Tuesday, 29 August 2023

चुनाव, लोकतंत्र और चौथा स्तंभ —



                                

'मज़बूत शब्द ज़ब्त से बनता है--धीरज, सहन करना, धैर्य के साथ खड़े रहना। मज़बूत अनिवार्यतः आक्रामक व्यक्ति को नहीं कहते हैं। मज़बूत उस व्यक्ति को कहते हैं, जिस व्यक्ति में धीरज हो, जिसमें विवेक हो।'


यूं तो चुनाव लोकतंत्र की आत्मा हैं और मतदान जनता का बड़ा हथियार है। जिससे वह चाहे जिसे सत्ता की कुंजी थमा दे और जिसे चाहे सत्ता से उतार फेंके। अमूनन लोग अपने चयनित प्रतिनिधियों से जनहितैषी काम की अपेक्षा रखते हैं वे खरे उतरते हैं तो फिर उन्हें चुनती है और उन्हें नकारती है जो उनकी इस कसौटी पर खरे नहीं उतरते। इसीलिए जिसे जनता चुनती है उसको देश ही नहीं विदेशों में सम्मान मिलता है। इसे सूक्ष्म रुप में समझा जाए तो यह सम्मान अप्रत्यक्ष तौर पर जनता जनार्दन का होता है। करिश्मा जनता ही करती है।

लगता है लोकतंत्र के पायदानों की ओट में होने वाले ये चुनाव अपनी अहमियत खोते जा रहे हैं इसलिए सबसे पहले ज़रुरत है चुनाव आयोग को निष्पक्ष बनाने की, जो अन्य दलों की बात पर गौर करे। दलबदलुओं के लिए भी आयोग सख़्ती करेगा। दोबारा चुनाव पर रोक लगेगी। सिर्फ वहीं चुनाव हों जहां किसी की मृत्यु हो। यदि इन बातों पर अमल नहीं होता है तो यह पक्का है देश में लोकतंत्र जो अभी आक्सीजन पर है शीघ्र ख़त्म हो जाएगा। लोकतंत्र कायम रखना है तो सत्तापक्ष को चुनाव जीतने की ज़िद छोड़नी होगी। दूसरों को अवसर देकर ही देश में लोकतंत्र को मजबूत रखा जा सकता है। जनता के फैसले के बाद उस पर अमल होना चाहिए अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं।

'वैसे हम सोचते हैं कि अकेले आदमी की आवाज़ कौन सुनेगा? उसके गिरने की आवाज़ तो सुई के गिरने की आवाज़ से भी कम होती है। उसके गिरने की आवाज़ सिर्फ़ उसकी पत्नी सुनेगी और वह भी तब, जब वह कोई सौदा लेने बाज़ार न गई हो।' 

यहीं से प्रारम्भ होती है खोज, उस खोज से पत्रकारी। पत्रकार मानवता के कथाकार हैं, जो हमारे साझा अनुभवों के धागों को एक साथ जोड़ते हैं, हमें हमारी जीत, त्रासदियों और मानव आत्मा की अदम्य भावना की याद दिलाते हैं। गलत सूचना के युग में, पत्रकार गुमनाम नायक हैं, जो झूठ को चुनौती देने और सार्वजनिक चर्चा की अखंडता की रक्षा करने के लिए शब्दों की शक्ति का इस्तेमाल करते हैं। पत्रकारों में जनता की राय को आकार देने और बदलाव लाने की अविश्वसनीय क्षमता होती है। अपने अधिकार को स्वीकार करें, लेकिन याद रखें कि आपका असली औचित्य जनता की आवाज बनने में है। उनकी रुचियों को बनाए रखें और उन्हें अपनी रिपोर्टिंग के माध्यम से सशक्त बनाएं।

पत्रकारिता, जिसे अक्सर "चौथा स्तंभ" कहा जाता है, लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है, जो जनता को विश्वसनीय जानकारी प्रदान करता है और सत्ता में बैठे लोगों को जवाबदेह बनाता है। यह समाज को आकार देने, जनमत को प्रभावित करने और सामाजिक परिवर्तन लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

सदियों से, पत्रकारिता तकनीकी प्रगति के साथ-साथ विकसित हुई है। टेलीग्राफी और फोटोग्राफी की शुरूआत से लेकर रेडियो और टेलीविजन के आगमन तक, प्रत्येक नवाचार ने पत्रकारिता की पहुंच और प्रभाव का विस्तार किया। आज, डिजिटल तकनीक और इंटरनेट ने वास्तविक समय की रिपोर्टिंग और वैश्विक कनेक्टिविटी को सक्षम करके परिदृश्य को एक बार फिर से बदल दिया है।

अपने मूल में, पत्रकारिता जनता के लिए एक प्रहरी के रूप में कार्य करती है, पारदर्शिता, जवाबदेही और एक अच्छी तरह से सूचित नागरिक सुनिश्चित करती है। यह दुनिया में होने वाली घटनाओं और उन लोगों के बीच एक पुल के रूप में कार्य करता है जिन्हें उनके बारे में जानने की आवश्यकता है। राजनीतिक विकास और सामाजिक अन्याय से लेकर वैज्ञानिक सफलताओं और सांस्कृतिक रुझानों तक विभिन्न मुद्दों पर रिपोर्टिंग करके, पत्रकारिता संवाद की सुविधा प्रदान करती है और नागरिक जुड़ाव को बढ़ावा देती है।

एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए एक मजबूत और स्वतंत्र प्रेस आवश्यक है। यह सत्ता में बैठे लोगों पर अंकुश के रूप में कार्य करता है, नागरिकों को चुनाव के दौरान और उसके बाद भी सूचित निर्णय लेने के लिए आवश्यक जानकारी प्रदान करता है। पत्रकारिता भ्रष्टाचार, मानवाधिकारों के हनन और पर्यावरणीय चुनौतियों को उजागर करने, परिवर्तन और न्याय की वकालत करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। 

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मानव स्वास्थ्य के दूसरे हत्यारे “ध्वनि प्रदूषण” को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता…



“बदल जाता है फितरत में बहाना देखकर थोड़ा, ज़माने को भी चलना है ज़माना देखकर थोड़ा। भटकना है, संभलना है, मचलना है, तड़पना है, मेरी किस्मत में क्या क्या है बताना देखकर थोड़ा। कहीं पहचान न लूँ मैं तुम्हारे असल चेहरे को दोस्त, गर पर्दा उठाना तो उठाना देख कर थोड़ा।”


हमारे पर्यावरण में प्रदूषण केवल वायु और जल प्रदूषण नहीं है। ध्वनि प्रदूषण आंखों के लिए अदृश्य है, लेकिन वह मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत ही खतरनाक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी "शोर प्रदूषण के कारण होने वाली बीमारियों का बोझ" रिपोर्ट में, ध्वनि के खतरों को वायु प्रदूषण के बाद मानव स्वास्थ्य के दूसरे हत्यारे के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। लंबे समय तक शोर-प्रदूषित वातावरण में रहने से मूड, नींद और स्वास्थ्य जैसे कई पहलुओं में समस्याएं पैदा होंगी।

कुछ लोगों में शोर सहन करने की क्षमता कम होती है, लेकिन इसका दोष उनकी स्वास्थ्य समस्याओं को नहीं ठहराया जा सकता। लोगों को एक शांत वातावरण में रहने का अधिकार है। शोर से उत्तेजित होने पर, कुछ लोगों को तत्काल शारीरिक या मनोवैज्ञानिक असुविधा का अनुभव होता है। यहां तक कि जो लोग सोचते हैं कि वे शोर से प्रतिरक्षित हैं, उनके स्वास्थ्य को अनजाने में नुकसान पहुंचाया जाता है। शोर की परिभाषा पर आसपास के वातावरण और घटना के समय के साथ व्यापक रूप से विचार किया जाना चाहिए। आमतौर पर यह माना जाता है कि 50dB से ऊपर की ध्वनि, जो मानव शरीर के लिए स्पष्ट असुविधा का कारण बनती है, वह शोर है।

तेज़ शोर के अलावा कम आवृत्ति का शोर भी एक आम प्रदूषण है। कम-आवृत्ति शोर को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है, जैसे कि एयर कंडीशनर की आवाज जो हम अक्सर सुनते हैं, घरेलू उपकरणों के भिनभिनाने की आवाज, लिफ्ट की आवाज और बिजली के उपकरण के चार्जिंग की आवाज आदि वे सब कम आवृत्ति के शोर के स्रोत हैं। आम तौर पर, 20Hz से 200Hz की रेंज में ध्वनि कम आवृत्ति वाली ध्वनि होती है। इसके विपरीत, 500 हर्ट्ज से 2000 हर्ट्ज की सीमा में ध्वनि एक मध्यवर्ती आवृत्ति ध्वनि है। 2000Hz से ऊपर या यहां तक कि 16000Hz जितनी ऊंची ध्वनि उच्च-आवृत्ति ध्वनि से संबंधित है।
 
जो लोग लंबे समय तक शोर के संपर्क में रहते हैं, वे बहुत अधिक भावनात्मक और शारीरिक परेशानी, चिंता, चिड़चिड़ापन, क्रोध और अन्य समस्याएं लेकर आएंगे, और अनिद्रा से भी पीड़ित हो सकते हैं। पर्यावरणीय शोर में प्रत्येक डेसिबल वृद्धि के लिए, उच्च रक्तचाप की घटनाओं में 3% की वृद्धि होगी। एंडोक्रिनोलॉजी, मधुमेह और मूड से संबंधित कुछ हार्मोनों का स्तर भी शोर से जोड़ता है। उधर, सभी ध्वनियाँ बुरी नहीं हैं। प्रकृति में हवा और बारिश की आवाज़ और सुंदर संगीत आदि शोर नहीं हैं, वे लोगों को आराम दे सकते हैं। आशा है कि हर कोई शांत और खुशहाल वातावरण में रह सकता है।

बचपन और वो छुटका मन —




जब टेलिविज़न मेरे घर आया, तो मैं किताबें पढ़ना भूल गया था। जब कार मेरे दरवाजे पर आई, तो मैं चलना भूल गया।  हाथ में मोबाइल आते ही मैं चिट्ठी लिखना भूल गया। जब मेरे घर में कंप्यूटर आया, तो मैं स्पेलिंग भूल गया। जब मेरे घर में एसी आया, तो मैंने ठंडी हवा के लिए पेड़ के नीचे जाना बंद कर दिया। जब मैं शहर में रहा, तो मैं मिट्टी की गंध को भूल गया। मैं बैंकों और कार्डों का लेन-देन करके पैसे की कीमत भूल गया। परफ्यूम की महक से मैं ताजे फूलों की महक भूल गया। फास्ट फूड के आने से मेरे घर की महिलायें पारंपरिक व्यंजन बनाना तक भूल गई..

हमेशा इधर-उधर भागता, मैं भूल गया कि कैसे रुकना है और अंत में जब मुझे सोशल मीडिया मिला, तो मैं बात करना भूल गया दोस्त। 

मेरे दोस्त तुम्हें मालूम है न, यहाँ मकान हो या फिर दिल, रहना है तो किराया दो, बस प्रारूप अलग है। बस इसी ख्याल के चलते कुछ सोचने लिखने का मन हुआ तो अपने स्कूल के दिनों का एक क़िस्सा लिख डाला। आजकल तो जरा सा बादल क्या गरजे, मौसम विभाग का अलर्ट आने लगता है, अलर्ट देखते ही स्कूल बंद कर दिये जाते हैं, एक हमारा जमाना भी था। हम छुट्टी के लिये लाख बहाने बना बैठते थे, मजाल कभी छुट्टी मिल जाये। 


भोर की नींद से जागकर भादो को बरसते हुए सुनना और पानी की आवाज़ सुनकर ठंड के मारे पैरों को सिकोड़ लेना अब बस स्मृतियों में बचा है। 

बचपन में अक्सर एक छाते में खुद को बचाते तीन लोग घर आते औऱ आते हुए पूरे भीग जाते थे, ये भला किसे याद न होगा। 

वो स्कूल के दिनों में अगर सुबह बारिश हुई तो पढ़ाई बन्द रहेगी, ऐसी कल्पना करके स्कूल जाना और पूरे दिन मन मारकर पढ़ लेना,हमारे कच्चे अरमानों पर वज्रपात नहीं था तो क्या था ?

याद करूँ तो दसवी की बारिश सबसे हसीन बारिश होगी,जहां जीवन में पहली बार पता चला कि आकर्षण सिर्फ़ दो चुंबक सटाने से नहीं होता बल्कि कुछ लोग भी होते है,एकदम चुम्बक जैसे... जो आपको सतत खींचते रहते हैं।

प्रेम की आहट वाली वही बारिश भला कैसे भूली जा सकती है। ठीक यही जुलाई के दिन.. पहले ही दिन कोई स्कूल में अपने भीगे बालों को चेहरे से हटाता और दो मासूम आँखों से न जाने क्या-क्या कहता स्कूल आया था। तबसे लेकर साल भर मन प्रेम की आहट में भीगा रहा... इतनी मासूम ख्वाहिश तो आज तक नही हुई कि कोई बस देख ले तो हम खुश हो जाएं। 

काश आज खुशियां इतनी ही सस्ती होतीं।

इंटरमीडिएट की बारिश सबसे सख्त बारिश थी। जीवन के अभावों और संघर्ष से उपजी एक एसिडिक बारिश जिसने बताया कि बाबू हर बरसता सावन सुंदर नही होता, बल्कि इसे मेहनत, प्रतिभा और परिश्रम से सुंदर बनाना पड़ता है। 

कॉलेज का सारा सावन तो इस रूठे सावन को सुंदर बनाने में चला गया और देखते ही देखते दिल सावन के आसमान का वो खाली बादल बन गया,जिसमें अंधकार था,बिजली थी,हवा थी... बस बारिश न थी। 

और फिर तो सालों साल तक मन के किसी कोने में असंतोष का जेठ तपता रहा। कलम पीड़ा बन गई आप्राप्य की पीड़ा। संगीत की हर धुन से आग बरसता, सावन न बरसता।

धीरे-धीरे पढ़ने-लिखने,कुछ बनने और यशस्वी होने की लालसा से पका मन मौसम का सुख लेना भूल गया।

पर इन दिनों मन नें जाना है कि भीगने का कोई एक मौसम नहीं होता.. एक उत्साह, एक जुनून, एक सकारात्मकता घेरती है। ऐसा लगता है कि परिश्रम हर मौसम को सावन बना सकता है। 

भोर में हवा की ठंडी आहट से उत्साह के नव नूपुर बजते हैं। 
एक ऊर्जा है जो आसमान की तरह जाती है। प्रेम उत्साह औऱ सृजनात्मकता की ऊर्जा। मैनें सुना है,जैसी ऊर्जा आप भेजते हैं, लौटकर वैसा ही कुछ आपके पास आता है।

चाहता हूं तमाम सावन के ये बादल प्रेम की बरसात बनकर बरसे... टप-टप-टप..! 

कहते सुनते बात तुम्हारी सो जाता हूँ, ऐसे ही मैं हर रोज़ ख़्वाबों का हो जाता हूँ। रात बहुत तकलीफ़ में गुजरती है दोस्त, कभी कभी तो ख्वाब में मर भी जाता हूं!

ये बादल, ये चाँद आसमान औऱ समंदर सब प्रेम की धुन बजाएं.. मेरे लिए और मेरे अपनों के लिए.. ❣️

Saturday, 26 August 2023

मानव स्वास्थ्य के दूसरे हत्यारे ध्वनि प्रदूषण को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता…

“बदल जाता है फितरत में बहाना देखकर थोड़ा, ज़माने को भी चलना है ज़माना देखकर थोड़ा। भटकना है, संभलना है, मचलना है, तड़पना है, मेरी किस्मत में क्या क्या है बताना देखकर थोड़ा। कहीं पहचान न लूँ मैं तुम्हारे असल चेहरे को दोस्त, गर पर्दा उठाना तो उठाना देख कर थोड़ा।”




हमारे पर्यावरण में प्रदूषण केवल वायु और जल प्रदूषण नहीं है। ध्वनि प्रदूषण आंखों के लिए अदृश्य है, लेकिन वह मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत ही खतरनाक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी "शोर प्रदूषण के कारण होने वाली बीमारियों का बोझ" रिपोर्ट में, ध्वनि के खतरों को वायु प्रदूषण के बाद मानव स्वास्थ्य के दूसरे हत्यारे के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। लंबे समय तक शोर-प्रदूषित वातावरण में रहने से मूड, नींद और स्वास्थ्य जैसे कई पहलुओं में समस्याएं पैदा होंगी।

कुछ लोगों में शोर सहन करने की क्षमता कम होती है, लेकिन इसका दोष उनकी स्वास्थ्य समस्याओं को नहीं ठहराया जा सकता। लोगों को एक शांत वातावरण में रहने का अधिकार है। शोर से उत्तेजित होने पर, कुछ लोगों को तत्काल शारीरिक या मनोवैज्ञानिक असुविधा का अनुभव होता है। यहां तक कि जो लोग सोचते हैं कि वे शोर से प्रतिरक्षित हैं, उनके स्वास्थ्य को अनजाने में नुकसान पहुंचाया जाता है। शोर की परिभाषा पर आसपास के वातावरण और घटना के समय के साथ व्यापक रूप से विचार किया जाना चाहिए। आमतौर पर यह माना जाता है कि 50dB से ऊपर की ध्वनि, जो मानव शरीर के लिए स्पष्ट असुविधा का कारण बनती है, वह शोर है।

तेज़ शोर के अलावा कम आवृत्ति का शोर भी एक आम प्रदूषण है। कम-आवृत्ति शोर को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है, जैसे कि एयर कंडीशनर की आवाज जो हम अक्सर सुनते हैं, घरेलू उपकरणों के भिनभिनाने की आवाज, लिफ्ट की आवाज और बिजली के उपकरण के चार्जिंग की आवाज आदि वे सब कम आवृत्ति के शोर के स्रोत हैं। आम तौर पर, 20Hz से 200Hz की रेंज में ध्वनि कम आवृत्ति वाली ध्वनि होती है। इसके विपरीत, 500 हर्ट्ज से 2000 हर्ट्ज की सीमा में ध्वनि एक मध्यवर्ती आवृत्ति ध्वनि है। 2000Hz से ऊपर या यहां तक कि 16000Hz जितनी ऊंची ध्वनि उच्च-आवृत्ति ध्वनि से संबंधित है।
 
जो लोग लंबे समय तक शोर के संपर्क में रहते हैं, वे बहुत अधिक भावनात्मक और शारीरिक परेशानी, चिंता, चिड़चिड़ापन, क्रोध और अन्य समस्याएं लेकर आएंगे, और अनिद्रा से भी पीड़ित हो सकते हैं। पर्यावरणीय शोर में प्रत्येक डेसिबल वृद्धि के लिए, उच्च रक्तचाप की घटनाओं में 3% की वृद्धि होगी। एंडोक्रिनोलॉजी, मधुमेह और मूड से संबंधित कुछ हार्मोनों का स्तर भी शोर से जोड़ता है। उधर, सभी ध्वनियाँ बुरी नहीं हैं। प्रकृति में हवा और बारिश की आवाज़ और सुंदर संगीत आदि शोर नहीं हैं, वे लोगों को आराम दे सकते हैं। आशा है कि हर कोई शांत और खुशहाल वातावरण में रह सकता है।

Friday, 18 August 2023

मुसाफ़िर जायेगा कहां…..




मेरे बागेश्वर में नगर पालिका की पहल पर ऑटो संचालित किये जाने के कारण मुझ जैसे बिना गाड़ी वाले लोगों को भी जब चाहें तब शहर के एक छोर से दूसरे छोर जाने का मौका मिल रहा है। सुबह की सबसे बड़ी समस्या कि बाज़ार तक कैसे जाया जाए? अक्सर घर से बाहर निकलते ही गाड़ी में बैठ जाने की आदत ने शायद शरीर के भीतर एक सुस्ती सी भर दी है। 


आज ज्यों ही शाम को बाहर सड़क पर कदम रखा तो एक सुहाने से मौसम का एहसास तन मन को रोमांचित कर गया। निगाहें किसी ऑटो रिक्शा को खोज रही थी तभी सड़क के किनारे एक व्यक्ति जो रिक्शा पर लेटा हुआ था मुझे देखकर सचेत हो गया। 

आज शाम को फिर कुछ खुरापात मन में सूझा, सोचा आज लम्बे समय के बाद किसी से हिंदी में बात की जाये। 

ऑटो वाले भाई से पूछा,

"त्री चक्रीय चालक पूरे बागेश्वर शहर के परिभ्रमण में कितनी मुद्रायें व्यय होंगी ?"

ऑटो वाले ने कहा,  "अबे हिंदी में बोल रे..

मैंने कहा, "श्रीमान,  मै हिंदी में ही वार्तालाप कर रहा हूँ।

फिर ऑटो वाले ने कहा, "मोदी जी पागल करके ही मानेंगे । चलो बैठो, कहाँ चलोगे?"

मैंने कहा, "परिसदन चलो"

ऑटो वाला फिर चकराया !😇



"अब ये परिसदन क्या है?" 

बगल वाले श्रीमान ने कहा, "अरे सर्किट हाउस जाएगा"

ऑटो वाले ने सर खुजाया और बोला, "बैठिये प्रभु"

रास्ते में मैंने पूछा, "इस नगर में कितने छवि गृह हैं ??" 

ऑटो वाले ने कहा, "छवि गृह मतलब ??"

मैंने कहा, "चलचित्र मंदिर"

उसने कहा, "यहाँ बहुत मंदिर हैं ... राम मंदिर, हनुमान मंदिर, बागनाथ मंदिर, चण्डिका मंदिर, शिव मंदिर"

मैंने कहा, "भाई मैं तो चलचित्र मंदिर की
बात कर रहा हूँ जिसमें नायक तथा नायिका प्रेमालाप करते हैं."

ऑटो वाला फिर चकराया, "ये चलचित्र मंदिर क्या होता है ??"

यही सोचते सोचते उसने सामने वाली गाडी में टक्कर मार दी। ऑटो का अगला चक्का टेढ़ा हो गया और हवा निकल गई।

मैंने कहा, "त्री चक्रीय चालक तुम्हारा अग्र चक्र तो वक्र हो गया"

ऑटो वाले ने मुझे घूर कर देखा और कहा, "उतर साले ! जल्दी उतर !" 

आगे पंक्चरवाले की दुकान थी। फिर मैंने सोचा दुकान वाले भाई से कुछ मदद लेकर इसकी सहायता की जाए तो दुकान वाले से कहा....

"हे त्रिचक्र वाहिनी सुधारक महोदय, कृपया अपने वायु ठूंसक यंत्र से मेरे त्रिचक्र वाहिनी के द्वितीय चक्र में वायु ठूंस दीजिये। धन्यवाद।"

दूकानदार बोला कमीने सुबह से बोहनी नहीं हुई और तू श्लोक सुना रहा है...

आज फिर एक बार और पता चला विद्यालय में हमें हिंदी के नाम पर उर्दू फारसी के शब्द पढ़ाएं गए हैं...✍️


मुझे लगता है आसपास के जरूरतमंद लोगों की मदद करना ईश्वर को प्रसन्न कर सकता है और यह एक बहुत बड़ी चैरिटी है जो हम रोज अपने क्रियाकलापों के माध्यम से कर सकते हैं। आजकल आस-पास तो मानो खो गया हो जुकरू भाई का भ्रमजाल ही आस-पास बन बैठा है, मानो यहां हर कोई खो सा गया है। वैसे मुझे लगता है, हर व्यक्ति अपने आप में एक बहुत बड़ी संस्था है जो किसी का जीवन छोटी-छोटी खुशियों से बदल सकता है। इसलिए हमेशा मुस्कुराते रहें, खुश रहें और स्वस्थ रहें।

Wednesday, 2 August 2023

मुझे डर लगता है—



गंगा-जमुनी तहज़ीब से सारे नाले चिढ़ते हैं। जबकि यह संस्कृति उनकी गंदगी को बहा ले जाती है। यही मंजर आज मेरे शहर का था। हाल कुछ ऐसा था कि, नन्हे शिक्षण पथिकों का पथ संचलन के दौरान ही पाद शुद्धिकरण कर ले जा रहे जल से सब परेशान। तरह-तरह के शब्द, बातें व बाण। 


नन्हे बच्चों को इन जलमग्न पथ पर एक नए पथिक के रूप में चलता देख मानो ऐसा दृश्य मेरी आँखो के सम्मुख चल रहा हो जैसे तुलसीदासजी अति आनंद में लीन भगवान राम जी को पहली बार ठुमक, ठुमक चलते देख भाव विभोर हो रहें हो। उनकी चंद पंक्तियाँ अनायास ही मेरे मन मस्तिष्क में उमड़-घुमड़ करने लगी ही जैसे।  

ठुमक चलत रामचंद्र, 
बाजत पैंजनियां,
किलकि-किलकि उठत धाय, 
गिरत भूमि लटपटाय,
धाय मात गोद लेत, दशरथ की रनियां…
ठुमक चलत रामचंद्र…

मुझे बादलों की कड़कड़ाहट से डर लगता है। बिजली के चमकने से डर लगता है। दिन में सूरज का छिपकर अंधेरे को न्योता देना डराता है। भीगी सड़कें, तर दीवारें, झुके हुए पेड़ और दुबके हुए जानवर डराते हैं। निर्माणाधीन विकास कार्यों का अधूरा होना डराता है। सरकार का सरकारी तन्त्र डराता है, अफसरी अकड़ से डर लगता है। 


मुझे बारिश पसन्द है मगर वह बारिश नही, जो किसी के चूल्हे की आग ठंडी कर दे। जो किसी झोपड़ी में टपकना शुरू कर दे। जो ज़मीन में इतना पानी भर दे कि पाँव भी रखे न जा सकें। मौसम कोई भी हो, हमें उतना ही पसन्द है, जितने से आमलोगों की तक़लीफ़ न बढ़ जाए। मुझे अपनी पक्की छतें डराती हैं कि उनपर क्या गुज़रती होगी, जिनकी छते कच्ची हैं, झुग्गी झोपड़ी में दुबके बच्चे किस उम्मीदपर इसका लुत्फ़ लेंगे।

मैं डर जाता हूँ कि कहीं मौसम की कोई ज़्यादती, किसी को भूखा न सुलाए। हो सके, तो उनकी फिक्र कर लीजिएगा। अपने घरों में काम करने वालों से हमदर्दी से पेश आइये, उनकी ज़रूरतों को समझिए, क्योंकि यह बारिश, उन्हें सुक़ून तो नही ही दे रही होगी। 

मुझे डर लगता है, डर यह कि कहीं मैं उस चीज़ का लुत्फ़ न लेने लग जाऊं, जिसके होने से आम दिलों में मायूसी जनम लेती है। मुझे कड़कते बादल डराते हैं। यह मेरे अंदर का डर है, जो फूली हुई मिट्टी को देख बढ़ जाता है। भरे हुए नाले और झरने से झरते परनाले देख दिल डूबने लगता है।

हाँ मैं कमज़ोर हूँ, जो अंधेरे से, बिजलियों से, आसमान की आवाज़ से, बरसते बादलों से डर जाता हूँ। अब बताओ इस न रुकने वाली बारिश में कैसे कहूँ की मौसम खूबसूरत है, मेरा धान जो कल तक खड़ा था, लोट गया है खेत में, अब बताओ इस लोटते हुए धान को देख क्यों न डरूँ। मुझे डर लगता है, उन आंखों को देखकर, जिनके ख्वाब यह पानी बहा ले जा रहा है। तालाब से बने इन रास्तों को पार कर रही इन नन्ही जानों की फिक्र लिए डरता हूँ। किसी के बेघर होने की खबर से डरता हूँ। उस बेघर परिवार की किसी नन्ही सी जान के सवाल से डरता हूँ, जो अक्सर हमारी सरकार, प्रशासन व नेताओं की उदासीनता का शिकार हो रही हैं। उसका वो रोते हुए सवाल करना, भाईया हमने किसी का क्या बिगड़ा था ? भगवान भी हम ग़रीबों की ओर आँखे बंद कर लेता है कहते हुए अपनी माँ से जाकर चिपट जाना। मानो एक पल सौ बार मार डालता है। उसके किसी सवालों का जवाब न देने पाने का ख्याल ही मुझे डराता है, रात भर मुझे सोने नही देता है। 

मैं थोड़ा कमज़ोर हूँ, मुझे डर लगता है। हर उस चीज़ से डर लगता है, जिससे डरना चाहिए क्योंकि मेरा दिल, मन और मैं उतना ही आम हूँ, जितना होना चाहिए। मैं निडर हूँ तो केवल ज़ुल्म के सामने मगर मैं छिपकली से भी डर जाता हूँ। मेरा डर मुझे इंसान बने रहने देता है और देखो, मैं इस बरसते हुए पानी और चमकती बिजली से डर रहा हूँ...

वह कितने खुशनसीब हैं, जो कह लेते हैं। ज़मीन को देखता हूँ अक्सर, तो सोचता हूँ कि यह अनवरत चल कैसे लेती है, फिर देखता हूँ कि वह कहीं, सोते फोड़कर ठंडा पानी उगल देती है तो कहीं लावा उगलकर ज्वालामुखी बना देती है। यह धरती चलती है, क्योंकि कह लेती है और एक दिन कह नही पाने वाले सभी लोग चले जाएँगे और रह जाएंगी वह बातें, जो आज पढ़ सुन रहा हूँ....

तुम थे तो कितने दूर थे, अब नही हो, तो कितने अपने हो...