अक्सर लोगों को कहते सुना है ज़िन्दगी इम्तिहान लेती है, हर पल, हर मोड़ पर, फिर कौन जाने ये दिन भी एक परीक्षा हों, कि देखें कौन पहले टूटता है। किसके अंदर की सजावट और तरतीब पहले तितर-बितर होती है। किसका ज़ेहन पहले कुंद होता है। क्या पता कि ये एक आज़माइश हो!
तब ईश्वर ने जिनको दुलार से पाला, जिनके मन का ही हरदम हुआ, वो इससे फ़ौरन हताश होंगे। हारकर पूछ बैठेंगे कि यह सब क्यूँ हो रहा है, जैसे कि ज़िंदगी एक आरामगाह थी, जिसमें मेज़ पर हमेशा उनकी पसंद के फूलों ने रहना था!
पर ईश्वर के सौतेले इसमें देर तक टिकेंगे, शायद वो आख़िर तलक अडोल रहें!
वो जिनको बुरी ख़बरों ने पोसा, अकेलेपन ने अंगुली पकड़ चलना सिखाया, जिनकी बुद्धि ने उनमें निस्संगता भर दी। पतंग के काग़ज़ जैसे पारदर्शी जिनके लिए जीवन के सारे प्रतिमान हो गए। किंतु वो ऐसे नाशुक्रे हैं कि इस बढ़त पर छाती न फुलाएंगे, जीत का कोई दावा पेश ना करेंगे।
जब सब पहले जैसा हो जाएगा और लोग अपनी पुरानी आदतों में लौट जाएंगे तो ज़रूर वो मन ही मन सोचेंगे कि ये फिर वही भूल दोहराते हैं, इन्होंने अभी सबक़ सीखा नहीं! कि यहाँ कोई संगी नहीं है, सब अकेले हैं। ये जलसा झूठ है, भरम है। इन बेपता दिनों ने जिस सच को उघाड़ दिया था, उसको अब गांठ बांधकर रखना। इस खोखलेपन को भूलना नहीं, ये ज़िंदगी ऐसी ही बेसबब है!
पर आदत के बतौर वो तब भी चुप रहेंगे, यह बात भी किसी से बांटेंगे नहीं! बस दौरे-जहाँ की फ़ितरत को देख मुँह ही मुँह मुस्काएंगे! खैर जैसी भी हो ज़िन्दगी उसे खुल के आज़ाद तरीक़े से बिन्दास जीयो, यही हाल-ए-ख़ुशी का नायाब तरीका है।
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