वही विजेता होगा, जिसका धैर्य व संकल्प मजबूत होगा!
— बचाव में ही बचाव है!!
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आज से पहले हमें बसों व रेलगाडिय़ों में यह बात पढऩे को मिलती है कि यात्री अपने सामान का स्वयं जिम्मेवार है। अब तो बड़े-बड़े मॉल क्या करीब-करीब प्रत्येक बड़े संस्थान में उपरोक्त तरह की चेतावनी देखने व पढऩे को मिलेगी। कोरोना संक्रमण के कारण हुए पूर्णबंदी से निकलने के लिए भी सरकार ने उपरोक्त चेतावनी का ही सहारा लिया एवं आगे भी लेना होगा।
‘दो गज दूरी’ का महत्व समझते हुए हमें संक्रमण रोकने के लिए यह सुनिश्चित करना होगा कि लोग सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने समेत अन्य सावधानियां बरत रहे हैं। कोरोना के खिलाफ लड़ाई को और ज्यादा केंद्रित करना होगा। हमें साफ पता चल चुका है कि देश के किन-किन इलाकों में कोरोना का खतरा ज्यादा है और अभी कौन से इलाके बहुत ज्यादा प्रभावित हैं। हालांकि हम जानते हैं कि हम मैराथन में दौड़ रहे हैं। यह छोटी दूरी की दौड़ नहीं है जिसे तेजी से भागकर पूरा कर लिया जाए। भारत और वास्तव में पूरी दुनिया को संक्रमण के प्रसार के लिये आने वाले कई-कई महीनों और संभवत: सालों तक के लिये तैयार रहना होगा।
अत्यधिक आबादी, शहरी इलाकों में अत्यधिक भीड़ और कुछ ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य देखभाल की खराब पहुंच के तौर पर कई चुनौतियां हैं। वास्तव में यह जन स्वास्थ्य निगरानी, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल केंद्र और स्वास्थ्य कर्मियों की संख्या को मजबूत करने का समय है। धरातल का सच यही है कि कोरोना महामारी से एक लंबी लड़ाई लडऩे के लिए विश्व को तैयार होना होगा। यह लड़ाई घर बैठकर तो लड़ी नहीं जा सकती और न ही सरकार एक सीमा से आगे कुछ करने की स्थिति में है। लॉकडाउन के कारण मजदूर, किसान से लेकर छोटे-छोटे दुकानदार, बड़े से बड़ा व्यापारी व उद्योगपति परेशान है। जन साधारण को भी लग रहा है कि वह एक तरह से कैदी नुमा जीवन जी रहे हैं। जीवन जैसे ठहर सा गया है। जीवन को पुन: गति देने के लिए सरकार ने ढीलें देनी तो शुरू की हैं लेकिन इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि लॉकडाउन-5 भी आयेगा लेकिन उस में छूटें पहले से अधिक होंगी। कोरोना वायरस एक लंबी दौड़ की तरह है जिसमें वही विजेता होता है जिसका धैर्य व संकल्प मजबूत होता है। जो अपना धैर्य खो देता है वह दौड़ को पूरा नहीं कर पाता। जीवन अपने आप में एक लंबी दौड़ ही है। इसमें सफल वही होता है जो लक्ष्य को सम्मुख रख अपना संघर्ष जारी रखता है और अपना संयम व संतुलन बनाये रखता है। प्रत्येक यात्री के अपने-अपने अनुभव होते हैं लेकिन चेतावनी सबके लिए होती है। चेतावनी को सम्मुख रख सबको एहतियात रखना होता है, जो नहीं रखता उसको खामियाजा भी भुगतना पड़ता है।
अब समय आ गया है कि जन-साधारण को लॉकडाउन से बाहर निकाला जाए। सरकार को जहां रोजमर्रा के जीवन में जन साधारण को अधिक रियायतें देनी चाहिए। वहीं सरकार को जन साधारण को यह भी चेतावनी देनी होगी कि अगर कोई लापरवाही हुई तो वह स्वयं उसका जिम्मेवार होगा। सतर्क रहकर व बताई गई बातों को ध्यान में रख कर तथा एहतियात रखते हुए हम अपने जीवन को पुन: गति दे सकेंगे। जरा सी असावधानी हमें व हमारे परिवार के वर्तमान व भविष्य को प्रभावित कर सकती है। कोरोना वायरस के प्रभाव से आप भली-भांति परिचित हैं, सो अपना ध्यान आप रखें। बचाव में ही बचाव है।
#Rescue_is_defense🙏🏻
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— बचाव में ही बचाव है!!
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आज से पहले हमें बसों व रेलगाडिय़ों में यह बात पढऩे को मिलती है कि यात्री अपने सामान का स्वयं जिम्मेवार है। अब तो बड़े-बड़े मॉल क्या करीब-करीब प्रत्येक बड़े संस्थान में उपरोक्त तरह की चेतावनी देखने व पढऩे को मिलेगी। कोरोना संक्रमण के कारण हुए पूर्णबंदी से निकलने के लिए भी सरकार ने उपरोक्त चेतावनी का ही सहारा लिया एवं आगे भी लेना होगा।
‘दो गज दूरी’ का महत्व समझते हुए हमें संक्रमण रोकने के लिए यह सुनिश्चित करना होगा कि लोग सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने समेत अन्य सावधानियां बरत रहे हैं। कोरोना के खिलाफ लड़ाई को और ज्यादा केंद्रित करना होगा। हमें साफ पता चल चुका है कि देश के किन-किन इलाकों में कोरोना का खतरा ज्यादा है और अभी कौन से इलाके बहुत ज्यादा प्रभावित हैं। हालांकि हम जानते हैं कि हम मैराथन में दौड़ रहे हैं। यह छोटी दूरी की दौड़ नहीं है जिसे तेजी से भागकर पूरा कर लिया जाए। भारत और वास्तव में पूरी दुनिया को संक्रमण के प्रसार के लिये आने वाले कई-कई महीनों और संभवत: सालों तक के लिये तैयार रहना होगा।
अत्यधिक आबादी, शहरी इलाकों में अत्यधिक भीड़ और कुछ ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य देखभाल की खराब पहुंच के तौर पर कई चुनौतियां हैं। वास्तव में यह जन स्वास्थ्य निगरानी, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल केंद्र और स्वास्थ्य कर्मियों की संख्या को मजबूत करने का समय है। धरातल का सच यही है कि कोरोना महामारी से एक लंबी लड़ाई लडऩे के लिए विश्व को तैयार होना होगा। यह लड़ाई घर बैठकर तो लड़ी नहीं जा सकती और न ही सरकार एक सीमा से आगे कुछ करने की स्थिति में है। लॉकडाउन के कारण मजदूर, किसान से लेकर छोटे-छोटे दुकानदार, बड़े से बड़ा व्यापारी व उद्योगपति परेशान है। जन साधारण को भी लग रहा है कि वह एक तरह से कैदी नुमा जीवन जी रहे हैं। जीवन जैसे ठहर सा गया है। जीवन को पुन: गति देने के लिए सरकार ने ढीलें देनी तो शुरू की हैं लेकिन इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि लॉकडाउन-5 भी आयेगा लेकिन उस में छूटें पहले से अधिक होंगी। कोरोना वायरस एक लंबी दौड़ की तरह है जिसमें वही विजेता होता है जिसका धैर्य व संकल्प मजबूत होता है। जो अपना धैर्य खो देता है वह दौड़ को पूरा नहीं कर पाता। जीवन अपने आप में एक लंबी दौड़ ही है। इसमें सफल वही होता है जो लक्ष्य को सम्मुख रख अपना संघर्ष जारी रखता है और अपना संयम व संतुलन बनाये रखता है। प्रत्येक यात्री के अपने-अपने अनुभव होते हैं लेकिन चेतावनी सबके लिए होती है। चेतावनी को सम्मुख रख सबको एहतियात रखना होता है, जो नहीं रखता उसको खामियाजा भी भुगतना पड़ता है।
अब समय आ गया है कि जन-साधारण को लॉकडाउन से बाहर निकाला जाए। सरकार को जहां रोजमर्रा के जीवन में जन साधारण को अधिक रियायतें देनी चाहिए। वहीं सरकार को जन साधारण को यह भी चेतावनी देनी होगी कि अगर कोई लापरवाही हुई तो वह स्वयं उसका जिम्मेवार होगा। सतर्क रहकर व बताई गई बातों को ध्यान में रख कर तथा एहतियात रखते हुए हम अपने जीवन को पुन: गति दे सकेंगे। जरा सी असावधानी हमें व हमारे परिवार के वर्तमान व भविष्य को प्रभावित कर सकती है। कोरोना वायरस के प्रभाव से आप भली-भांति परिचित हैं, सो अपना ध्यान आप रखें। बचाव में ही बचाव है।
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