Monday, 24 April 2023

मैं और मेरा महाभारत



दोस्तों मन के अंदर जैसे ही कोई इच्छा उठती है, तो उससे जुड़ी न जाने कितनी इच्छाएं उत्पन्न हो जाती हैं। इसे आप ऐसा वृक्ष मान सकते हैं, जिसकी सैकड़ों टहनियां, हजारों डंठल और लाखों पत्तियां हैं। ये असंख्य इच्छाएं पैदा तो होती हैं मन में, लेकिन दिखाई देती हैं कल्पना के पर्दे पर। इच्छा के अनुकूल ही विचार पैदा होते हैं। ये इच्छाएं मन में उत्पन्न होती हैं, इसलिए मन ही व्यक्ति का प्रतिरूप होना चाहिए। कह सकते हैं कि मन का ही साकार रूप है मनुष्य।
वैसे मुझे रामायण की जगह महाभारत पसंद है, इसके पीछे कारण हैं महाभारत के कुछ किरदार जो आज के समाज व मुझसे मेल खाते है ! जो निम्न है!



♦️मामा शकुनी —
इनकी तरह एकदम षडयंत्रकारी, संवाग रचने की अद्भूत कला में माहिर हूँ। अक्सर मैं फेसबुक पर कुछ ऐसा लिख देता हूँ जिससे दो लोग आपस में भिड़ बैठते हैं जबकि मुझसे कोई नहीं लड़ता। कुछेक जगह ऐसी टिप्पणी कर देता हूँ जिससे वहाँ का मनोरम दृश्य जमघट में बदल जाता हैं, लोग शायरी छोड़ तलवार बाजी की बाते करने लगते हैं !

♦️धृतराष्ट्र —
अक्सर मेरी पोस्ट पर लोग लडते है तो मैं चुपचाप उनके कमेंट पढता हूँ, या नहीं भी लड़ते तो बहुत सारी टिप्पणियाँ आ जाती हैं देखता हूँ तब भी कोई जवाब नहीं देता ना लाईक करता हूँ! बस उनकी तरह अंधा नहीं हूँ पर इस मामले में बन जाता हूँ ! 

♦️भीम —
भीम की तरह भोजन उठाना, भीम की तरह मेरा भी उपहास उडाया जाता हैं मित्रो द्वारा भोजन को लेकर। पर मेरा कोमल हृदय उन्हें हर बार माफ कर देता हैं। भले 70 हाथियो जितनी ताकत नहीं है किंतु दो तीन लौन्डो़ को कभी भी अकेले रगड़ दूंगा !

♦️कर्ण — 
काबिल और ओहदा प्राप्त लोग मेरा सम्मान इसलिए नहीं करते क्योकि मेरे पास सरकारी नौकरी नहीं हैं, जबकि उनको पता हैं उनसे ज्यादा टैलेंट है मेरे में बस मेरा प्रारब्ध मेरे साथ नहीं है ! 

♦️भीष्म —
वचन निभाने में माहिर ( कई लोग इस बात से सहमत होंगे जब पढेंगे तो ) दूसरा अपने प्रण पर टिके रहना जैसे 'जो बीत गया है वो अब दौर ना आएगा, इस दिल में सिवा तेरे कोई और ना आएगा ' !

वैसे बात में दम तो है कि जितनी गहरी आपकी इच्छा होगी, कल्पनाओं के रंग भी उतने ही स्पष्ट और चटख होंगे। कल्पनाओं के रंग जितने अधिक चटखदार होंगे, उस इच्छा को पूरा करने वाले हमारे विचार भी उतने ही अधिक ठोस और मजबूत होंगे। हमारी इच्छा की गहराई ही हमारे विचारों और संकल्पशक्ति की गहराई होती है। इच्छा ही विचार बनते हैं और विचार ही हमारे कर्म बनते हैं। जब हम इन कर्र्मो को लगातार करते चले जाते हैं, तो ये ही कर्म हमारी आदत बन जाते हैं, हमारा व्यवहार बन जाते हैं और हमारी ये आदतें और व्यवहार हमारा व्यक्तित्व बन जाते हैं।


दोस्त यहां रोता वही है जिसने सच्चे रिश्ते को महसूस किया हो, वर्ना मतलब का रिश्ता रखने वालों की आंखों में न शर्म होती है और न पानी। मैं वह नहीं हूँ जो दिखता हूँ, मैं वह हूँ जो लिखता हूँ।

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