Wednesday, 23 September 2020

(दास्तान-ए-कोरोना - IV) हर हाल में अपने मन को ख़ुश रखिए, ख़ुश रहेंगे !! मेरा कोरोना सेलिब्रेशन




सूरज उगने में थोड़ा वक्त था। मेरी उदास आंखें गुजरती रात के आसमान पर टिकी थी। तारों से भरा आसमान चुपचाप धरती पर फैला हुआ। उनके बीच क्या बातचीत चल रही थी? हमें नहीं पता। इसके कुछ ही समय बाद भोर की किरणे शान्ति भंग कर फिर वही शोर शराबें के साथ आगे बढ़ने लगेंगी।  

मैं अपने अंदर की टूटन को महसूस कर पा रहा था। फिर सोचा कि दूर रह रहें एकतरफ़ा प्रेम तुम्हारे भीतर सिर्फ़ एक इंसान को जीवित रखता है सिर्फ उसे जो तुम हो। जो तुम्हारा व्यक्तित्व है। कौन जाने ये दिन एक परीक्षा हों, कि देखें कौन पहले टूटता है। किसके अंदर की सजावट और तरतीब पहले तितर-बितर होती है। किसका ज़ेहन पहले कुंद होता है। क्या पता कि ये एक आज़माइश हो! इन्ही ख़्यालों में था की अनायास ही हंसी छूट पड़ी... छोड़ ना यार जो होगा देखा जायेगा, अब कोरोना पॉजिटिव हो ही रखे है तो क्यू न इन आइसोलेशन के दिनों को सेलिब्रेट किया जाए और जी भर जिया जाए......

दस दिन पूरे होने से पहले मैंने डाक्टर साहब से पूछा कि हमारा दोबारा कोविड टेस्ट कब होगा? तो उन्होंने सरकार की नई गाईडलाईन का हवाला देते हुए बताया कि अब एसिमटोमेंट्रिक  व्यक्ति को यदि एक हफ्ते में कोई लक्षण नही आते है तो उसे निगेटिव मान लिया जाता है फिर भी एहतियातन आपको 17 दिन आइसोलेशन में रखा जाता है। मेरे पास कोई जवाब नही था सो मैं चुप हो गया और खुद को कैसे समझाऊँ ये सोचने लगा। मन में कई तरह के विचार भी आ रहे थे अब तो मशीन पर भी शक होने लगा था। लगने लगा कि मैं कोरोना पॉजिटिव हुआ भी था या एवें ही.......,.,,,,,,,

आज दस दिन पूरे हो चुके थे रोज की दिनचर्या के बाद सुबह का नाश्ता किया, डाक्टर ने वही सब रूटीन चैक किया तो सब कुछ पहले की तरह ही सामान्य था, तो बोले आप एकदम फिट हैं अब कोई दिक्कत नही। आज आपके दस दिन पूरे हो गए हैं आपको आज यहाँ से सिफ्ट किया जाना है। आपके पास यदि घर पर यही सारी व्यवस्थाएँ अलग से हैं तो आप अपने प्रधान से लिखवाकर मगा लें, तब आप सात दिन होम आइसोलेशन पर रहेंगे। जिसका मैंने नही में प्रत्युत्तर दिया तो बोले तब तो आपको अन्य किसी होटल में भेजा जायेगा, कुछ देर बाद आप तैयार रहें। फिर यही सब प्रक्रिया मेरे कोविड रूम पाटनर के साथ भी हुई उनके द्वारा भी होटल में सिफ्ट होने की बात कही, फिर डाक्टर साहब आगे अन्य कमरें के दरवाज़े की ओर बढ़ चले ....

इतनी देर में अजब दा आज मेरी पसंदीदा चाय लेकर कमरें में बोलते हुए अंदर की तरफ आए “सर आज तो आप जा रहे हैं” हम दोनो ने नही तो कहकर जवाब दिया तो बोले आप अब स्वस्थ हैं आपको ये दूसरे होटल भेजेंगे फिर आप घर जायेंगे वहाँ सात दिन बिताकर। इन्ही कुछ बातों के बाद वह अपने अन्य काम निपटाने को चल दिए। 

उसके जाने के बाद हम दोनो अन्य होटल को लेकर बात करने लगे तो मालूम पड़ा कि सब जगह फ़ुल हैं, वैसे भी अब शहर के अधिग्रहित होटलों को कोविड अस्पताल में परिवर्तित कर दिया गया है। फिर सोचा यदि हमको अगले सात दिन यहीं रोक दिया जाए तो क्या परेशानी है इस पर प्रभारी महोदय से बात कराई तो उन्होंने हामी भर दी। कि आप अगले सात दिन यहीं रुक सकते हैं। फिर लगा जैसे कोई जंग जीत ली हो हमने, क्योंकि मन में होटलों की कई परेशानियों को लेकर जो सवाल उछलकूद कर रहे थे वो अब शान्त हो गए थे। फिर एक घण्टे के बाद कमरें में जवाब आया कि आप तैयार हैं गाड़ी आने वाली है आपको सिफ्ट किया जायेगा। मेरी चिंताएँ फिर बड़ गई, फिर दुबारा मैंने इधर-उधर फोन घुमाया तब फिर से एक बार प्रभारी महोदय को फोन कराया और यहाँ ड्यूटी पर मौजूद डाक्टर से बात करने को कहा। परेशानी तो बढ़ गई लगा कि अब जाना ही पड़ेगा, पता नही कहाँ भेजेंगे, कैसी व्यवस्था होगी, कमरें का क्या हाल होगा। वैसे मैंने अब तक सम्भावित दो होटलों में बात तो कर ली थी कि जरा ठीक से साफ कमरें दिलवाने को लेकर तो दोनो ने अपनी सहमति जताई। 

फिर मेरे पास फोन आया कि डाक्टर को बता दिया है एक बार जाकर पूछ लें, उसके बाद भी कोई परेशानी है तो बताना। मैं कमरें से बाहर निकल पास ही बने डाक्टर के केबिन के बाहर खड़ा होकर कुछ बोलता उससे पहले ही सामने से आवाज़ आई कि आप यहीं रुकेंगे, कमरें में जाइए, परन्तु यदि मरीज़ ज़्यादा बढ़े तो आपको सिफ्ट करना ही पड़ेगा, मैंने हाँ में जवाब दिया और वापस कमरें में पहुँच राहत भरी साँस ली। तब तक दोपहर के भोजन का समय हो गया था, खाना आया और हम दोनो ने आराम से खाना खाया, फिर अजब दा को बताया कि अब हम यहीं रुकेंगे अगले सात दिन भी, उसने कहा ठीक है इसमें मुझे क्या दिक्कत। फिर कुछ देर आराम किया, क्यूँकि ये जो अभी का समय बीता वो काफ़ी तनाव पूर्ण था। 

शाम के चार बजे काड़े की आवाज़ को लेकर दरवाज़े पर होने वाली आहट से नीद खुली तो मन में सुबह का ख्याल आया कि अब अगले सात दिन फुल इंजोय किया जाय कोरोना... 
आप को बता दूँ अभी तक हमारे पत्रकार साथी घर जा चुके थे वो यहाँ दस दिन ही रहे बांकी के सात दिन घर पर रहने की बात उन्होंने बताई। वैसे जब तक वो थे रोज़ सुबह शाम उनके द्वारा भी हमें काड़ा बनाकर पिलाया जाता रहता था। वो अपने लिए काड़ा कमरें में खुद ही बनाते थे। जैसे हम एसिमट्रोमेट्रिक थे वैसे ही वो भी थे और अक्सर कहा करते थे “एक छींक तो आ जाती कोरोना के नाम पर, न बुखार है ना ही कोई अन्य लक्षण। ख़ाली बकवास है सब कुछ” हम भी उनकी इस बात पर सहमति जताते हुए हंस पड़ते।  


फिर हम दोनो ने ही अगले सात दिन यहाँ एक बार और साथ बिताने थे, ठीक तो पहले से ही थे परन्तु दिमाग से कोरोना बाहर निकालने को हमने कोरोना सेलिब्रेशन का मन बनाया। अब हम हर रोज कभी टिकिया, कभी समोसे, कभी चांट, कभी जूस, कभी मैगी कुछ न कुछ शाम के नाश्ते के रूप में बागेश्वर के प्रतिष्ठित “करनस व करन स्वीट्स” से मंगाते रहते थे। सब कुछ सामान्य था तो ये भी अब हमारी कोविड दिनचर्या का एक हिस्सा बन चुका था। फिर हमने रात के खाने में भी बाहर से पनीर, चिकन मंगाया। यही हमारा अगले सात दिनो का हाल रहा।  यह सब इसलिए भी जरुरी था कि अभी तक हमको सादा भोजन ही खिलाया जा रहा था तो सोचा अभी तो हम लोग डाक्टर की निगरानी में ही है बाहर का खाना भी ट्राई किया जाए कही कोई परेशानी तो नही पैदा होगी बाद में। खैर कोई दिक्कत नही हुई सब कुछ सामान्य चलता रहा। 


एक दिन रात्रि भोजन में एक मित्र द्वारा घर के मशालों में तैयार चिकन हम दोनो के लिए भेजा जो बेहद लज़ीज़ था, वैसे चिकन की तारीफ़ कर उन्हें धन्यवाद तो उसी वक्त कह दिया था, परन्तु बात का ज़िक्र करते हुए एक बार फिर मुँह में स्वाद याद आ गया, एक बार पुनः दिल से शुक्रिया आपका मित्र !!
हम दोनो कोरोना का जश्न मनाते मनाते भूल गए कि हम बिमार भी है कोरोना के। पता ही नही लगा कब सात दिन बीत गए। रोज दर्जनों साथियों से फोन पर वार्ता होती रहती थी, कभी किसी ने अकेलापन महसूस ही नही होने दिया, जिसका मैं आजन्म आभारी रहूँगा। अब बाहर से भी मित्र लोग कहने लगे थे कि अब घर भी आ जाओ, बहुत हुआ कोरोना, बहुत मौज कर ली तुमने। 


फिर वो दिन भी नज़दीक आ ही गया जिसका हमें बेसब्री से इंतज़ार था। उस दिन देर रात तक नीद ही नई आई अगले दिन की आज़ादी के बारे में सोच-सोच कर। मन मेरी पसंदीदा लाईन सोचने पर मजबूर कर रहा था दिमाग को....

“शाम है ग़म के समन्दर में उतरने दो इसे,
कल ये सूरज नया हो जाएगा धीरज धरो !
मैं फिर वापस आऊँगा, तुम 
धीरज धरो, धरो धीरज !!”

फिर पता नही कब मैं अपनी कोरोना की कैद से कल को होने वाली आज़ादी के हंसी सपनो के आग़ोश में समा गया।

नोट ♦️— मैं उन सभी लोगों से निवेदन करना चाहता हूँ जो अभी आइसोलेशन में हैं और मेरी इस कहानी को पढ़ कर बाहर की चीजें खाने का मन बना रहे हैं इससे पहले एक बार चिकित्सक से परामर्श आवश्यक है। अन्यथा आपको कोई गम्भीर परेशानी का सामना भी करना पड़ सकता है। जिसके ज़िम्मेदार आप स्वयं होंगे, धन्यवाद !!




क्रमशः जारी —— ❣

6 comments:

  1. शानदार मित्र, आपकी जीवटता से कॅरोना भी हार गया, बेचारा सोच रहा होगा किससे पाला पड़ा, खैर आगे अब अपना ख्याल रखना।

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  2. चल भाई ठीक हो कर आ गया भगवान का धन्यवाद है। आ जा फिर मिलने को।

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