Friday, 25 September 2020

(दास्तान-ए-कोरोना - V) कोरोना से विजय पाने में आपकी इच्छाशक्ति ही आपका इलाज है, घर वापसी बढ़ाती है हमारा मनोबल


अगली सुबह वही पिछले दिनो की तरह ही काड़े की आवाज़ के साथ मेरी सुबह हुई। आज घर जाने की खुशी में समय से पहले ही हम नहा- धोकर तैंयार बैठे थे। कुछ समय बाद फिर अजब दा नाश्ता ले आए। फिर हम दोनो ने इस कोरोना इलाज के दौरान आज आँखिरी सुबह का नाश्ता साथ किया, एक दूसरे को घर वापसी की बधाई दी, भविष्य में मिलते रहने की बात कहते हुए अपना-अपना सामान समेटने लगे। क्यूँकि आज मेरा व मेरे रूम पाटनर डॉ निर्मल बसेड़ा होम आइसोलेशन भी यहीं पर रहते हुए समाप्त होने वाला था।  खुशी इतनी थी कि शब्दों में बयां करना नामुमकिन है। 

फिर मैं एक बार ड्यूटी में तैनात डाक्टर साहब के सामने पहुँचा, कि हम कब तक अपने घर रवाना हो सकते हैं यह जानने। फिर उन्होंने मुझे कुछ पेपर दिए उसे भरने को कहा, हम दोनो ने वह वापस जाकर डाक्टर साहब को दिए तो वह बोले हमारे पास तो अभी कोई वाहन उपलब्ध नही है आप अपनी गाड़ी मंगाइये और जा सकते हैं। फिर मैंने पूछा वैसे आप हमें कौन सी गाड़ी में वापस घर भेजने वाले थे, इस पर उन्होंने मुस्कुराते हुए जवाब दिया जिसकी सवारी कर आप यहाँ तक पधारे हैं, मुझे हंसी छूट गई और जरा ज़ोर से बोला नही उसमें नही जाना है अब। फिर वापस हम कमरें में आ गए तब तक 10:30 का समय हो गया था सूरज भी चढ़ आया था। आज गर्मी भी काफ़ी लग रही थी। 

फिर मैंने बड़े भाई साहब को फोन कर गाड़ी भेजने को कहा तो तुरन्त ही गाड़ी पहुँच गई। फिर हम दोनो कमरें की लाईट, पंखे वग़ैरह बंद कर बाहर निकले डाक्टर साहब को धन्यवाद कहते हुए सीड़ियों की तरफ़ बड़े तो अजब दा आ रहे थे उन्हें धन्यवाद कह नमस्कार करते हुए आगे बड़े। नीचे गेट पर पहुँचे तो वहाँ मौजूद गार्ड ने कहा कि अपने-अपने नाम के आगे हस्थाक्षर कर दीजिए। काफ़ी देखने के बाद पता लगा मेरा नाम ही वहाँ पर दर्ज नही है। ये काफ़ी चौकने वाला विषय था मेरे लिए, क्यूँकि जहां मैं अपने जीवन के अतिमहत्वपूर्ण 17दिन बिता आया उसके गेट पर दर्ज होने वाली विवर्णीका में मेरा नाम ही दर्ज नही है। खैर इन सब बातों को नजरअन्दाज़ करते हुए मैं फिर आगे बड़ा बाहर गेट पर गाड़ी इंतज़ार कर रही थी। अपना सामान गाड़ी में रख पहले खुले आसमान के नीचे, खुली हवा में बाहे फैलाते हुए अपनी आज़ादी को गले लगाया और ऊपर आसमान की तरफ देख ईश्वर का शुक्रिया अदा किया। फिर हम दोनो गाड़ी की पिछली सीट पर बैठ गए। कुछ आगे आकर  बसेड़ा जी के स्टॉप पर उन्हें अल्विदा कहते हुए फिर गाड़ी में बैठ गया। फिर गाड़ी धीरे-धीरे आगे बड़ चली, बाज़ार में काफ़ी चहल-पहल भी नज़र आ रही थी। आज बहुत दिनो के बाद बाहर निकला हूँ तो शहर बड़ा अच्छा सा लग रहा था। बीस मिनट के सफर में कई तरह के ख़याल मन में आ रहे थे। दिमाग में लोगों व उनकी बातों को लेकर उथल-पुथल चल रही थी।
इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि घर वापसी ने मेरा खुद मनोबल बढ़ाया होगा। इलाज के दौरान जब भी खाली वक्त या यूँ कहें बोर सा होता था तो अपनी पसंदीदा कोई भी मोटिवेशनल वीडियो फुटेज देखना पसंद करता था। 

आज मुझ जैसे मेरे जनपद के सैकड़ों लोग एक फाइटर हैं और खुद को प्रेरित करने के लिए मेरा यह टाइम पास का जरिया एक अच्छा विकल्प था, ऐसा मुझे लगता है। पर इससे जुड़ा एक मनोवैज्ञानिक पहलू भी है, जो कहता है कि अपनी जीवन की खेली गई पुरानी पारियों को लेकर जरूरत से ज्यादा संजीदा नहीं होना चाहिए। हमें हर वक्त यह नहीं सोचना चाहिए कि क्या हम दोबारा उसी तरह की ज़िन्दगी कब जी पाएंगे। इस मनोवैज्ञानिक सोच के पीछे तर्क बहुत सीधा है। इस तरह लगातार अपनी पिछली ज़िन्दगी को देखकर हम खुद पर एक ऐसा मानसिक दबाव बना लेंगे जो आने वाले दिनों में हमें परेशान कर सकता है या मानसिक बीमार कर सकता है, जिसे आधुनिक भाषा में हम डिप्रेशन कहते हैं। 
मन में ख्याल आ रहे थे कि अब मुझे भी उन छोटी-मोटी चुनौतियों का सामना करना है, जिसके लिए दिमागी तौर पर बेहद मजबूत होने की काफी जरूरत है। 
फिर मैंने इन ख़्यालों से बचने व खुद को समझाते समझाने के लिए अपनी आँखें बन्द कर एक गहरी साँस ली और सोचा ऐसे में मेरी प्राथमिकता सिर्फ इतनी होनी चाहिए कि सबसे पहले एक सेहतमंद इंसान बनें। एक रोग मुक्त व्यक्ति की तरह सामान्य जिंदगी में वापस लौटें और कोरोना की बीमारी व उसके इलाज की इस 17दिवसीय लंबी प्रक्रिया ने मेरे शरीर व दिमाग पर जो नकारात्मक असर डाले हैं, उससे अपने शरीर को पूरी तरह निजात दिलाकर आगे बढ़ने का प्रयत्न करुं।

अंग्रेजी में एक कहावत कही जाती है कि “देयर इज नो प्लेस लाइक होम” मैं उसी होम में वापस आ गया हूँ। इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि घर वापसी ने मेरा मनोबल बढ़ाया होगा।


घर जाने के रास्ते में गाड़ी रुकने पर मेरी तंद्रा टूटी। फिर चालक को मुझे छोड़ने के लिए धन्यवाद कह विदा कर मैं आगे अपने घर की तरफ़ बढ़ गया। रास्ते में गाँव की ही एक ताई जी  व उनकी बहू जो रिस्ते में मेरी भाभी लगती हैं मिले, वो खेत से आकर रास्ते की छाँव में बैठे आराम कर रहे थे। पास जाते-जाते मेरे दिमाग ने मुझसे कई सवाल कर डाले, मुझे वो दोस्तों की बातें भी याद आ रही थी। खैर जैसे ही मैं उनके पास पहुँचा तो उन्होंने मेरा हालचाल पूछा, मैंने कहा सब ठीक है। कोई परेशानी नही थी बस रिपोर्ट पॉज़िटिव आ गई थी । तो ताई जी बोले जो भी है ठीक होकरघर आ गया अच्छी बात है, इस कोरोना ने तो बेटा सबको डराकर रख दिया है। उनकी बातें सुन मन को तसल्ली हुई। 

फिर उनसे विदा लेकर में आगे बढ़ा तो घर के आँगन में पहुँचा तो देखा मेरी माँ खिड़की से बाहर को झांक मेरा इंतज़ार कर रही है। 
माँ बाहर आ गई, 
मेरा हाल पूछा तो मैंने बताया सब ठीक है कोई परेशानी नही..
माँ ने कहा ठीक है बेटा 
तेरे लिए नाश्ता क्या बनाऊँ, तूने खाया नही होगा अभी कुछ 
मैंने कहा मैं नाश्ता करआया हूँ तो माँ चुप हो गई 
पर इससब में उसकी आंखों में भरा पानी मैं देख सकता था
फिर मैंने स्थिति को सम्भालते हुए अपने कमरे की चाबी देने को कहा, तो पता लगा खुला ही है 
मैंने कपड़े बदले 
फिर तब तक माँ मेरी पसंदीदा चाय बना लाई 
मैंने चाई ली, जो मैं आज काफ़ी दिनों बाद अपनी माँ के हाथों से बनी तरसता रहा 
अभी भी मैं माँ से उचित दूरी बनाकर खड़ा था और माँ कमरें  बाहर दरवाज़े पर 
फिर माँ ने पूछा, अभी भी तुझे अलग ही रहना है क्या? लोगों में भी नही जाना होगा 
मैंने चाय की चुस्की लेते हुए हाँ में अपना सर हिलाया 
माँ  ने कहा लोगों से सुना तू हल्द्वानी था बल, तूने बताया नही मुझे बहुत चिन्ता हो रही थी 
मैंने माँ को समझाते हुए कहा कि मैं बागेश्वर ही था इतने पूरे 17 दिनों तक आपको फोन पर हर रोज बता तो रहा था, वैसे माँ को लगता है ये अपनी कोई परेशानी मुझे बताता नही है, जो सच भी है, क्यूँकि मैं माँ को दुःखी नही देख पाता हूँ।
माँ बोली मैंने ठीक से सुना नही फोन पर और हंस दी।
फिर माँ चली गई अन्दर को, मैं भी कमरें में आराम करने लगा। 
दोपहर को माँ ने दाल चावल बनाया तो मुझे मेरे कमरें में ही अलग दिया, शाम को भी यही सब अगले तीन दिनों तक एहतियातन चलता रहा।
क्यूँकि माँ का स्वास्थ्य अक्सर ख़राब रहता है तो मैं इस बीमारी से उन्हें बचाना चाहता हूँ। क्यूँकि .......

मैंने कोरोना का रोना देखा है!
और उम्मीदों का खोना देखा है!!
लाचार मजदूरों को रोते देखा है!
गिरते पड़ते चलते और सोते देखा है!
पिता को सूनी आंखों से तड़पते देखा है!!
तो मां की गोद में बच्चे को मरते देखा है!
गरीबों का खुलेआम रोष देखा है!!
तो मध्यमवर्ग का मौन आक्रोश देखा है!
गरीबों को अस्पतालों में लुटते देखा है! !
तो निर्दोषों को बेवजह पिटते देखा है!
अल्लाह भगवान की दुकानों का बंद भी होना देखा है!
तो रोना रोती सरकारों का अंत भी होना देखा है!!
आंखिर में खुद कोरोना का दंश भी झेला है।  

जब मैं कुछ दिनो के बाद लोगों के बीच गया तो सबने मुझे वही पुराना प्यार व स्नेह दिया, किसी ने कोई भेदभाव मेरे साथ नही दिखाया। वही ये कहते भी मुझे लोग मिले की अब तो यह सबको ही होना है, किसी को पहले तो किसी को बाद में, बचना किसी ने नही है। 
मुझे अपने गाँव, समाज में यह सब देख बड़ा अच्छा लगा, जैसा अभी तक मैंने दूसरे जगहों से लोगों के अनुभव आपके साथ सांझा किए थे मेरे साथ इसका ठीक उल्टा हो रहा था। मैं सोचने लगा कि कितना नकारात्मक विचार आया था मेरे मन में पर हमारा समाज बेहद जागरूक समाज है। 

कोरोना से लड़कर आज मैं पहले की तरह सामान्य हूँ, अपनो के साथ और अपनो के बीच हूँ, किसी को किसी तरह की कोई परेशानी मुझसे नही है, न ही मुझे किसी से कोई परेशानी है। मुझे गर्व महसूस होता है कि मैं एक अच्छें गाँव, एक अच्छे समाज, अच्छे पड़ोस के बीच रहता हूँ, जो समाज में फैली भ्रान्तियों को दरकिनार करते हुए सभ्य समाज की परिकल्पना को पूर्ण करते हैं। 


♦️ एक समय मेरे सामने ऐसा भी आया कि मैं घर वापसी की छोड़ चुका था उम्मीद...
पहले मौसम बदलने के चलते कभी-कभी वायरल के कारण मेरी तबितय खराब जरूरी हो जाती थी, वो आज भी होती ही है। लेकिन मुझे इस बात का कतई अंदाजा नहीं था कि मैं कोरोना पॉजिटिव भी हो सकता हूँ। कोरोना जांच की आई पॉजिटिव रिपोर्ट ने मेरे पैरों तले जमीन खिसका दी थी। पॉजिटिव निकला तो एकपल को लगा कि अब सबकुछ खत्म हो गया। पर मैंने हिम्मत नहीं हारी। डॉक्टरों की मेहनत के अलावा ईश्वर की कृपा मुझ पर रही, जिसके चलते अपने परिवार के पास सही सलामत लौट पाया। हमारे परिवार से बड़ी मुसीबत टली है। आज मैं सही सलामत आपके सामने हूँ। इससे बढ़कर मेरे लिए खुशी की बात क्या हो सकती है।इतनी बड़ी बीमारी से बचकर आये हैं तो स्वाभाविक है हमारे समाज में फैली तरह-तरह की भ्रान्तियों के चलते सभी लोग कुछ डरे जरूर हैं, लेकिन जल्द ही सब सामान्य हो जाएगा। सकारात्मक सोच रखिए सफलता जरुर मिलेगी। 

आप लोगों से मेरा निवेदन है की आप भी अपने समाज व आस पास जागरूकता फैलाएँ, लोगों में भ्रम की स्थिति न बनने दें। यह स्वयं के लिए ही नुक़सानदेय है। आप सभी अपना व अपनो का ध्या रखें .....।





नोट— आप सभी ने अभी तक का पूरा घटनाक्रम पढ़ा व समझा, साथ ही मुझे अपने विचार सांझा करने के लिए सराहा भी। मैं आप सभी का दिल से धन्यवाद करते हुए आभार व्यक्त करता हूँ। अब आप जिला प्रशासन, शासन स्तर या सामाजिक स्तर पर अभी क्या बदलाव किए जाने चाहिए इस सम्बंध में अपने सुझाव मुझे प्रेषित करे तांकी रविवार को अगले फ़ाइनल अंक में उन्हें भी सम्मिलित कर सकूं।आंखिर कोरोना पॉजिटिव व्यक्ति व उसके परिवार की हिम्मत की कैसे बढ़ाया जा सके। साथ ही किसी को टूटने से या किसी का घर,परिवार,दुनिया बर्बाद होने कैसे हम बचा सकते हैं। क्यूँकि अब तक तो आप समझ ही गए होंगे यह कोरोना नामक बीमारी हमारे समाज में मानसिक रूप से लोगों को अधिक बिमार कर रही है।  





क्रमशः जारी —— ❣

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