Saturday, 20 May 2023

जाइये, कीजिये और जानिये



मैं- मैं तुमसे प्रेम में हूँ।
वो- मैं तुमसे प्रेम में नही हूँ। 

कई बार प्रेम में पड़ा, हरबार बिछड़ गया। यह बिछड़न सिर्फ दो दिलों का बिछड़न नही थी। यह दो इंसानों का भी था। मैं कहानियां लिखूँ, कविताएं भी। दरअसल हम कहानियां, कविताएं, शायरी किसी एक को केंद्रबिंदु में रखकर लिखते हैं। और केंद्रबिंदु में रखा इंसान अगर लिखे हुए को नही पढ़ता तो चैन नही मिलता। वो प्रेमिका जो बिछड़ गई वो पढ़ सकी केवल प्रेम पर कहानी और कविता, तो क्या कहने।

मैं खुश था, एकतरफा प्रेम। वो मेरे हर लिखे को पढ़ सकेगी और कभी मेरे प्रेम को शायद सुन भी लेगी। 

मैं- चाय पर कब चलोगी।
वो- जब तुम कहो। 

एक छायादार पेड़ के नीचे हम आमरस पी रहे थे। चाय उसकी पहली पसंद नही है। प्रेमी तो प्रेम में चाय पर ही बुलाता है। ये भी अपना एक अन्दाज़ है, क्यूँकि अक्सर प्रेमी खाली जेब ही नजर आता है। 
 
वो सुंदर लग रही थी। हर रोज से ज्यादा सुंदर। कुछ देर के लिए ही सही वो उस पेड़ के नीचे सिर्फ मेरे लिए बैठी थी। आस-पास ढेरो लोग थे। हम सिर्फ अकेले, मैं और वो। 

वो- तुम्हें क्या पसंद है?
मैं- सबसे खराब कविताएं लिखना और सबसे सुंदर कविताएं पढ़ना। 

वो - हा, हा, हा, सुनाओ फिर कुछ। 
मैं- तुम्हारी मुस्कान बहुत खूबसूरत है। 

प्रेमी, प्रेम का कोई मौका नही छोड़ता। मैंने वही कविता सुना दी जो उसके प्रेम में किसी रात करवटे बदलते हुए लिखी थी। 

मैं- कैसी लगी कविता।
वो- सुंदर। 

वो मुझे आप कह रही थी। वो मुझसे प्रेम में नही थी। मैंने उसके हिस्से के खुद को तुम लिख दिया है। मैं प्रेम में हूँ और शायद यह लिखते वक़्त प्रेम के सबसे निचले गहराई में डूबा हुआ हूँ। 

वैसे प्रेम खलिहर लोगों का काम है। रोज ट्रेन के धक्के हों, किराए का मकान हो, सेहत की दिक्कतें हों, तो फिर प्रेम सिर्फ नाटक लगता है। पेट भरा हो तब ज़रूर प्रेम सूझता है। 

क्या आपने कभी सोचा है, बिना ज़रूरत बोल पड़ने का पश्चाताप उतना कभी नहीं होता, जितना ज़रूरत होते हुए चुप रह जाने का होता है। 

कई ज़माने लगते हैं सुबह होने में, जिन्हें रातों में नींद नहीं आती। कभी-कभी किसी रोज दिन इतना बड़ा लगता है मानो वह 24 से बढ़कर 48 घंटे का हो गया हो, पर ये तब ही होता है जब मैं, प्रेम में उसके विरह को याद करता हूँ। उस समय के हर क्षण में मुझे प्रतीक्षा होती है प्रेम की, मैं दबता चला जाता हूं समय के नीचे, यादों में...!!!


क्या करुं इस ज़िद्दी से मन का? इसी बात पर मेरे मन ने फ़रमाया है, यदि आप हाथ पर हाथ धरे ये सोच रहे हैं कि आपका अच्छा वक़्त आएगा तो वक़्त भी पैर पर पैर धरे यही सोच रहा है कि ये थोड़ी तो मेहनत करेगा। 

इसी बात पर गारंटी के साथ कह सकता हूँ कि इंसान सुनता है मन भर और सुनने के बाद प्रवचन देता है टन भर और "स्वयं" ग्रहण नहीं करता कण भर। जिसका उदाहरण मेरे खुद के रूप में आपके सामने है।

ये अधूरा इश्क़ भी कम सुन्दर नही होता साहब। इसमें होती है मीठी किचकिच, लड़ाईयां, झगड़े, झड़प, बेवजह प्यार, फ़िक्र और उनसे दूर होने पे उनके पास रहने का एहसास। बड़ा ही खूबसूरत होता है अधूरा इश्क़। किसी को बना देता है ये शायर तो किसी को कवि। आजकल तो टूटे हुए दिल से या तो लेखक प्रेम कहानियां लिख रहे हैं या फिर इंजीनियर अपनी मोहब्बत के किस्से। 

बहुत विविधतायें है हिंदुस्तान के इश्क़ में। अब तो इश्क़ क्रान्तिकारी भी हो गया है। इनको अपने सनम की मोटाई से भी प्यार है, उनके गोरे-गोरे बच्चों जैसे मुखड़े और उनके मोटे चश्मे के पीछे छिपी कमजोर नज़रों से भी। प्रेम है उनके सांवले चेहरे पे हुए पिम्पल्स से... क्यूट लगते हैं वो। उन पतली कलाइयों से प्यार है जिसमे कोई घड़ी भी फिट नहीं होती। ये पढ़ते तो ओशो को है पर फॉलो प्रेमचन्द को करते हैं। गुलज़ार की नज़्म में जीते है। "हम चीज है बड़े काम की यारम..." गुनगुनाते हैं।

ये इश्क़, प्रेम, प्यार, मोहब्बत सब सीमाओं से परे हैं जितना भी आप इनको बंधना चाहेंगे न उतना ही खोते चले जयेंगे। रेत जैसा होता है मुट्ठी में बन्द करने की कोशिस करेंगे तो हाथ में बस कुछ धूल ही आएगी। पछतावे की धूल। ये ताक़त हैं एक दूसरे की कमजोरी नही। 

तो जाइये इश्क़ कीजिये। छज्जे पे चढ़कर, क्लास में उनको पलट के देख कर या उनके साथ भीड़ में चलकर। उनके बेतुके जोक्स पे हँसकर, उनकी मीठी आवाज़ में गाने सुनकर, उनके कॉलेज के सामने इंतज़ार करकर। उनके साथ गोलगप्पे खाकर  या उनकी बानायी हुई मैगी खाकर। बताकर, सुनकर, पढ़कर या लिखकर... 

इकरार कीजिये, चिल्लाकर, मुस्कुराकर, उनके छत पे चिट्ठी फेककर। फोन करकर, उनकी कॉपी के पीछे लिखकर, उनकी हथेली पे ऊँगली से नाम लिखकर, मुस्किया कर या आँखों से बताकर!  अगर वो रूठीं हो तो मनाइये और खुद रूठें हो तो ऐसे ही मान जाइये। क्योंकि इश्क़ अब सिर्फ "कुछ कुछ होता है" तक सिमित नहीं अब "माँझी" और "मसान" तक जा पहुंचा है। अब प्रेम ज़ेहन में बसता है किसी मुट्ठी में नही। अब ये लाखों के दहेज़ और स्विफ्ट डिजायर को लात मार रहें है क्योंकि जो सुक़ून उनकी ज़ुफों की छावं में है वो कहीं नही। खैर...

जाइये इश्क़ कीजिये साहेब!! और हाँ जो इश्क़ करना पड़े तो वो क्या सच में इश्क़ है। इश्क़ तो हो जाता है मिया और होने के बाद इश्क़ किया नहीं जाता निभाया जाता है। इसके लिए कलेजा-जिगरा नही बस एक दिल चाहिये। क्योंकि ये कर्तव्य नही क्रांति है।

और……

जब ज़िन्दगी की दिक़्क़तें न जागने दें और न सोने दें, तो सपने कहाँ से देखूँ साहब। ना बस में है जिंदगी, ना कोई काबू मौत, लेकिन फिर भी यहाँ इंसान खुदा बना फिरता है..!!


जीवन के इस द्वंद में आदमी, आदमी ना होकर बहुरुपिया हो जाता है, हर रोज भेष बदलकर खुद की नुमाइश करने को मजबूर!

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