Tuesday, 11 January 2022

आन-बान-शान की भाषा 'हिंदी' तो हिंदी के प्रयोग में हिचक क्यों?


'हिंदी है हम, वतन है हिंदुस्तां हमारा' लेकिन आज देश में दो देश जी रहे हैं। एक पुराना भारत जिसे आज का शिक्षित वर्ग रूढ़िवादी मानता है। दूसरा भारत 'शिक्षित वर्ग- अंग्रेजीदां' है, जो न देश को जानता है, न परंपराओं के पीछे छिपे तत्वों को ही समझना चाहता है। मुगल आए तो उन्होंने 'भरत के भारत' को 'हिंदुस्तान' बना दिया। अंग्रेज आए तो यह 'इंडिया' बन गया। अंग्रेज चले गए तो 'इंडिया डैट इज भारत' बन गया, जो अंग्रेजियत है आज भी बची हुई है‌। इसे देखकर लगता है कि यह 'इंडिया डैट बाज भारत' न हो जाए।


लगता है आज देश में अंग्रेजों का राज (अंग्रेजी मानसिकता और संस्कृति का) स्थापित होने लगा है। भारतीय संस्कृति एवं हिंदी आज भी अंग्रेजीदां के साथ बंधी  है। इस बंधन को खोलना होगा, क्योंकि आज अंग्रेजियत हावी होती जा रही है। भारतीयता के साथ 'हिंदी की जड़' को 'अंग्रेजी कुल्हाड़ी' से काटा जा रहा है। क्या इसी का नाम 'अमृत महोत्सव' है।

आधुनिकता की ओर तेजी से अंग्रसर कुछ भारतीय ही आज भले ही अंग्रेजी बोलने में अपनी आन-बान-शान समझते हो, किंतु सच यही है कि 'हिंदी' ऐसी भाषा है जो प्रत्येक भारतवासी को वैश्विक स्तर पर मान-सम्मान दिलाती है। सही मायनों में हिन्दी विश्व की प्राचीन समृद्ध एवं सरल भाषा है।

भारत की राजभाषा हिंदी जो न केवल भारत में बल्कि अब दुनिया के अनेक देशों में बोली जाती है, पढ़ाई जाती है। भले ही दुनिया में अंग्रेजी भाषा का सिक्का चलता हो लेकिन हिंदी अब अंग्रेजी भाषा से ज्यादा पीछे नहीं है। उसका सम्मान कीजिए। हिंदी में बोलिए। हिंदी में पत्र व्यवहार कीजिए। तभी सार्थक होगा आज का 'विश्व हिंदी दिवस'।

आज हिंदी देश की आधी से ज्यादा आबादी की आम जुबान है। सिनेमा, टीवी ने इसे बाजार व्यवसाय की एक कामयाब भूमिका में ढाला है। रोजगार की व्यापक दुनिया खुली है। फिर भी हिंदी हमारी जीवन शैली का जरूरी हिस्सा बनती नहीं दिख रही। आखिर क्यों? कौन सी ऐसी हिचक है जो आड़े आ रही है?

भारत विभिन्न भाषाओं एवं बोलियों का देश है। इसमें अंग्रेजी ही सामान्य भाषा के रूप में काम करती है जो अंतर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में मान्य है अत: यही अंग्रेजी भाषा अब आवश्यकता बन गई है। अधिकतर अच्छे विद्यालय अंग्रेजी माध्यम के हैं जहाँ प्राथमिक शिक्षा अंग्रेजी में दी जाती है। इसी कारण हिंदी उपेक्षित हुई है।

'हिंदी है हम, वतन है हिंदुस्तां हमारा' लेकिन आज लगभग सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में अंग्रेजी में प्रश्न पूछना एक परंपरा सी है, जिससे हिंदी पूर्ण तय: उपेक्षित रही है। सूचना क्रांति के दौर में पुस्तकों का महत्व बढ़ा है लेकिन हिंदी में विश्वस्तरीय पुस्तकों का अभाव, वैज्ञानिक एवं परिभाषित शब्दों का हिंदी में अनुवाद न होना, तकनीकी एवं उच्च शिक्षण संस्थानों में अध्ययन का माध्यम अंग्रेजी का होना मुख्य कारण है। ऐसे हालात में हिंदी की जो उपेक्षा हो रही है, हम सभी के लिए चिंता का विषय होना चाहिए।


♦️अब यूनेस्को ने हिंदी प्रसार के लिए उठाए कदम 

दुनिया के एक सौ से ज्यादा देशों में कल 10 जनवरी को 'विश्व हिंदी दिवस' मनाया गया। हिंदी अपनी सरलता की वजह से हमारे ज्ञान और संस्कृति के प्रसार में काफी अहम भूमिका निभा रही है। इसमें संदेह नहीं कि सूचना और तकनीक के क्षेत्र में हिंदी का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल और युवाओं के बीच इसकी लोकप्रियता की वजह से आने वाले समय में हिंदी भाषा का भविष्य काफी उज्जवल होगा।

इस बीच हिंदी प्रेमियों के लिए यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र संघ की एक शाखा) की तरफ से एक खुशखबरी है कि विश्व धरोहर केंद्र ने भारत के यूनेस्को द्वारा चिन्हित धरोहर स्थलों के ब्यौरे को अपनी वेबसाइट पर हिंदी में प्रकाशित करने की सहमति जताई है।

उधर विदेश में हिंदी की पढ़ाई को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सरकार ने विदेशी यूनिवर्सिटीज में भारत की भाषा, संस्कृति और पढ़ाई को आगे बढ़ाने के लिए 50 पद स्थापित किए हैं। इनमें 13 पद हिंदी के प्रसार के लिए बनाए गए हैं। वर्तमान में एक सौ देशों में 670 शिक्षण संस्थानों में हिंदी भाषा पढ़ाई जाती है जो यह दर्शाता है कि भविष्य में वैश्विक स्तर पर हिंदी का अविरल रुप से बढ़ना जारी रहेगा। और एक हमारा देश भारत जो हिन्दी की जननी है वहाँ हिन्दी को छोड़ अंग्रेज़ी का मोह अधिक है। राष्ट्रभाषा हिन्दी व कार्यभाषा अंग्रेज़ी।

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