Wednesday, 27 October 2021

विश्व गुरू भारत सन् 2050 मेरा एक हसीन ख्वाब



बहुत लम्बे समय के बाद या यूं कह सकते हैं कि मुझे ठीक से याद भी नही कि आज से पहले कब ऐसा हुआ होगा मेरे साथ, कल जल्दी नीद ने अपने आगोश में ऐसे लिया कि पता ही नही चला कब भोर हो गयी, दिन चड आया। आंख तब खुली जब मेरे कानों में माँ का प्रसाद पहुँचा।


बात करता हूँ कल रात नीद की बाहों में रहते हुए जो हशीन ख्वाब देखा उसकी, मैं एक छोटे से शहर में हूँ। सड़क के दोनों तरफ दुकानें हैं। आसपास गौ मूत्र के अधिकृत विक्रेता, शुध्‍द और मिलावट रहित गोबर के लिए सम्पर्क करें, खली चूनी रेस्टोरेंट आदि के बोर्ड जगमगा रहे हैं। एक दो दुकानें मल्टीनेशनल कम्पनियों के वितरकों की भी हैं। ये पहले खाद,  बीज, कीटनाशक आदि बेचते थे। अब ऐसा पशु आहार बेचते हैं,  जिसको खाकर गाय ज्यादा गोबर करती है। जो गाय जितना ज्यादा गोबर और मूत्र विसर्जन करती है, उतनी मँहगी बिकती है। 
शहर के लोग इस समय देश भक्ति से भरे हुए हैं। पाकिस्तान से निर्णायक युध्द होने वाला है।  दुकानों पर बैठे मोटे तुंदियल रह रह कर "जय जय श्रीराम" चिल्लाते हैं। ट्रकों में भर-भरकर पूजन और हवन सामग्री सीमा पर पहुँचाई जा रही है। इनके साथ पुरोहित कालेजों से स्नातक योद्धा रणभूमि में जा रहे हैं। ये ऐसे ऐसे मंत्र जानते हैं जिनको सुनकर टैंक ध्वस्त हो जाते हैं। 
सड़क और रेलमार्ग से भारी मात्रा में गोबर और गौमूत्र बार्डर पर पहुँचाया जा रहा है। पाकिस्तान का अन्त निकट है। 


और चीन?  
चीन आजकल गौमूत्र और गोबर का सबसे बड़ा उत्पादक है। भारत चीन से इनका आयात करता है। 
दोनों देशों के बीच मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध हैं। 
कभी-कभी लोग शिकायत करते हैं कि चीन से आनेवाले गोबर में मानव मल की मिलावट है!
आगे दुकान में कुछ अंधेरा सा दिख रहा है मन में कई ख्याल और सवाल जन्म ले रहे हैं। इस चकाचौंध के बीच अंधेरा कैसा ? कौन होगा यहाँ ? किस तरह की दुकान है ये ? जैसे ही मैं उस दरवाज़े पर पहुँचा, वहाँ कोई नजर नही आ रहा था, मैंने डोर बैल बजाई फिर भी कोई जवाब नही मिला। फिर मैं मन में अनगिनत सवाल लिए एकदम शान्त सा वहाँ खड़ा था। तभी मुझे पीछे से कहीं दूर कोई आवाज़ मेरे कानों में सुनाई दी। मैं चौका, वो आवाज़ मेरी माँ जी की थी जो चाय लेकर मुझे बहुत देर से आवाज़ लगा रही थी। मैंने जल्दी से कमरे का दरवाज़ा खोला, माँ से चाय ली। माँ ने जल्दी-जल्दी में दो चार प्रवचन दिये और चल दी। मैंने भी वापस दरवाज़ा बंद किया, चाय पीते हुए सोचने लगा ये सब क्या था जो अभी तक मैं देख रहा था, मेरी हंसी फूट पड़ी। मेरी हंसी की आवाज़ बाहर काम कर रही मेरी माँ के कानों तक पहुँची तो फिर बोलने लगी, तेरा अभी समय नही हुआ उठने का लोगों को देखो, मैं न जगाऊँ तो दिन भर सोया रहेगा। मुझे लगता है शायद कभी ऐसा ही न हो जाए, खैर (मैं मेरी नीद) इस पर किसी और रोज खुल कर बात करेंगे। 

♦️ महान विचारक व लेखक सेपियन्स की किताब ‘मानव जाति का संक्षिप्त इतिहास’ में एक बेहद खूबसूरत लाईन लिखी गई है— 

“आप किसी बन्दर को यह विश्वास नहीं दिला सकते कि वह आपको एक केला दे दे तो उसे जन्नत में असंख्य केले मिलेंगे। ऐसा विश्वास सिर्फ मनुष्य को दिलाया जा सकता है।”

Friday, 22 October 2021

प्यार, इश्क और मोहब्बत में ख़ुशी भी हैं और गम भी !!

एक तलाश है ज़िन्दगी, कोई तो साथी चाहिए
बड़ी उदास है ज़िन्दगी, कोई तो साथी चाहिए..

जी हाँ दोस्तों फ़िल्मी गानों में दर्द, हो तो वह गाना हिट है!
प्यार, इश्क और मोहब्बत में ख़ुशी भी हैं और गम भी। हर रोज नाजाने कितनी लव स्टोरीज़ बनती और टूटती हैं। कुछ हमारे आसपास और कुछ हमसे मिलों दूर।


आप जानते हैं प्रेम की यात्रा का कोई छोर नहीं। एक किनारे से दूसरे किनारे तक जाने की तीव्र और बेचैन कर देने वाले लालसा में इंसान बहुत कुछ पाता है तो बहुत कुछ खो भी देता है। प्रेम सपने देखना सिखाता है। झरने के मीठे पानी सी उन ख़ूबसूरत लड़कियों की तरह जो जीवन में संगीत पैदा करती हैं। नदी की तरह गाती हुई अपने साथ बहा ले जाती हैं।

प्रेम असंभव और कभी न ख़त्म होने वाली एक यात्रा है जो हमें ऐसे सफ़र पर ले जाती है, जो किसी और को पाने के लिए शुरू होता है और पहुंचता है खुद तक क्योंकि तुम्हीं में तो वह भी है, जिसे तुम ढूंढ रहे हो।

जैसा कि आप सभी जानते हैं कि मनुष्य के लिए दुनिया में कोई भी काम असंभव नहीं है। हर कहानी जरुरी नहीं रोमांस से शुरू हो और शादी पर ख़त्म हो। कुछ रोमांटिक लव स्टोरी शादी के बाद भी शुरू होती हैं। जब दो अजनबी को एक-दूसरे का साथ मिलाता है तो वह यकीनन जानता है कि हम दोनों कैसे एक दुसरे के साथ फिट हो सकते हैं। परफेक्ट लव स्टोरी तो केवल एक ही है और वह है ईश्वर का हमसे प्रेम करना। जैसे ईश्वर हमारे पापों को क्षमा करता है वैसे ही यदि पति-पत्नी भी एक दुसरे की गलतियों को माफ़ करना सीखें तो यकीनन दुनिया में असंख्य प्रेम कहानियाँ होंगी।

♦️ इसी बात पर एक गीत है, जो मुझे लगता है सही बैठता है—

खुदा से माँगो मिलेगा,
उसका वादा हैं वो देगा
उसके वादे पर ऐतबार करो..
खुदा से प्यार करो..
प्यार करो..

Wednesday, 20 October 2021

हवाई मार्ग से आपदा का जायजा, कहीं हवाई न होने पाये हुजूर..

 
उत्तराखंड में आई आपदा का जायजा लेने गृह मंत्री अमित शाह उत्तराखंड दौरे पर कल मध्यरात्रि प्रदेश मुख्यालय पहुँच चुके हैं। बताया जा रहा है रात्रि विश्राम के बाद उनका गुरुवार को प्रभावित क्षेत्रों में जायजा लेने का कार्यक्रम है। इस दौरे को देखते हुए आपदा प्रबंधन विभाग तैयारियों में जुट गया है। जो पिछले दिनों कुछ कम ही नजर आ रहा था। इस बीच सीएम पुष्कर सिंह धामी लगातार कुमांऊ के प्रभावित क्षेत्रों में बने हुए हैं। उनकी टीम की गाड़िया भी इस आपदा में बहती नजर आई पर उसे बचाने वाले लोग ग्रामीण थे आपदा विभाग के नही। बचाव और राहत अभियान में एसडीआरएफ के साथ ही एनडीआरएफ की टीमें भी लगी हुई हैं। राज्य आपदा कंट्रोल रूम के अनुसार तीन दिन की आपदा के बाद अब तक कुल 46 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 11 अब भी लापता चल रहे हैं। 


बड़ी बात तो यह है कि जब सरकार इस आपदा की घड़ी में यदि इंटरनेट बंद कर दे तो कैसे आँकड़े सामने आ पायेंगे, यह महत्वपूर्ण विषय है। इन्टरनेट सेवा चरमराने का कारण कहीं आपदा में सरकार अपनी नाकामी छुपाने के लिए तो नही। वर्ना तो 2013 की आपदा इससे भी भयंकर थी तब ये सब नही हुआ। अब सरकार अपनी ही जनता से क्या छुपाने जा रही है आप स्वयं अंदाज़ा लगाइये। 

प्रदेश में चुनावी समर आने को है तो सोचिए इस आपदा में प्रदेश की जनता कहाँ खड़ी है ? कौन सहयोग को आगे आ रहा है ? जहां चुनाव में बड़े-बड़े लोकलुभावने हवाई वादे किये जाते हैं ठीक वैसे ही हमारे ग्रहमंत्री महोदय आपदा का हवाई सर्वेक्षण करने जा रहे हैं। हवाई तो हवाई होता है शाहब, इस धरा पर उतरकर वहाँ के प्रभावितों के बीच जाकर उनके ज़ख्मों को देखिए। जिन्हें हर आपदा में सरकारें (चाहें किसी भी राजनीतिक पार्टी की हों) आश्वासन के आलावा कुछ और दे नही पाती है। देश व प्रदेश में आपकी ही सरकारें हैं और उत्तराखंड आपदा में पहली बार देश के ग्रहमंत्री का सर्वेक्षण होने जा रहा है। कुछ बड़ी उम्मीदें आपसे की जा सकती हैं। अब देखने वाली बात यह होगी की इस पूरे दौरे के बाद क्या निकलकर सामने आता है। प्रदेश की जनता ग्रहमंत्री से उम्मीद करती है हवाई मार्ग से आपदा का यह जायजा, चुनावी वादों की तरह ही कहीं हवाई साबित न होने पाये। 


देश की जनता को यदि याद हो तो ये वही हैं जिन्होंने प्रधानसेवक के पन्द्रह-पन्द्रह लाख खातों में आयेंगे वाले बयान को चुनावी जुमला बताया था। जो सच निकला, जिसपर सवाल करना मतलब देशद्रोह। अब देवभूमि में आये हैं आपदा में मरहम लगाने वो भी आधि रात को, अब किसे क्या मरहम लगेगा ये तो आगे आने वाला समय बतायेगा। परन्तु  जिस तरह से हमारे प्रदेश के वर्तमान, पूर्व व शीर्ष नेतृत्व पंक्तिबद्ध खड़ा है इससे कुछ और ही अन्देशा हो रहा है। कहीं प्रदेश में राजनीतिक उठापटक तेज तो होने को नही है ? समय से पहले चुनाव की सम्भावना भी हो सकती है। सबसे बड़ा तो आपदा के बहाने पार्टी के डैमेज-कण्ट्रोल को नियंत्रित करना है। जिसके चलते कहा जा सकता है कि कोई दल-बदल की बड़ी घटना प्रदेश को दुबारा देखने को न मिले। जिसका दंश एक बार प्रदेश झेल चुका है। 

बारिश को रोका नहीं जा सकता, न ही किसी और प्राकृतिक आपदा पर इंसान का वश है। लेकिन कम से कम एहतियाती उपाय तो किए ही जा सकते हैं। अंतरिक्ष विज्ञान में भारत ने बहुत तरक्की की है और आकाश से लेकर धरती पर निगरानी रख सकें, ऐसे कई उपग्रह अंतरिक्ष की कक्षाओं में पहुंचाए जा सके हैं। मौसम का पूर्वानुमान या भविष्यवाणी करने के लिए मौसम विभाग है। फिर भी लोगों को बाढ़ की विभीषिका क्यों झेलनी पड़ती है, ये सवाल सरकार से किया जाना चाहिए। तीन ओर से समुद्र से घिरे भारत औऱ सबसे ऊपर हिमालय की चोटियों के कारण देश की तस्वीर जितनी मनोहारी बनती है, सरकार की लापरवाही और विकास की अंधाधुंध दौड़ के कारण इस तस्वीर पर उतने ही दाग लगते जा रहे हैं। मौसम चक्र परिवर्तन के कारण बारिश का कहर किसी भी समय देश पर टूटने लगा है। ख़ास तौर पर समुद्रतटीय इलाकों और पहाड़ी इलाकों में आम लोगों के लिए मौसम परिवर्तन एक बड़ा ख़तरा बन चुका है। लेकिन इस ख़तरे को टालने की ओर सरकार का कोई ध्यान नहीं है।

उत्तराखंड में बारिश, बादल फटना, भूस्खलन जैसी घटनाओं ने कुमाऊं के इलाके में भारी तबाही मचाई है। कुमाऊं क्षेत्र में बीते 124 सालों में अब तक की सबसे ज़्यादा बारिश रिकार्ड की गई है। बारिश और भूस्खलन से होने वाली तबाही में कुल 47 लोग अब तक जान गंवा चुके हैं। कोसी, गौला, रामगंगा, महाकाली के साथ ही इलाक़े की सभी नदियां और जल धाराएं उफ़ान पर हैं और सैकड़ों भूस्खलनों के चलते कई मकान ज़मींदोज़ हो गए हैं और अधिकतर सड़कें बाधित हैं। बचाव और राहत कार्य में लगे जवान केरल से लेकर उत्तराखंड तक दिलेरी के साथ लोगों की जान बचाने में लगे हुए हैं।


पर्यटन के लिए मशहूर नैनीताल में नैनी झील में जलस्तर बढ़ने के कारण तबाही मची हुई है। सड़कें, दुकानें, होटल सब पानी में डूबे हुए हैं। पर्यावरणविद् और इतिहासकार शेखर पाठक के मुताबिक 'नैनीताल झील के ज्ञात इतिहास में अब तक ऐसा ओवरफ़्लो नहीं देखा गया है। एक तो अभूतपूर्व बरसात इसका कारण रही है, दूसरी वजह यह रही कि लेक ब्रिज में बनाया गया पानी का पैसेज भी नासमझी के साथ बनाया गया है। उसे और बड़ा बनाया जाना था। बरसात के चलते झील में पानी लाने वाले सारे ही नालों से इतना पानी आया कि उस रफ़्तार के साथ उसकी निकासी नहीं हो पाई और तल्लीताल के इलाक़े  में बाढ़ आ गई।'

इससे पहले जब उत्तराखंड के केदारनाथ में तबाही मची थी, तब भी नासमझी से लिए गए फ़ैसले ही लोगों पर जानलेवा साबित हुए थे। उत्तराखंड के पहाड़ कमज़ोर हैं और भारी बरसात में यहां भूस्खलन का खतरा हमेशा मंडराता रहता है। लेकिन विकास के नाम पर इस सूबे के जंगलों और पहाड़ों से खिलवाड़ थम ही नहीं रहा है। यहां की जमीन जितना दबाव सहन नहीं कर सकती, उससे कहीं ज्यादा विकास का बोझ यहां लाद दिया गया है, जो अंतत: विनाश का कारण बन रहा है।

Tuesday, 19 October 2021

अब बस भी करो मेघा यूँ बरसना, पहाड़ खिसकने लगे हैं, लोग बेघर होने को है !!



पिछले दो रोज़ से लगातार हो रही बारिश ने जहां एक तरफ लोगों को रुलाया हुआ है, कहीं घर गिराया तो कहीं अपनों को अपनों से दूर हटाया है। मानसून जाने के बाद आई बरसात पहाड़ वालों के लिए आफत बनकर आई। जिसकी वजह से आम लोगों को जन जीवन बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। बारिश को लेकर मौसम विभाग ने 24 घंटे का हाई अलर्ट जारी किया हुआ है।




पहाड़ में पिछले दो रोज से हो रही बारिश ने गरीबों की गरीबी को झकझोर दिया है। समझ में नहीं आ रहा है कि आज का भोजन कहां से मिलेगा। बाल बच्चे किस घर में रहेंगे। अगर जैसे तैसे रहने के लिए छप्पर में या टीन शेड में गुजारा भी कर रहे हैं तो इस बात का डर है कि कब गिर जाए पता नहीं। ऐसी ही घटना लगातार बारिश होने के कारण सुनने में आ रही हैं, कहीं सड़क बह गई तो कहीं पेड़ सड़क में आ गिरा, कहीं घर ही ढह गया, कहीं मलबे ने मासूमों की जान ले ली। इस तरह की लगातार आ रही खबरों ने एक बार बरसात में फिर रुलाया है। 


वहीं बेमौसम की इस बारिश ने एक बार फिर आपदा विभाग की भी कलई खोल दी है। बारिश के कारण सड़कें तालाब का रूप ले लेती हैं लेकिन जिला प्रशासन के पास इनसे निबटने के पर्याप्त इंतजामात नहीं हैं। नाले-नालियों की समय से सफाई नहीं होने के कारण बरसात का पानी सड़कों पर भर जाता है। 


बारिश के चलते जहां कई स्थानों पर दीवार टूटकर गिर गई, तो नगर व ग्रामीण क्षेत्रों में कई स्थानों पर हुए जल भराव के कारण आने जाने का रास्ता भी ठप हो गया। जन-जीवन पूरी तरह से प्रभावित है। इसी के साथ संचार व्यवस्था भी दम तोड़ रही है। लोगों को बात करने के लिये नेटवर्क की समस्याओं का सामना करना किसी आपदा से कम नही है। जहां चारों तरफ डर का माहौल बना हुआ है वहीं संचार सुविधाएँ प्रदेश में पूरी तरह ध्वस्त नजर आ रही है। आगे क्या हालत होंगे भगवान ही जाने, वैसे भी देवभूमि की जनता सदैव भगवान भरोसे ही रहती है। यहाँ की सरकारें व प्रशासन तो बस खर्चे के लिये लोकतांत्रिक व्यवस्था का एक हिस्सा मात्र हों। 


बात करें यदि बागेश्वर की तो अत्यधिक बारिश के चलते यहाँ जिला मुख्यालय से सभी क्षेत्रों का सम्पर्क मार्ग कट चुका था।संचार व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त है, लोग घरों में कैद होने को मजबूर हैं। वहीं आज बागेश्वर में 182.50 एमएम, गरुड़ में 131.00 एमएम और कपकोट में 165.00 एमएम बारिश दर्ज की गई। सरयू व गोमती नदी लगातार खतरे के निशान के आस-पास बह रही है। 


बारिश के कारण तापमान में गिरावट दर्ज की गई। सोमवार को दिन का अधिकतम तापमान 24 डिग्री और न्यूनतम तापमान 18 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। बारिश के कारण लोगों को ठंडक का एहसास हुआ और लोग गर्म कपड़े पहनकर घर से बाहर निकले। मौसम विशेषज्ञों का कहना है कि मंगलवार को भी पूरे दिन बारिश की संभावना है। पूरे प्रदेश में हाई अलर्ट किया हुआ है।

Sunday, 17 October 2021

शैतान, गधा और हम



एक गधा पेड़ से बंधा था, एक शैतान आया और उसे खोल गया। गधा मस्त होकर खेतों की ओर भाग निकला और खड़ी फसल को खराब करने लगा। 


किसान की पत्नी ने यह देखा तो गुस्से में गधे को मार डाला।
गधे की लाश देखकर गधे के मालिक को बहुत गुस्सा आया और उसने किसान की पत्नी को गोली मार दी। 

फिर वो किसान पत्नी की मौत से इतना गुस्से में आ गया कि उसने गधे के मालिक को गोली मार दी।

गधे के मालिक की पत्नी ने जब पति की मौत की खबर सुनी तो गुस्से में बेटों को किसान का घर जलाने का आदेश दिया।

बेटे शाम में गए और मां का आदेश खुशी-खुशी पूरा कर आए। उन्होंने मान लिया कि किसान भी घर के साथ जल गया होगा।

लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 
किसान वापस आया और उसने गधे के मालिक की पत्नी और बेटों, तीनों की हत्या कर दी।

इसके बाद उसे पछतावा हुआ और उसने शैतान से पूछा कि यह सब नहीं होना चाहिए था। ऐसा क्यों हुआ...?

शैतान ने कहा>  

‘मैंने कुछ नहीं किया। मैंने सिर्फ गधा खोला लेकिन तुम सबने रिऐक्ट किया, ओवर रिऐक्ट किया और अपने अंदर के शैतान को बाहर आने दिया। 
 इसलिए अगली बार किसी का जवाब देने, प्रतिक्रिया देने, किसी से बदला लेने से पहले एक लम्हे के लिए रुकना और सोचना ज़रूर .'

ध्यान रखें ... 

कई बार शैतान हमारे बीच सिर्फ गधा छोड़ता है और बाकी विनाश हम खुद कर देते हैं !!

हर रोज टीवी चैनल गधे छोड़ जाते हैं...
आजकल कोई ग्रुप में गधा छोड़ देता है। 
कोई फेसबुक पर गधा छोड़ जाता है। 

और सभी दोस्तों के ग्रुप में और पार्टी बाजी या विचारधारा के चक्कर में आप और हम लड़ते रहते हैं। 

मिल जुल कर मुस्कुरा कर खुशी से रहिये याद रखें-

तोड़ना आसान है, जुड़े रहना बहुत मुश्किल है.....!
लड़ाना आसान है, मिलाना बहुत मुश्किल.....!

Saturday, 16 October 2021

मैं और मेरा पारिजात प्रेम —




मेरे घर के गमले में लगा ये हरसिंगार/पारिजात का पेड़ इन दिनों खूब खिल रहा है। आज सुबह-सुबह खिले इन फूलों को देखकर मेरा मन भी खिल उठा। 😊❤️


पारिजात को देखा तो लगभग सभी ने होगा...
जिसे 
हार-सिंगार 
हरि-श्रंगार 
कल्प-वृक्ष 
आदि के नामों से भी पुकारा जाता है। सुबह सूर्योदय के पहले खिल जाता है, छोटा सा है, सरल भी, एकदम शुभ्र, सच्चाई से भरा, अपनी सारी सुरभि आते ही लुटा देता है। बचाता छुपाता कुछ नहीं, यह उसकी सच्चाई का ही प्रतिफल है। कि उसे जिम्मेवारी सौंपी है भगवा की। वह भी इतना सच्चा है कि हर बार गिरता है तो औंधे मुंह गिरता है। अपनी शुभ्रता पर दाग स्वीकार है पर भगवा को झूकने नहीं देता। पारिजात भगवा को सदा ऊपर रखता है खुद से भी। इस सच्चे सुरभित शुभ्र का जीवन बहुत छोटा होता है। बस सूर्योदय के बाद कुछ ही समय। पर यह शिकायत नहीं करता, खुद का बखान तो कभी नहीं। शायद इसी लिये पारिजात को देव पुष्प होने का गौरव प्राप्त है।


जितने इसके मनमोहक नाम उतनी ही मनभावनी सुगंध बचपन से ही यह फूल मुझे अत्यंत प्रिय है। जब मैं बहुत छोटा था उन दिनों हमारे घर में नहीं हुआ करता था। कोई अट्ठारह साल की उम्र होगी जब दशहरे के दिनों में मैंने इसे किसी मित्र के घर पूजा की डोलची या थाली में देखा था। आज खुद को याद करके हैरानी होती है कि 18 साल की उम्र से लेकर अब तक मेरा कैसा आकर्षण इस के प्रति था। तब दशहरे के दिनों में खूब पूजा-पाठ और उपवास भी किया करते थे। जबकि बड़े होकर इन सबसे कहीं दूर होता गया। न पहले के बारे में कोई शर्मिंदगी है न अब के बारे में कोई गर्व। बस देखने पर अपने आप ही अलग लगता है।


मुझे भली भांती याद है कुछ एक साल पहले बागेश्वर मण्डलसेरा निवासी, वृक्ष प्रेमी श्रीमान किशन सिंह मलड़ा जी के यहाँ से एक नन्हा सा पौधा लेकर घर के गमले में लगाया। आज दशहरे के दिन तक पौधा खासा बड़ा हो गया।अब रोज शाम के लिए एक काम बड़ गया है-  इसके नीचे की जमीन को साफ़ करने का।
उस साफ-सुथरी जमीन पर सुबह फूल पथार की तरह बिखरे हुए मिलते और उन बिखरे हुए फूलों को पूजा की डोलची में हम भर देते। पूजा की डोलची को फूलडाली कहते थे। फूलडाली पहले बेंत की होती थी परन्तु आज पीतल की पर दोनों सुंदर ही थी। हरसिंगार के खिलने के दिनों में भर भर के फूलडाली में वही रहता। 


आज तक मैंने जाना कि एकमात्र यही फूल है जो बिखर जाने और भूमि पतित होकर भी देवता के सिर पर चढ़ाया जा सकता है। मुझे याद नहीं कि और किसी बासी फूल को हमने देवता पर चढ़ाया हो और हरसिंगार तो बासी ही चढ़ता है।


"हरि का श्रृंगार' इस बासी फूल से हो सकता है इसीलिए इस फूल में कोई दैवीय आभा है। साल में बमुश्किल दो-तीन पखवाड़े या ज्यादा से ज्यादा महीने भर खिलने वाले इस फूल की जो आवभगत प्रेमियों के मन में होती है वह निराली है। गंध और रंग से तो यह मोहता ही है साथ ही खिलने की अल्प अवधि के कारण विशिष्ट बना रहता है।


जब से मैंने इसे गमले में लगाया माता जी की बात को ध्यान रख मैं इसके नीचे के फर्श को साफ कर देता था, वैसे अक्सर माता जी ही ये काम बखूबी किया करती हैं। मुझसे तो बस कहना मात्र ही रहता है। ताकि सुबह जो फूल चुनूँ वे एकदम ताज़े हों। इस साल यह खिलने लगा है। खूब खिलता है व खिल रहा है। 

मैं इसे बस दूर-दूर से देखता हूँ। प्रेम में खुद की ही नजर न लग जाए इस तरह से देखता हूँ। मेरे पारिजात को आप भी इसी नज़र से देखिए जो नज़राए न।

♦️ कहानी पारिजात की-
****************

राजकुमारी थी जो ,
सूर्य देव पर मोहित थी।

पाना चाहती थी आफताब को,
बन रानी सूर्य नगरी की।

पर सूर्य देव को इस से इनकार हुआ।
सह ना पायी तिरस्कार को और
आत्म दाह किया।

जहाँ दफन थी राजकुमारी
उस कब्र पर एक नन्हा सा

फूल खिला,नाम पारिजात हुआ।
पारिजात के प्रेम का जो गवाह हुआ।

हो गोधूलि तब खिल जाता है
रात रानी बन कर आंगन
उपवन को महकाता हैं।

रजनी जब ढल जाये
और प्रेमी जब सामने आ जाये।

उस से पहले ही विरह अग्नि में
खुद ही तप जाता हैं।

हो सूर्य उदय उस से पूर्व ही।
अश्रू रूप में अपनी
शाखाओं से गिर जाता हैं।

है चमत्कारी वरदान ये
उपचार में उपयोगी हैं।

शिव का है प्रिय पुष्प
और कृष्ण को भी प्रिय ये।

चंदन सी है शीतलता जिसमे
खुशबू आलीशान हैं।।

रात की रानी कहो या पारिजात कहो।
हार सिंगार गुणों की खान हैं।।

❣️❣️❣️❣️❣️




आश्विनस्य सिते पक्षे दशम्यां तारकोदये।
स कालो विजयो ज्ञेयः सर्वकार्यार्थसिद्धये।।

अधर्म पर धर्म की विजय के महापर्व विजयदशमी की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं। प्रभु श्री राम हमें बुराइयों पर विजय प्राप्त करने की शक्ति दें। विजयादशमी का पर्व सभी के जीवन में सुख,शांति और समृद्धि लाए।

#garden #parijat #HappyVijyadashmi2021 #bageshwar

मन की बात —



जब जनता देशहित में पेट्रोल 113 रुपये लीटर खरीद सकती है, 1 हज़ार का गैस सिलेंडर ले सकती है, तो बिजली 20 रुपये यूनिट क्यों नहीं खरीद सकती? सरकार का हर कदम देशहित में उठता है। वो जो करती है, देश के भले के लिए करती है। कुछ लोग हैं, जो सरकार के काम की आलोचना करते हैं।


जरा सोचो पिछली सरकारों ने सस्ता पेट्रोल बेच कर क्या कर लिया? क्या वो प्रधानमंत्री के लिए 8500 करोड़ का जहाज़ खरीद सकी? कितना बुरा लगता था, जब देश का प्रधानमंत्री पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की तरह खटारा जहाजों में विदेश जाता था? इससे देश का अपमान होता था। 

बिजली 20 रुपये यूनिट खरीदने के लिए दिल पक्का कर लीजिए। हर मंत्री के लिए एक-एक जहाज़ खरीदना है। उन्हें देश में कहीं भी आने जाने में बहुत परेशानी होती है। देखना एक दिन दुनिया को पता चल जाएगा कि भारत की जनता कितनी देशभक्त है, जो अपने मंत्रियों के लिए अलग अलग जहाज़ खरीद कर दे देती है। 

सरकार भी तो जनता का ख्याल रखती है। पूरा पांच किलो अनाज मुफ्त देती है...पूरा पांच किलो किसी सरकार ने कुछ दिया आज तक? 

इसलिए मित्रो! महंगे पेट्रोल डीजल, गैस और बिजली से घबराना नहीं। देश आपकी इस कुर्बानी को हमेशा याद रखेगा।

❣️
“मानव जीवन धूल की तरह होता है, हम रो-धो कर इसे कीचड़ बना देते है।”
❣️

#merabharatmahan #ilovemyindia

पेरू से आयी चौलाई (रामदाना) को भूलने लगा पहाड़



यदि ठण्डे दिमाग से सोचे तो अब भूले-बिसरे, यदा-कदा ही याद आता है पहाड़ में रामदाना। जिसे हमारे यहाँ चौलाई कहा जाता है। उपवास के लिए लोग इसके लड्डू और पट्टी खोजते हैं। पहले इसकी खेती का भी खूब प्रचलन था। बचपन में मंडुवे के खेतों के बीच-बीच में चटख लाल, सिंदूरी और भूरे रंग के चपटे, मोटे गुच्छे जैसे देख कर चकित होता था कि आखिर यह कौन-सी फसल है? पता लगा वह चौलाई है जिसके पके हुए बीज रामदाना कहलाते हैं। जब पौधे छोटे होते थे तो वे चौलाई के रूप में हरी सब्जी के काम आते थे। तब पहाड़ों में मंडुवे की फसल के साथ चौलाई उगाने का आम रिवाज था। यह तो शहर जाकर पता लगा कि रामदाना के लड्डू और मीठी पट्टी बनती है। 




पहाड़ में रामदाना के बीजों को भून कर उनकी खीर या दलिया बनाया जाता था। मैंने अपने जीवन में एक बार पूर्व मुख्यमंत्री आदरणीय हरीश रावत जी की सरकार में जब पहाड़ी भोजन हर सरकारी कार्यालयों में प्रमोट किया जा रहा था तब दिल्ली स्थित उत्तराखंड सदन, नाश्ते में रामदाने की मुलायम और स्वादिष्ट रोटी खाई थी। रोटी का वह स्वाद अब भी याद है। यह हम सभी उत्तराखंडी पहाड़ियों के लिये बड़ा दुर्भाग्य रहा कि उनकी सरकार जाते ही यह योजना भी ठंडे बस्ते में चली गयी। जबकि ऐसा नही होना चाहिए था। पहाड़ सिर्फ हरीश रावत जी का नही नही बल्कि हम सब का है। अब तो हमारे पहाड़ में भी खेतों में दूर-दूर तक चौलाई के रंगीन गुच्छे नहीं दिखाई देते हैं। आज बागेश्वर जनपद के सबसे दूर लगभग आँखिरी गाँव गोगिना जाकर देखा तो इसकी खेती दिखी, आश्चर्यवश में खेत में जा पहुँचा। रामदाना के मोटे लाल गुच्छे देखकर मन प्रसन्न हुआ। बेहद शान्त वातावरण में सिर्फ पक्षियों की मधुर चहचहाते संगीत के बीच ये खेत में लहलहाती चौलाई की फसल देख मानो अपनी कल्पनाओं के भंवर में कहीं खो सा गया मैं। 


फिर घर पहुँचने पर इतिहास टटोला तो पता लगा, चौलाई के गुच्छे तो हजारों वर्ष पहले दक्षिणी अमेरिका के एज़टेक और मय सभ्यताओं के खेतों में लहराते थे। रामदाना उनके मुख्य भोजन का हिस्सा था और इसकी खेती वहां बहुत लोकप्रिय थी। जब सोलहवीं सदी में स्पेनी सेनाओं ने वहां आक्रमण किया, तब चौलाई की फसल चारों ओर लहलहा रही थी। वहां के निवासी चौलाई को पवित्र फसल मानते थे और उनके अनेक धार्मिक अनुष्ठानों में रामदाना काम आता था। विभिन्न उत्सवों, संस्कारों और पूजा में रामदाने का प्रयोग किया जाता था। स्पेनी सेनापति हरनांडो कार्टेज को चौलाई की फसल के लिए उन लोगों का यह प्यार रास नहीं आया और उसने इसकी खड़ी फसल के लहलहाते खेतों में आग लगवा दी। चौलाई की फसल को बुरी तरह रौंद दिया गया और उसकी खेती पर पाबंदी लगा दी गई। इतना ही नहीं, हुक्म दे दिया गया कि जो चौलाई की खेती करेगा उसे मृत्युदंड दिया जाएगा। इस कारण चौलाई की खेती खत्म हो गई।  




चौलाई का जन्मस्थान पेरू माना जाता है। स्पेनी सेनाओं ने एज़टेक और मय सभ्यताओं के खेतों में चौलाई की फसल भले ही उजाड़ दी, लेकिन दुनिया के दूसरे देशों में इसकी खेती की जाती रही। दुनिया भर में इसकी 60 से अघिक प्रजातियां उगाई जाती हैं। 

पहाड़ों में चौलाई सब्जी और बीज दोनों के काम आती है लेकिन मैदानों में इसका प्रयोग हरी सब्जी के लिए किया जाता है। इसकी ‘अमेरेंथस गैंगेटिकस’ प्रजाति की पत्तियां लाल होती हैं और लाल साग या लाल चौलाई के रूप में काम आती हैं। ‘अमेरेंथस पेनिकुलेटस’ हरी चौलाई कहलाती है। ‘अमेरेंथस काडेटस’ प्रजाति की चौलाई को रामदाने के लिए उगाया जाता है। हालांकि, मैदानों में यह हरी सब्जी के रूप में काम आती है। चौलाई के एक ही पौधे से कम से कम एक किलोग्राम तक बीज मिल जाते हैं। इस फसल की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसे कम वर्षा वाले और रूखे-सूखे इलाकों में भी बखूबी उगाया जा सकता है। इस भूली-बिसरी फसल के बारे में हम यह भूल गए हैं कि यह एक पौष्टिक आहार है। कई विद्वान तो इसे गाय के दूध और अंडे के बराबर पौष्टिक बताते हैं। यह विडंबना ही है कि जिस फसल को अब तक हमारी मुख्य फसल बन जाना चाहिए था, उसे कई देशों में तो खरपतवार और गरीबों का भोजन तक मान लिया गया। हमारी बेरूखी से रूखे-सूखे में भी उगने वाली यह फसल गेहूं, धान और दालों की दौड़ में पीछे छूट गई। 


प्राप्त जानकारी के अनुसार, एक अनुमान के अनुसार अगर हम पौष्टिकता को 100 मान लें तो रामदाने की पौष्टिकता 75, गाय के दूध की 72, सोयाबीन की 68, गेहूं की 60 और मक्का की 44 है। इसमें उच्च कोटि की प्रोटीन पाई जाती है जो दूध की प्रोटीन ‘केसीन’ के समान बताई जाती है। 
कई लोगों को गेहूं के आटे में पाए जाने वाले ग्लूटेन के कारण भोजन पचने में परेशानी होती है। साथ ही एलर्जी के कारण चर्म रोग भी हो जाते हैं। लेकिन, रामदाने का आटा अन्य प्रकार के आटे में मिला कर आराम से खाया जा सकता है। रामदाने के कारण यह काफी पौष्टिक आहार बन जाता है। वैज्ञानिक कहते हैं रामदाना हमारे रक्त में हानिकारक कोलेस्ट्राल की मात्रा को कम करता है। इसलिए यह दिल के मरीजों के लिए भी मुफीद आहार माना गया है। बेक्रफास्ट में इसका दलिया या रोटी खाई जा सकती है। 


रामदाने के कई व्यंजन बनाए जा सकते हैं। रोटी, पू़ड़ी और लड्डू बनाने के साथ-साथ भुना हुआ रामदाना शहद के साथ भी खाया जा सकता है। यह सुपाच्य उत्तम आहार है। दोस्तों अब समय आ गया है जब हमें चौलाई जैसी अपनी भूली-बिसरी फसलों की खेती को फिर से बढ़ावा देना चाहिए। तभी पहाड़ का पानी व पहाड़ की जवानी दोनो काम आयेगी।

Wednesday, 13 October 2021

छोटी काशी कहे जाने वाले बाबा बागनाथ की नगरी में दीपोत्सव के साथ माँ सरयू की भव्य आरती !


कहते हैं आपने बनारस नहीं देखा तो क्या देखा और बनारस आकर अगर गंगा आरती नहीं देखी तो कुछ देखा ही नहीं। कहते हैं न काशी विश्वनाथ की नगरी की गंगा आरती की भव्यता की बात ही कुछ और है। लेकिन जिला प्रशासनव लोगों के प्रयासों से कुछ ऐसी ही कहावत छोटी काशी बागेश्वर में चरितार्थ होती नजर आ रही है। बागेश्वर के सरयू घाट पर बुधवार को हुई भव्य महाआरती का नजारा हरिद्वार या काशी से कमतर नही था, गंगा के दोनो छोर पर हुई भव्य आरती ने श्रद्धालुओं का मन मोह लिया। छोटी काशी कहे जाने वाले बाबा बागनाथ की नगरी में दीपोत्सव के साथ माँ सरयू की भव्य आरती जो नजारा शाम को दिखा उसकी बात ही निराली है। 




बुधवार शाम सरयू घाट पर मनोरम द्रश्य नजर आया। रंग बिरंगी रोशनी में नहाती माँ सरयू के तट पर महाआरती हुई।
सुंदर वेशभूषा में पुजारी, गजब की महक के साथ उठी ज्वाला,
आसमान को आगोश में लपेटता हुआ धुआं, सरयू घाट पर हुई
महाआरती सचमुच अद्भुत थी। आरती में शामिल होने के लिए घाट पर श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। सैंकड़ों की तादाद में लोग घाट पर नजर आए, वहीं पुल से गुजरने वाले वहां भी वहीं थम गए।


विगत लम्बे समय से बागेश्वर में अष्टमी की शाम दुर्गा व देवी पूजा महोत्सव की ओर से भव्य गंगा आरती, दीपदान तथा आतिशबाजी का आयोजन किया जाता है। आज भी भारी संख्या में भक्तों ने गंगा आरती में भाग लिया। सरयू किनारे जले दीपों से नगर मानो किसी दुलहन की तरह रोशनी में नहा गया हो। वहीं दूसरी तरफ सायं दुर्गा व देवी पूजा पंडालों में भक्तों ने मां दुर्गा की आरती वंदना की। सरयू के दोनों तटों पर दीप जलाकर भव्य दीपदान किया गया। दीपों की टिमटिमाती रोशनी में पूरा नगर रोशन हो गया। नदी के दोनों ओर भारी संख्या में लोगों की भीड़ दीपोत्सव को देखने उमड़ी। इसके बाद भव्य आतिशबाजी की गई। देर तक आसमान में जगमगाती रोशनी का दर्शकों ने जमकर आंनद उठाया। 


महोत्सव के आयोजकों ने कहा कि गंगा आरती के बाद दीपदान का हर साल आयोजन किया जाता है। उन्होंने कहा कि दीपक जलाने से जहां एक तरफ अंधियारा मिटता है, वहीं दीपक हमें अपने भीतर छिपे अंधकार रुपी बुराई को समाप्त कर अच्छाई रुपी रोशनी ग्रहण करने का संदेश भी देता है। हम लगातार इस आयोजन को और अधिक भव्य करने के लिए प्रयासरत हैं। 

फोटो साभार- दिग्विजय सिंह जनौटी !!

Tuesday, 12 October 2021

आखिर इन सूने होते घरों और खाली होते मुहल्लों के कारण क्या हैं ?


इस नवरात्रि आप किसी दिन सुबह उठकर एक बार इसका जायज़ा लीजियेगा कि कितने घरों में अगली पीढ़ी के बच्चे रह रहे हैं ? कितने बाहर निकलकर नोएडा, गुड़गांव, पूना, बेंगलुरु, चंडीगढ़,बॉम्बे, कलकत्ता, मद्रास, हैदराबाद, बड़ौदा जैसे बड़े शहरों में जाकर बस गये हैं? कल आप एक बार गाँव की उन गली मोहल्लों से पैदल निकलिएगा जहां से आप बचपन में स्कूल जाते समय या दोस्तों के संग मस्ती करते हुए निकलते थे।तिरछी नज़रों से झांकिए.. हर घर की ओर आपको एक चुपचाप सी सुनसानियत मिलेगी, न कोई आवाज़, न बच्चों का शोर, बस किसी किसी घर के बाहर या खिड़की में आते जाते लोगों को ताकते बूढ़े जरूर मिल जायेंगे। आखिर इन सूने होते घरों और खाली होते मुहल्लों के कारण क्या हैं ?


भौतिकवादी युग में हर व्यक्ति चाहता है कि उसके एक बच्चा और ज्यादा से ज्यादा दो बच्चे हों और बेहतर से बेहतर पढ़ें लिखें। उनको लगता है या फिर दूसरे लोग उसको ऐसा महसूस कराने लगते हैं कि छोटे शहर या कस्बे में पढ़ने से उनके बच्चे का कैरियर खराब हो जायेगा या फिर बच्चा बिगड़ जायेगा। बस यहीं से बच्चे निकल जाते हैं बड़े शहरों के होस्टलों में। अब भले ही दिल्ली और उस छोटे शहर में उसी क्लास का सिलेबस और किताबें वही हों मगर मानसिक दबाव सा आ जाता है बड़े शहर में पढ़ने भेजने का। हालांकि इतना बाहर भेजने पर भी मुश्किल से 1% बच्चे IIT, PMT या CLAT वगैरह में निकाल पाते हैं...। फिर वही मां बाप बाकी बच्चों का पेमेंट सीट पर इंजीनियरिंग, मेडिकल या फिर बिज़नेस मैनेजमेंट में दाखिला कराते हैं। 
4 साल बाहर पढ़ते-पढ़ते बच्चे बड़े शहरों के माहौल में रच बस जाते हैं। फिर वहीं नौकरी ढूंढ लेते हैं। सहपाठियों से शादी भी कर लेते हैं।आपको तो शादी के लिए हां करना ही है ,अपनी इज्जत बचानी है तो, अन्यथा शादी वह करेंगे ही अपने इच्छित साथी से।

अब त्यौहारों पर घर आते हैं माँ बाप के पास सिर्फ रस्म अदायगी हेतु। माँ बाप भी सभी को अपने बच्चों के बारे में गर्व से बताते हैं। दो तीन साल तक उनके पैकेज के बारे में बताते हैं। एक साल, दो साल, कुछ साल बीत गये। मां बाप बूढ़े हो रहे हैं। बच्चों ने लोन लेकर बड़े शहरों में फ्लैट ले लिये हैं। 

♦️शहर में अब अपना फ्लैट है तो त्योहारों पर भी जाना बंद।

अब तो कोई जरूरी शादी ब्याह में ही आते जाते हैं। अब शादी ब्याह तो बेंकट हाल में होते हैं तो मुहल्ले में और घर जाने की भी ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती है। होटल में ही रह लेते हैं। हाँ शादी ब्याह में कोई मुहल्ले वाला पूछ भी ले कि भाई अब कम आते जाते हो तो छोटे शहर, छोटे माहौल और बच्चों की पढ़ाई का उलाहना देकर बोल देते हैं कि अब यहां रखा ही क्या है?
खैर, बेटे बहुओं के साथ फ्लैट में शहर में रहने लगे हैं। अब फ्लैट में तो इतनी जगह होती नहीं कि बूढ़े खांसते बीमार माँ बाप को साथ में रखा जाये। बेचारे पड़े रहते हैं अपने बनाये या पैतृक मकानों में। 

कोई बच्चा बागवान पिक्चर की तरह मां बाप को आधा-आधा रखने को भी तैयार नहीं। अब साहब, घर खाली खाली, मकान खाली खाली और धीरे धीरे मुहल्ला खाली हो रहा है। अब ऐसे में छोटे शहरों में कुकुरमुत्तों की तरह उग आये "प्रॉपर्टी डीलरों" की गिद्ध जैसी निगाह इन खाली होते मकानों पर पड़ती है। वो इन बच्चों को घुमा फिरा कर उनके मकान के रेट समझाने शुरू करते हैं। उनको गणित समझाते हैं कि कैसे घर बेचकर फ्लैट का लोन खत्म किया जा सकता है। एक प्लाट भी लिया जा सकता है। साथ ही ये किसी बड़े लाला को इन खाली होते मकानों में मार्केट और गोदामों का सुनहरा भविष्य दिखाने लगते हैं। बाबू जी और अम्मा जी को भी बेटे बहू के साथ बड़े शहर में रहकर आराम से मज़ा लेने के सपने दिखाकर मकान बेचने को तैयार कर लेते हैं। आप स्वयं खुद अपने ऐसे पड़ोसी के मकान पर नज़र रखते हैं। खरीद कर डाल देते हैं कि कब मार्केट बनाएंगे या गोदाम, जबकि आपका खुद का बेटा छोड़कर पूना की IT कंपनी में काम कर रहा है इसलिए आप खुद भी इसमें नहीं बस पायेंगे।

आज हर दूसरा घर, हर तीसरा परिवार सभी के बच्चे बाहर निकल गये हैं। वही बड़े शहर में मकान ले लिया है, बच्चे पढ़ रहे हैं,अब वो वापस नहीं आयेंगे। छोटे शहर में रखा ही क्या है। इंग्लिश मीडियम स्कूल नहीं है, हॉबी क्लासेज नहीं है, IIT/PMT की कोचिंग नहीं है, मॉल नहीं है, माहौल नहीं है, कुछ नहीं है साहब, आखिर इनके बिना जीवन कैसे चलेगा?
पर कभी UPSC ,CIVIL SERVICES का रिजल्ट उठा कर देखियेगा, सबसे ज्यादा लोग ऐसे छोटे शहरों से ही मिलेंगे। बस मन का वहम है। मेरे जैसे लोगों के मन के किसी कोने में होता है कि भले ही बेटा कहीं फ्लैट खरीद ले, मगर रहे अपने उसी छोटे शहर या गांव में अपने लोगों के बीच में। पर जैसे ही मन की बात रखते हैं, बुद्धिजीवी अभिजात्य पड़ोसी समझाने आ जाते है कि "अरे पागल हो गये हो, यहाँ बसोगे, यहां क्या रखा है?”  वो भी गिद्ध की तरह मकान बिकने का इंतज़ार करते हैं, बस सीधे कह नहीं सकते।
अब ये मॉल, ये बड़े स्कूल, ये बड़े टॉवर वाले मकान सिर्फ इनसे तो ज़िन्दगी नहीं चलती। एक वक्त बुढ़ापा ऐसा आता है जब आपको अपनों की ज़रूरत होती है। ये अपने आपको छोटे शहरों या गांवों में मिल सकते हैं, फ्लैटों की रेजीडेंट वेलफेयर एसोसिएशन में नहीं।

कोलकाता, दिल्ली, मुंबई,पुणे,चंडीगढ़,नौएडा, गुड़गांव, बेंगलुरु में देखा है कि वहां शव यात्रा चार कंधों पर नहीं बल्कि एक खुली गाड़ी में पीछे शीशे की केबिन में जाती है, सीधे शमशान, एक दो रिश्तेदार बस और सब खत्म।
भाईसाब ये खाली होते मकान, ये सूने होते मुहल्ले, इन्हें सिर्फ प्रोपेर्टी की नज़र से मत देखिए, बल्कि जीवन की खोती जीवंतता की नज़र से देखिए। आप पड़ोसी विहीन हो रहे हैं। आप वीरान हो रहे हैं।


आज गांव सूने हो चुके हैं 
शहर कराह रहे हैं |
सूने घर आज भी राह देखते हैं.. 
बंद दरवाजे बुलाते हैं पर कोई नहीं आता।

❣️ इस पर अनायास ही भूपेन हजारिका का यह गीत याद आता है--

गली के मोड़ पे.. सूना सा कोई दरवाजा
तरसती आंखों से रस्ता किसी का देखेगा
निगाह दूर तलक..  जा के लौट आयेगी
करोगे याद तो हर बात याद आयेगी ||

सब समझाइए, बसाइए लोगों को छोटे शहरों और जन्मस्थानों के प्रति मोह जगाइए, प्रेम जगाइए। पढ़ने वाले तो सब जगह पढ़ लेते हैं।

 प्रेम से बोलो...जय माता दी 🙏🏻

Monday, 11 October 2021

चुनाव नजदीक आते ही फिर चली टनकपुर से बागेश्वर रेल…



अब तो अख़बारों में रेललाईन की खबर देखते ही चुनाव याद आने लगते हैं। बागेश्वर, पिथौरागढ़ और चंपावत के पुरखों ने जिस रेल लाइन का सपना देखा था, वह देश की आजादी और राज्य बनने के 21 साल बाद भी पूरा नहीं हो सका है। एक सदी की लंबी अवधि के दौरान 24 फरवरी 1960 को पिथौरागढ़, 15 सितंबर 1997 को बागेश्वर और चंपावत अल्मोड़ा से अलग होकर जिले बन गए लेकिन 109 वर्ष बीतने के बाद भी रेल लाइन सपना ही है। तीन जिलों को जोड़ने वाली सामरिक महत्व की यह प्रस्तावित रेल लाइन सर्वे तक ही अटक कर रह गई है। नवंबर 2020 में दूसरी बार रेल लाइन के लिए रेल मंत्रालय ने सर्वे कराया। फाइनल सर्वे रिपोर्ट इज्जतनगर रेल मंडल से रेलवे बोर्ड को सौंपी जा चुकी थी परन्तु आज भी मामला जस का तस बना हुआ है। 6 हजार 966 करोड़ 33 लाख रुपये की यह परियोजना कब मूर्त रूप लेगी, यह अब भी सवाल ही है। 


अतीत में सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा के अंग रहे बागेश्वर, पिथौरागढ़ और चंपावत के लोगों ने अंग्रेजी शासनकाल में रेल लाइन का सपना देखा था। पहाड़ में रेल का सपना हमारी हुकूमतों ने नहीं, फिरंगी सरकार ने दिखाया था। इतिहास खंगालें तो वर्ष 1911-12 में अंग्रेजी हुकूमत ने टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन का सर्वे कराया था। रेल लाइन निर्माण का खाका अंग्रेज तैयार कर रहे थे कि आजादी की ज्वाला और तेज भड़कने लगी। अंग्रेज बागेश्वर तक रेल नहीं पहुंचा पाए।

जैसा कि इतिहास में दर्ज है कि प्रथम विश्वयुद्ध से पूर्व 1888-89 तथा 1911-12 में अंग्रेजी शासकों ने तिब्बत तथा नेपाल के साथ सटे इस पर्वतीय क्षेत्र के लिए आर्थिक-सामाजिक एवं सांस्कृतिक प्रगति, भू-राजनैतिक उपयोगिता और प्रचुर वन सम्पदा व सैनिकों की आवाजाही आसान बनाने के लिए रेल लाइन का सर्वे किया था। लेकिन प्रथम विश्वयुद्ध के बाद उपजे हालातों के चलते यह योजना खटाई में पड़ गई। आजाद भारत की सरकारों में इस बहुद्देशीय रेल लाइन का निर्माण का मुद्दा हाशिए पर रहा। वर्ष 2012 के रेल-बजट में पर्वतीय राज्य के जन आकांक्षाओं और जरूरतों के अनुरूप प्रस्तावित टनकपुर -बागेश्वर रेलवे लाइन को राष्ट्रीय महत्व का दर्जा देते हुए देश की चार रेल राष्ट्रीय परियोजनाओं में शामिल किया गया था।
मेरा अपना प्रदेश बनने के बाद से लगातार हर मुख्यमंत्री ने रेल मंत्री से दिल्ली में मुलाकात कर प्रस्तावित रेल लाइन की मंजूरी देने और टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन का सर्वे कराने की मांग की थी व मांग की जाने की खबरें अख़बारों के माध्यम से जनता को परोसी जाती रही हैं। तब जब सूबे में चुनाव नज़दीक होते हैं। चाहे वह विधानसभा हो या लोकसभा। चाहे प्रदेश में कांग्रेस की सरकार रही हो या भाजपा की, दोनो ने कोई कोर कसर नही छोड़ी। 


देश की आजादी के बाद बागेश्वर के लोगों ने रेल लाइन के निर्माण की मांग उठानी शुरू कर दी थी। 80 के दशक में यह मांग परवान चढ़ी। बागेश्वर से लेकर पिथौरागढ़, चंपावत इलाके के लोग रेल लाइन निर्माण की मांग को लेकर लामबंद होने लगे। 2004 से बागेश्वर-टनकपुर रेल मार्ग निर्माण संघर्ष समिति के बैनर तले क्षेत्रवासी आंदोलन की अलख जगाए हुए है। वर्ष 2008 से लेकर लगातार तीन सालों तक जंतर-मंतर पर धरना-प्रदर्शन तक हो चुके हैं। जनांदोलनों के पुरोधा बागेश्वर निवासी स्वर्गीय गुसाईं सिंह दफौटी जी के नेतृत्व में हुए आंदोलन ने शासकों की चूलें हिला दीं। आंदोलन ने सत्ताधारी दल के साथ ही विपक्षी दलों को भी आंदोलन का समर्थन करने के लिए मजबूर कर दिया। जनदबाव में राजनीतिक दल बागेश्वर-टनकपुर रेल लाइन को चुनावी वादों में शामिल करने लगे। बागेश्वर के लोगों का संघर्ष चलता रहा। 

वर्ष 2006-07 में रेलवे मंत्रालय ने टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन का प्रारंभिक सर्वे कराया। वर्ष 2015-16 में इस परियोजना को राष्ट्रीय महत्व की परियोजना में शामिल किया गया। वर्ष 2019-20 में फाइनल सर्वे कराया गया। 9 नवंबर 2020 को इज्जतनगर मंडल ने सर्वे रिपोर्ट रेलवे बोर्ड को भेज दी। एक साल का समय बीतने को हो गया है लेकिन रेल लाइन के लिए मोदी सरकार से धनवर्षा नहीं हो रही है। आज की खबर फिर एक बार जनता को निराश करने वाली है कि वर्तमान मुख्यमंत्री महोदय ने फाईनल सर्वे की मंज़ूरी पर आभार जताया। आंखिर कब तक यूँ ही सर्वे, फाईनल सर्वे के नाम पर जनता को ठगते रहेंगी सरकारें ? कब तक पहाड़ की जनता को गुमराह करते रहोगे सरकार ?

Saturday, 2 October 2021

महात्मा गाँधी को जवाब चाहिये



बहुत आश्चर्यचकित करने वाला है कि हिंदुस्तान आज उन ताकतों के द्वारा महत्मा गाँधी की माला जपने से जिनके आदर्शो ने आज से 73 वर्ष पूर्व महात्मा गाँधी की महज शारीरिक हत्या कर दी थी, लेकिन बापू मरे नही । अपने विचारो और आदर्शो के साथ वो आज भी जिन्दा है ।  73 वर्ष बीत गए । इतनी  लम्बी अवधि में एक पूरी पीढ़ी गुजर जाती है, रास्ट्र के जीवन में अनगिनत संघर्षो, संकल्पों और समीक्षाओ का दौर आता और जाता रहा। इतने उतार और चढ़ाव के बावजूद अगर आज भी किसी का वजूद कायम है तो निश्चय ही उनमें कुछ तो चमत्कार होगा। बापू को इसी नजरिये से देखने की जरूरत है।


मुल्क को आजादी दिलाने के बाद भी वे संतुस्ट नही थे । सत्ता से अलग रहकर वह एक और कठिन काम में लगे थे। वे देश की आर्थिक , सामाजिक और नैतिक आजादी के लिए एक नए संघर्ष की उधेड़बुन में थे । रामधुन ,चरखा ,चिंतन तथा प्रवचन उनकी दिनचर्या थी । एक दिन पहले ही उनकी प्रार्थना सभा के पास धमाका हुआ था,  लेकिन दुनिया का महानतम सत्याग्रही विचलित नही हुआ। वह स्वावलंबी भारत का स्वप्न देखते थे। वह गाँवो को अधिकार संपन्न , जागरूक तथा अंतिम व्यक्ति को भी देश का मजबूत आधार बनाना चाहते थे। जब दिल्ली में उनके कारण आई सरकार का स्वरूप ले रही थी, स्वतंत्रता का जश्न मन रहा था , तब बापू दूर बंगाल में खून-खराबा रोकने के लिए आमरण कर रहे थे । बापू की दिनचर्या में परिवर्तन नही ,विचारो में लेशमात्र भटकाव नही ,लम्बी लड़ाई के बाद भी थकान नही और लक्ष्य के प्रति तनिक भी उदारता नही । अहिंसा को सबसे बड़ा हथियार मानने वाले बापू निर्विकार भाव से अपनी यात्रा पर चले जा रहे थे, कि तभी एक अनजान हाथ प्रकट हुआ जो आजादी की लड़ाई में कहीं नही दिखा था, ना बापू के साथ ,ना सुभाष के साथ और ना भगत सिंह के साथ । उस हाथ में थी अंग्रेजो की बनाई पिस्तौल, उससे निकली अंग्रेजों की बनाई गोली , वह भी अंग्रेजों के दुम दबा कर भाग जाने के बाद , तथाकथित हिन्दोस्तानी हाथ से जिसने किसी अंग्रेज के घर की दीवार पर एक कंकरी तक नही फेंकी थी । वह महापुरुष जिसके कारण इतनी बड़ी साम्राज्यवादी ताकत का सब कुछ छीन रहा था, फिर भी उनके शरीर पर एक खरोंच लगाने की हिम्मत नही कर पाई , जिस अफ्रीका की रंगभेदी सरकार भी बल प्रयोग नही कर सकी थी, उनके सीने में अंग्रेजो की गोली उतार दी एक सिरफिरे कायर ने वह महापुरुष चला गया हे राम! कहता हुआ । गाँधी जी के राम सत्ता और राजनीति के लिए इस्तेमाल होने वाले राम नही थे,  बल्कि व्यक्तिगत जीवन में आस्था तथा आदर्श के प्रेरणाश्रोत इश्वर थे ।


तब आरएसएस पर उगली उठी थी, उसपर पाबन्दी भी लगी और संघ क कट्टर सदस्य होने के बावजूद अज्ञात कारणों से हत्यारे ने अपने संघ से रिश्ते नकार दिये। सवाल उठा की बापू की हत्या क्यों की गयी। आज भी यह सवाल अनुत्तरित है! इस सवाल की प्रेतछाया से बचाने के लिए ही शायद भाजपा ने कुछ वर्षो पहले गांधीवाद शब्द का प्रयोग किया था संघ से बहुत विरोध हुआ था और फिर कभी नाम नही लिया । यह गिरगिट के रंग बदलने के समान ही था । गाँधी जी फासीवाद के रास्ते की बड़ी बाधा थे । गाँधी जी 'ईश्वर- अल्ला तेरो नाम 'तथा 'वैष्णवजन तों तेने कहिये प्रीत पराई जाने रे 'की तरफ सबको ले जाना चाहते थे । बापू के आदर्श राम ,  बुद्ध , महावीर ,  विवेकानंद तथा अरविन्द थे। हिटलर को आदर्श मानने वाले हिटलर कि तारीफ करते हुए किताब लिखने वाले और हिटलर को आदर्श बताने वाले और गाँधी जी हत्यारे को महान बताने कि किताब छाप कर बांटने वाले उन्हें कैसे स्वीकार करते ? गाँधी सत्य को जीवन का आदर्श मानते थे ,झूठ को सौ बार सौ जगह बोल कर सच बनाने वाले उन्हें कैसे स्वीकार करते ? शायद इसीलिए महात्मा के शरीर को मार दिया गया। 
क्या इससे गाँधी सचमुच ख़त्म हो गए ? बापू यदि ख़त्म हो गए तों मार्टिन लूथर किंग को प्रेरणा किसने दी ? नेल्सन मंडेला ने किस की रोशनी के सहारे सारा जीवन जेल में बिता दिया ,परन्तु अहिंसक आन्दोलन चलते रहे और अंत में विजयी हुए ? दलाई लामा किस विश्वास पर लड़ रहे है इतने सालो से ? खान अब्दुल गफ्फार खान अंतिम समय तक सीमान्त गाँधी कहलाने में क्यों गर्व महसूस करते रहे ? अमरीका के राष्ट्रपति आज भी किसको आदर्श मानते है और दुनिया में बाकी लोगो को भी मानने की शिक्षा देते रहते है ? अभी हाल मे कुछ देशो मे अहिंसक क्रान्ति किसके रस्ते पर चल कर हुई । संयुक्त रास्ट्र संघ के सभा कक्ष से लेकर 100 के क़रीब  देशो की राजधानियों ने महात्मा गाँधी को जिन्दा रखा है। कही उनके नाम पर सड़क बनी, तों कहीं शोध या शिक्षा संस्थान और कुछ नही तो प्रतिमा तो जरूर लगी है ।जिसको भारत में मिटाने का प्रयास किया गया ,वह पूरी दुनिया में जिन्दा है । महान वैज्ञानिक आइन्स्टीन ने कहा की ''आने वाली पीढियां शायद ही इस बात पर यकीन कर सकेंगी की कभी पृथ्वी पर ऐसा हाड़-मांस का पुतला भी चला था'' । जिस नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को गाँधी के विरुद्ध बताया गया ,उन्होंने जापान से महात्मा गाँधी को राष्ट्रपिता कह कर पुकारा तथा कहा कि 'यदि आजादी मिलती है तो वे चाहेंगे की देश की बागडोर राष्ट्रपिता संभाले , वह स्वयं एक सिपाही की भूमिका में ही रहना चाहेंगे। परन्तु बापू को सत्ता नही , जनता की चिंता थी , उसकी तकलीफों की चिंता थी ।

उन्होंने कहा की भूखे आदमी के सामने ईश्वर को रोटी के रूप में आना चाहिए । यह वाक्य मार्क्सवाद के आगे का है। उन्होंने कहा की आदतन खादी पहने , जिससे देश स्वदेशी तथा स्वावलंबन की दिशा में चल सके , लोगो को रोजगार मिल सके । नई तालीम के आधार पर लोगो को मुफ्त शिक्षा दी जाये । लोगो को लोकतंत्र और मताधिकार का महत्व समझाया जाये और उसके लिए प्रेरित किया जाये । उन्होंने सत्ता के विकेन्द्रीकरण , धर्म ,मानवता ,समाज और रास्ट्र सहित उन तमाम मुद्दों की तरफ लोगो का ध्यान खींचा जो आज भी ज्वलंत प्रश्न है ।

वे और उनके विचार आज भी जिन्दा है और प्रासंगिक है । अमेरिका में कुछ वर्ष पूर्व जब हिलेरी क्लिंटन ने बापू पर कोई हलकी बात कर दिया तो अमेरिकी लोगो ने ही इतना विरोध किया की चार दिन के अन्दर ही हिलेरी को खेद व्यक्त करना पड़ा । गुजरात की घटनाओं के समय जब हैदराबाद में दो समुदाय के हजारों लोग आमने -सामने आँखों में खून तथा दिल में नफरत लेकर एकत्र हो गए , तो वहां दोनों समुदाय की मुट्ठी भर औरते मानव श्रंखला बना कर दोनों के बीच खड़ी हो गयी । यह गाँधी का बताया रास्ता ही तो था , वहां विचार के रूप में गाँधी ही तो खड़े थे । कुछ साल पहले अहिंसा के पुँजारी बापू के घर गुजरात में राम , रहीम और गाँधी तीनो को पराजित करने की चेष्टा हुई , लेकिन हत्यारे ना गाँधी के हो सकते है , ना राम के ना रहीम के। और गुजरात कांड के हीरो पता नही कैसे महात्मा गाँधी का नाम लेने और लगातार लेने कि हिम्मत जुटा रहे है । समय बताएगा कि बापू और सरदार का नाम लेने के पीछे असली मंशा क्या है। 
महत्मा गाँधी तो नही मरे ,फिर हत्यारे ने मारा किसे था ? ऐसे सिरफिरे लोग और उनके संगठन कितनी हत्याएं करेंगे ? पिछले 73 वर्षो में भी वे गाँधी को नही मार पाये है। वह कौन सा दिन होगा जब फासीवादी लोग गाँधी की पूर्ण हत्या करने में कामयाब हो पाएंगे ? सचेत रहना पड़ेगा की फासीवादी ताकतें अचानक बापू का इस्तेमाल करने लगी ? इसके पीछे देश को हिटलर की तरह भ्रमित कर सत्ता हथियाने और फासीवाद थोप कर बापू की अंतिम हत्या करने का उद्देश्य तो नहीं है ?  जिम्मेदारी और जवाबदेही बापू को मानने वालो की है की सत्ता की ताकत से महात्मा गाँधी को बौना करने ,उन्हें गाली देने और गोली मारने वालो से मानवता को बचाएं और देश को बचाएं  । रास्ता वही होगा जो गाँधीजी  ने दिखाया था । 73वाँ वर्ष जवाब चाहता है दोनों से की फासीवादियो तुमने गाँधी को मारा क्यों था ? उद्देश्य क्या था ? तुम कहा तक पहुंचे ? उनके मानने वालो से भी कि आर्थिक गैर बराबरी , सामाजिक गैर बराबरी के खिलाफ , नफ़रत और शोषण के खिलाफ बापू द्वारा छेड़ा गया युद्ध फैसलाकुन कब तक होगा ? उनके सपनो का भारत कब तक बनेगा ? इन सवालो के साथ महात्मा गाँधी तथा उनके विचार आज भी जिन्दा है और कल भी हमारे बीच मौजूद रहेंगे। पर तमाम सवालो पर जवाब चाहिए महात्मा गांधी को भी और देश को भी।