आज पूरे विश्व के साथ-साथ भले ही हमारे देश के लोग अब तक की सबसे बड़ी तालाबंदी का सामना कर रहे हों और इसकी तकलीफें अपार हों, लेकिन भारत में कोरोना संक्रमण के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। कोरोना संक्रमण के मामले में भारत अब दुनिया भर में अपना एक विशेष स्थान बना रहा है।
चौबीस मार्च को जब पूरे भारत को ताले में बंद करने की घोषणा की गई थी, उस समय भारत सबसे ज्यादा प्रभावित बीस देशों की सूची में शामिल नहीं था। कोरोना वायरस संक्रमण के आंकड़े लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं।
जाहिर है कि कोरोना संकट के बहाने बहुत सारे पुराने बदले भी चुकाए जा रहे हैं। दुश्मनी निकाली जा रही है। लेकिन, इन सबके बीच मेरी निगाह इकोनामिक्स टाइम्स में 27 अप्रैल को छपी एक खबर की तरफ जाती है। भारत हथियारों की खरीद करने वाले देशों की सूची में तीसरे नंबर पर पहुंच गया है।
स्टाकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के हवाले से खबर बताती है कि भारत ने वर्ष 2019 में अपनी सैन्य संरचनाओं पर 71.1 बिलियन डॉलर रुपये का खर्च किया है। पिछले साल की तुलना में इसमें 6.8 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इसके साथ ही सैन्य खर्च के मामले में भारत तीसरे स्थान पर पहुंच गया है। पहले स्थान पर अमेरिका, दूसरे पर चीन है। जबकि, चौथे पर रूस और पांचवें पर सऊदी अरेबिया है। दुनिया भर में हथियारों या सैन्यसंरचनाओं पर कुल जितना पैसा खर्च होता है उसका 62 फीसदी खर्च केवल ये पांच देश ही कर देते हैं।
अमेरिका वह देश है जो दुनिया में हथियारों पर सबसे ज्यादा पैसा खर्च करता है। संस्थान का अनुमान है कि दुनियाभर में सैन्य संरचना पर वर्ष 2019 में कुल 1917 अरब डॉलर का खर्च किया गया है। इसमें से 38 फीसदी रकम अकेले अमेरिका ने खर्च की है। जबकि, चीन ने 14 फीसदी रकम खर्च की है।
भारत में पिछले तीस सालों में सैन्य संरचनाओं पर होने वाले खर्च में 259 फीसदी का इजाफा हुआ है। सिर्फ 2010 से 2019 के बीच ही इसमें 37 फीसदी का इजाफा हुआ है।
हैरानी की बात देखिए कि ये सारा खर्च ये सारे देश सिर्फ अपनी रक्षा के नाम पर कर रहे हैं। वे रक्षा के नाम पर ज्यादा से ज्यादा घातक हथियारों को विकसित करते हैं। उनकी खरीद करते हैं। सभी के यहां विभाग का नाम रक्षा ही है। लेकिन, काम उनका धौंसपट्टी और आक्रमण है। जानते ही हैं कि अमेरिका का रक्षा विभाग जाने कितने देशों पर हमला कर चुका है। लेकिन, उसका नाम अभी तक नहीं बदला है।
वहीं, अपने देश की स्थिति देखिए तो बीते तीस सालों में सैन्य संरचनाओं पर तेजी से खर्च बढ़ा है। ये वही तीस साल हैं जब सरकार ने अपनी जिम्मेदारियों से पीछा छुड़ाना शुरू किया। शिक्षा, चिकित्सा, परिवहन से लेकर जनता की तमाम जरूरतों को निजी क्षेत्रों में ज्यादा से बेचा जाने लगा। उदारीकरण के नाम पर बर्बादीकरण हुआ। सरकार अपनी जिम्मेदारियों से पीछे हट गई। वह टैक्स तो वसूलती है। लेकिन, सेवाएं नहीं देती। सेवाओं के लिए आपको अलग से रकम खर्च करनी होगी और उसे पूंजीपतियों से खरीदना होगा।
तमाम निजी स्कूल-कॉलेज, अस्पताल, प्राइवेट ट्रांसपोर्ट से लेकर प्राइवेट सुरक्षा तक सभी इसी तीस साल की देन है।
हम सभी अपने समाज से सुनते आए है अच्छी सेहत ही सबसे बड़ा धन है सोचिए, दुनिया के देशों ने यह पैसा हथियारों को जमा करने की बजाय अगर लोगों की सेहत सुधारने में लगाई होती तो क्या हुआ होता।
क्या इस दुनिया से अलग दूसरे तरह की दुनिया संभव नहीं है !!!
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