एक विश्वविद्यालय भी है। विद्यालय में छात्रों के लिए भोजन तथा रहने की व्यवस्था निःशुल्क है। इस संस्कृत विद्यालय को ज्ञानकूप के नाम से भी जाना जाता है। 


♦️हास्य व्यंग करने की चली आ रही है परंपरा-
महिलाएँ जगद्गुरु को समधी कह संबोधित कर रही हैं, इसके पीछे भी एक प्रसंग है। दरअसल रामचरित मानस में वर्णन है कि जब भगवान श्री राम की बारात मिथिला पहुँची तो साथ में गुरु वशिष्ठ भी थे, तो वहाँ की महिलाओं ने बारातियों और गुरु वशिष्ठ से हास्य-व्यंग्य किया और उनको ‘गालियाँ’ सुनाईं। हालाँकि यह प्रथा विलुप्त सी होती जा रही है, लेकिन मिथिला में अभी भी बारातियों, दूल्हे और समधियों को ‘गाली’ दिए बिना विवाह को संपन्न नहीं माना जाता है।
शादी के लिए आए बाराती को गाली देना शुभ शगुन माना जाता है और घर में भी रौनक बनी रहती है। बाराती भी इसे गलत तरीके से नहीं लेते हैं। वह भी इसका आनंद लेते हैं। इसके पीछे उनका अपार प्रेम छुपा होता है। मिथिला में जमाइ (दूल्हा) और समधी (दूल्हे के पिता) को सम्मान भी उतना ही दिया जाता है।



क्रमशः——

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