क्या गजब की बला है क्वारंटाइन? कहाँ से हुई थी क्वारंटाइन की शुरुआत?
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महामारियों से गुजरना साक्षात् मौत की सुरंग को पार करने जैसा होता है। हवाओं में तैरते, धूल-मिट्टी में छिपे या पानी में घुले और स्पर्श से जीवनदान पाते सूक्ष्म रोगाणुओं को हल्के में नहीं लिया जा सकता। इनकी वजह से बड़े पैमाने पर फैलने वाले रोग जब महामारियों का रूप धरते हैं तो गाँव, शहर और कस्बे तो क्या कई बार पूरी सभ्यता की तबाही का कारण बनते हैं।
एथेंस में फैली प्लेग के बारे में आप जानते होंगे कि कैसे एक विशाल साम्राज्य को निगल गई थी यह महामारी। ऐसी तबाहियों ने ही इंसानों को रोगों से बचाव की रणनीतियों के मंत्र सौंपे। और तब हमें मिले लॉकडाउन तथा क्वारंटाइन जैसे उपाय जो आज भी उतने ही कारगर हैं जितने सदियों पहले थे।जब-जब इनका पालन सही समय पर और उचित रीति से हुआ, वहां बीमारियों पर जल्दी काबू पा लिया गया और जहां-जहां चूक हुई या ढिलाई बरती गई, उन जगहों पर बहुत भयंकर परिणाम भुगतने पड़े।‘सोशल डिस्टेन्सिंग’ और लॉकडाउन—
स्पेनिश फ्लू से भी पहले 1896 में भारत पहुंच चुकी थी बुबोनिक प्लेग। चीन के युन्नान प्रांत से हांगकांग होते कारोबारी जहाज़ों पर लदकर इसने पश्चिम में बंबई के तट पर दस्तक दी थी। शुरू में व्यापारिक हितों को प्रभावित न होने देने के मकसद से अंग्रेज हुकूमत ने बंदरगाहों पर जहाजी बेड़ों की आवाजाही जारी रखी लेकिन जब कुछ ही महीनों में महामारी ने विकराल रूप धारण कर लिया तो हारकर सरकार को महामारी अधिनियम 1897 बनाना पड़ गया। जगह-जगह इसी कानून का शिकंजा तेज़ कर रोग पर नियंत्रण की तैयारी की गई।
इसी कानून की बानगी देखिए तत्कालीन महाराष्ट्र में आयोजित होने वाली एक धार्मिक यात्रा पर प्रतिबंध का आदेश सुनाने वाले इस आदेश में—
आदेश यह समझने के लिए काफी है कि सवा सौ साल पहले भी ‘सोशल डिस्टेन्सिंग’ का पालन करवाने के लिए प्रशासन को ‘लॉकडाउन’ करना पड़ा था–
कहाँ से हुई थी क्वारंटाइन की शुरुआत?—
संक्रमण रोकने के लिए इन्हें फैलाने वाले जीवाणुओं, विषाणुओं या दूसरे रोगाणुओं की जीवन-लीला को विराम देना होता है और यह तभी मुमकिन है जब उन्हें शिकार न मिलें। एक से दूसरे शरीर पर कूदने वाले, दूसरे से तीसरे-चौथे बदन को धराशायी करते हुए एक-एक कर कितने ही कस्बों-शहरों को अपना शिकार बना चुकने के बाद ये अदृश्य ‘दरिंदे’ भौगोलिक सीमाओं को ठेंगा दिखाकर परेदस जा पहुंचते हैं।
पहले जमाने में जब देशों के बीच आदान-प्रदान सिर्फ समुद्री मार्गों तक सीमित था, तो संक्रमणों को फैलने से रोकने के लिए विदेश यात्रा से लौटे जहाज़ को नाविकों में किसी रोग के फैलने या आशंका होने पर बंदरगाह से दूर रोक दिया जाता था और वे चालीस दिनों तक इसी तरह खड़े रहते थे। ऐसे रोगी जहाजियों को लेकर लौटने वाले जहाज़ों पर पीला झंडा लहराने की परंपरा भी थी। चालीस (लैटिन – क्वाद्रागिंता) दिन की इसी अलगाव की अवधि ने ‘क्वारंटाइन’ की प्रथा शुरु की। जहाज़ के कप्तान की यह प्रमुख जिम्मेदारी थी कि वह पोत पर लंगर डालने से पहले अपने साथ लौटने वाले नाविकों की सेहत का खुलासा करे और ऐसा न करना जुर्म माना जाता था।
भौगोलिक सीमाबंदी से स्वस्थ आबादी को बचाना—
इतिहास में ऐसे कई वाकयात मिलते हैं जब महामारियों पर अंकुश लगाने के लिए संक्रमितों को स्वस्थ लोगों से अलग-थलग रखा जाता था। बेशक, मध्यकालीन यूरोप में स्वास्थ्यकर्मियों को बैक्टीरिया या वायरस की जानकारी नहीं थी लेकिन वे इतना समझते थे कि रोगी को शेष स्वस्थ आबादी से अलग रखकर, या कारोबारी के जरिए आने वाली वस्तुओं को नहीं छूने से रोगों से बचा जा सकता है। यही उस दौर में ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ और ‘आइसोलेशन’ की बुनियाद थी। हालांकि जब रोग तेजी से फैलने लगते और लोग अफरातफरी में शहर छोड़कर भागने लगा करते थे तो ऐसे में महामारियों का प्रसार और तेजी से होता था।
मध्यकाल में, जिस नगर-कस्बे में महामारी फैलती थी वहां से लोगों को बाहर आने-जाने की मनाही होती थी, और दूसरी जगह से भी लोग वहां नहीं आ-जा सकते थे। अगर बीमारियां जानवरों से फैलने वाली होती तो उन्हें बाड़ों में सीमित रखा जाता ताकि उनके जरिए रोग न फैले। इस सामाजिक दूरी, संक्रमण और संक्रमित से बचकर रहने की सलाह सदियों से दी जाती रही है और मामला जब गंभीर हो जाता है तो ‘लॉकडाउन’ करना पड़ता है। जैसे कोविड-19 महामारी के दौरान किया गया है, दुनिया के देशों ने अपनी-अपनी सीमाएं आवागमन के लिए बंद कर दी हैं, ट्रैवल वीज़ा रद्द हो गए हैं, हर तरह की यात्रा के साधन भी रोक दिए गए हैं ताकि कोरोनावायरस के प्रसार को रोका जा सके। बहुत जरूरी है ऐसे कदम उठाना वरना ढीठ रोगाणुओं से मुक्ति मिलने में कई बार सालों लग जाते हैं, जैसे मध्यकाल में यूरोप में फैलने वाली महामारियों में होता आया था। चौदहवीं सदी में जो प्लेग इस महाद्वीप में दाखिल हुई थी उसने एक या दो नहीं बल्कि अगले चार साल तक लोगों को हलकान किए रखा था। इस महामारी ने अफ्रीका और यूरेशिया में लोगों की नींद उड़ाकर रख दी थी और लाखों लोगों को अपना ग्रास बनाने के बाद पिंड छोड़ा था। अब कोविड-19 नामक महामारी भारतीय सरज़मीं इतिहास क्या होगा? ये तो आने वाला समय ही बताएगा।
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