बहुत दिनों से सोच रहा था आंखिर यह कहावत क्यों बनी होगी? मैंने अक्सर बचपन से लेकर आज तक हजारों बार इस कहावत को सुना था कि "कहां राजा भोज- कहां गंगू तेली" आमतौर पर यह ही पढ़ाया और बताया जाता था कि इस कहावत का अर्थ अमीर और गरीब के बीच तुलना करने के लिए है। पर गाँव से बाहर जाकर पता चला कि कहावत का दूर-दूर तक अमीरी- गरीबी से कोई संबंध नहीं है और ना ही कोई गंगू तेली से संबंध है। आज तक तो सोचता था कि किसी गंगू नाम के तेली की तुलना राजा भोज से की जा रही है यह तो सिरे ही गलत है। बल्कि गंगू तेली नामक शख्स तो खुद राजा थे।
जब इस बात का पता चला तो आश्चर्य की सीमा न रही साथ ही यह भी समझ आया यदि घुमक्कड़ी ध्यान से करो तो आपके ज्ञान में सिर्फ वृद्धि ही नहीं होती बल्कि आपको ऐसी बातें पता चलती है जिस तरफ किसी ने ध्यान ही नहीं दिया होता और यह सोचकर हंसी भी आती है। यह कहावत हम सब उनके लिए सबक है जो आज तक इसका इस्तेमाल अमीरी गरीबी की तुलना के लिए करते आए हैं।
इस कहावत का संबंध मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल और उसके जिला धार से है। भोपाल का पुराना नाम भोजपाल हुआ करता था। भोजपाल नाम धार के राजा भोजपाल से मिला। समय के साथ इस नाम में से "ज" शब्द गायब हो गया और नाम भोपाल बन गया।
अब बात कहावत की कहते हैं, कलचुरी के राजा गांगेय (अर्थात गंगू) और चालूका के राजा तेलंग (अर्थात तेली) ने एक बार राजा भोज के राज्य पर हमला कर दिया इस लड़ाई में राजा भोज ने इन दोनों राजाओं को हरा दिया उसी के बाद व्यंग्य के तौर पर यह कहावत प्रसिद्ध हुई "कहां राजा भोज-कहां गंगू तेली"।
❣️अनायास ही भूपेन हजारिका का यह गीत मुझे याद आता है--
गली के मोड़ पे..
सूना सा कोई दरवाजा
तरसती आंखों से रस्ता किसी का देखेगा।
निगाह दूर तलक..
जा के लौट आयेगी
करोगे याद तो हर बात याद आयेगी।
कुछ क़िस्से, कुछ कहानियाँ ही इतिहास है। जिन्हें हम सब भूलते जा रहे हैं। सब समझाइए, लोगों के मन में छोटे-बड़े शहरों के प्रति मोह जगाइए, प्रेम जगाइए। पढ़ने वाले तो सब जगह पढ़ लेते हैं।
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