अक्सर मैं जिंदगी को ढूंढने दरबदर फिरता हूं और शाम बेबसी को साथ लेकर घर लौट आता हूं मैं। उम्र इतनी हो गई है अब फिर भी बचपने को याद कर आज भी चुपके से मैं उस गली की सैर कर आता हूं। कल यूं ही अनमने ढंग से मोबाइल को पकड़े फेसबुक को स्क्रॉल कर रहा था कि अचानक ही एक पोस्ट पे रुक गया! जो अधूरे प्रेम की यादें अक्सर छोटे छोटे किस्सो में तब्दील हो जाया करती है कि बातों के बारे में लिखा था। पढ़ते पढ़ते ही याद आ गया कि उसके पास भी तो ऐसी बहुत सी यादें है जो अब किस्सो कहानियों में बदलना चाहती थी!!
फिर आंखे मूंद के बैठा सोचने कि आंखिर मैं आज उसकी किस याद को किस्सा बनाऊँ। उसका मिलना लिखूँ, या पहली मुलाकात लिखूँ, या कैब की राईड, या फिर वो लीची छील छील के थमाना लिखूँ, या पेड के नीचे बैठ के बिताई वो शाम लिखूँ या लिख डालूँ वो अधूरे वादे जो किसी मंदिर के अहाते में बनी बेंच पे एक दूसरे से किये गए थे!! खैर इन सब यादों में एक भी याद ऐसी न थी जिसे किस्सा बनाया जाए। हर एक याद अपने आप मे पूरी एक कहानी थी, जो सिर्फ आसुओ से और कुछ एक मुस्कानों से सजी हुई थी!
आंखे खोल के बैठ गया, परेशान हो गया था कि कोई ऐसी बात नही जिसे लिख दिया जाए। बस परेशानी में कलम उठायी और लिख ली कुछ कहानी, और खड़ा हो गया दरवाज़े के बाहर रात के अंधेरे में दूर तक देखने की कोशिश करते हुए!!
"तुम रातों को जागना नही छोड़ोगे न"
- अरे यार छोड़ दूंगा न, इतना परेशान क्यों करती हो तुम
"तुमने वादा किया था न मुझसे"
- हां तो इसमें कौन सा पहाड़ ही टूट गया, वादे होते ही है टूटने के लिए!!
"हां शायद वादे होते ही है टूटने के लिए"
अचानक ही उसके हाथ की तपिश सी महसूस हुई मेरे हाथ पर और बड़ी जोर से मैंने हाथ झटक दिया। देखा तो रात पूरी बीत चुकी थी और यादों में ऐसा खोया के खाना पीना भूल गया था। लेकिन कुछ सोचा, खुद पर हंसी भी आयी, लाइट बुझायी, हाथ में पकड़ी किताब को बाहर ही फेंक के अंदर चल दिया गुनगुनाते हुए!!
"सुनते है के मिल जाती है हर चीज प्रार्थना से, एक रोज तुम्हे मांगेंगे परमात्मा से"
वो तुमसे
प्यार करे और जिद भी,
बात करो तो ब्लॉक कर दे
बेअसर रहे दर्दे दास्तां,
मर्ज बने और दवा भी दे,
फरेब का ताज पहन बने,
राजा, सभी को चोर बना दे
प्यार का पिंजरा बर्बादी का,
कैद करे और रिहाई भी न दे,
गजब दुनिया के अजब रिश्ते,
मजबूर को कमज़ोर बना दे,
बहाने, फसाने से दूर हो चले,
जिंदा रहे और जिंदगी भी न दे,
अच्छी थी पहले की जिंदगी,जो
प्यार को हसीन एहसास बना दे।
मैं हर रोज सोचता हूं किसी से कभी कुछ ना कहूं, पर क्या करुं अपने लिखने में हमेशा ही उभर आता हूं। आंखों के आगे बिखरती हुई उम्मीदों की किरचन अक्सर अकेले में आँखों और सीने में चुभती है, कैसे कहोगे किसी को कि इसे महसूस करके देखो, क्योंकि चुभन की कोई कैसे कल्पना करेगा....!!
❤❤❤
No comments:
Post a Comment