'मज़बूत शब्द ज़ब्त से बनता है--धीरज, सहन करना, धैर्य के साथ खड़े रहना। मज़बूत अनिवार्यतः आक्रामक व्यक्ति को नहीं कहते हैं। मज़बूत उस व्यक्ति को कहते हैं, जिस व्यक्ति में धीरज हो, जिसमें विवेक हो।'
यूं तो चुनाव लोकतंत्र की आत्मा हैं और मतदान जनता का बड़ा हथियार है। जिससे वह चाहे जिसे सत्ता की कुंजी थमा दे और जिसे चाहे सत्ता से उतार फेंके। अमूनन लोग अपने चयनित प्रतिनिधियों से जनहितैषी काम की अपेक्षा रखते हैं वे खरे उतरते हैं तो फिर उन्हें चुनती है और उन्हें नकारती है जो उनकी इस कसौटी पर खरे नहीं उतरते। इसीलिए जिसे जनता चुनती है उसको देश ही नहीं विदेशों में सम्मान मिलता है। इसे सूक्ष्म रुप में समझा जाए तो यह सम्मान अप्रत्यक्ष तौर पर जनता जनार्दन का होता है। करिश्मा जनता ही करती है।
लगता है लोकतंत्र के पायदानों की ओट में होने वाले ये चुनाव अपनी अहमियत खोते जा रहे हैं इसलिए सबसे पहले ज़रुरत है चुनाव आयोग को निष्पक्ष बनाने की, जो अन्य दलों की बात पर गौर करे। दलबदलुओं के लिए भी आयोग सख़्ती करेगा। दोबारा चुनाव पर रोक लगेगी। सिर्फ वहीं चुनाव हों जहां किसी की मृत्यु हो। यदि इन बातों पर अमल नहीं होता है तो यह पक्का है देश में लोकतंत्र जो अभी आक्सीजन पर है शीघ्र ख़त्म हो जाएगा। लोकतंत्र कायम रखना है तो सत्तापक्ष को चुनाव जीतने की ज़िद छोड़नी होगी। दूसरों को अवसर देकर ही देश में लोकतंत्र को मजबूत रखा जा सकता है। जनता के फैसले के बाद उस पर अमल होना चाहिए अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं।
'वैसे हम सोचते हैं कि अकेले आदमी की आवाज़ कौन सुनेगा? उसके गिरने की आवाज़ तो सुई के गिरने की आवाज़ से भी कम होती है। उसके गिरने की आवाज़ सिर्फ़ उसकी पत्नी सुनेगी और वह भी तब, जब वह कोई सौदा लेने बाज़ार न गई हो।'
यहीं से प्रारम्भ होती है खोज, उस खोज से पत्रकारी। पत्रकार मानवता के कथाकार हैं, जो हमारे साझा अनुभवों के धागों को एक साथ जोड़ते हैं, हमें हमारी जीत, त्रासदियों और मानव आत्मा की अदम्य भावना की याद दिलाते हैं। गलत सूचना के युग में, पत्रकार गुमनाम नायक हैं, जो झूठ को चुनौती देने और सार्वजनिक चर्चा की अखंडता की रक्षा करने के लिए शब्दों की शक्ति का इस्तेमाल करते हैं। पत्रकारों में जनता की राय को आकार देने और बदलाव लाने की अविश्वसनीय क्षमता होती है। अपने अधिकार को स्वीकार करें, लेकिन याद रखें कि आपका असली औचित्य जनता की आवाज बनने में है। उनकी रुचियों को बनाए रखें और उन्हें अपनी रिपोर्टिंग के माध्यम से सशक्त बनाएं।
पत्रकारिता, जिसे अक्सर "चौथा स्तंभ" कहा जाता है, लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है, जो जनता को विश्वसनीय जानकारी प्रदान करता है और सत्ता में बैठे लोगों को जवाबदेह बनाता है। यह समाज को आकार देने, जनमत को प्रभावित करने और सामाजिक परिवर्तन लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
सदियों से, पत्रकारिता तकनीकी प्रगति के साथ-साथ विकसित हुई है। टेलीग्राफी और फोटोग्राफी की शुरूआत से लेकर रेडियो और टेलीविजन के आगमन तक, प्रत्येक नवाचार ने पत्रकारिता की पहुंच और प्रभाव का विस्तार किया। आज, डिजिटल तकनीक और इंटरनेट ने वास्तविक समय की रिपोर्टिंग और वैश्विक कनेक्टिविटी को सक्षम करके परिदृश्य को एक बार फिर से बदल दिया है।
अपने मूल में, पत्रकारिता जनता के लिए एक प्रहरी के रूप में कार्य करती है, पारदर्शिता, जवाबदेही और एक अच्छी तरह से सूचित नागरिक सुनिश्चित करती है। यह दुनिया में होने वाली घटनाओं और उन लोगों के बीच एक पुल के रूप में कार्य करता है जिन्हें उनके बारे में जानने की आवश्यकता है। राजनीतिक विकास और सामाजिक अन्याय से लेकर वैज्ञानिक सफलताओं और सांस्कृतिक रुझानों तक विभिन्न मुद्दों पर रिपोर्टिंग करके, पत्रकारिता संवाद की सुविधा प्रदान करती है और नागरिक जुड़ाव को बढ़ावा देती है।
एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए एक मजबूत और स्वतंत्र प्रेस आवश्यक है। यह सत्ता में बैठे लोगों पर अंकुश के रूप में कार्य करता है, नागरिकों को चुनाव के दौरान और उसके बाद भी सूचित निर्णय लेने के लिए आवश्यक जानकारी प्रदान करता है। पत्रकारिता भ्रष्टाचार, मानवाधिकारों के हनन और पर्यावरणीय चुनौतियों को उजागर करने, परिवर्तन और न्याय की वकालत करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
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