Sunday, 31 May 2020

सरकार गोरी हो या भूरी सोचने का तरीका अमूमन एक जैसा होता है।
— भारत में 11 ऐसे अकाल पड़े जिसमें हर बार लाखों लोगों की मृत्यु हुई

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महामारियों से हमारा नाता सदियों पुराना रहा है, यह तस्वीर 1943 के अकाल की है, जिस अकाल में बंगाल के लगभग 40 लाख लोगों की मौत हो गयी थी। कहा जाता है कि यह अकाल उस वक़्त के ब्रिटिश पीएम विंस्टन चर्चिल की गलत नीतियों की वजह से पड़ा था। कई इतिहासकारों ने इसे मानव जनित होलोकॉस्ट की संज्ञा दी है। यह द्वितीय विश्व युद्ध का वक़्त था। चर्चिल ने बड़े पैमाने पर भारतीय खाद्यान्न की आपूर्ति मोर्चे पर तैनात ब्रिटिश फौजियों के लिये कर दी थी। उस वक़्त चर्चिल ने कहा था, कुपोषित बंगालियों की भूख से जरूरी मजबूत यूनानियों की भूख का इंतजाम करना है। भारत से उस साल 2.7 मिलियन टन खाद्यान्न का निर्यात किया गया था।
जब भारत में अकाल पीड़ितों की मौत का आंकड़ा काफी अधिक हो गया। तब भी चर्चिल नहीं पिघला, उसने कहा, मरने वाले खुद जिम्मेदार हैं। वे खरगोश की तरह बच्चे पैदा करते हैं। चर्चिल ने कहा, यह कैसा अकाल है, जब गांधी की ही मौत नहीं हुई।
अकाल या ऐसी ही आपदाओं के वक़्त अंग्रेज सरकार का यह संवेदनहीन रवैया कोई नई बात नहीं थी। शशि थरूर की पुस्तक द डार्क एरा के मुताबिक अंग्रेजों के 200 साल के राज के दौरान भारत में 11 ऐसे अकाल पड़े जिसमें हर बार लाखों लोगों की मृत्यु हुई। अनुमानतः लगभग 3.5 करोड़ लोगों की इस दौरान मृत्यु हुई।


हर बार अंग्रेज सरकार की गलत नीतियों की वजह से ये अकाल पड़े। मगर अपनी गलती स्वीकारना और उसका निराकरण करना तो दूर। हर बार अंग्रेज सरकार ने इस दौरान पीड़ित लोगों को किसी भी किस्म का राहत देने से इनकार कर दिया। हर बार कहा जाता कि राहत अभियान चलाना स्वतंत्र बाजार के सिद्धांतों का उल्लंघन होगा, इसके अलावा यह भी कहा जाता जिस रकम का बजट में उल्लेख नहीं है उसे खर्च नहीं किया जाना चाहिये। इसके अलावा बार बार मेल्थस के उस सिद्धांत का जिक्र किया जाता, जिसके मुताबिक अधिक जनसंख्या का निराकरण प्रकृति इस तरह करती है।
1866 में ओडिशा के अकाल के दौरान जब सरकार द्वारा खाद्य पदार्थों की कीमत कम न करने के प्रयासों की आलोचना होने लगी तो बंगाल के तत्कालीन गवर्नर बीडन ने कहा कि अगर मैं ऐसा करता हूँ तो मुझे एक डाकू समझा जाना चाहिये। दिलचस्प जानकारी यह है कि उस साल जब 15 लाख लोगों की मौत हुई थी, तब 20 करोड़ पाउंड चावल ब्रिटेन को निर्यात किया गया।
इसके अलावा अंग्रेज आपदाओं में राहत अभियान चलाने के भी सख्त विरोधी थी। अकालों में जब लोगों की अत्यधिक मौत होने लगती और लंदन के बौद्धिक तबका भारत के ब्रिटिश अधिकारियों से सवाल पूछता तो वे कहते कि अगर आप बिल पे करने के लिये तैयार हैं तो मैं आपकी तरफ से राहत अभियान चला सकता हूँ। एक ब्रिटिश अधिकारी ने अपने पैसों से राहत अभियान चलाने की कोशिश की तो सरकार ने उसके खिलाफ कार्रवाई कर दी।
यह सब किस्से शशि थरूर की किताब द डार्क एरा में पढ़ रहा हूँ। पढ़ते हुए मालूम होता है कि सरकार गोरी हो या भूरी सोचने का तरीका अमूमन एक जैसा होता है। इस कोरोना और लॉक डाउन काल में मौजूदा सरकार के कई फैसलों की झलक इन ऐतिहासिक संदर्भों में नजर आती हैं।

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