Monday, 27 September 2021

रिश्ते हैं आखिर रिश्तों का क्या ?

रिश्तों की मिठास में कड़वाहट घोलते शब्द ! 



कहते हैं इस दुनिया में सबसे खूबसूरत रिश्ता यदि कोई है तो भारतीय सास-बहू का है। जिसमें सब रंग एक साथ हैं, मिठास है तो कड़वाहट का भी स्वाद है, ख़ुशी है तो खोने का गम भी है। ज़िन्दगी कुछ और नही बस ऐसे ही अनमोल रिश्तों की एक कहानी है। तो आज मेरी नजर से एक बार इस कहानी का आनन्द अवश्य लीजिए मुझे उम्मीद है आपको अपनी सी लगने लगेगी……

“बहू कहां मर गई?" सास चिल्लाकर बोली

अंदर से आवाज आई- "जिंदा हूं माँ जी।"

"तो फिर मेरी चाय क्यूं अभी तक नहीं आई, कब से पूजा करके बैठी हूं!"

"ला रही हूं माँ जी!"

बहू चाय के साथ, भजिया भी ले आयी।

सास ने कहा "तेल का खिलाकर क्या मरोगी?"

बहू ने कहा "ठीक हैं माँ जी अभी ले जाती हूं।"

सास ने कहा "रहने दे अब बना दिया हैं तो खा लेती हूं।"

सास ने भजिया उठाई और कहा "कितनी गंदी भजिया बनाई हैं तुमने।"

बहू "माँ जी मुझे कपड़े धोने हैं मैं जाती हूं।"

बहू दरवाजे के पास छिपकर खड़ी हो गयी। सास भजिया पर टूट पड़ी और पूरी भजिया खत्म कर दी। बहू मुस्कुराई और काम पर लग गई।

दोपहर के खाने का वक्त हुआ सास ने फिर आवाज लगाई "कुछ खाने को मिलेगा।" 

बहू ने आवाज नहीं दी। सास फिर चिल्लाई "भूखे मारेगी क्या?"

बहू आयी सामने खिचड़ी रख दी। सास गुस्से से "ये क्या है, मुझे इसे नहीं खाना इसे ले जा।"

बहू ने कहा "आपको डॉक्टर ने दिन में खिचड़ी खाने को कहा है, खाना तो पड़ेगा ही।"

सास मुंह बनाते हुए "हाँ तू मेरी माँ बन जा" बहू फिर मुस्कुराई और चली गई।

आज इनके घर पूजा थी। बहू सुबह 4 बजे से उठ गयी। पहले स्नान किया, फिर फूल लाई। माला बनाई। रसोई साफ की। पकवान और भोज बनाया। सुबह के 10 बज गए। 

अब सास भी उठ चुकी थी। बहू अब पूजा के वस्त्र तैयार कर रही थी। आज ऑफिस की छुट्टी भी थी इसलिए उसके पति भी घर पर थे।

पूजा शुरू हुई, सास चिल्लाती बहू ये नहीं है, वो नही है। बहू दौड़ी-दौड़ी आती और सब करती। 

अब दोपहर के 3 बज गये थे, आरती की तैयारी चल रही थी, सबको आरती के लिए बुलाया गया और सबके हाथों में थाली दी गई।

जैसे ही बहू ने थाली पकड़ी, थाली हाथों से गिर पड़ी। शायद भोज बनाते हुए बहू के हाथों मे तेल लगा था, जिसे वो पोंछना भूल गयी थी।

सारे लोग तरह-तरह की बातें करने लगे। कैसी बहू है, कुछ नहीं आता। एक काम भी ठीक से नहीं कर सकती। ना जाने कैसी बहू उठा लाए। एक आरती की थाली भी संभाल नहीं सकी

उसके पति भी गुस्सा हो गए पर सास चुप रही। कुछ नहीं कहा। बस यही बोल के छोड़ दिया "सीख रही है, सब सीख जाएगी धीरे-धीरे।"

अब सबको खाना परोसा जाने लगा, बहू दौड़-दौड़ के खाना देती, फिर पानी लाती। करीब 70-80 लोग हो गये थे, इधर दो नौकर और बहू अकेली फिर भी वहाँ सारा काम, बहुत ही अच्छे तरीके से करती।

अब उसकी सास और कुछ आस पड़ोस के लोग खाने पर बैठे, बहू ने खाना परोसना शुरू किया, सब को खाना दे दिया गया।

जैसे ही पहला निवाला सास ने खाया "तुमने नमक ठीक नहीं डाला क्या? एक काम ठीक से नहीं करती। पता नहीं मेरे बाद कैसे ये घर संभालेगी।"

आस-पड़ोस वालों को तो जानते ही हो! वो बस बहाना ढूंढते हैं नुक्स निकालने का। फिर वो सब शुरू हो गये ऐसा खाना है, ऐसी बहू है, ये वो वगैरहा-वगैरहा।

दिन का खाना हो चुका था, अब बहू बर्तन साफ करने नौकरों के साथ लग गई।

रात में जगराता का कार्यक्रम रखा गया था। बहू ने भी एक दो गीत गाने के लिए स्टेज पर चढ़ी।

सास जोर से चिल्लाई "मेरी नाक मत कटा देना, गाना नहीं आता तो मत गा, वापस आ जा।"

बहू मुस्कुराई और गाने लगी। सबने उसके गाने की तारीफ की, पर सास मुंह फूलाते हुए बोली "इससे अच्छा तो मैं गाती थी जवानी में, तुझे तो कुछ भी नहीं आता।" बहू मुस्कुराई और चली गई।

अब रात का खाना खिलाया जा रहा था। उसके पति के ऑफिस के दोस्त साइड में ही ड्रिंक करने लगे। उसका पति चिल्लाता "थोड़ा बर्फ लाओ, तो सास चिल्लाती यहाँ दाल नहीं है, फिर पति चिल्लाता कोल्ड ड्रिंग नहीं है, पापड़ ले आओ।"

इधर-उधर की भागदौड़ में ना जाने कैसे उसके पति की शराब की बोतल गिर पड़ी उसके एक दोस्त पर, और बोलत टूट गई। 

पति गुस्से में दो झापड़ अपनी पत्नी को लगाते हुए कहता है "जाहिल कहीं की। देखकर नहीं कर सकती। तुझे इतना भी काम नहीं आता।"

सारे लोग देखने लगे। उसकी पत्नी रोते हुए कमरे की तरफ दौड़ी, फिर उसके दोस्तों ने कहा "क्या यार पूरा मूड खराब कर दिया, यहाँ नहीं बुलाया होता, हम कहीं और पार्टी कर लेते। कैसी अनपढ़-गंवार बीवी ला रखी है तूने। उसे तो मेहमानों की इज्जत और काम करना तक नहीं आता, तुमने तो हमारी बेईजती कर दी।"

अब आस पड़ोस की औरतों को और बहाना मिल गया था। वो कहने लगीं, "देखो क्या कर दिया तुम्हारी बहू ने। कोई काम कीं नही है। मैं तो कहती हूं अपने बेटे की दूसरी शादी करा दो, छुटकारा पाओ इस गंवार से।"

सास उठी और अपने बेटे के पास जाकर उसे थप्पड़ मारा और कहा "अरे नालायक, तुमने मेरी बहू को मारा, तेरी हिम्मत कैसे हुई? तेरी टाँग तोड़ दूंगी" 

उसके बेटे के दोस्त कुछ कहने ही वाले थे कि उसकी माँ ने घूरते हुए कहा "चुप बिल्कुल चुप। यहाँ दारू पीने आये हो, जबकि पता है आज पूजा है और तुम्हें पार्टी करनी है, कैसे संस्कार दिये हैं तुम्हारे, माता-पिता ने। और हां किसने मेरी बहू को जाहिल बोला, जरा इधर आओ। चप्पल से मारूंगी अगर मेरी बहू को किसी ने एक शब्द भी कहा तो। अरे पापी, तूने उस लड़की को बस इसलिए मारा कि तेरी शराब टूट गयी, पापी वो बच्ची सुबह 4 बजे से उठी है। घर का सारा काम कर रही है। ना सुबह से नाश्ता किया ना दिन का खाना खाया। फिर भी हंसते हुए सबकी बातें सुनते हुए, ताने सुनते हुए घर के काम में लगी रही। तेरे यार दोस्तो को वो अच्छी नहीं लगी। चप्पलों से मारूंगी तेरे दोस्तों को जो कभी उन्होंने ऐसा दोबारा कहा।"

उसके यार दोस्त कब चुपके से खिसक लिए पता ही नही चला।

अब सास, बहू के कमरे मे गयी और बहू का हाथ पकड़कर बाहर लाई। सबके सामने कहने लगी "किसने कहा था अपनी बहू को घर से निकाल के दूसरी बहू ले आना, जरा सामने आओ।" 

कोई सामने नहीं आया। 
फिर सास ने कहा, तुम जानते भी क्या हो इस लड़की के बारें में... "ये मेरी 'माँ' भी है और  'बेटी' भी।"

"माँ इसलिए है क्योंकि मुझे गलत काम करने पर डाँटती हैं और बेटी इसलिए है कि कभी-कभी मेरी दिल की भावनाएं समझ जाती हैं। मेरी दिन-रात सेवा करती है। मेरे हजार ताने सुनती है पर एक शब्द भी गलत नहीं कहती। 
ना सामने ना पीठ पीछे, और तुम कहते हो, दूसरी बहू ले आऊं।"

"याद है ना छुटकी की दादी, अपनी बहू की करतूत" 
सास ने गुस्से से पड़ोस की महिला को कहा...

"अभी पिछले हफ्ते ही तुम्हें मियां-बीवी भूखे छोड़ घूमने चले गये थे। मेरी इसी बहू ने 7 दिनों तक तुम्हारे घर पर खाना-पानी यहाँ तक कि तुम्हारे पैर दबाने जाती थी और तुम इसे जाहिल बोलती हो। जाहिल तो तुम सब हो जो कोयले और हीरे में फर्क नही जानती। अगर आइंदा मेरी बहू के बारे में किसी ने एक लफ्ज भी बोला तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा क्यूंकि ये मेरी बहू नहीं, मेरी बेटी है।"

बहू सिसकियाँ लेते हुये फिर कमरें में चली गई। 

सास ने एक प्लेट उठायी और भोजन परोसा और बहू के कमरे में खुद ले गयी, सास को भोजन लाते देखा तो बहू ने कहा "अरे माँ जी आप क्या कर रही हों? मैं खुद ले लेती।"

सास ने प्यार से ताना मारते हुये कहा "डर मत इसमें जहर नही हैं, मार नहीं डालूंगी तुझे। तुझे नई सास चाहिए होगी, पर मुझे अभी भी तू ही मेरे घर की बहू चाहिए।"

बहू ने अपनी सास को रोते हुए गले से लगा लिया। 

सास भी रो दी पहली बार और कहा "चल खाना खा ले।" 
फिर उसके आंसू पोंछते हुए बोली... 
“अरे तू मेरी बहु नही मेरी बेटी है...!"
दोस्तों कुछ रिश्ते बहुत मीठे होते हैं बस बातें कड़वी होती हैं !!

Sunday, 19 September 2021

वो लम्हें !!

बहुत लम्बे समय के बाद पहाड़ों पर एक बार पुनः जब यूँ ही अकेले पैदल चल रहा था तो अनायास ही एक पुरानी घटना यादों के झरोखों से खुली आंखों में तैरने लगी। तो होंठों पर मुस्कान फूट पड़ी। सोचा आपके साथ सांझा कर दूँ। पढ़कर जरुर बताना आपको कैसी लगी ?
एक दुकानवाला था। जब भी कुछ खरीदने जाओ ऐसा लगता कि वह हमारा ही रास्ता देख रहा हो। हर विषय पर बात करने में उसे बड़ा मज़ा आता। कई बार उसे कहा कि भाई देर हो जाती है जल्दी सामान दे दिया करो पर उसकी बात ख़त्म ही नहीं होती।

एक दिन अचानक कर्म और भाग्य पर बात शुरू हो गई।


तक़दीर और तदबीर की बात सुन मैंने सोचा कि चलो आज उसकी फ़िलासफ़ी देख ही लेते हैं। मैंने एक सवाल उछाल दिया।

मेरा सवाल था कि आदमी मेहनत से आगे बढ़ता है या भाग्य से?

और उसके जवाब से मेरे दिमाग़ के सारे जाले ही साफ़ हो गए।

कहने लगा,आपका किसी बैंक में लॉकर तो होगा?

उसकी चाभियाँ ही इस सवाल का जवाब है। हर लॉकर की दो चाभियाँ होती हैं।

एक आप के पास होती है और एक मैनेजर के पास।

आप के पास जो चाभी है वह है परिश्रम और मैनेजर के पास वाली भाग्य।

जब तक दोनों नहीं लगतीं ताला नहीं खुल सकता।

आप कर्मयोगी पुरुष हैं और मैनेजर भगवान।

आप को अपनी चाभी भी लगाते रहना चाहिये। पता नहीं ऊपर वाला कब अपनी चाभी लगा दे। कहीं ऐसा न हो कि भगवान अपनी भाग्यवाली चाभी लगा रहा हो और हम परिश्रम वाली चाभी न लगा पायें और ताला खुलने से रह जाये।

Wednesday, 15 September 2021

मेरे प्यारे बागेश्वर,

मेरे प्यारे बागेश्वर,
कैसे हो मेरे भाई! 
पहचाना?
कोई बात नहीं। 
स्मृति गड्डमड्ड होती रहती है। तुमसे मिले भी तो बहुत दिन हो गए। शायद आखिरी बार कब जी भर के निहारा था तुम्हें मुझे ठीक से याद भी नही। पर तब करीब महीना भर साथ रहा था। 
पहले भी तुमसे बार-बार मिलता रहा हूं। आज भी साथ हूँ पर भागदौड़ की इस भीड़ में लगता है कहीं गुम न हो जाऊँ।
अहा! 
तुम्हारे भट्ट के डुबके, हरी साग और भात की याद आती है, तो मुंह में पानी भर जाता है। ...
वो नदियाँ, वो झरने, वो पहाड़, वो छोटे-बड़े बुग्याल, वो हिमाल जब याद आते हैं तो मन अथाह प्रेम से भर उठता है। …


यह मेरे लिए अजीब है कि तुम्हें अपनी पहचान बतानी पड़ रही है मुझे। मगर मुझे इसका बुरा भी क्यों मानना चाहिए! तुम्हारी गोद में पले सभी को तो हरदम बतानी पड़ती है, बरसों से साबित करनी पड़ती है अपनी पहचान, कि वे बिल्कुल तुम्हारी गोद के हैं। पूरमपूर तुम्हारे हैं। मुझे कभी-कभी लगता है कि मैं तो थोड़ा दूर का हूं। फिर मेरे जैसे तो अनेक हैं, जो तुम्हे चाहते तो बहुत हैं, चाहते हुए भी तुम्हारे पास नहीं आ पाते। 


माफ करना मेरे बागेश्वर! 
मगर तुमने मुझे दूर का होने का, कभी अहसास होने न दिया। न कभी खुद से जुदा ... 
बुरा न मानना मेरे भाई!
खैर, कैसी हैं तुम्हारी वादियां? तुम्हारे गांव-गलियारे! 
अब तो तुम पियराने लगे होगे। रंग बदलने लगी होगी तुम्हारी हरियाली। अक्तूबर आते-आते तुम्हारे आंगन के 'बैट वृक्ष' छोड़ने लगेंगे पत्ते। कुछ पेड़ निझा जाएंगे। चीड़ की ललियाई पत्तियां टूट कर तैरनी शुरू कर देंगी हवाओं में। 
मैंने तो तुम्हारे दो ही रंग देखे हैं- हरा और पीला। तुम्हारा सफेद रंग देखने की शक्ति मुझमें नहीं, सो कभी तुम्हारे पास उस जगह पर ज़्यादा समय टिका नहीं। ठंड में दांत किटकिटाने लगते हैं मेरे। तो डर लगता है कहीं जम न जाऊँ तुम्हारे तुम्हारे उस रूप के दीदार के बाद पहाड़ों की उस चोटी पर। 


खैर, और कहो! 
कैसा है तुम्हारे बागनाथ मन्दिर का वातावरण! बैजनाथ का हाल। वहां की मछलियां कैसी है? भांग के घोटे का प्रसाद अब भी तो बंटता होगा शिवरात्रि पर! 
कैसी है महर्षि मार्कण्डेय की तपस्थली त्रिवेणी के उस संगम पर? दुर्गा पूजा की तैयारियां भी चलने वाली होंगी अब कुछ दिनों में। जैसे कावड़ यात्रियों को बीच रस्ते से लौटा दिया गया था, वैसे ही दुर्गा पूजा और रामलीला भी तो नहीं रोक दी जायेगी। 

शिखर-भनार, कोट माई, सनेती, लीती, भराड़ी, बागेश्वर व बदियाकोट में अब भी लगते होंगे मेले।
पिंडारी के नजारे तो भला क्या बदले होंगे!... 
बस नजरें बदल गई हैं।


इधर महीने भर से तुम्हारे बारे में कुछ ठीक-ठीक खबरें नहीं मिल पा रहीं। परसों कोई बता रहा था कि सिपाही कुछ ज्यादती करते हैं तुम्हारे लोगों पर। मगर यह तुम्हारे लोगों के लिए कोई नई बात तो नहीं। माफ कर देना उनको। बेचारे वे भी तो हमारे बच्चे हैं। खेती-बाड़ी बेच कर अपने मां-बाप की आंखों में तैरते सपनों को जीते हुए किसी और की हुकूमउदूली करते हैं। वे अपने मन की कब कुछ कह या कर पाए हैं। 
फिक्र उन लोगों की हो रही है, जो साल भर से ज्यादा हुआ, अपने घरों में बंद रहे हैं। 
कोरोना काल के चलते पिछले दो सालों से बंद रोज़गार के अब उनके घरों में पता नहीं कितना अनाज बचा होगा। कैसे खाते-पीते होंगे उनके बच्चे।
पता नहीं कितने जा पाते होंगे अपने धान के खेतों में। अपनी बगानो में। यह तो धान की फसल तैयार होने का मौसम है। उनकी रखवाली कौन करता होगा।
जिनका गुजारा सैलानियों के सहारे होता था- वे घोड़े वाले, गाड़ी वाले, होटल वाले, हलवा-पूड़ी, भुट्टे, चाय और पकौड़े बेचने वाले। उनके बच्चे सलामत तो हैं न मेरे भाई! 
पहाड़ों से जो गए थे मैदानों में या मैदानों से जो गए थे पहाड़ों पर, रोजगार की तलाश में। जो सड़कें बनाते थे, होटलों, रेस्तरां, सैलानी झोपड़ियों में बर्तन मांजते,  झाड़ू-बुहारी करते खाना पकाते-परोसते थे। किराए के एक कमरे में दस-दस जन ठुंसे रह कर पैसे जमा कर अपने गांव लौट कोई बेहतर ठीया बनाने का सपना देखा करते थे। पता नहीं, अब उनके क्या समाचार हैं। पता नहीं, उनमें से कितने वापस लौट पाए, कितने वहीं हैं। 

हो सके, तो अपनी कुछ खोज-खबर देना, मेरे भाई।
अपनी 24साल की आयु पूर्ण कर 25वें बसंत की दहलीज़ पर कदम रखा तो तुमने, पर जरा संभलकर चलना मेरे भाई, समय बहुत कठिन है आज….
डबडबातीं अखियों से शुभ रात्रि 🙏🏻

Sunday, 12 September 2021

"तुम महाभारत का क्या अर्थ जानते हो?"

शास्त्र कहते हैं कि अठारह दिनों के महाभारत युद्ध में उस समय की पुरुष जनसंख्या का 80% सफाया हो गया था। युद्ध के अंत में, संजय कुरुक्षेत्र के उस स्थान पर गए जहां संसार का सबसे महानतम युद्ध हुआ था।

उसने इधर-उधर देखा और सोचने लगा कि क्या वास्तव में यहीं युद्ध हुआ था? यदि यहां युद्ध हुआ था तो जहां वो खड़ा है, वहां की जमीन रक्त से सराबोर होनी चाहिए। क्या वो आज उसी जगह पर खड़ा है जहां महान पांडव और कृष्ण खड़े थे?


तभी एक वृद्ध व्यक्ति ने वहां आकर धीमे और शांत स्वर में कहा, "आप उस बारे में सच्चाई कभी नहीं जान पाएंगे!"

संजय ने धूल के बड़े से गुबार के बीच दिखाई देने वाले भगवा वस्त्रधारी एक वृद्ध व्यक्ति को देखने के लिए उस ओर सिर को घुमाया।

"मुझे पता है कि आप कुरुक्षेत्र युद्ध के बारे में पता लगाने के लिए यहां हैं, लेकिन आप उस युद्ध के बारे में तब तक नहीं जान सकते, जब तक आप ये नहीं जान लेते हैं कि असली युद्ध है क्या?" बूढ़े आदमी ने रहस्यमय ढंग से कहा।

"तुम महाभारत का क्या अर्थ जानते हो?" तब संजय ने उस रहस्यमय व्यक्ति से पूछा।

वह कहने लगा, "महाभारत एक महाकाव्य है, एक गाथा है, एक वास्तविकता भी है, लेकिन निश्चित रूप से एक दर्शन भी है।"

वृद्ध व्यक्ति संजय को और अधिक सवालों के चक्कर में फसा कर मुस्कुरा रहा था।

"क्या आप मुझे बता सकते हैं कि दर्शन क्या है?" संजय ने निवेदन किया।

अवश्य जानता हूं, बूढ़े आदमी ने कहना शुरू किया। पांडव कुछ और नहीं, बल्कि आपकी पाँच इंद्रियाँ हैं - दृष्टि, गंध, स्वाद, स्पर्श और श्रवण - और क्या आप जानते हैं कि कौरव क्या हैं? उसने अपनी आँखें संकीर्ण करते हुए पूछा।

कौरव ऐसे सौ तरह के विकार हैं, जो आपकी इंद्रियों पर प्रतिदिन हमला करते हैं लेकिन आप उनसे लड़ सकते हैं और जीत भी सकते है। पर क्या आप जानते हैं कैसे?

संजय ने फिर से न में सर हिला दिया।

"जब कृष्ण आपके रथ की सवारी करते हैं!" यह कह वह वृद्ध व्यक्ति बड़े प्यार से मुस्कुराया और संजय अंतर्दृष्टि खुलने पर जो नवीन रत्न प्राप्त हुआ उस पर विचार करने लगा..

"कृष्ण आपकी आंतरिक आवाज, आपकी आत्मा, आपका मार्गदर्शक प्रकाश हैं और यदि आप अपने जीवन को उनके हाथों में सौप देते हैं तो आपको फिर चिंता करने की कोई आवश्कता नहीं है।" वृद्ध आदमी ने कहा।

संजय अब तक लगभग चेतन अवस्था में पहुंच गया था, लेकिन जल्दी से एक और सवाल लेकर आया।

फिर कौरवों के लिए द्रोणाचार्य और भीष्म क्यों लड़ रहे हैं?

भीष्म हमारे अहंकार का प्रतीक हैं, अश्वत्थामा हमारी वासनाएं, इच्छाएं हैं, जो कि जल्दी नहीं मरतीं। दुर्योधन हमारी सांसारिक वासनाओं, इच्छाओं का प्रतीक है। द्रोणाचार्य हमारे संस्कार हैं। जयद्रथ हमारे शरीर के प्रति राग का प्रतीक है कि 'मैं ये देह हूं' का भाव। द्रुपद वैराग्य का प्रतीक हैं। अर्जुन मेरी आत्मा हैं, मैं ही अर्जुन हूं और  स्वनियंत्रित भी हूं। कृष्ण हमारे परमात्मा हैं। पांच पांडव पांच नीचे वाले चक्र भी हैं, मूलाधार से विशुद्ध चक्र तक। द्रोपदी कुंडलिनी शक्ति है, वह जागृत शक्ति है, जिसके ५ पति ५ चक्र हैं। ओम शब्द ही कृष्ण का पांचजन्य शंखनाद है, जो मुझ और आप आत्मा को ढ़ाढ़स बंधाता है कि चिंता मत कर मैं तेरे साथ हूं, अपनी बुराइयों पर विजय पा, अपने निम्न विचारों, निम्न इच्छाओं, सांसारिक इच्छाओं, अपने आंतरिक शत्रुओं यानि कौरवों से लड़ाई कर अर्थात अपनी मेटेरियलिस्टिक वासनाओं को त्याग कर और चैतन्य  पाठ पर आरूढ़ हो जा, विकार रूपी कौरव अधर्मी एवं दुष्ट प्रकृति के हैं।

श्री कृष्ण का साथ होते ही ७२००० नाड़ियों में भगवान की चैतन्य शक्ति भर जाती है, और हमें पता चल जाता है कि मैं चैतन्यता, आत्मा, जागृति हूं, मैं अन्न से बना शरीर नहीं हूं, इसलिए उठो जागो और अपने आपको, अपनी आत्मा को, अपने स्वयं सच को जानो, भगवान को पाओ, यही भगवद प्राप्ति या आत्म साक्षात्कार है, यही इस मानव जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य है।

ये शरीर ही धर्म क्षेत्र, कुरुक्षेत्र है। धृतराष्ट्र अज्ञान से अंधा हुआ मन है। अर्जुन आप हो, संजय आपके आध्यात्मिक गुरु हैं।

वृद्ध आदमी ने दुःखी भाव के साथ सिर हिलाया और कहा, "जैसे-जैसे आप बड़े होते हैं, अपने बड़ों के प्रति आपकी धारणा बदल जाती है। जिन बुजुर्गों के बारे में आपने सोचा था कि आपके बढ़ते वर्षों में वे संपूर्ण थे, अब आपको लगता है वे सभी परिपूर्ण नहीं हैं। उनमें दोष हैं। और एक दिन आपको यह तय करना होगा कि उनका व्यवहार आपके लिए अच्छा या बुरा है। तब आपको यह भी अहसास हो सकता है कि आपको अपनी भलाई के लिए उनका विरोध करना या लड़ना भी पड़ सकता है। यह बड़ा होने का सबसे कठिन हिस्सा है और यही वजह है कि गीता महत्वपूर्ण है।"

संजय धरती पर बैठ गया, इसलिए नहीं कि वह थका हुआ था, थक गया था, बल्कि इसलिए कि वह जो समझ लेकर यहां आया था, वो एक-एक कर धराशाई हो रही थी। लेकिन फिर भी उसने लगभग फुसफुसाते हुए एक और प्रश्न पूछा, तब कर्ण के बारे में आपका क्या कहना है?

"आह!" वृद्ध ने कहा। आपने अंत के लिए सबसे अच्छा प्रश्न बचाकर रखा हुआ है।

"कर्ण आपकी इंद्रियों का भाई है। वह इच्छा है। वह सांसारिक सुख के प्रति आपके राग का प्रतीक है। वह आप का ही एक हिस्सा है, लेकिन वह अपने प्रति अन्याय महसूस करता है और आपके विरोधी विकारों के साथ खड़ा दिखता है। और हर समय विकारों के विचारों के साथ खड़े रहने के कोई न कोई कारण और बहाना बनाता रहता है।"

"क्या आपकी इच्छा; आपको विकारों के वशीभूत होकर उनमें बह जाने या अपनाने के लिए प्रेरित नहीं करती रहती है?" वृद्ध ने संजय से पूछा।

संजय ने स्वीकारोक्ति में सिर हिलाया और भूमि की तरफ सिर करके सारी विचार श्रंखलाओं को क्रमबद्ध कर मस्तिष्क में बैठाने का प्रयास करने लगा। और जब उसने अपने सिर को ऊपर उठाया, वह वृद्ध व्यक्ति धूल के गुबारों के मध्य कहीं विलीन हो चुका था। लेकिन जाने से पहले वह जीवन की वो दिशा एवं दर्शन दे गया था, जिसे आत्मसात करने के अतिरिक्त संजय के सामने अब कोई अन्य मार्ग नहीं बचा था।

🙏 *!! जय श्रीकृष्ण !!* 🙏

Monday, 6 September 2021

सरकार ने जुआ और लॉटरी खेलने की इजाज़त दे दी!


पाई-पाई को मोहताज़ एमपी की शिवराज सरकार ने अब राज्य में जुए और लॉटरी की इजाज़त दे दी है। शराब, पेट्रोल-डीजल पर वैट और देश की सबसे महंगी बिजली के बिल वसूलकर भी खज़ाना नहीं भर रहा है।


1990 में बीजेपी की ही सुंदरलाल पटवा सरकार ने लॉटरी को कानूनी जामा पहनाया था। तब दर्जनों खुदकुशी के बाद सरकार ने उसे बंद भी कर दिया।

संस्कृति की दुहाई देने वाली बीजेपी की सरकार एमपी में जुआ और लॉटरी के दम पर चलेगी। सरकार की अधिसूचना 23 अगस्त की है। शिवराज सरकार ने बड़े मीडिया हाउस को दलाली देकर खबर तो दबा दी।

लेकिन कांग्रेसियों के कान में भी जूं नहीं रेंगी? ये कमाल नहीं, कमलनाथ का मैनेजमेंट है।

एमपी में कमल यूं ही नहीं खिला हुआ है।

Sunday, 5 September 2021

संवाद लड़ते हुए लोगों में भी स्थापित करता है प्रेम, बस ध्यान रहे संवाद बना रहे लगातार। संवाद गालियों के असर को भी, गुलाबी करने में सक्षम है..।


♦️ ये कहानी आपको झकझोर देगी 2 मिनट में एक अच्छी सीख अवश्य पढ़ें....

एक बार एक हंस और हंसिनी हरिद्वार के सुरम्य वातावरण से भटकते हुए, उजड़े वीरान और रेगिस्तान के इलाके में आ गये!

हंसिनी ने हंस को कहा कि ये किस उजड़े इलाके में आ गये हैं ?? 

यहाँ न तो जल है, न जंगल और न ही ठंडी हवाएं हैं यहाँ तो हमारा जीना मुश्किल हो जायेगा !

भटकते-भटकते शाम हो गयी तो हंस ने हंसिनी से कहा कि किसी तरह आज की रात बीता लो, सुबह हम लोग हरिद्वार लौट चलेंगे !

रात हुई तो जिस पेड़ के नीचे हंस और हंसिनी रुके थे, उस पर एक उल्लू बैठा था।

वह जोर से चिल्लाने लगा।

हंसिनी ने हंस से कहा- अरे यहाँ तो रात में सो भी नहीं सकते।

ये उल्लू चिल्ला रहा है। 


हंस ने फिर हंसिनी को समझाया कि किसी तरह रात काट लो, मुझे अब समझ में आ गया है कि ये इलाका वीरान क्यूँ है ??

ऐसे उल्लू जिस इलाके में रहेंगे वो तो वीरान और उजड़ा रहेगा ही।

पेड़ पर बैठा उल्लू दोनों की बातें सुन रहा था।

सुबह हुई, उल्लू नीचे आया और उसने कहा कि हंस भाई, मेरी वजह से आपको रात में तकलीफ हुई, मुझे माफ़ करदो।

हंस ने कहा- कोई बात नही भैया, आपका धन्यवाद! 

यह कहकर जैसे ही हंस अपनी हंसिनी को लेकर आगे बढ़ा 

पीछे से उल्लू चिल्लाया, अरे हंस मेरी पत्नी को लेकर कहाँ जा रहे हो।

हंस चौंका- उसने कहा, आपकी पत्नी ??

अरे भाई, यह हंसिनी है, मेरी पत्नी है,मेरे साथ आई थी, मेरे साथ जा रही है!

उल्लू ने कहा- खामोश रहो, ये मेरी पत्नी है।

दोनों के बीच विवाद बढ़ गया। पूरे इलाके के लोग एकत्र हो गये। 

कई गावों की जनता बैठी। पंचायत बुलाई गयी। 

पंचलोग भी आ गये!

बोले- भाई किस बात का विवाद है ??

लोगों ने बताया कि उल्लू कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है और हंस कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है!

लम्बी बैठक और पंचायत के बाद पंच लोग किनारे हो गये और कहा कि भाई बात तो यह सही है कि हंसिनी हंस की ही पत्नी है, लेकिन ये हंस और हंसिनी तो अभी थोड़ी देर में इस गाँव से चले जायेंगे।

हमारे बीच में तो उल्लू को ही रहना है। 

इसलिए फैसला उल्लू के ही हक़ में ही सुनाना चाहिए! 

फिर पंचों ने अपना फैसला सुनाया और कहा कि सारे तथ्यों और सबूतों की जाँच करने के बाद यह पंचायत इस नतीजे पर पहुंची है कि हंसिनी उल्लू की ही पत्नी है और हंस को तत्काल गाँव छोड़ने का हुक्म दिया जाता है!

यह सुनते ही हंस हैरान हो गया और रोने, चीखने और चिल्लाने लगा कि पंचायत ने गलत फैसला सुनाया। 

उल्लू ने मेरी पत्नी ले ली!

रोते- चीखते जब वह आगे बढ़ने लगा तो उल्लू ने आवाज लगाई - ऐ मित्र हंस, रुको!

हंस ने रोते हुए कहा कि भैया, अब क्या करोगे ?? 

पत्नी तो तुमने ले ही ली, अब जान भी लोगे ?

उल्लू ने कहा- नहीं मित्र, ये हंसिनी आपकी पत्नी थी, है और रहेगी! 

लेकिन कल रात जब मैं चिल्ला रहा था तो आपने अपनी पत्नी से कहा था कि यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ उल्लू रहता है! 

मित्र, ये इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए नहीं है कि यहाँ उल्लू रहता है।

यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ पर ऐसे पंच रहते हैं जो उल्लुओं के हक़ में फैसला सुनाते हैं!

♦️शायद इतने साल की आजादी के बाद भी हमारे देश की दुर्दशा का मूल कारण यही है कि हमने उम्मीदवार की योग्यता व गुण आदि न देखते हुए हमेशा, ये हमारी बिरादरी का है, ये हमारी पार्टी का है, ये हमारे एरिया का है, के आधार पर हमेशा अपना फैसला उल्लुओं के ही पक्ष में सुनाया है, देश क़ी बदहाली और दुर्दशा के लिए कहीं न कहीं हम भी जिम्मेदार हैँ!

Wednesday, 1 September 2021

ख्वाहिशें क्या है?

किसी ने क्या खूब कहा है, व्यवहार में बच्चा होना,काम में जवान होना और अनुभव में वृद्ध होना,किसी भी व्यक्ति को सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचा देता है !!!


♦️ ख्वाहिशें क्या है? इस प्रश्न को पढ़ते ही शायर जावेद अख्तर का एक शेर याद आ गया…


न फिक्र कोई, न जुस्तजू (तलाश) है…
न ख़्वाब कोई, न आरज़ू है,
ये शख्स तो कब का मर चुका है
तो बेकफ़न फिर यह लाश क्यों है ?

आरजू, तमन्ना, ख्वाहिशें ये हमारे जिंदा होने का सुबूत हैं। लेकिन मुसीबत यह है कि यही ख्वाहिशें इंसान के दुखी होने का एक मुख्य कारण भी हैं।

तो फिर क्या करें ???

क्या बिना ख्वाहिश की जिंदगी संभव है ???

मेरे विचार से, नहीं …

क्योंकि "ख्वाहिशों से मुक्त हो जाने की ख्वाहिश" भी आखिर तो एक "ख्वाहिश" ही है। व्यंग्य की भाषा में बात करूं तो ख्वाहिश और कुछ नहीं गधे के आगे लटकी हुई है गाजर है और गधे महाशय गाजर को पाने की चाहत में लगातार आगे बढ़ते रहते हैं। खुशकिस्मती से अगर वो गाजर पाने में कामयाब भी हो गए तो उसके बाद फिर एक नई गाजर प्रकट हो जाती है यह लगातार जारी रहने वाला सिलसिला है। 

अब आप कहेंगे कि इंसान का मुकाबला गधे से??? भई यह तो बड़ी गलत बात है। 

बात तो वाकई गलत है, गधे के साथ नाइंसाफी है ये क्योंकि गधा सिर्फ अपनी गाजर पर ही टारगेट करता है जबकि इंसान आस-पड़ोस के "गधों" की गाजर पर भी निगाह रखता है इसीलिए हमेशा दुखी रहता है। 

ये इंसानी फितरत है, स्वभाव है, कि हर इंसान के पास जो है उसे उससे कुछ ज्यादा चाहिए। इसी पर जावेद अख्तर साहब का एक "गागर में सागर" जैसा शेर है, कि

सबका खुशी से फासला..
बस एक कदम है…
हर घर में…
बस एक ही कमरा कम है

आप सोच रहे होंगे कि मुख्य प्रश्न को छोड़कर प्रवचन पिलाये जा रहा है। हाँ तो सवाल यह है कि मेरी ख्वाहिश क्या है ?

लॉन्ग टर्म ख्वाहिशें तो अपनी जगह पर ज्यों की त्यों खड़ी हैं लेकिन शॉर्ट टर्म ख्वाहिशें यानी आज सुबह से एक भी ख्वाहिश फलित नहीं हुई। 

आज सुबह रिमझिम बारिश हो रही थी। 
मेरी ख्वाहिश ने करवट बदली…

यार आज कोई एक कप और बिस्तर पर चाय पिला दे ऐसे में तो मजा आ जाए, मैंने याचना के स्वर में एक ख्वाहिश जाहिर की… 
वह भी इनडायरेक्ट..
पर मेरी पहली ख्वाहिश हवा में उड़ गई…

ब्रेकफास्ट के समय मेरी एक ख्वाइश फिर से बाहर आ गई…
यार आज बारिश हो रही है आज तो गरमा गरम पकौड़े का मौसम है। एक जमाने में बारिश होने पर कुछ गरमा गरम रोमांटिक ख्वाहिशें करवटें लेती थीं, आज वही ख्वाहिशें गरमा गरम पकौड़ों तक सीमित रह गई हैं…

पहले नहीं बोल सकते थे तुम ??? अब तो नाश्ता बन गया है … 
तुनक कर जवाब मिला…
फिर मेरी एक दूसरी ख्वाहिश भी मुँह के बल गिरी …
मैं आज कहीं नहीं जाऊँगा, मैंने भी बौखला कर जवाब दे दिया। 
उसके बाद मैं अपने सेलफोन पर व्यस्त था, हमारी मुख्य गृह प्रभारी आज काफी अशांत लग रही थी और लगातार कुछ बड़बड़ाए जा रही थी। कहते हैं ना………

"पेट खाली हो तो प्यार का ज्वार भी उतर जाता है."

ओहो मैं तो भूल ही गया, सवाल "मेरी ख्वाहिश" पर था…

इस बे सिर पैर के आलेख को पोस्ट करने के बावजूद मेरी निगाहें इस पर आए "व्यूज" "लाईक" और "कमेंट" पर रहेंगी। व्यूज़… लाईक और कमेंट …!!! बार-बार फेसबुक की एप्लीकेशन पर लपक लपक कर झाँकूँगा और देखूंगा, कितने हो गए। अगर यह तीनों मनमर्जी के आ गए तो अगला दिन अच्छा गुजरेगा। क्यूँकि लॉकडाउन के कारण अब भी लगभग ख़ाली ही हूँ। 

आजकल फेसबुक के सिस्टम बिल्कुल ठिकाने पर नहीं है। लेकिन फेसबुक में दिलचस्पी न होने के बावजूद उन्होंने पलटकर जवाब दिया। व्यूज़ नहीं आ रहे होंगे… और क्या ??? उन्होंने अंतर्यामी की तरह मेरे मन की बात पढ़ ली। एक बात कहूँ ??? आजकल तुम्हारे आर्टिकल्स में वह पहले वाली बात नहीं रही उन्होंने साफ-साफ सुना दिया। 

फिर से मेरी एक छोटी सी ख्वाहिश ने सर उठाया। इसी के साथ मुझे वह शेर फिर याद आया…

सबका खुशी से फासला..
बस एक कदम है…
हर घर में…
बस एक ही कमरा कम है..!!