किसी ने क्या खूब कहा है, व्यवहार में बच्चा होना,काम में जवान होना और अनुभव में वृद्ध होना,किसी भी व्यक्ति को सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचा देता है !!!
♦️ ख्वाहिशें क्या है? इस प्रश्न को पढ़ते ही शायर जावेद अख्तर का एक शेर याद आ गया…
न फिक्र कोई, न जुस्तजू (तलाश) है…
न ख़्वाब कोई, न आरज़ू है,
ये शख्स तो कब का मर चुका है
तो बेकफ़न फिर यह लाश क्यों है ?
आरजू, तमन्ना, ख्वाहिशें ये हमारे जिंदा होने का सुबूत हैं। लेकिन मुसीबत यह है कि यही ख्वाहिशें इंसान के दुखी होने का एक मुख्य कारण भी हैं।
तो फिर क्या करें ???
क्या बिना ख्वाहिश की जिंदगी संभव है ???
मेरे विचार से, नहीं …
क्योंकि "ख्वाहिशों से मुक्त हो जाने की ख्वाहिश" भी आखिर तो एक "ख्वाहिश" ही है। व्यंग्य की भाषा में बात करूं तो ख्वाहिश और कुछ नहीं गधे के आगे लटकी हुई है गाजर है और गधे महाशय गाजर को पाने की चाहत में लगातार आगे बढ़ते रहते हैं। खुशकिस्मती से अगर वो गाजर पाने में कामयाब भी हो गए तो उसके बाद फिर एक नई गाजर प्रकट हो जाती है यह लगातार जारी रहने वाला सिलसिला है।
अब आप कहेंगे कि इंसान का मुकाबला गधे से??? भई यह तो बड़ी गलत बात है।
बात तो वाकई गलत है, गधे के साथ नाइंसाफी है ये क्योंकि गधा सिर्फ अपनी गाजर पर ही टारगेट करता है जबकि इंसान आस-पड़ोस के "गधों" की गाजर पर भी निगाह रखता है इसीलिए हमेशा दुखी रहता है।
ये इंसानी फितरत है, स्वभाव है, कि हर इंसान के पास जो है उसे उससे कुछ ज्यादा चाहिए। इसी पर जावेद अख्तर साहब का एक "गागर में सागर" जैसा शेर है, कि
सबका खुशी से फासला..
बस एक कदम है…
हर घर में…
बस एक ही कमरा कम है
आप सोच रहे होंगे कि मुख्य प्रश्न को छोड़कर प्रवचन पिलाये जा रहा है। हाँ तो सवाल यह है कि मेरी ख्वाहिश क्या है ?
लॉन्ग टर्म ख्वाहिशें तो अपनी जगह पर ज्यों की त्यों खड़ी हैं लेकिन शॉर्ट टर्म ख्वाहिशें यानी आज सुबह से एक भी ख्वाहिश फलित नहीं हुई।
आज सुबह रिमझिम बारिश हो रही थी।
मेरी ख्वाहिश ने करवट बदली…
यार आज कोई एक कप और बिस्तर पर चाय पिला दे ऐसे में तो मजा आ जाए, मैंने याचना के स्वर में एक ख्वाहिश जाहिर की…
वह भी इनडायरेक्ट..
पर मेरी पहली ख्वाहिश हवा में उड़ गई…
ब्रेकफास्ट के समय मेरी एक ख्वाइश फिर से बाहर आ गई…
यार आज बारिश हो रही है आज तो गरमा गरम पकौड़े का मौसम है। एक जमाने में बारिश होने पर कुछ गरमा गरम रोमांटिक ख्वाहिशें करवटें लेती थीं, आज वही ख्वाहिशें गरमा गरम पकौड़ों तक सीमित रह गई हैं…
पहले नहीं बोल सकते थे तुम ??? अब तो नाश्ता बन गया है …
तुनक कर जवाब मिला…
फिर मेरी एक दूसरी ख्वाहिश भी मुँह के बल गिरी …
मैं आज कहीं नहीं जाऊँगा, मैंने भी बौखला कर जवाब दे दिया।
उसके बाद मैं अपने सेलफोन पर व्यस्त था, हमारी मुख्य गृह प्रभारी आज काफी अशांत लग रही थी और लगातार कुछ बड़बड़ाए जा रही थी। कहते हैं ना………
"पेट खाली हो तो प्यार का ज्वार भी उतर जाता है."
ओहो मैं तो भूल ही गया, सवाल "मेरी ख्वाहिश" पर था…
इस बे सिर पैर के आलेख को पोस्ट करने के बावजूद मेरी निगाहें इस पर आए "व्यूज" "लाईक" और "कमेंट" पर रहेंगी। व्यूज़… लाईक और कमेंट …!!! बार-बार फेसबुक की एप्लीकेशन पर लपक लपक कर झाँकूँगा और देखूंगा, कितने हो गए। अगर यह तीनों मनमर्जी के आ गए तो अगला दिन अच्छा गुजरेगा। क्यूँकि लॉकडाउन के कारण अब भी लगभग ख़ाली ही हूँ।
आजकल फेसबुक के सिस्टम बिल्कुल ठिकाने पर नहीं है। लेकिन फेसबुक में दिलचस्पी न होने के बावजूद उन्होंने पलटकर जवाब दिया। व्यूज़ नहीं आ रहे होंगे… और क्या ??? उन्होंने अंतर्यामी की तरह मेरे मन की बात पढ़ ली। एक बात कहूँ ??? आजकल तुम्हारे आर्टिकल्स में वह पहले वाली बात नहीं रही उन्होंने साफ-साफ सुना दिया।
फिर से मेरी एक छोटी सी ख्वाहिश ने सर उठाया। इसी के साथ मुझे वह शेर फिर याद आया…
सबका खुशी से फासला..
बस एक कदम है…
हर घर में…
बस एक ही कमरा कम है..!!
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