Sunday, 26 November 2023

गगनचुंबी छवि की तलाश-


‘चलो कहीं भरपूर विकास दिखाया जाए, सियासी मिट्टी पर सीमेंट उगाया जाए।’ कुछ इसी तरह के उदाहरणों का मिट्टी परीक्षण होता रहा है और वर्तमान सरकार ने भी निरीक्षण-परीक्षण की जिरह पैदा करते हुए, उत्तराखंड में प्रगति का मुआयना शुरू किया है। संस्थानों की डिनोटिफिकेशन के बाद यह तो साबित हो रहा है कि चुनावी जुबान ने सत्तापक्ष की दिलदारी के नक्शे पर ऐसा नुकसान कर दिया जो प्रदेश के बूते से बाहर है।


ऐसे वक़्त में जब उत्तरकाशी स्थित सिल्क्यारा की धसकी हुई सुरंग में 14 दिनों से 41 मजदूर फंसे पड़े हैं, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी गगन में लड़ाकू विमान में बैठकर उड़ान भर रहे हैं। पिछले करीब एक हफ्ते से लग रहा था कि अंधेरी सुरंग में मजदूर कभी भी बाहर आ सकते हैं, लेकिन हर गुजरता दिन बेनतीजा साबित हो रहा है। इन सबसे बेपरवाह मोदीजी के उत्साह में कोई कमी नहीं आई है। एक राज्य से निकलकर दूसरे राज्य में चुनावी रैलियों को सम्बोधित करते हुए राजस्थान में गुरुवार की शाम को प्रचार अभियान थमने के तुरन्त बाद मोदी मथुरा पहुंचे जहां उन्होंने ब्रज रज उत्सव के नाम से आयोजित मीरा जन्मोत्सव में हिस्सा लिया। फिर वे शुक्रवार की अल्लसुबह कृष्णजन्मभूमि में उस स्थान पर भगवा वस्त्र धारण कर पहुंचे जहां श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। दूसरी तरफ शनिवार को सुरंग में बचाव अभियान इसलिये रुक गया क्योंकि ड्रिलिंग के दौरान ऑगर मशीन की ब्लेड सरियों से टकराकर टूट गई। अब मलबे को हाथ से हटाये जाने की तैयारी है और मजदूरों को बाहर का सूरज देखने के लिये अभी इंतज़ार करना पड़ सकता है।

मोदीजी के पास एक और डबल इंजिन वाले राज्य उत्तराखंड की सुरंग में फंसी 41 ज़िंदगियों के लिये चिंता करने का समय नहीं है। उन्हें आकाश में उड़ान भरकर पहले अपनी छवि को गगनचुंबी जो बनाना है।


वो 41 मज़दूर, अगर चंद्रयान-3 पर सवार होते तो 22 वें दिन चंद्रमा की कक्षा में पहुंच गये होते। लेकिन पिछले 16 दिनों से, वे ज़मीन के नीचे सुरंग में क़ैद हैं। उन्हें धरती की सतह पर भी वापस नहीं लाया जा सका है।

ये केवल उनके भविष्य की बात नहीं है। कल इन्हीं हिमालयी सुरंगों से होकर, बसों, कारों, रेल वगैरह में सवार, हज़ारों टूरिस्ट, तीर्थ यात्री और यहाँ के आम पहाड़ी लोग यात्राएं करेंगे। यकीन मानिये हम में से किसी के लिए भी, कोई चंद्रयान नहीं आयेगा।


साहब, युवा वोटर मांगे रोज़गार—



किसी भी देश व समाज के संतुलित विकास में उस देश के नियम व कानून बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। भारत में इन कानूनों-नियमों का शासन शास्त्र संविधान कहलाता है। शासन प्रशासन की शक्तियों का स्त्रोत हमारा भारतीय संविधान अपने आप में एक विशेष आयाम रखता है जिस आधार पर ही यह विश्व का सबसे लम्बा व विस्तृत संविधान होने का गौरव प्राप्त है। भारतीय संविधान निर्माण की गाथा ऐतिहासिक रही है।


जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों की प्रक्रिया जारी है, वहां युवा नौकरियों और रोजगार का मुद्दा खूब गूंज रहा है। सिर्फ इसी आधार पर राजनीतिक दलों को कितना जनादेश प्राप्त होगा, यह कहना अनिश्चित है, लेकिन दलों के घोषणा-पत्रों में सरकारी नौकरियों को लेकर आश्वासन प्रमुख रूप से बांटे गए हैं। भाजपा या कांग्रेस के अलावा, मिजोरम की क्षेत्रीय पार्टियों को भी वायदा करना पड़ा है कि उनकी सरकार युवाओं के लिए इतनी सरकारी नौकरियां और रोजगार के अवसर पैदा करेगी। रोजगार के क्षेत्र में बड़े घोटाले सामने आ रहे हैं कि किस सरकार के दौरान कितने पेपर लीक कराए गए। अव्वल तो सरकारी नौकरियों में भर्ती की परीक्षाएं लटकाई जाती रही हैं। यदि परीक्षा हो गई, तो उनके नतीजे अनिश्चित अंधेरों में डूब जाते हैं। यदि परीक्षाओं के बाद सफल चेहरों को नियुक्ति-पत्र मिल भी गए, तो ज्वाइनिंग में आनाकानी की जाती रही है। अंतत: अदालतों में धक्के खाने पड़ते हैं और वहां भी सब कुछ अनिश्चित है। इन धांधलियों और घपलों पर युवा मतदाता सरकारी नौकरियों को लेकर पूरी तरह आश्वस्त कैसे हो सकता है? घोषित राजनीतिक आश्वासनों पर जनादेश दिए जाएंगे, सरकारें बनेंगी, उसके बाद नौकरी या रोजगार का वायदा, समयबद्ध और चरणबद्ध तरीके से, पूरा नहीं किया गया, तो युवा वोटर क्या कर सकते हैं? जनादेश तो पांच साल के लिए होता है। पांच साल के बाद राजनीतिक परिदृश्य और समीकरण क्या होंगे, पार्टियां इन चिंताओं में दुबली नहीं हुआ करतीं। अलबत्ता युवाओं के सामने आंदोलन का रास्ता जरूर खुला है।

उनसे पूर्ण न्याय कब मिला है? बहरहाल तेलंगाना में कांग्रेस ने ‘जॉब कलैंडर’ तय करने का वायदा किया है। भाजपा ने तेलंगाना लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं के मद्देनजर पारदर्शी और समयबद्ध समाधान देने का वायदा किया है। दोनों दलों को तेलंगाना में जनादेश मिलने के आसार नहीं हैं। राजस्थान में उन युवाओं को समर्थन दिया जा रहा है, जिन्होंने सरकारी नौकरियों में भर्ती की निरंतर और सिलसिलेवार देरी के खिलाफ आवाज उठाई है। तेलंगाना और राजस्थान में युवा बेरोजगारी दर क्रमश: 15.1 फीसदी और 12.5 फीसदी है, जो देश भर में सर्वाधिक हैं। कमोबेश बेरोजगारी की राष्ट्रीय दर करीब 8 फीसदी से तो ज्यादा है। राजस्थान लोक सेवा आयोग की परीक्षाएं विवादों और घोटालों में संलिप्त रही हैं। लगातार पेपर लीक, परीक्षा परिणामों में धांधलियों, कानूनी पचड़ों के कारण बीते चार साल में 8 परीक्षाएं रद्द करनी पड़ी हैं। मध्यप्रदेश में आज भी ‘व्यापम घोटाले’ की गूंज सुनाई देती है। हालांकि अब यह उतना प्रासंगिक चुनावी मुद्दा भी नहीं है। पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे 2022-23 के मुताबिक, मप्र में युवा बेरोजगारी की दर चुनावी राज्यों में सबसे कम 4.4 फीसदी है। तेलंगाना, राजस्थान और मिजोरम (11.9 फीसदी) में युवा बेरोजगारी की दर राष्ट्रीय दर से अधिक है। छत्तीसगढ़ में यह दर 7.1 फीसदी है। बेशक सरकारी नौकरियों और रोजगार के बेहतर अवसरों के आश्वासन सभी राजनीतिक दलों ने बांटे हैं, लेकिन युवा मतदाताओं की चिंताओं, प्रतिबद्धताओं और उनके सरोकारों पर ‘राजनीति’ ज्यादा की जा रही है। महिलाओं में बेरोजगारी की दर अधिक और गंभीर है। बहरहाल ये आंकड़े और संकेत चिंताजनक हैं।

Tuesday, 21 November 2023

कहां राजा भोज- कहां गंगू तेली —


बहुत दिनों से सोच रहा था आंखिर यह कहावत क्यों बनी होगी? मैंने अक्सर बचपन से लेकर आज तक हजारों बार इस कहावत को सुना था कि "कहां राजा भोज- कहां गंगू तेली" आमतौर पर यह ही पढ़ाया और बताया जाता था कि इस कहावत का अर्थ अमीर और गरीब के बीच तुलना करने के लिए है। पर गाँव से बाहर जाकर पता चला कि कहावत का दूर-दूर तक अमीरी- गरीबी से कोई संबंध नहीं है और ना ही कोई गंगू तेली से संबंध है। आज तक तो सोचता था कि किसी  गंगू नाम के तेली की तुलना राजा भोज से की जा रही है यह तो सिरे ही गलत है। बल्कि गंगू तेली नामक शख्स तो खुद राजा थे। 


जब इस बात का पता चला तो आश्चर्य की सीमा न रही साथ ही यह भी समझ आया यदि घुमक्कड़ी ध्यान से करो तो आपके ज्ञान में सिर्फ वृद्धि ही नहीं होती बल्कि आपको ऐसी बातें पता चलती है जिस तरफ किसी ने ध्यान ही नहीं दिया होता और यह सोचकर हंसी भी आती है। यह कहावत हम सब उनके लिए सबक है जो आज तक इसका इस्तेमाल अमीरी गरीबी की तुलना के लिए करते आए हैं। 

इस कहावत का संबंध मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल और उसके जिला धार से है। भोपाल का पुराना नाम भोजपाल हुआ करता था। भोजपाल नाम धार के राजा भोजपाल से मिला। समय के साथ इस नाम में से "ज" शब्द गायब हो गया और नाम भोपाल बन गया। 

अब बात कहावत की कहते हैं, कलचुरी के राजा गांगेय (अर्थात गंगू) और चालूका के राजा तेलंग (अर्थात तेली) ने एक बार राजा भोज के राज्य पर हमला कर दिया इस लड़ाई में राजा भोज ने इन दोनों राजाओं को हरा दिया उसी के बाद व्यंग्य के तौर पर यह कहावत प्रसिद्ध हुई "कहां राजा भोज-कहां गंगू तेली"।

❣️अनायास ही भूपेन हजारिका का यह गीत मुझे याद आता है--

गली के मोड़ पे.. 
सूना सा कोई दरवाजा
तरसती आंखों से रस्ता किसी का देखेगा। 
निगाह दूर तलक..  
जा के लौट आयेगी
करोगे याद तो हर बात याद आयेगी। 

कुछ क़िस्से, कुछ कहानियाँ ही इतिहास है। जिन्हें हम सब भूलते जा रहे हैं। सब समझाइए, लोगों के मन में छोटे-बड़े शहरों के प्रति मोह जगाइए, प्रेम जगाइए। पढ़ने वाले तो सब जगह पढ़ लेते हैं।

Thursday, 16 November 2023

कृत्रिम मेघा और पत्रकारिता



मेरा इकलौता सुझाव यह है कि, अपने सपने का अनुसरण करें और वहीं करें जो आपको सबसे अच्छा लगता हो। मैंने पत्रकारिता इसलिए चुना, क्योंकि मैं ऐसी जगहों पर होना चाहता था जहां इतिहास गढ़े जाते हों। 


स्वतंत्रता आंदोलन के कालखण्ड में राष्ट्र जागरण में समाचार पत्रों की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका रही है, इसलिए हमारे देश में पत्रकारिता व्यवसाय नही, अपितु सांस्कृतिक मूल्यों के उन्नयन और सामाजिक न्याय का आश्वासन है। सूचना और संचार की क्रान्ति के इस युग में प्रेस की स्वायत्तता और अभिव्यक्ति सुरक्षित रहे, किन्तु समाज के प्रति मीडिया की संवेदनशीलता और अधिक अपेक्षित है।  

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (कृत्रिम मेघा) आने वाले समय में पत्रकारिता में क्रांतिकारी परिवर्तन लायेगा। आने वाले भविष्य में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के युग में मीडिया नए कीर्तिमान स्थापित करेगा। यह ठीक वैसा ही वाक्या है जब देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी ने देश को कंप्यूटर व हर हाथ मोबाईल का सपना दिखाया था। जिसके अपने कुछ फ़ायदे व नुक़सान हैं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भी इस क्षेत्र का एक अगला कदम है। 

बदलते समय के साथ तकनीक में बदलाव भी आवश्यक है और बदलते समय के साथ इससे अपनाना भी आवश्यक है। कृत्रिम बुद्धिमता आगामी समय की मांग है जो पत्रकारिता को आगे बड़ाने में सहायक सिद्ध होगा। कृत्रिम बुद्धिमत्ता आने वाले समय में पत्रकारिता में क्रांतिकारी परिवर्तन लायेगा। बदलते परिवेश में मीडिया की भूमिका में भी बदलाव आया है। एक सशक्त राष्ट्र निर्माण व विकास में मीडिया की अहम भूमिका है तथा लोकतंत्र में मीडिया का प्रमुख स्थान है तथा इसे लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ भी कहा जाता है।


माना जाता है कि मीडिया सरकार व प्रशासन के बीच सेतु के रूप में कार्य करता है तथा सरकार की विकासात्मक नीतियों व कार्यक्रमों को लोगों तक पहुँचाने में मीडिया की अहम भूमिका रहती है। वहीं इन योजनाओं से मिलने वाले लाभों व योजना की सफलता व कमियों के बारे में फीडबैक देने भी में मीडिया की अहम भूमिका है।

आज जहां समाज और व्यवस्था के हर अंग में नैतिक गिरावट आई है, वहां पत्रकारिता की गिरावट के लिए केवल पत्रकारों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। जहां वे पेशेवर मानकों और नैतिकता को बनाए रखने की जिम्मेदारी निभाते हैं, वहीं जनता भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। 

एक जीवंत लोकतंत्र और मजबूत मीडिया पारिस्थितिकी तंत्र के लिए पत्रकारों और जनता के बीच साझेदारी की आवश्यकता होती है, जो सटीक, विश्वसनीय और सार्थक जानकारी के प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम करते हैं। केवल सामूहिक प्रयासों से ही हम चुनौतियों से निपट सकते हैं और एक ऐसे भविष्य का निर्माण कर सकते हैं जहां पत्रकारिता लोकतंत्र के चौथे स्तंभ और सकारात्मक बदलाव के लिए एक आवश्यक शक्ति के रूप में विकसित हो। 

लोगों के लिए हर जगह जाना असंभव है, इसलिए दुनिया के बारे में उनकी समझ मीडिया पर निर्भर करती है। प्रसारण, टेलीविज़न, प्रिंट मीडिया तथा ऑनलाइन मीडिया सभी की ज़िम्मेदारी है कि वे लोगों को अच्छी तस्वीर प्रदान करें, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उन्हें झूठी जानकारी फैलानी चाहिए या जानबूझकर तथ्यों को विकृत करना चाहिए। मीडिया सूचनाओं और विचारों को संप्रेषित करने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाता है। लेकिन, व्यावसायीकरण के कारण कई मीडिया अपनी निष्पक्षता खो चुके हैं। विशेष हितों और राजनीतिक स्थितियों के अनुरूप समाचार रिपोर्टों में हेराफेरी और छेड़छाड़ की जाती है। झूठी जानकारियों के फैलने से सामाजिक भ्रम पैदा हुआ और अविश्वास बढ़ा।  
 
भविष्य में समाज चाहे कैसा भी विकसित हो, मीडिया एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। और मीडिया चाहे कोई भी मॉडल विकसित करे, पाठ, ध्वनि और चित्र मीडिया की मुख्य सामग्री होंगे। मीडिया तस्वीर और ध्वनि के माध्यम से लोगों को विभिन्न प्रकार के मनोरंजन और जानकारी प्रदान करता है। लेकिन अगर मीडिया वास्तविक जीवन के प्रतिबिंब को नजरअंदाज करते हुए और केवल झूठी सुंदरता को लोगों तक पहुंचाते हुए, आँख बंद करके उच्च रेटिंग और व्यावसायिक हितों का पीछा करता है, तो इससे लोगों को वास्तविक जीवन में और अधिक निराशा महसूस होगी। इस संबंध में न केवल मीडिया, बल्कि मुझे डर है कि फिल्में भी वही भूमिका निभाती हैं। वास्तव में, फिल्में सबसे शक्तिशाली प्रचार सामग्री हैं। सभी देशों की फिल्में अपनी कलात्मक सामग्री के माध्यम से लोगों तक विचार पहुंचाती हैं।
  
मीडिया की झूठ जानकारियों से लोग जीवन में सच्चाई का सामना करने में असमर्थ हैं, जिससे लोगों के बीच अलगाव को भी बढ़ावा मिलता है। उदाहरण के लिए, इंटरनेट पर लोग अपने सच्चे विचारों और भावनाओं को व्यक्त करने के लिए अधिकतर छद्म शब्दों का प्रयोग करते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि लोग गुमनाम ऑनलाइन वातावरण में अपनी राय अधिक खुलकर व्यक्त कर सकते हैं। लेकिन, यह गुमनामी अपने साथ झूठी, अपमानजनक और गैरजिम्मेदाराना बयानबाजी भी लाती है। आज इंटरनेट अफवाहों और दुर्भावनापूर्ण टिप्पणियों से भरा है, क्योंकि नेटिजनों को अपनी वास्तविक पहचान की ज़िम्मेदारी नहीं उठानी पड़ती है। संक्षेप में, मीडिया में फेक जानकारियों का प्रसार आधुनिक समाज में मूल्यों के असंतुलन को दर्शाता है। केवल इमानदारी संचार और पारस्परिक समझ के माध्यम से ही दुनिया को बढ़ावा मिलेगा।

लोकतंत्र के सजग प्रहरी के रूप में जन-जन की आवाज़ बनकर राष्ट्र एवं समाज को सही दिशा देने वाले सभी पत्रकार बंधुओं को राष्ट्रीय प्रेस दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ। आपकी सजग, स्वतंत्र और साहसिक पत्रकारिता राष्ट्रनिर्माण के यज्ञ में आवश्यक आहुति है।

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