Monday, 22 June 2020

फीस नही तो बच्चों को तो माफ कर दीजिए सरकार —
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बच्चे देश का भविष्य है...प्रिय बापू ,चाचा नेहरू से लेकर काका कलाम के मुँह से यह बात सुनता था तो लगता था कि इस देश के नेता इतने संवेदनशील तो है कि कम से कम वो बच्चों को लेकर किसी प्रकार राजनीति नहीँ करेंगे लेकिन पिछले तीन महीने मैं यह धारणा भी टूट गई है

पूरे देश मे नर्सरी से लेकर प्रायमरी क्लास तक बच्चों ऑनलाइन क्लासेस शुरू हो गई है स्कूल किसी भी नीति के अभाव में अपने अपने नियम बना रहे है जिन माता पिता ने अपनो बच्चों को कोरोना के डर से दूर रखा वो भी मजबूरी में उन्हें इंटरनेट के सामने बिठा कर सारी नकरात्मक खबरों से रूबरू करवा रहे है
अगर ऐसा नही करेंगे तो बच्चों का भविष्य बिगड़ जाएगा

सायबर हेल्थ सेफ्टी नॉर्म्स की तहत 10 साल तक के बच्चों को स्माल और मीडियम स्क्रीन से दूर रहना चाहिए स्क्रीन टाइम बच्चों के मस्तिष्क के विकास को भी प्रभावित करता है।यह एक ऐसा समय है जब उनका दिमाग विकसित होता है । मोबाइल और कम्यूटर उपकरणों की स्क्रीन ओवरस्टीमुलेशन का कारण बनती हैं, जिससे मस्तिष्क में डोपामाइन और एड्रेनालाईन का उत्पादन होता है।

यह सब इस उम्र में इंटरनेट के नशे की लत बनाता है। यह उम्र सामजिक गतिविधियों को समझेने की होती है जिसे स्क्रीन पर नहीं बल्कि व्यक्तिगत सिखाया जाना चाहिए।इस उम्र में इंटरनेट का उपयोग करने का विरोध तो स्वयं यूनेस्को और WHO कर चुका है लेकिन सरकार की क्या मजबूरी है वो मुझे समझ नही आ रहा है

जिस देश मैं आज भी 40 % से ज्यादा फीचर फोन औऱ बेसिक फोन है वँहा ऑनलाइन क्लासेस का विचार हास्यास्पद है यूनेस्को की रिपोर्ट के हिसाब से पूरे विश्व के 83 करोड़ छात्रों में से 70 करोड़ छात्रों के पास इंटरनेट नही है और 13 करोड़ छात्रों में से आधे को सायबर सिक्योरिटी का कखग भी नही पता है तब छोटे छोटे बच्चों के भविष्य को क्यो दाँव पर लगाया जा रहा है

सरकार पर शिक्षा माफिया का दबाव है लेकिन मध्यम वर्ग क्यों चुप है दिनभर में 70 साल को 70 बार कोसने वाला मध्यम वर्ग इतना डरपोक हो गया कि वो अपने बच्चों के लिए भी अपना मुँह खोलेगा यह एक असाधारण स्थिति है इसलिए सरकार से सवाल पूछिये अगर आपने आज सवाल नही पूछा तो कल अपने बच्चों के सवालो का जवाब नही दे पाएंगे 👍👍👍

साभार- अपूर्व भारद्वाज


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