Sunday, 26 November 2023

साहब, युवा वोटर मांगे रोज़गार—



किसी भी देश व समाज के संतुलित विकास में उस देश के नियम व कानून बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। भारत में इन कानूनों-नियमों का शासन शास्त्र संविधान कहलाता है। शासन प्रशासन की शक्तियों का स्त्रोत हमारा भारतीय संविधान अपने आप में एक विशेष आयाम रखता है जिस आधार पर ही यह विश्व का सबसे लम्बा व विस्तृत संविधान होने का गौरव प्राप्त है। भारतीय संविधान निर्माण की गाथा ऐतिहासिक रही है।


जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों की प्रक्रिया जारी है, वहां युवा नौकरियों और रोजगार का मुद्दा खूब गूंज रहा है। सिर्फ इसी आधार पर राजनीतिक दलों को कितना जनादेश प्राप्त होगा, यह कहना अनिश्चित है, लेकिन दलों के घोषणा-पत्रों में सरकारी नौकरियों को लेकर आश्वासन प्रमुख रूप से बांटे गए हैं। भाजपा या कांग्रेस के अलावा, मिजोरम की क्षेत्रीय पार्टियों को भी वायदा करना पड़ा है कि उनकी सरकार युवाओं के लिए इतनी सरकारी नौकरियां और रोजगार के अवसर पैदा करेगी। रोजगार के क्षेत्र में बड़े घोटाले सामने आ रहे हैं कि किस सरकार के दौरान कितने पेपर लीक कराए गए। अव्वल तो सरकारी नौकरियों में भर्ती की परीक्षाएं लटकाई जाती रही हैं। यदि परीक्षा हो गई, तो उनके नतीजे अनिश्चित अंधेरों में डूब जाते हैं। यदि परीक्षाओं के बाद सफल चेहरों को नियुक्ति-पत्र मिल भी गए, तो ज्वाइनिंग में आनाकानी की जाती रही है। अंतत: अदालतों में धक्के खाने पड़ते हैं और वहां भी सब कुछ अनिश्चित है। इन धांधलियों और घपलों पर युवा मतदाता सरकारी नौकरियों को लेकर पूरी तरह आश्वस्त कैसे हो सकता है? घोषित राजनीतिक आश्वासनों पर जनादेश दिए जाएंगे, सरकारें बनेंगी, उसके बाद नौकरी या रोजगार का वायदा, समयबद्ध और चरणबद्ध तरीके से, पूरा नहीं किया गया, तो युवा वोटर क्या कर सकते हैं? जनादेश तो पांच साल के लिए होता है। पांच साल के बाद राजनीतिक परिदृश्य और समीकरण क्या होंगे, पार्टियां इन चिंताओं में दुबली नहीं हुआ करतीं। अलबत्ता युवाओं के सामने आंदोलन का रास्ता जरूर खुला है।

उनसे पूर्ण न्याय कब मिला है? बहरहाल तेलंगाना में कांग्रेस ने ‘जॉब कलैंडर’ तय करने का वायदा किया है। भाजपा ने तेलंगाना लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं के मद्देनजर पारदर्शी और समयबद्ध समाधान देने का वायदा किया है। दोनों दलों को तेलंगाना में जनादेश मिलने के आसार नहीं हैं। राजस्थान में उन युवाओं को समर्थन दिया जा रहा है, जिन्होंने सरकारी नौकरियों में भर्ती की निरंतर और सिलसिलेवार देरी के खिलाफ आवाज उठाई है। तेलंगाना और राजस्थान में युवा बेरोजगारी दर क्रमश: 15.1 फीसदी और 12.5 फीसदी है, जो देश भर में सर्वाधिक हैं। कमोबेश बेरोजगारी की राष्ट्रीय दर करीब 8 फीसदी से तो ज्यादा है। राजस्थान लोक सेवा आयोग की परीक्षाएं विवादों और घोटालों में संलिप्त रही हैं। लगातार पेपर लीक, परीक्षा परिणामों में धांधलियों, कानूनी पचड़ों के कारण बीते चार साल में 8 परीक्षाएं रद्द करनी पड़ी हैं। मध्यप्रदेश में आज भी ‘व्यापम घोटाले’ की गूंज सुनाई देती है। हालांकि अब यह उतना प्रासंगिक चुनावी मुद्दा भी नहीं है। पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे 2022-23 के मुताबिक, मप्र में युवा बेरोजगारी की दर चुनावी राज्यों में सबसे कम 4.4 फीसदी है। तेलंगाना, राजस्थान और मिजोरम (11.9 फीसदी) में युवा बेरोजगारी की दर राष्ट्रीय दर से अधिक है। छत्तीसगढ़ में यह दर 7.1 फीसदी है। बेशक सरकारी नौकरियों और रोजगार के बेहतर अवसरों के आश्वासन सभी राजनीतिक दलों ने बांटे हैं, लेकिन युवा मतदाताओं की चिंताओं, प्रतिबद्धताओं और उनके सरोकारों पर ‘राजनीति’ ज्यादा की जा रही है। महिलाओं में बेरोजगारी की दर अधिक और गंभीर है। बहरहाल ये आंकड़े और संकेत चिंताजनक हैं।

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