आज का दौर वाक़ई बहुत कठिन है। कैसे संभला जायेगा इस दौर से ईश्वर ही जाने। घर कहने से हमारे दिमाग के भीतर जो तस्वीर बनती है, उसे नॉस्टेल्जिया में लपेटकर बहुत सारा झूठ कहने-सुनने की हम लोगों को पुरानी आदत है। घर पाखंड के सर्वकालिक लोकप्रिय रूपकों में से एक है।
अब घरों में ज़्यादातर लोग एक दूसरे से बनावटी व्यवहार करते हैं और इसे जानते हुए बेचैन रहते हैं। वहाँ भी सत्ता का विपक्ष सतत तनाव रहता है जो इन दिनों और सघन हो गया होगा। अब परिवार एक स्वार्थी संस्था का नाम है जो अपने दायरे से बाहर के लोगों के बारे में सोचने और कुछ करने से रोकता है। लोग स्वेच्छा से घर में रहते तो और बात होती, लेकिन यहाँ तो मृत्यु के डर से उन्हें बिठाया गया है। जिनके घर नहीं हैं और बाहर भटक रहे हैं, ज़रूर उनके संबंधों में मेरी ज़्यादा दिलचस्पी है। मैं कभी घर में टिका नहीं, क्या बताऊँ कि कैसे रहें! बहुत कठिन सवाल है। आप भी अपने अनुभव सांझा करें-
नॉस्टेल्जिया— घटनाओं की यादें।
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नॉस्टेल्जिया— घटनाओं की यादें।
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