Tuesday, 30 May 2023

“सुनो, बिना हेलमेट वाले लड़के”




तुम्हारी आवाज़ तुम्हारी उम्र से मेल नही खाती। वो लरजती है किसी अठ्ठारह साल से कम के लड़के सी, उसमें अब भी लड़कपन का कच्चापन है। जब ज्यादा देर तक बोलते हो तो वो बैठने लगती है। ये जो जब तुम हंसते हो न खिल खिलाकर तुम्हारे दाँतों की ये दिल की धड़कनों के आकार की पंक्तियाँ आकर्षित करती हैं, ये बताती हैं तुम्हारे खूबसूरत होने का राज़, तुम्हारे माँ-बाप व परिवार की कृपा है तुम पर जो ज़िन्दा हो अब तक…. 

कभी सोचा है तुम्हारी इस लापरवाही के चलते किसी मोड़ या चौराहे पर क्या ईनाम दें सकते है यम के दूत? फिर तुम्हारे ही परिवार व समाज के कुछ सुधी लोग कहेंगे पुलिस ने कुछ किया होता तो शायद बच सकता था। पुलिस तो कुछ करती ही नही है। सारा आरोप हमारे ही सिर मढ़ डालेंगे…..

कभी सोचा है ये जो तुम सड़क पर अपने माता-पिता के मेहनत की कमाई की नुमाइश में इस बाईक को लहराते हुए हवाओं से बातें कर रहे हो, जिस पर तुम बड़ा गर्व महसूस करते हो। तुम्हारी एक छोटी सी चूक जान ले सकती है तुम्हारी भी और किसी राह चलते की भी। तब क्या करोगे? 


सोचो, जब तुम किसी सड़क या चौराहे पर धरा का चुम्बन लोगों तब वहाँ मौजूद पुलिसकर्मी पर क्या गुजरेगी? जिसने न जाने कितनी दफा तुम्हें टोका या समझाया न हो। बांकी आस-पास जो भीड़ इकट्ठा होगी वो तो सिर्फ तुम्हारा विडियो बनाकर सोशल मीडिया में पोस्ट कर शोक मनायेंगे पर हाथ लगाने कोई भी आगे नही आयेगा। तब हर कोई कहता सुनाई पड़ेगा ये पुलिस का काम है। जब उसी को तुम्हारे बिखरे शरीर को उसे बटोरना पड़े। बड़ी कोशिशों के बाद भी तुम्हारा चेहरा न समझ आए। लाख जतन करने पर भी वह तुम्हें एकत्रित न कर पाए और जब वह घर से निकलने वाला हो ठीक उससे पहले उसके बेटे ने भी एक बाईक की डिमांड रखी हो तो क्या वह अपने आंसू रोक सकेगा? आंखिर वह भी किसी का बाप है भाई। 

वहीं अपनी ड्यूटी में पास खड़ी महिला पुलिसकर्मी जब तुम्हारे धड़ से अलग कलाई पास के नाले से हाथ में उठाकर ला रही हो, जिस पर आज भी तुम्हारी बहन की राखी दिखाई दे रही हो। क्या यही वचन तुमने राखी का निभाया? जो तुम्हारी उँगलियों पर सिगरेट और मुँह में ज़हर भरा अब भी दिख रहा है। तुम्हारे बैग से मिली वो व्हिस्की की बोतल व जेब में पड़ी स्मैक की पुड़िया, क्या बीतेगी उस पर कभी सोचा है? आंखिर वह भी किसी की बहन-बेटी है भाई। घर पहुंचकर सुकून से खाना व चैन की नींद वह ले सकेगी। ये मौत का भयावह नजारा क्या उसे कभी भूलते भुलाया जायेगा? 

कभी सोच के देखना कंट्रोल रूम का वह पुलिसकर्मी जो आपके माता-पिता को इस हादसे के लिए सूचित करेगा आंखिर कहेगा क्या? वह खुद भी किसी का बेटा, भाई व पिता है। एक पिता होने के नाते क्या वह बता पायेगा तुम्हारे हादसे के हुबहू हालत? एक बेटा होने के नाते क्या वह तुम्हारी माँ से तुम्हारे बिखरे शरीर के बारे में कुछ कह पायेगा? जरा सोचो भाई आंखिर किस कठिन दौर से उसे गुजरना होगा। घर वालों को सूचित भी करना है और सच भी न कह पाने का मलाल तुम क्या जानो? आंखिर कैसा होता होगा? 

सोचो उस माता-पिता पर क्या गुजरेगी जब तुम्हें इस हाल में सामने पायेंगे। न बेटे का ललाट चूम सकते हैं, न चेहरा देख सकेंगे, न हाथ ही थाम सकेंगे। तुम्हारे बिखरे शरीर के हिस्सों को जब किसी प्लास्टिक पन्नी पर लपेट सामने रखा हो, कैसा भयावह मंजर होगा वो उनके लिए, जिन्होंने इस उम्मीद में तुम्हें पढ़ाया-लिखाया, तुम्हारी हर जरूरतें पूरी की, कि तुम बुढ़ापे में सहारा बनोगे। पर तुम तो अपने साथ-साथ उन्हें भी जीते जी मार गए। वो ज़िन्दा तो रहेंगे पर किसी लाश से कम नही। जितनी बार भी तुम्हारे दोस्तों को देखेंगे वो उतनी बार हर रोज मरेंगे। क्या यही सपना उन्होंने देखा था तुम्हें लेकर? 

उस बहन का क्या गुनाह था जिसने कुछ रोज पहले तुम्हारी कलाई पर राखी बांधी थी, आज वही कलाई तुम्हारे धड़ से जुदा है। क्या यही वचन तुमने उसे राखी पर दिया था। इस गम से तो कभी उभर भी पाए, पर फिर कभी किसी भाई की सूनी कलाई देख कर वह राखी नही बाध पायेगी। ना वो हिम्मत जुटा पायेगी, न उस लम्हे को कभी भुला पायेगी। 

अब तुम्हारे होठों का अब बनता बिगाड़ता आकार देख मन में आता है एक जोर का थप्पड़ जड़ दूँ। ये जो दीए की बाती की लौ सी तुम्हारी आँखे टपकर फड़फड़ाने लगी हैं, मानो लगता है इनमें जल की कोई बूंद दो आयामों के बीच ठहर गयी हो और जाने कितने भाव लिए नृत्य कर रहे हों डर, पीड़ा, दुःख और लाचारी के। तुम इतने अत्याचारी पापी कैसे बन जाते हो? कैसे निर्दयी बेटे, भाई हो तुम? आंखिर कितने अत्याचारी पति और पापी पिता बनोगे तुम? 

सुनो लड़के तुम्हारा मौन भी बोलता है, हंसता है, रोता है और मुस्कुरा उठता है, शरमा जाता है, तुम्हारे इस ईश्वर के बनाये रूप में। पर इसे सम्भालना तुम्हारी ज़िम्मेदारी है, तुम्हें ही निभानी है। तुम्हारे बैग से मिली वो व्हिस्की की बोतल व जेब में पड़ी स्मैक की पुड़िया और ये हाथों में किसी मेडल सी लहराती सिगरेट को तुम्हें छोड़ना होगा। प्रण लेना होगा की फिर कभी हाथ नही लगाऊँगा और अपने आस-पास के समाज में नशे व सड़क सुरसा के लिए जागरूकता फैलाऊँगा। चौराहे पर तुम्हारी सुरक्षा में खड़े वो पुलिसकर्मी, माता-पिता और बहन को डरावना दर्द नही देना है तो हेलमेट पहनना है। जिससे खुद की, खुद के परिवार की और समाज की जान बचाई जा सके। 

आज भी हमारे समाज में नशीली दवाओं, नशे और दुर्घटनाओं के सबसे बड़े शिकार गरीब लोग हैं। खैर ये दुनिया ऐसे ही चलती है ना, गौर से देखें तो हर मनुष्य पीड़ा में आकंठ डूबा है। बावजूद इसके, वो कौन सा छलावा है? जो स्वयं की पीड़ा को परे हटा, दूसरों को पीड़ित करने के लिए उद्यत रहता है आदमी? कैसे फुर्सत मिल जाती है उसे अत्याचारी बन जाने या दूसरों को निर्दयी कह देने की? कैसे बदल जाती हैं तोहमतें? कभी पुरुष के मत्थे तो कभी स्त्री के सिर। अत्याचारी और निर्दयी होने के लिए ना पुरुष होना आवश्यक है और ना स्त्री! उसके लिए मन का पापी होना पड़ता है, जो कोई भी हो सकता है। 

“तो सुनो लड़के तुम अपने आप सम्पूर्ण हो किसी की तारीफों व रहमतों के मोहताज नही।अपनी जिम्मेदारी को समझो और हेलमेट पहन जीवन की कठिन राहों पर आगे बढ़ो।”



राजकुमार सिंह परिहार 
पत्रकार, बागेश्वर (उत्तराखंड) 

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