Friday, 5 August 2022

किसे न होगा सावन प्यारा


धरती से टकराने वाली बारिश की बूंदों की खुशबू हमारी आत्मा को भर देती है क्योंकि पानी का छींटा हमारे कानों के लिए शुद्ध संगीत है। आकाश में जब बादल उमड़ते हैं तो प्रेमी का मन मयूर नाचने लगता है। रिमझिम में नवयौवना का प्रेमी उससे दूर रहे, यह उसे किसी कीमत पर सहन नहीं हो सकता। तभी तो बरसात में जैसे झींगुर या मेढ़क बढ़ जाते हैं, उसी तरह अनायास प्रेमियों की संख्या में भी बाढ़ सी आ जाया करती है। वजह, हर युवा मन प्रेम की तरंगों में हिचकोले खाने लगता है। कह सकते हैं कि नदी में जिस तरह बाढ़ आती है, ठीक वैसे ही इस मौसम में इश्क परवान चढ़ता है।




किसे न होगा सावन प्यारा, कौन है जो कजरी पर झूम नहीं जाता, मेघ देखकर अब भी तो निकट महसूस होता है प्रेम। बारिश तो प्रेमियों का इत्र है, बदन पे मलो तो महक उठे। फिर किसके भीतर प्रेम नहीं रहता, सभी तो गढ़ते हैं अपने हिस्से की परिभाषा। मनुष्य को न देखो तो दरख़्तों को निहारो, बरखा में संवाद करते हैं वे और सावन में उन पर डले झूले। आकाश तक पहुंचने की कोशिश में नन्हे कदम महत्वाकांक्षाओं की पहली उड़ान भरते हैं। 

जब बारिश के बाद खिलते हैं धनक के रंग और मयूर के पंख तो थोड़े सुर्ख़ हो जाते हैं गाल भी। धरती पर हर बूंद के साथ नृत्य करती हैं कलियां, उनके निखर जाने का समय जो है। तमाम रंग जोड़कर इकट्ठा करता है चित्रकार, पीत में मिलाकर नील बरसाए तो हरा बने। मेघ नहीं बरसते मात्र सावन में स्मृति भी रिसती हैं, दीवार पर पानी की बूंदें आती हैं जैसे जाने कहां से। 

कितना कुछ फिर लौट आता है इस महीने, मैंने जाना कि जो नहीं है मौजूद मैंने उसे आज तक नहीं कहा है विदा।

वैसे बारिश को एक निश्चित अनुपात में होना चाहिए। इतना कि कोई गीला हो पर डूबे ना। फूल खिलें पर गलें ना। जो लोग घरों के बाहर हैं वे वापस लौट सकें। फसल और चेहरे खिल सकें। 

बारिश को इतना भर होना चाहिए कि किसी को याद किया जा सके, इतना ही बरसे पानी कि जिसे याद किया है उसे भुलाया जा सके।

किसी ने क्या खूब कहा है,
शब्दों के बीज से विचारों के वृक्ष बनते हैं,
मैं सचेत रहता हूं कि जब इनसे फूल झरें,
तो सहेजे जाएं किताबों के बीच में।

No comments:

Post a Comment