Thursday, 16 November 2023

कृत्रिम मेघा और पत्रकारिता



मेरा इकलौता सुझाव यह है कि, अपने सपने का अनुसरण करें और वहीं करें जो आपको सबसे अच्छा लगता हो। मैंने पत्रकारिता इसलिए चुना, क्योंकि मैं ऐसी जगहों पर होना चाहता था जहां इतिहास गढ़े जाते हों। 


स्वतंत्रता आंदोलन के कालखण्ड में राष्ट्र जागरण में समाचार पत्रों की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका रही है, इसलिए हमारे देश में पत्रकारिता व्यवसाय नही, अपितु सांस्कृतिक मूल्यों के उन्नयन और सामाजिक न्याय का आश्वासन है। सूचना और संचार की क्रान्ति के इस युग में प्रेस की स्वायत्तता और अभिव्यक्ति सुरक्षित रहे, किन्तु समाज के प्रति मीडिया की संवेदनशीलता और अधिक अपेक्षित है।  

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (कृत्रिम मेघा) आने वाले समय में पत्रकारिता में क्रांतिकारी परिवर्तन लायेगा। आने वाले भविष्य में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के युग में मीडिया नए कीर्तिमान स्थापित करेगा। यह ठीक वैसा ही वाक्या है जब देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी ने देश को कंप्यूटर व हर हाथ मोबाईल का सपना दिखाया था। जिसके अपने कुछ फ़ायदे व नुक़सान हैं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भी इस क्षेत्र का एक अगला कदम है। 

बदलते समय के साथ तकनीक में बदलाव भी आवश्यक है और बदलते समय के साथ इससे अपनाना भी आवश्यक है। कृत्रिम बुद्धिमता आगामी समय की मांग है जो पत्रकारिता को आगे बड़ाने में सहायक सिद्ध होगा। कृत्रिम बुद्धिमत्ता आने वाले समय में पत्रकारिता में क्रांतिकारी परिवर्तन लायेगा। बदलते परिवेश में मीडिया की भूमिका में भी बदलाव आया है। एक सशक्त राष्ट्र निर्माण व विकास में मीडिया की अहम भूमिका है तथा लोकतंत्र में मीडिया का प्रमुख स्थान है तथा इसे लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ भी कहा जाता है।


माना जाता है कि मीडिया सरकार व प्रशासन के बीच सेतु के रूप में कार्य करता है तथा सरकार की विकासात्मक नीतियों व कार्यक्रमों को लोगों तक पहुँचाने में मीडिया की अहम भूमिका रहती है। वहीं इन योजनाओं से मिलने वाले लाभों व योजना की सफलता व कमियों के बारे में फीडबैक देने भी में मीडिया की अहम भूमिका है।

आज जहां समाज और व्यवस्था के हर अंग में नैतिक गिरावट आई है, वहां पत्रकारिता की गिरावट के लिए केवल पत्रकारों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। जहां वे पेशेवर मानकों और नैतिकता को बनाए रखने की जिम्मेदारी निभाते हैं, वहीं जनता भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। 

एक जीवंत लोकतंत्र और मजबूत मीडिया पारिस्थितिकी तंत्र के लिए पत्रकारों और जनता के बीच साझेदारी की आवश्यकता होती है, जो सटीक, विश्वसनीय और सार्थक जानकारी के प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम करते हैं। केवल सामूहिक प्रयासों से ही हम चुनौतियों से निपट सकते हैं और एक ऐसे भविष्य का निर्माण कर सकते हैं जहां पत्रकारिता लोकतंत्र के चौथे स्तंभ और सकारात्मक बदलाव के लिए एक आवश्यक शक्ति के रूप में विकसित हो। 

लोगों के लिए हर जगह जाना असंभव है, इसलिए दुनिया के बारे में उनकी समझ मीडिया पर निर्भर करती है। प्रसारण, टेलीविज़न, प्रिंट मीडिया तथा ऑनलाइन मीडिया सभी की ज़िम्मेदारी है कि वे लोगों को अच्छी तस्वीर प्रदान करें, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उन्हें झूठी जानकारी फैलानी चाहिए या जानबूझकर तथ्यों को विकृत करना चाहिए। मीडिया सूचनाओं और विचारों को संप्रेषित करने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाता है। लेकिन, व्यावसायीकरण के कारण कई मीडिया अपनी निष्पक्षता खो चुके हैं। विशेष हितों और राजनीतिक स्थितियों के अनुरूप समाचार रिपोर्टों में हेराफेरी और छेड़छाड़ की जाती है। झूठी जानकारियों के फैलने से सामाजिक भ्रम पैदा हुआ और अविश्वास बढ़ा।  
 
भविष्य में समाज चाहे कैसा भी विकसित हो, मीडिया एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। और मीडिया चाहे कोई भी मॉडल विकसित करे, पाठ, ध्वनि और चित्र मीडिया की मुख्य सामग्री होंगे। मीडिया तस्वीर और ध्वनि के माध्यम से लोगों को विभिन्न प्रकार के मनोरंजन और जानकारी प्रदान करता है। लेकिन अगर मीडिया वास्तविक जीवन के प्रतिबिंब को नजरअंदाज करते हुए और केवल झूठी सुंदरता को लोगों तक पहुंचाते हुए, आँख बंद करके उच्च रेटिंग और व्यावसायिक हितों का पीछा करता है, तो इससे लोगों को वास्तविक जीवन में और अधिक निराशा महसूस होगी। इस संबंध में न केवल मीडिया, बल्कि मुझे डर है कि फिल्में भी वही भूमिका निभाती हैं। वास्तव में, फिल्में सबसे शक्तिशाली प्रचार सामग्री हैं। सभी देशों की फिल्में अपनी कलात्मक सामग्री के माध्यम से लोगों तक विचार पहुंचाती हैं।
  
मीडिया की झूठ जानकारियों से लोग जीवन में सच्चाई का सामना करने में असमर्थ हैं, जिससे लोगों के बीच अलगाव को भी बढ़ावा मिलता है। उदाहरण के लिए, इंटरनेट पर लोग अपने सच्चे विचारों और भावनाओं को व्यक्त करने के लिए अधिकतर छद्म शब्दों का प्रयोग करते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि लोग गुमनाम ऑनलाइन वातावरण में अपनी राय अधिक खुलकर व्यक्त कर सकते हैं। लेकिन, यह गुमनामी अपने साथ झूठी, अपमानजनक और गैरजिम्मेदाराना बयानबाजी भी लाती है। आज इंटरनेट अफवाहों और दुर्भावनापूर्ण टिप्पणियों से भरा है, क्योंकि नेटिजनों को अपनी वास्तविक पहचान की ज़िम्मेदारी नहीं उठानी पड़ती है। संक्षेप में, मीडिया में फेक जानकारियों का प्रसार आधुनिक समाज में मूल्यों के असंतुलन को दर्शाता है। केवल इमानदारी संचार और पारस्परिक समझ के माध्यम से ही दुनिया को बढ़ावा मिलेगा।

लोकतंत्र के सजग प्रहरी के रूप में जन-जन की आवाज़ बनकर राष्ट्र एवं समाज को सही दिशा देने वाले सभी पत्रकार बंधुओं को राष्ट्रीय प्रेस दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ। आपकी सजग, स्वतंत्र और साहसिक पत्रकारिता राष्ट्रनिर्माण के यज्ञ में आवश्यक आहुति है।

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