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जब हम अपने घर से बाहर निकलकर बाहरी संसार में अपनी स्थिति जमाते है, तब पहली कठिनता मित्र चुनने में पड़ती है। यदि स्थिति बिल्कुल एकान्त और निराली नहीं रहती तो हमारी जान-पहचान के लोग धड़ाधड़ बढ़ते जाते हैं और थोड़े ही दिनों में कुछ लोगों से हमारा हेल-मेल हो जाता है। यही हेल-मेल बढ़ते-बढ़ते मित्रताप में परिणत हो जाता है। मित्रों के चुनाव की उपयुक्तता पर उसके जीवन की सफ़लता निर्भर हो जाती है। क्योकि संगति का गुप्त प्रभाव हमारे आचरण पर बड़ा भारी पड़ता है। हम लोग ऎसे समय में समाज में प्रवेश करके अपना कार्य आरम्भ करते हैं जबकि हमारा चित्त कोमल और हर तरह का संस्कार ग्रहण करने योग्य रहता है, हमारे भाव अपरिमार्जित और हमारी प्रवृत्ति अपरिपक्व रहती है। हम लोग कच्ची मिट्टी की मूर्ति के समान रहते है जिसे जो जिस रूप में चाहे, उस रूप का करे-चाहे वह राक्षस बनावे, चाहे देवता।
मित्रता वह शब्द है जो इंसान की जिन्दगी में सबसे अधिक महत्व रखता है। कहा जाता है -- सम्बन्धी ऊपर से निर्धारित आते हैं लेकिन मित्र हम स्वयं चुनते हैं। एक ऐसा रिश्ता जिसके साथ हम अपने सुख-दुख बेहिचक बाँट सकते हैं । जिसके साथ झगड़ना भी आनंददायक होता है। जहां हम वह सब कुछ कह सकते हैं - बेहिचक ,इस विश्वास के साथ कि मेरा मित्र मुझे समझेगा और अपनी सही राय बेहिचक देगा। आज मित्रता पर लिखते हुए मुझे कवि बुद्धिलाल पाल जी एक प्यारी सी कविता याद आ रही है जो दोस्ती के महत्व को बड़े ही सुन्दर ढंग से व्याख्यायित कर जाती है ---
दोस्ती —
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सूरज के होने से
चमकता हुआ दिन होता है
चाँद के होने से
शीतल दुधिया चाँदनी
तारों के टिमटिमाते रहने से
रात में भी दिशा ज्ञान होता है
पृथ्वी के घूमते रहने से
बहती हवाएं दिशाएँ बदलती हैं
हिमद्वीपों के होने से
धरती जलमग्न होने से
बची रहती है
समुद्र के होने से
बरसात की बूंदें बची रहती हैं
धरती के भीतर नमी होने से
बची रहती हैं उम्मीदें
कभी - कभी
दोस्त के होने से ऐसा होता है
कि जीवन
व्यर्थ होने से बचा रहता है ।।
सच है, मित्रता ऐसा अनमोल रत्न है जिसके बिना जीवन का सफ़र कठिन हो जाता है और जिसे पा लें तो जीवन की हर मुश्किल आसान। हमारे यहाँ कृष्ण और सुदामा की मित्रता की कहानी काफी प्रसिद्द है। सच्ची मित्रता की पहचान भी यही है कि किसी राजकुमार और एक निर्धन व्यक्ति के बीच भी मित्रता हो सकती है तथा जरुरत पड़ने पर एक सच्चा मित्र अपने मित्र को अपना सब कुछ दे सकता है। इंसान की बात तो रहने दें मित्रता का यह सुन्दर उदाहरण जानवरों में भी देखने /पढने को मिलता है।
महान कथाकार मुंशी प्रेमचन्द जी की कहानी "दो बैलों की कथा " इसका सुन्दर उदाहरण है। इसकी कुछ पंक्तियाँ देखें --
“झूरी क पास दो बैल थे- हीरा और मोती। देखने में सुंदर, काम में चौकस, डील में ऊंचे। बहुत दिनों साथ रहते-रहते दोनों में भाईचारा हो गया था। दोनों आमने-सामने या आस-पास बैठे हुए एक-दूसरे से मूक भाषा में विचार-विनिमय किया करते थे। एक-दूसरे के मन की बात को कैसे समझा जाता है, हम कह नहीं सकते। अवश्य ही उनमें कोई ऐसी गुप्त शक्ति थी,जिससे जीवों में श्रेष्ठता का दावा करने वाला मनुष्य वंचित है। दोनों एक-दूसरे को चाटकर सूँघकर अपना प्रेम प्रकट करते, कभी-कभी दोनों सींग भी मिला लिया करते थे, विग्रह के नाते से नहीं, केवल विनोद के भाव से, आत्मीयता के भाव से, जैसे दोनों में घनिष्ठता होते ही धौल-धप्पा होने लगता है। इसके बिना दोस्ती कुछ फुसफसी, कुछ हल्की-सी रहती है, फिर ज्यादा विश्वास नहीं किया जा सकता। जिस वक्त ये दोनों बैल हल या गाड़ी में जोत दिए जाते और गरदन हिला-हिलाकर चलते, उस समय हर एक की चेष्टा होती कि ज्यादा-से-ज्यादा बोझ मेरी ही गर्दन पर रहे। दिन-भर के बाद दोपहर या संध्या को दोनों खुलते तो एक-दूसरे को चाट-चूट कर अपनी थकान मिटा लिया करते, नांद में खली-भूसा पड़ जाने के बाद दोनों साथ उठते, साथ नांद में मुँह डालते और साथ ही बैठते थे। एक मुँह हटा लेता तो दूसरा भी हटा लेता था। "
कुसंग का ज्वर सबसे भयानक होता है। यह केवल नीति और सदव्रत्ति का ही नाश नही करता, बल्कि बुद्धि का भी क्षय करता है। किसी युवा-पुरूष की संगति यदि बुरी होगी तो वह उसके पैरों में बंधी चक्की के समान होगी जो उसे दिन-दिन अवनति के गड्डे में गिराती जायेगी और यदि अच्छी होगी तो सहारा देने वाली बाहु के समान होगी जो उसे निरन्तर उन्नति की ओर उठाती जायेगी। बुराई अटल भाव धारण करके बैठती है। बुरी बातें हमारी धारणा में बहुत दिनों तक टिकती है।
ह्रदय को उज्ज्वल और निष्कलंक रखने का सबसे अच्छा उपाय यही है कि बुरी संगत की छूत से बचो। यही पुरानी कहावत है कि-
काजर की कोठरी में कैसो हू सयानो जाय,
एक लीक काजर की, लागिहै, पै लागिहै।
ज़िंदगी में आप तब सीखते हैं जब आपको ठोकर लगती है। ठोकर खाकर गिरना जिंदगी नही है उसके बाद ख़ुद को सम्भाल लेना ही जिंदगी है। मैंने भी अपनी जिंदगी में कई बार ठोकरें खायी और खुद को सम्भालते रहे। ईश्वर ना करे किसी की मित्रता को कोरोना की बुरी नजर लगे। यह लेख उन सभी सच्चे मित्रों को समर्पित जिन्होंने जीवन के प्रत्येक मोड़ पर बराबरी से खड़े होकर मेरा साथ दिया।
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चमकता हुआ दिन होता है
चाँद के होने से
शीतल दुधिया चाँदनी
तारों के टिमटिमाते रहने से
रात में भी दिशा ज्ञान होता है
पृथ्वी के घूमते रहने से
बहती हवाएं दिशाएँ बदलती हैं
हिमद्वीपों के होने से
धरती जलमग्न होने से
बची रहती है
समुद्र के होने से
बरसात की बूंदें बची रहती हैं
धरती के भीतर नमी होने से
बची रहती हैं उम्मीदें
कभी - कभी
दोस्त के होने से ऐसा होता है
कि जीवन
व्यर्थ होने से बचा रहता है ।।
सच है, मित्रता ऐसा अनमोल रत्न है जिसके बिना जीवन का सफ़र कठिन हो जाता है और जिसे पा लें तो जीवन की हर मुश्किल आसान। हमारे यहाँ कृष्ण और सुदामा की मित्रता की कहानी काफी प्रसिद्द है। सच्ची मित्रता की पहचान भी यही है कि किसी राजकुमार और एक निर्धन व्यक्ति के बीच भी मित्रता हो सकती है तथा जरुरत पड़ने पर एक सच्चा मित्र अपने मित्र को अपना सब कुछ दे सकता है। इंसान की बात तो रहने दें मित्रता का यह सुन्दर उदाहरण जानवरों में भी देखने /पढने को मिलता है।
महान कथाकार मुंशी प्रेमचन्द जी की कहानी "दो बैलों की कथा " इसका सुन्दर उदाहरण है। इसकी कुछ पंक्तियाँ देखें --
“झूरी क पास दो बैल थे- हीरा और मोती। देखने में सुंदर, काम में चौकस, डील में ऊंचे। बहुत दिनों साथ रहते-रहते दोनों में भाईचारा हो गया था। दोनों आमने-सामने या आस-पास बैठे हुए एक-दूसरे से मूक भाषा में विचार-विनिमय किया करते थे। एक-दूसरे के मन की बात को कैसे समझा जाता है, हम कह नहीं सकते। अवश्य ही उनमें कोई ऐसी गुप्त शक्ति थी,जिससे जीवों में श्रेष्ठता का दावा करने वाला मनुष्य वंचित है। दोनों एक-दूसरे को चाटकर सूँघकर अपना प्रेम प्रकट करते, कभी-कभी दोनों सींग भी मिला लिया करते थे, विग्रह के नाते से नहीं, केवल विनोद के भाव से, आत्मीयता के भाव से, जैसे दोनों में घनिष्ठता होते ही धौल-धप्पा होने लगता है। इसके बिना दोस्ती कुछ फुसफसी, कुछ हल्की-सी रहती है, फिर ज्यादा विश्वास नहीं किया जा सकता। जिस वक्त ये दोनों बैल हल या गाड़ी में जोत दिए जाते और गरदन हिला-हिलाकर चलते, उस समय हर एक की चेष्टा होती कि ज्यादा-से-ज्यादा बोझ मेरी ही गर्दन पर रहे। दिन-भर के बाद दोपहर या संध्या को दोनों खुलते तो एक-दूसरे को चाट-चूट कर अपनी थकान मिटा लिया करते, नांद में खली-भूसा पड़ जाने के बाद दोनों साथ उठते, साथ नांद में मुँह डालते और साथ ही बैठते थे। एक मुँह हटा लेता तो दूसरा भी हटा लेता था। "
कुसंग का ज्वर सबसे भयानक होता है। यह केवल नीति और सदव्रत्ति का ही नाश नही करता, बल्कि बुद्धि का भी क्षय करता है। किसी युवा-पुरूष की संगति यदि बुरी होगी तो वह उसके पैरों में बंधी चक्की के समान होगी जो उसे दिन-दिन अवनति के गड्डे में गिराती जायेगी और यदि अच्छी होगी तो सहारा देने वाली बाहु के समान होगी जो उसे निरन्तर उन्नति की ओर उठाती जायेगी। बुराई अटल भाव धारण करके बैठती है। बुरी बातें हमारी धारणा में बहुत दिनों तक टिकती है।
ह्रदय को उज्ज्वल और निष्कलंक रखने का सबसे अच्छा उपाय यही है कि बुरी संगत की छूत से बचो। यही पुरानी कहावत है कि-
काजर की कोठरी में कैसो हू सयानो जाय,
एक लीक काजर की, लागिहै, पै लागिहै।
ज़िंदगी में आप तब सीखते हैं जब आपको ठोकर लगती है। ठोकर खाकर गिरना जिंदगी नही है उसके बाद ख़ुद को सम्भाल लेना ही जिंदगी है। मैंने भी अपनी जिंदगी में कई बार ठोकरें खायी और खुद को सम्भालते रहे। ईश्वर ना करे किसी की मित्रता को कोरोना की बुरी नजर लगे। यह लेख उन सभी सच्चे मित्रों को समर्पित जिन्होंने जीवन के प्रत्येक मोड़ पर बराबरी से खड़े होकर मेरा साथ दिया।
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